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छल - Story of love and betrayal - अंतिम भाग

तीनों ने हैरानी और दर्द में चिल्लाते हुए मुड़कर देखा तो सामने भैरव खड़ा था, भैरव दौड़कर प्रेरित के पास जाने लगा तो नितेश उसे पकड़ कर बोला,

" ओहो.. तू? अभी तक… तेरी आशिकी उतरी नहीं, चलो अच्छा है तुझे भी ऊपर पहुंचा देंगे ",

तभी प्रेरणा ने नितेश की और चाकू फेंका और नितेश ने भैरव पर वार किया लेकिन उससे पहले नितेश के उस हाथ में गोली आकर लग गई, तीनों ने उधर देखा तो प्रेरित खड़ा था दूसरी गन लेकर |

तीनों सन्न रह गए प्रेरित को खड़ा देखकर, भैरव ने खुशी से कहा," भगवान का शुक्र है, साब जी, आप ठीक हो" |

तीनों समझ चुके थे कि उनके साथ क्या होने वाला है, तीनों घायल पैरों से इधर उधर भागने लगे |

प्रेरित - "तुम तीनों को क्या लगा, तुम तीनों के मारने के लिए मैं ऐसे ही बिना तैयारी आ जाऊंगा, मैंने बुलेट प्रूफ सूट पहन रखा है क्योंकि मुझे पता था तुम दोनों अपनी चालाकी से बाज नहीं आओगे और मुझे मारने की कोशिश जरूर करोगे और रही बात गन की तो वो तो और भी हैं" |

भैरव और प्रेरित ने मिलकर तीनों को एक साथ बांध दिया और तीनों के हाथ और पैरों पर कई गोलियां मार दी ताकि वो मौका पाने के बाद भी भाग ना सके, इसके बाद गैस की पाइप लाइन भैरव ने तोड़ कर आग लगा दी और देखते देखते बर्मिंघम पैलेस आग का गोला बन गया |

प्रेरित ने भैरव से पूछा, "तुम कब आ गए यहां"?

भैरव ने हंसते हुए कहा - "साब जी, मैं आपको अकेला कैसे छोड़ देता, आपने मेरी कितनी मदद की और वैसे भी आप निर्दोष हो मैंने सारी बातें आज सुन ली" |

तभी प्रेरित ने बच्चे के रोने की आवाज सुनी वो कोडी की आवाज थी | प्रेरित ने उसे नजरअंदाज करना चाहा पर उसे उसमें उसका स्वप्निल रोता हुआ दिखने लगा, उसने दौड़ कर बच्चे को उठाया और गले से लगा लिया | दोनों की आंखों में आंसू आ गए ।

सब कुछ ठीक हो चुका था, छल का विनाशकारी खेल खत्म हो चुका था | प्रेरित और भैरव कोडी को लेकर भारत आ गए, अब दुख था तो सिर्फ स्वप्निल को खोने का पर अब क्या हो सकता था, ज्यादा छानबीन प्रेरित करा नहीं सकता था क्योंकि दुनिया के लिए वह मर चुका था |

सब ठीक होने के बाद एक दिन प्रेरित कोडी और भैरव अपने परिवार के साथ मंदिर गए, भगवान को धन्यवाद जो करना था |

अब दोनों का मन शांत थ, भैरव ने सीमा की आत्मा की शांति का पाठ कराया, प्रेरित ने मां और चाचा जी की आत्मा की शांति का पाठ कराया और गरीबों को भोजन कराया, अनाथों को कपड़े बांटे तभी एक गूंगा और लंगड़ा प्रेरित के पैरों से लिपट गया, प्रेरित ने उसे कुछ पैसे दिए पर वह जा ही नहीं रहा था, ध्यान से देखने पर पता चला वह गूंगा और कोई नहीं उसका अपना बेटा स्वप्निल था, उसने उसको गले लगा कर चूम डाला और भगवान को लाखों बार धन्यवाद किया |

स्वप्निल से पता चला कि तस्करों के चंगुल से वह भाग आया पर डर से अपने घर नहीं आ पाया तभी उसे कुछ भिखारियों ने पकड़ लिया और उसके पैर की हड्डी तोड़ कर भीख मंगवाने लगे, इतने साल हो गये लेकिन वो प्रेरित को देखते ही पहचान गया, डॉक्टरों की मदद से स्वप्निल के पैर का ऑपरेशन हो गया और वह अच्छे से चलने लगा पर उसकी आवाज वापस ना सकी | प्रेरित कोडी और स्वप्निल को लेकर हिमाचल के एक छोटे से गांव में जाकर सुकून से रहने लगा |

भैरव ने प्रेरित की मदद से एक टैक्सी सर्विस की कंपनी खोली और अपने परिवार के साथ खुशी से रहने लगा |

दोस्तों ये थी कहानी छल की, धोखे और विश्वासघात की जो कभी भी कहीं भी किसी को भी अपना शिकार बना सकता है |


अरे… रुकिए!! और सोचिए कहीं.. आप भी तो इस छल के शिकार नहीं |

समाप्त |