Ek bund Ishq - 27 books and stories free download online pdf in Hindi

एक बूंद इश्क - 27

२७.शादी-एक पवित्र बंधन


सगाई के बाद दूसरे दिन अपर्णा अपने कमरे में सो रही थी और नीचे उसकी हल्दी की रस्म की तैयारियां चल रही थी। उसी वक्त आरुषि आई। जिसे वंदिता जी ने ही बुलाया था। आखिरकार आरुषि अपर्णा की बेस्ट फ्रेंड थी। आरुषि आकर सब से मिली और सीधा अपर्णा के कमरें में पहुंच गई। उसने आते ही खिड़की का पर्दा हटाकर उसे खोल दिया। उसी के साथ अपर्णा ने उठकर कहा, "आरुषी! तुम यहां?"
अपर्णा ने अभी तक आरुषि का चेहरा नहीं देखा था। वह खिड़की की तरफ मुंह किए खड़ी थी। लेकिन उसकी इस हरकत से अपर्णा को पता चल गया कि वह आरुषी ही है। क्यूंकि बनारस में भी वह अपर्णा को इसी तरह उठाया करती थी।
आरुषि आकर सीधा अपर्णा के गले लग गई और कहने लगी, "मैं तुम्हारे लिए बहुत खुश हूं। आखिरकार तुम्हें अपने सपनों का राजकुमार मिल ही गया। लेकिन तुमने इतनी बड़ी बात मुझे नहीं बताई। वो तो अच्छा हुआ आन्टी ने मुझे फोन किया।" कहकर आरुषि ने मुंह बना लिया।
"सोरी, माफ़ कर दे। लेकिन सब इतना जल्दी में हुआ कि मौका ही नहीं मिला।" अपर्णा ने कान पकड़कर कहा।
"चल कोई नहीं। मैं तुम्हें हल्दी के लिए तैयार कर देती हूं।" आरुषि ने उठकर कहा। अपर्णा नहाने के लिए चलीं गईं। फिर आरुषि उसे तैयार करके नीचे ले आई। रुद्र के घर से हल्दी आते ही हल्दी की रस्म शुरू हो गई। सब बहुत खुश थे। लेकिन सब के दिल में एक खटका जरूर था। जो ये था कि ये सारी खुशियां कभी भी मातम में बदल सकती है।
वंदिता जी ने जब अपर्णा के चेहरे पर मुस्कान देखी तो उन्हें डॉक्टर की कही बात याद आ गई, "देखिए वंदिता जी, पैसों की कोई बात ही नहीं है। लेकिन हम इसमें कुछ नहीं कर सकते। अपर्णा के पास कितना वक्त है? ये हम भी नहीं कह सकते। क्यूंकि इस बिमारी में हार्ट कब पूरी तरह से काम करना बंद कर दें? कुछ कहा नहीं जा सकता। आप बस इतना कर सकती है, कि अपर्णा को कभी किसी बात का धक्का ना लग पाएं। उसके सामने कभी ऐसी कोई बात मत करना जिससे उसे बहुत ज्यादा दुःख हो। बाकी सब तो भगवान के हाथ में है।"
डॉक्टर की बातें याद आते ही वंदिता जी की आंखें भर आई। तभी अखिल जी ने उनके कंधे पर हाथ रखा तो उन्होंने खुद को संभाल लिया। हल्दी की रस्म के बाद संगीत और मेहंदी की रस्म की तैयारियां होने लगी। अपर्णा हल्दी उतारकर नीचे आई। तब तक मेहंदी वाली आ चुकी थी। उसने अपर्णा को मेहंदी लगाना शुरू किया। कबीर और आरुषि ने गानों पर डांस किया।
रस्मों के बीच वंदिता जी के कहे मुताबिक एक डेकोरेशन टीम आई थी। जो घर को सजाने में लगी थी। मेहंदी लग जाने के बाद आरुषि अपर्णा को उसके कमरे में लेकर आ गई। फिर खुद कुछ काम से नीचे चली गई। अपर्णा बेड पर बैठकर अपने हाथों में लिखा रूद्र का नाम देखने लगी। मुंबई आने के बाद कुछ ही वक्त में बहुत कुछ बदल चुका था। अपर्णा ने तो सोचा भी नहीं होगा कि बनारस के घाट पर हुई एक मुलाकात ऐसे किसी बंधन में बंध जाएंगी। अपर्णा यही सब सोच रहीं थी। तभी उसे रूद्र का फोन आया।
"बोलिए वहां क्या चल रहा है?" अपर्णा ने फोन कान से लगाकर पूछा।
"बस अपनी हथेली में तुम्हारा नाम लिखवाकर अपने कमरें में बैठकर उसे देख रहा हूं। तुम क्या कर रही हो?" रूद्र ने कहा तो अपर्णा के चेहरे पर मुस्कान आ गई।
"मैं भी वहीं कर रही हूं। जो आप कर रहे है।" अपर्णा ने मुस्कुराकर कहा।
"अच्छा सुनो, शादी के बाद कहां जाना चाहोगी?" रुद्र ने अचानक से पूछा।
"वहीं जहां हमारी पहली मुलाकात हुई थी। महादेव का शुक्रिया अदा करना है कि उन्होंने आपको मेरी जिंदगी में भेजा।" अपर्णा ने कहा।
"शुक्रिया तो मुझे भी अदा करना है। उन्होंने मेरी लाइफ में तुम्हें जो भेजा। सोचा नहीं था वो एक मुलाकात हमें शादी के मंडप तक खींच जाएगी।" रुद्र ने कहा।
"तो फिर परसों बनारस जाते है। साथ में महादेव का शुक्रिया अदा करेंगे।" अपर्णा ने कहा।
"ठीक है, अभी तो हम बारात लेकर आपको लेने आते है।" रुद्र ने कहा और फोन काट दिया।

शाम में अपर्णा की मेहंदी सुख गई तो वह उसे निकालकर शादी का लहंगा पहनने लगी। आरुषि ने आकर उसे तैयार करना शुरू कर दिया। लाल शादी के लहंगे में अपर्णा बहुत प्यारी लग रही थी। हाथों में खनकती लाल चूड़ियां, पैरों में पायल, गले में नौलखा हार, होंठों की लाली, कानों में झुमके और चेहरे की प्यारी-सी मुस्कान उसे प्रोपर दुल्हन का लुक दे रही थी।
आरुषि ने देखा तो उसकी नज़र उतारकर कहने लगी, "आज़ तो रुद्र गया काम से।"
"चुप कर, कुछ भी बोलती है।" अपर्णा ने उसके कंधे पर मारते हुए कहा।
"वैसे मेरी एक बात तो सच्ची साबित हुई। जब तुम दोनों की उस रात अस्सी घाट पर टक्कर हुई। तभी मुझे लगा था कि तुम दोनों की कहानी जरूर आगे बढ़ेगी।" आरुषि ने चहकते हुए कहा।
"हां, तुम तो फ्यूचर रीडर हो ना, इसलिए तुम्हें सब पता होता है।" अपर्णा ने कहा।
दोनों बातें कर रही थी। उसी बीच नीचे से ढोल और पटाखों की आवाजें आने लगी। रुद्र बारात लेकर आ गया था। आरुषि तुरंत नीचे चली गई। अपर्णा अपने कमरे की खिड़की के पास आकर नीचे देखने लगी। लेकिन रुद्र उसे कहीं नहीं दिखा। तभी उसके कानों में एक आवाज़ पड़ी, "भाई आपका नीचे इंतज़ार कर रहे है। वह मंडप में जा चुके है और हम आपको ही लेने आएं है।"
अपर्णा ने पलटकर दरवाज़े की ओर देखा तो रुद्र की चाची और स्नेहा दरवाज़े पर खड़ी थी। चाची ने अपर्णा के पास आकर उसके कान के पीछे काला टीका लगाते हुए कहा, "बहुत सुंदर लग रही हो। किसी की नज़र ना लगे।"
अपर्णा ने सुना तो उसके चेहरे पर मुस्कान तैर गई। चाची और स्नेहा उसे लेकर नीचे आई। रुद्र ने अपर्णा को सीढ़ियां उतरकर नीचे आते देखा। तो उसकी सांसें ही रुक गई। शादी के लहंगे में अपर्णा एक मासूम सी लड़की लग रही थी। उसे देखकर रुद्र को अस्सी घाट पर अपर्णा ने रुद्र से जो बातें कही थी। वो याद आ गई तो रुद्र मुस्कुराने लगा। अपर्णा के नीचे आते ही अपर्णा की चाची उसे मंडप में ले आई। फ़िर रुद्र और अपर्णा ने एक-दूसरे को वरमाला पहनाई। उसके बाद शादी की विधि शुरु हो गई। फेरों और मंगलसूत्र पहनाने के बाद सिंदूरदान की विधि करते ही रुद्र और अपर्णा एक प्यारे और पवित्र बंधन में बंध गए। दोनों ने सभी बड़ों के आशीर्वाद लिए। आज़ से अपर्णा अग्निहोत्री परिवार की बहू बन गई थी।
वंदिता जी और अखिल जी अपर्णा के साथ ज्यादा वक्त नहीं रही रहे थे। फिर भी अपर्णा की बिदाई के वक्त उन दोनों का दिल भारी हो गया। रिश्ता जैसा भी रहा हो। लेकिन अपर्णा आखिरकार उन दोनों की बेटी थी। बिदाई के वक्त सब की आंखें नम थी। भारद्वाज परिवार ने भारी मन से अपर्णा को विदा किया और अग्निहोत्री परिवार अपनी बहू को लेकर अपने घर आ गया।

(क्रमशः)

_सुजल पटेल