Dard e ishq - 20 books and stories free download online pdf in Hindi

दर्द ए इश्क - 20

तान्या और रेहान मानो अभी भी शोक में जहां थे वहीं खड़े थे। तान्या के हाथ तो मानो ठंडे पड़ गए थे। उसे अभी भी यकीन नहीं आ रहा था की विकी ऐसा कर सकता है। अभी भी उसके दिमाग में विकी की बातें दोहरा रही थी। तभी रेहान कहता है ।

रेहान: स.... ( खुद को संभालते हुए ) तान्या... तुमने वहीं सुना जो मैने अभी सुना... ।
तान्या: ( सिर को हां में हिलाते हुए सोफे पर बैठ जाती हैं। ) सारी मेहनत बरबाद होते हुए दिख रही है मुझे । ( सिर को पकड़ते हुए ) ।
रेहान: ( सोफे पर बैठते हुए ) सॉरी.... मैं... मेरी वजह से सारा प्लान बिगड़ गया... । मुझे गुस्से में ऐसा नहीं करना चाहिए था ।
तान्या: मैं कब से तुम्हे समझा रही थी... क्योंकि गुस्से में कभी भी किया हुआ काम का नतीजा सही नहीं आता ।
रेहान: ( सोच में डूबते हुए सिर को हां में हिलाता है। थोड़ी देर बाद ) अब... हम क्या करेगे!? ।
तान्या: पता नहीं! फिलहाल तो मेरा दिमाग काम नहीं कर रहा किसी भी तरह इस शादी को रुकवानी होगी! ।
रेहान: ( सिर को हां में हिलाते हुए.. मन में: मैं किसी भी कीमत पर सूझी को किसी की नहीं होने दूंगा... चाहे फिर मुझे इसलिए सूझी की ही जान क्यों ना लेनी पड़े... या मेरी जान देनी पड़े... पर ये शादी किसी भी कीमत पर नहीं होने दूंगा...। बहुत हुआ सुजेन बहुत ... बस अब! अगर मुझे इसलिए अगर विक्रम को मार ना पड़े मैं उसे जान से मार दूंगा... और फिर देखता हूं तुम कैसे हिम्मत करती हो मेरे अलावा किसी ओर की तरफ आंख उठाकर देखने.... मेरी मोहब्बत का मजाक बनाके रख दिया है... तुमने.. । ) बिलकुल।
तान्या: चलो! फिर अब उन लोगों को मना कर दो! मेरा मिलने का बिल्कुल मुड़ नहीं है।
रेहान: पर... । ( रेहान कुछ बोलता उससे पहले ही तान्या बाहर की ओर जाने के लिए आगे बढ़ चुकी थी। ) ।
रेहान भी तान्या के पीछे.... बाहर जाने के लिए निकल जाता है।



दूसरी और सूझी विकी से हाथ छुड़वाते हुए कहती है।

सूझी: व्हाट... द... फ**क विक्रम.... क्या किया तुमने तुम्हे पता भी है!? ।
विक्रम: जानता हूं! ।
सूझी: क्या घंटा! समझ में आई है बात तुम्हे! तुमने मुझ से यानी सूझी से शादी की बात कहीं है... यह बात समझ आ रही है... तुमने शादी की बात कहीं है... ।
विक्रम: सूझी... मैने जो भी कहां है... मैं उस बात का मतलब अच्छी तरह से जानता हूं... और मुझे अपने फैसले पर कोई पछतावा नहीं है ।
सूझी: ( गुस्से में बाल भींचते हुए ) आहहा! अन बिलिवेबल! विकी तुम शादी की बात कर रहे हो!? और वो भी मुझ से , तुम अच्छी तरह से जानते हो! की हम दोनो की बीच सिवाय दोस्ती के ना ही कुछ है और ना ही कभी होगा।
विक्रम: जानता हूं! ।
सूझी: फॉर फ**क सेक फिर वहां पे शादी की बात करने को किसने कहां था । इससे तो रेहान ने जो भी कहां वह सच ही साबित होगा ।
विक्रम: ( सूझी को बांह से पकड़ते हुए ) सूझी! सूझी! रिलेक्स! लिस्टन, मैने जो भी कहां है ना ही मैंने उसे साबित करने के लिए कहीं है और ना ही उसे कुछ दिखाने के लिए! ।
सूझी: तो फिर तुम्हे जरूरत क्या थी ऐसा करने की।
विक्रम: क्योंकि तुम्हारी कोई बेइज्जती करे! यह मुझे पसंद नहीं! कभी भी नहीं! मैं जानता हूं तुम किस तरह की लड़की हो! तो मैं ऐसे कैसे वहां खड़े खड़े देखता! ।
सूझी: हाहाहाहाहा.... विकी... किस-किस का मुंह बंद करवाओगे... हा ठीक है हमारे रिश्ते के अलावा वो जो भी बात कह रहा था वो सच ही था तो मुझे नहीं लगता की उसने कुछ गलत कहां है! ।
विक्रम: ( सूझी की बांह छोड़ते हुए ) भले! ही सच्चाई हो लेकिन फिर भी दुनिया में से किसी भी इंसान को हक नहीं की तुम पर उंगली उठाए! चाहे जो भी वजह हो, तुम्हारी अपनी जिंदगी है... तुम एक के साथ संबंध रखो या हजार इंसान के साथ ये तुम्हारा अपना फैसला है... तो तुम्हारे अपने फैसले के बारे में वह कौन होता है सवाल उठाने वाला... और आई स्वेर... अगर उसने एक और बार इस बारे में बात छेड़ी... तो इस बंदूक में जितनी भी गोलियां है वह सारी उसके भेजे में ना उतारी तो मेरा नाम भी विक्रम ठाकुर नहीं... ।
सूझी: ( आज पहली बार उसे विकी से डर लग रहा था। क्योंकि जितना भी गुस्सा हो अपने दोस्तो के सामने वह हमेशा सारी बात भूल कर खुश ही रहता था। ) विकी... विकी... क्यों कर रहे हो तुम ऐसा... और शादी तो इस बात का हल बिलकुल भी नहीं है। तुम जानते हो हमारे बीच कुछ भी नहीं हो सकता ।
विक्रम: जानता हूं! और दोस्ती के अलावा शायद में तुम्हे कुछ दे भी ना पाऊं! ( सूझी के हाथ पकड़ते हुए ) सुजेन! तुम जानती हो! स्तुति के बाद तुम ही हो! जो मुझे अच्छी तरह समझ सकती हो! और तुम ही हो जिसने मुझे संभाला था! भले! स्तुति मेरे लिए सबसे खास थी। पर सूझी! तुम वह इंसान हो जिसने हर अच्छे-बुरे समय में मेरे साथ थी। और आज भी मेरे साथ खड़ी हो। तो सुजेन प्यार का तो पता नहीं लेकिन अगर तुम ना होती तो... शायद.... मेरा इस दुनिया के हर रिश्ते से भरोसा उठ जाता। तो तुम बताओ! जब कोई मैं कैसे वहां खड़े खड़े उस घटिया इंसान की घटिया बाते सुनता... मैने सिर्फ जिंदा छोड़ा है तो हमारी दोस्ती के खातिर मैं जानता हूं तुम आज भी उसे भुला नहीं पाई... वर्ना ।
सूझी: ( विकी के हाथ पर हाथ रखते हुए ) विकी... मैं जानती हूं... पर विकी तुम्हे लगता तुम इस रिश्ते के लिए तैयार हो! मैं सच बताऊं तो... मुझे नहीं लगता हम में से कोई भी ये रिश्ता निभा पाएगा।
विकी: मैं शायद एक पति का प्यार ना दे पाऊं... पर हां एक दोस्त की तरह हमेशा जैसे तुम मेरे साथ खड़ी रहती हो! वैसे तुम्हारे साथ रहूंगा!। सूझी आज तो नहीं तो कल... हम दोनो को आगे बढ़ना ही है... हम बढ़ना चाहे या ना चाहे। वैसे भी...हमारे परिवार को तुम अच्छी तरह से जानती हो! वह लोग पावर - पोजिशन के चक्कर में आज नहीं तो कल किसी ना किसी से तो हमारी शादी करवाएंगे जिससे उनका फायदा हो... और तुम्हे लगता... हैं हम कितनी बार टाल पाएंगे...।
सूझी: ( सिर को ना में हिलाते हुए )... ।
विक्रम: तो फिर जो तुम फैसला लोगी मुझे मंजूर होगा...। ( मन में : आसमान की ओर देखते हुए... सॉरी स्तुति... माफ कर देना यार! मैं तुम्हारा साथ छोड़ रहा हूं। किसी और को.... अपना नाम दे रहा हूं। पर स्तुति... अगर मैने इसे अभी नहीं रोका तो यह खुद को बरबाद कर देगी, और में अपने प्यार को तो खो चुका अब अपनी दोस्त को नहीं खोना चाहता स्तुति ) ।
सूझी: ठीक है...... ( गहरी सांस लेते हुए ) मैं तैयार हूं! ।
विक्रम: ( मुस्कुराने की कोशिश करता है पर वह मुस्कुरा नहीं पाता मानो जैसे खुद के साथ जबरदस्ती कर रहा हो। ) ठीक है! फिर तो मैं आज घर जाते ही अपने डेड से बात करुंगा ।

इतना कहते ही विकी कार का लोक खोलते हुए कार में बैठ जाता है। और सूझी भी हां कहते हुए... विकी की बात में हामी भरती है। दोनो वहां से निकल जाते है। दूर रोहन और तान्या ये बाते सुन रहे थे। मानो जैसे दोनों के पैर से जमीन निकल गई थी। वह दोनो यकीन नही कर पा रहे थे। यह वह दोनो इंसान है जो एक समय पर उनके साथ जीने मरने की कसम खाया करते थे। आज विक्रम स्तुति को और सूझी रेहान को भूलकर कैसे किसी और के साथ जिंदगी बसाने के बारे में सोच सकते है। शायद उन लोगों ने आधी ही बात सुनी थी। इसलिए उन लोगो को यही लग रहा था की दोनो शादी की ही बात कर रहे थे।