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दो वक्त की रोटी

"यह क्या सुनीता!! सारा घर बिखरा पड़ा है और तू आराम से टीवी देख रही हो!" रेनू चिल्लाते हुए अपनी मेड सुनीता से बोली।
"क्या करूं मेमसाब! अभी मैंने सब कुछ साफ सफाई कर रखा था कि कुहू ने फिर से बिखेर दिया। टीवी भी उसने ही चलाया था कार्टून देखने के लिए।" सुनीता ने सफाई दी।
"अरे वह तो बच्ची है यह सब करेगी ही ना!! पर तुम तो ध्यान रखो कि ज्यादा चीजें इधर उधर ना बिखेरे!"
"दीदी खेलेगी तो खिलौने इधर उधर बिखरेंगे ही ना और वैसे भी उसे आदत है एक साथ सारे खिलौने लेकर उनसे खेलने और फिर उन्हें इधर-उधर बिखेरने की। कितना भी मना करूं मानती नहीं और ज्यादा कहूं तो रोने लग जाती है!!" सुनीता अपनी बात रखते हुए बोली।

"देख रही हूं सुनीता, अपनी कामचोरी को तुझे बातों की लागलपेट कर छुपाने की बहुत आदत पड़ गई है!! और यह कुहू का क्या हाल बना हुआ है। सारे मुंह पर चॉकलेट और कपड़ों पर दूध बिखरा पड़ा है। इसके लिए क्या बहाना लगाओगी!"
"मेम साहब, अभी आपके आने से पहले ही यह खाकर हटी है। मैं इसके मुंह हाथ साफ कर कपड़े बदलने ही जा रही थी कि इतने में आप आ गए!! आप बैठो मैं इसके कपड़े बदलकर आपके लिए जल्दी से चाय लेकर आती हूं!!"

"तेरी चालाकियां मैं सब समझने लगी हूं। मेरे पीछे से तू आराम फरमाती है और मेरे आते ही ऐसा दिखाएगी जैसे कितना काम करती हो।। सच कहते हैं लोग छोटे लोगों को ज्यादा सिर पर नहीं चढ़ाना चाहिए।। तेरी लाचारी देख मैंने तुझे काम के साथ आश्रय दिया और तू है कि एहसान मानने की बजाय मुझे ही बेवकूफ बनाने लगी है।।" रेनू उस पर आरोपों की झड़ी लगाते हुए बोली।
"कैसी बात कर रहे हो मेम साहब!! मैं तो अपना काम अब भी पूरी ईमानदारी से करती हूं।।
आपने बुरे वक्त में मुझे आश्रय दिया। यह बात तो मैं मरते दम तक नहीं भूल सकती लेकिन यह गलत है कि मैं आपको बेवकूफ बना रही हूं। हां मेमसाब, है हम छोटे लोग!! तभी तो किसी के एहसानों में इतना दब जाते हैं कि अगला हमें बेवकूफ बनाता रहता है और हम उसका एहसान चुकाने के लिए जानबूझकर बेवकूफ बनते रहते हैं!!"
"अच्छा!! उल्टा चोर कोतवाल को डांटे!! अपनी गलती मानने के बजाय मुझ पर ही तोहमत लगा रही है!! तेरी ऐसी हरकतों की वजह से तो मन करता है। तुझे अभी खड़ा-खड़ा निकाल दूं लेकिन क्या करूं कुहू तेरे बगैर नहीं रह सकती ना!!"
"आपके एहसान तले दबी हूं तभी तो दो वक्त की रोटी से ज्यादा आपकी गालियां खाकर यहां पड़ी हूं। आपने मुझे आश्रय दिया मानती हूं लेकिन उसकी एवज में आप मुझसे कितना काम ले रहे हो यह तो आपको भी अच्छे से मालूम है क्योंकि इस सोसाइटी में सिर्फ साफ सफाई करने के लिए बाई कितनी पगार ले रही है वह आप अच्छे से जानती हो और मैं तो सिर्फ दो वक्त की रोटी !!
हां कब का चली जाती मैं यहां से लेकिन बस नन्ही कुहू का प्यार ही मुझे यहां रोके हुए हैं और जिस दिन वह भी दुनियादारी के रंग में रंग जाएगी, मैं चली जाऊंगी यहां से!!"
मेम साहब को सच्चाई का आईना दिखा सुनीता काम में लग गई।
सरोज ✍️

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