Raj-Throne--Part(21) books and stories free download online pdf in Hindi

राज-सिंहासन--भाग(२१)

बसन्तसेना को पूर्णतः हर्षवर्धन पर विश्वास हो चला था,उसने मन में सोचा कि हर्षवर्धन ने मेरे लिए अपनी धर्मपत्नी को त्याग दिया,इसका तात्पर्य है कि वो मरी प्रसन्नता हेतु कठिन से कठिन कार्य को भी पूर्ण कर सकता है,अब मैं हर्षवर्धन से विवाह करके उसे सदैव के लिए अपना बना लूँगी,अन्ततः उसने मन में सोचा किन्तु क्या वो मुझसे विवाह करेगा? क्यों नहीं करेगा मुझसे विवाह?अवश्य वो मुझसे विवाह करेगा,मैं सुन्दरता की मूरत हूँ एवं वो मेरा पुजारी,अब तो उसे मैं स्वयं से दूर नहीं जाने दूँगीं.....
बसन्तसेना को ऐसे विचारमग्न देखकर हर्षवर्धन बने सहस्त्रबाहु ने पूछा....
क्या हुआ देवी बसन्तसेना?आपके मस्तिष्क को किन विचारों ने आ घेरा है?
कुछ नहीं हर्षवर्धन! मैं तो केवल इतना सोच रही थी कि अब हमें विवाह करने में बिलम्ब नहीं करना चाहिए,बसन्तसेना बोली।।
विवाह....अरे विवाह हेतु इतनी शीघ्रता क्यों देवी?हर्षवर्धन ने पूछा।।
मैं तुमसे अत्यधिक प्रेम करने लगी हूँ,मुझे अब तुमसे दूर जाने में भय लगता है,कहीं हमें कोई एकदूसरे से विलग ना कर दें,बसन्तसेना बोली।।
आप तो अत्यधिक भोली हैं देवी!किसमें इतना साहस है कि हम दोनों को एक दूसरे से विलग कर दे,हर्षवर्धन बना सहस्त्रबाहु बोला।
तुम्हें मेरे पिताश्री के विषय में अभी कुछ ज्ञात नहीं हैं,वें बड़े ही शक्तिशाली दृष्टबंधक(जादूगर) हैं,क्षण भर में किसी को भी किसी भी रूप में परिवर्तित कर सकतें हैं एवं उनके मित्र जो कि राजा सुकेतुबाली हैं वें उनके आदेश का सदैव पालन करते हैं,कहीं राजा सुकेतुबाली ने ऐसा कोई आदेश मेरे पिताश्री को दे दिया कि मैं तुम जैसे साधारण व्यक्ति से विवाह नहीं कर सकती तो मेरे पिता उनका आदेश ठुकरा नहीं पायेगें, बसन्तसेना बोलीं।।
ओह....ये तो दीर्घ समस्या आ खड़ी हुई,हर्षवर्धन बोला।।
वही तो मैं यहाँ वर्षों से इस कन्दरा में वास कर रही हूँ,मेरा यौवन यूँ ही बीता जा रहा है,इतने समय के पश्चात तुम जैसा मुझसे से प्रेम करने वाला युवक मेरे जीवन में आया है,इस क्षण को मैं केवल जीना चाहती हूँ,तुम्हें मैं गँवा नहीं सकती,इतना कहते कहते बसन्तसेना के नेत्रों से अश्रुओं की धारा बह चली।।
हर्षवर्धन को बसन्तसेना का रोना अच्छा नहीं लगा,उसने मन में सोचा कि मैं बसन्तसेना से विश्वासघात करके उसके प्राण नहीं ले सकता,यदि मैं इसे सच बता दूँ तो क्या ये मेरी सहायता हेतु तत्पर हो जाएगी?हर्षवर्धन बना सहस्त्रबाहु ये सोच ही रहा था कि तभी बसन्तसेना ने उससे कहा....
क्या सोच रहे हो हर्षवर्धन?क्या मेरी बातों ने तुम्हें भयभीत कर दिया।।
नहीं!मैं तो कुछ और ही सोच रहा था,हर्षवर्धन बना सहस्त्रबाहु बोला।।
क्या सोच रहे थे?मुझे नहीं बताओगे,हमारे मध्य अब कुछ भी गुप्त नहीं रहना चाहिए,मुझसे अपनी समस्या कहो,मैं तुम्हारे लिए कुछ भी कर सकती हूँ,यहाँ तक कि अपने प्राण देने में भी पीछे ना हटूँगी,बसन्तसेना बोली।।
कैसें कहूँ?कहना तो बहुत कुछ है,सहस्त्रबाहु बोला।।
तो कहो ना प्रियतम!बसन्तसेना बोली।।
मैं ये कहना चाहता हूँ कि मैनें आपसे झूठ कहा,मैं कोई हर्षवर्धन नहीं हूँ,सहस्त्रबाहु बोला।।
तुम हर्षवर्धन नहीं हो तो कौन हो तुम? और यहाँ क्या करने आएं थे? वें सब तुम्हारे साथ कौन हैं?बसन्तसेना ने पूछा।।
धैर्य रखेँ देवी!आपके सभी प्रश्नों के उत्तर मैं दूँगा,जी! अब सत्य बोलने हेतु आप मुझे प्राणदण्ड ही क्यों ना दे दें किन्तु मैं आपसे सत्य बोलकर ही रहूँगा,सहस्त्रबाहु बोला।।
तो शीघ्र ही बोलो,किसकी प्रतीक्षा कर रहे हों?बसन्तसेना बोली।।
जी! मैं राजकुमार सहस्त्रबाहु हूँ,मेरे पिता सूरजगढ़ के महाराज सोनभद्र एवं मेरी माता विजयलक्ष्मी को आपके पिता अघोरनाथ ने सुकेतुबाली के आदेशानुसार बंदी बनाकर रखा है,मैं उन्हें ही मुक्त करवाने हेतु यहाँ आया था,वें जो मेरे साथ थे,वें सभी मेरे साथी हैं,उनमें से एक मेरा मुँहबोला भ्राता वीरप्रताप एवं मुँहबोली बहन सोनमयी है साथ में राजकुमार ज्ञानश्रुति हैं,इस सत्य हेतु अब आप चाहें मुझे मृत्युदंड ही क्यों ना देदें,मुझे स्वीकार होगा,किन्तु अपने मस्तिष्क एवं अपने हृदय में मैं अब इतना भार सहन नहीं कर सकता,मैं किसी से विश्वासघात करके जीत प्राप्त करना नहीं चाहता एवं मैं आपसे प्रेम भी नहीं करता,ये तो मैनें आपसे प्रेम का अभिनय किया था,सहस्त्रबाहु बोला।।
इतना बड़ा विश्वासघात किया तुमने मेरे संग जो कि अक्षम्य है,किन्तु मैं तब भी तुम्हें क्षमा करती हूँ वो इसलिए कि तुमने सत्य बोला,तुम्हारे माता पिता को मेरे पिता ने बंधक बना कर रखा है,मुझे ज्ञात है कि वें कहाँ है? मैं इस कार्य में तुम सबकी सहायता करूँगी,किन्तु एक बात अवश्य कहना चाहूँगी कि मैं तुमसे अब भी प्रेम करती हूंँ एवं सदैव करती रहूँगी,तुम जैसा सत्य बोलने वाला युवक मैनें आज तक नहीं देखा जिसने अपने प्राणों की चिन्ता किए बिना मुझे सत्य बताया,चाहते तो मुझसे प्रेम का अभिनय करके मेरे साथ विश्वासघात कर सकते थे,परन्तु तुमने ऐसा नहीं किया,इसलिए मेरी दृष्टि में तुम सम्मान एवं सहायता के योग्य हो एवं मैं तुम्हारी सहायता अवश्य करूँगी,इस कार्य हेतु मुझे अपने पिता के विरूद्ध भी जाना होगा,ऐसा करने से भी मैं कभी भी भयभीत ना हूँगी,बसन्तसेना बोली।
ये जानकर मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई देवी कि आप मेरी सहायता करेगीं,सहस्त्रबाहु बोला।।
अत्यधिक पाप किए हैं मैनें, अपने पिता के आदेश पर ना जाने कितने व्यक्तियों की हत्या की है कदाचित एक पुण्य कार्य करने से मेरी मुक्ति का द्वार खुल जाएं एवं वो ईश्वर मुझे क्षमा कर दें,इसमें मेरा ही तो स्वार्थ है सहस्त्रबाहु! यही नाम बताया ना तुमने अपना.....और ये कहकर बसन्तसेना हँसने लगी,
कदाचित आपने मुझे क्षमा कर दिया,सहस्त्रबाहु बोला।।
तुम्हें क्षमा नहीं करूँगी तो किसे करूँगी,तुमने जो भी छल मुझसे किया वो अपने माता पिता हेतु किया,कितना अच्छा होता यदि तुम मेरे पति बन सकते,बसन्तसेना बोली।।
किन्तु ये सम्भव नहीं है देवी! सहस्त्रबाहु बोला।।
मुझे ज्ञात है,मुझ जैसे पापिनी से कौन विवाह करेगा भला?बसन्तसेना बोली।।
जी!देवी!ऐसी कोई बात नहीं है किन्तु मैं किसी अन्य से प्रेम करता हूँ,सहस्त्रबाहु बोला।।
सहस्त्रबाहु! मुझे प्रसन्नता हुई ये जानकर,मैं ईश्वर से प्रार्थना करूँगी कि वो तुम दोनों को सदैव प्रसन्न रखें,बसन्तसेना बोली।।
जी! मैं शीघ्र से शीघ्र अपनी योजना को सफल बनाकर अपने माता पिता को मुक्त कराना चाहता हूँ,इतने वर्ष बीत गए ना जाने वें दोनों किस दशा में होगें,सहस्त्रबाहु बोला।।
तुम चिन्ता मत करो सहस्त्रबाहु! मैनें आश्वासन दिया है तो मैं अवश्य तुम्हारी सहायता करूँगी,बसन्तसेना बोली।।
तो अब मैं ये सूचना अपनी बहन और भाई को दे सकता हूँ,सहस्त्रबाहु बोला।।
ये सूचना तुम अपने बहन-भाइयों को अवश्य दो,किन्तु ध्यान रहें ये सूचना,सैनिकों के मुखिया अखण्डबली तक ना पहुँचें,क्योंकि वो सुकेतुबाली एवं मेरे पिता का विश्वासपात्र सदस्य है,उसे कुछ भी ज्ञात हुआ ना तो हम सबके प्राणों पर संकट आ सकता है,तुम उन सबको सूचना तो दो किन्तु अखण्डबली को कुछ भी ऐसा प्रतीत नहीं होना चाहिए कि मैं तुम्हारी सहायता कर रही हूँ,बसन्तसेना बोली।।
जी!ऐसा ही होगा,तो क्या मैं अभी उन सबके निकट जा सकता हूँ,सहस्त्रबाहु ने पूछा।।
अभी नहीं,रात्रि होने पर जाना,नहीं तो अखण्डबली को संदेह हो सकता है,बसन्तसेना बोली।।
जी!देवी बसन्तसेना!जैसा आप कहें,सहस्त्रबाहु बोला।।
रात्रि हुई सहस्त्रबाहु अपने भाई बहन से मिलने कन्दरा से बाहर आया एवं उसने सभी को बताया कि बसन्तसेना भी अब उनकी इस योजना में उन सभी के संग है,अब सफलता हम सभी से अधिक दूर नहीं शीघ्र ही मेरे माता पिता को मैं मुक्त करा सकता हूँ,
किन्तु!भ्राता! बसन्तसेना पर आप पूर्णतः विश्वास कैसे कर सकते हैं? हो सकता है वो भी आपसे छल कर रही हो,वीरप्रताप बोला।।
नहीं!वीर! मैनें उसकी आँखों में स्वयं के लिए सच्चा प्रेम देखा है वो मुझसे कभी भी विश्वासघात नहीं कर सकती,सहस्त्रबाहु बोला।।
तो अब अगली योजना क्या होगी? सोनमयी ने पूछा।।
वो तो अभी बनी नहीं,अगली योजना बनते ही शीघ्र सूचित करूँगा,क्योंकि अब मुझे कन्दरा में वापस जाना होगा,नहीं तो अखण्डबली को मुझ पर संदेह हो जाएगा,वो सुकेतुबाली एवं अघोरनाथ का विश्वासपात्र है,सहस्त्रबाहु बोला।।
जी!भ्राता!अब आप प्रस्थान करें,वीरप्रताप बोला।।
किन्तु!उन सबको ये ज्ञात नहीं था कि अखण्डबली उनके मध्य हो रहे वार्तालाप को सुन रहा है एवं अब अखण्डबली ने उनके मध्य हो रहे वार्तालाप को अघोरनाथ को बताने का सोचा,किन्तु बसन्तसेना पहले ही सावधान हो चुकी थी,उसे ज्ञात था कि सहस्त्रबाहु पर अखण्डबली दृष्टि रखें हुए हैं,इसलिए अखण्डबली इस सूचना को अघोरनाथ को देने के लिए जैसे ही अपने अश्व पर सवार हुआ तो बसन्तसेना ने उस पर अपनी तलवार से प्रहार करने की चेष्टा की किन्तु बसन्तसेना का प्रहार खाली गया,प्रहार खाली पड़ते ही अखण्डबली बोला....
मुझे ज्ञात था बसन्तसेना कि तुम ऐसा ही कुछ करोगी,इसलिए मैं पूर्वतः सावधान हो गया था,अब तो मैं तुम्हें इस छल का दण्ड देकर ही रहूँगा,तुम अपने पिताश्री से विश्वासघात नहीं कर सकती,मैं ऐसा कदापि नहीं होने दूँगा....
तुम ऐसा कुछ भी नहीं करोगे अखण्डबली!बसन्तसेना ने उच्च स्वर में कहा।।
बसन्तसेना का स्वर सुनकर सहस्त्रबाहु भी वहाँ पर आ पहुँचा,तब अखण्डबली ने अपने सभी सैनिकों को आदेश दिया कि वें शीघ्रता से सहस्त्रबाहु एवं उसके संगियों को बन्दी बना लें एवं ये सूचना राजा सुकेतुबाली और अघोरनाथ तक पहुँचा आएं,साथ में ये कहें कि अब बसन्तसेना उनकी विश्वासपात्र नहीं रही,इसके पश्चात सभी को कन्दरा के मध्य में स्थित कृत्रिम सरोवर के समीप स्थित कृत्रिम वाटिका में बंदी बना दिया गया,साथ में बसन्तसेना को भी उस कृत्रिम स्वर्णवृक्ष से बाँध दिया गया जो कि वहीं पर था...
किन्तु अखण्डबली को ये ज्ञात नहीं था कि सहस्त्रबाहु को तंत्रविद्या का भी ज्ञान है,अखण्डबली जैसे ही सबको बंदी बनाकर उस वाटिका से बाहर गया तो सहस्त्रबाहु अपनी तंत्रविद्या का प्रयोग करके मुक्त हो गया एवं उसने सभी को भी मुक्त कर दिया....
उसने सभी को मुक्त कराने के पश्चात जैसे ही बसन्तसेना को मुक्त कराना चाहा तो अखण्डबली वहाँ आ पहुँचा,वो इस बात से अत्यधिक क्रोधित होकर सहस्त्रबाहु से बोला.....
जो तुम चाहते हो वो कभी नहीं होगा,मैं तुम्हें तुम्हारी योजना में कदापि सफल नहीं होने दूँगा,सर्वप्रथम तो मैं इस बसन्तसेना को दण्ड दूँगा ,
तुम मेरे रहते हुए सहस्त्रबाहु को कोई हानि नहीं पहुँचा सकते अखण्डबली!बसन्तसेना उच्च स्वर में बोली।।
मैं ऐसा ही करूँगा और इतना कहकर अखण्डबली ने सहस्त्रबाहु पर अपनी तलवार से प्रहार किया,किन्तु सहस्त्रबाहु की रक्षा हेतु बसन्तसेना उसके सामने आ गई एवं तलवार बसन्तसेना को जा लगी,अब तलवार बसन्तसेना के हृदय में घुप चुकी थी परन्तु उसे कुछ भी नहीं हुआ,वो तलवार निकालकर हँसने लगी एवं अखण्डबली से बोली.....
मूर्ख! तुझे ज्ञात है ना कि मेरी हत्या इस प्रकार नहीं हो सकती।।
हाँ!बसन्तसेना!मुझे ज्ञात होता है कि तू एक मायाविनी है एवं इस प्रकार मृत्यु को प्राप्त नहीं हो सकती,अखण्डबली बोला।।
एवं तुझे ये भी तो ज्ञात नहीं कि मैं किस प्रकार मृत्यु को प्राप्त हो सकती हूँ,अब तू मुझे कोई भी हानि नहीं पहुँचा सकता,बसन्तसेना बोली।।
मुझे तेरी मृत्यु का रहस्य ज्ञात है बसन्तसेना!मुझे तेरे पिताश्री ने बताया था कि यदि बसन्तसेना कभी अपने मार्ग से भटक जाएं तो तुम उसे दण्ड दे सकते हो,अखण्डबली बोला।।
तू झूठ कहता है अखण्डबली!मेरे पिताश्री मेरे संग ऐसा कदापि नहीं करेगें,वे मुझे स्वयं सेअधिक प्रेम करते हैं,बसन्तसेना बोली।।
तो बसन्तसेना तू आज तक भ्रम में जीती आई है,जो अपनी सगी पत्नी का ना हुआ,वो अपनी सौतेली पुत्री का कैसें होगा?अखण्डबली बोला।।
क्या तात्पर्य है तुम्हारा?बसन्तसेना ने पूछा।।
मेरा तात्पर्य ये है कि अघोरनाथ ने अपनी पत्नी की भी हत्या केवल उसकी बात ना मानने पर कर दी थी,तू तो उसकी पुत्री है ही नहीं,तेरे पिता और तेरी माँ की हत्या अघोरनाथ ने ही की थी,तुझे अपने स्वार्थ हेतु पालपोसकर बड़ा किया,तुझे भ्रम में रखकर अनुचित मार्ग पर ले गया,तभी तो तू ऐसी बनी ,तेरी आत्मा को उसने एक आँख वाले मयूर के भीतर बंदी बना रखा है इसलिए आज मैं उस मयूर की हत्या कर दूँगा,अखण्डबली बोला.....
तू ऐसा कुछ भी नहीं करेगा अखण्डबली!सहस्त्रबाहु चिल्लाया।।
सहस्त्रबाहु का चिल्लाना सुनकर अब सहस्त्रबाहु पर अखण्डबली ने तलवार से प्रहार करना आरम्भ कर दिया,सहस्त्र भी अपनी तलवार निकालकर अखण्डबली पर टूट पड़ा और सभी भी वहाँ उपस्थित सैनिकों का सामना करने लगें,किन्तु अखण्डबली ने अवसर देखकर उस एक आँख वाले मयूर पर अपने बाण से निशाना साधा और एक ही प्रहार में मयूर धरती पर छटपटाने लगा साथ में बसन्तसेना की भी यही दशा हो गई,तभी वीरप्रताप ने सहस्त्रबाहु से कहा.....
भ्राता!आप बसन्तसेना को सम्भालें ,हम सब मिलकर इस अखण्डबली को आज नहीं छोड़ेगें.....
और देखते ही देखते मयूर एवं बसन्तसेना के प्राण एक साथ ही निकल गए......
बसन्तसेना की मृत्यु से सहस्त्रबाहु को अत्यधिक कष्ट हुआ,परन्तु अब वो क्रोध से उठा एवं अपनी तलवार से एक ही प्रहार में अखण्डबली का सिर धड़ से अलग कर दिया.....

क्रमशः......
सरोज वर्मा......