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तस्वीर का सम्मान है इंसान का नहीं

"वाह बहुत ही सुंदर घर बनाया है तुमने नैना और उससे बढ़कर उसे सजाया है।"
"हां भई! देखने से ही वैभव झलक रहा है। लगता है दिल खोलकर खर्च किया है तुमने!"
" अनीता, मेरा बरसों का सपना था कि एक बड़ा सुंदर सा घर हो। जो अब जाकर पूरा हुआ। हां घर तो पहले भी था लेकिन वह हमारे हिसाब का नहीं। बरसों की इच्छा पूरी हुई है तो क्यों कंजूसी करनी!"
नैना अभी कह ही रही थी कि उसकी दोनों नंनदे और देवरानी भी उधर आ गई। दीवार पर टंगी अपने सास-ससुर की तस्वीर की ओर इशारा करते हुए नैना गर्व से बोली " मेरे सास ससुर की इस तस्वीर के फ्रेम को ही देख लो। हमने तो इसको बनवाने में भी बिल्कुल कंजूसी नहीं की। सबसे बढ़िया स्टूडियो से तस्वीर को दोबारा बनवाया और सबसे महंगा फ्रेम लगवाया इसमें।
वैसे तो कईयों ने मुझे सलाह दी कि ड्राइंग रूम में क्यों इस तस्वीर को लगाना। इससे तुम्हारे ड्राइंगरूम की शोभा खराब हो जाएगी लेकिन हमने किसी की नहीं सुनी। आखिर मम्मी पापाजी थे वह हमारे!"

फिर अपनी देवरानी की तरफ व्यंग्यभरी नजरों से देखते हुए बोली "वरना तो ऐसे कितने ही लोग हैं, जो अपने सास-ससुर की तस्वीर घर में लगाना अपने घर की शोभा खराब होना मानते हैं! भई हमारे लिए तो ईश्वर समान थे वो दोनों।"
नैना की देवरानी उसका इशारा समझ गई थी लेकिन वह कुछ कहकर माहौल खराब नहीं करना चाहती थी।
बुरा तो नैना की ननदों को भी लग रहा था क्योंकि वह नैना का असली रूप पहचानती थी लेकिन खुशी के माहौल में चुप रहना ही बेहतर था।
नैना की सहेलियां उसकी तारीफ करते नहीं थक रही थी। नैना को अपनी तारीफ सुन और अपनी देवरानी व नंनदों के उतरे हुए चेहरे देखकर बहुत मजा आ रहा था।
वह चुटकी लेते हुए अपनी ननद से बोली " दीदी! आप हमेशा कहते थे ना कि मुझे मम्मी पापाजी से लगाव नहीं! अब देख लो अगर लगाव नहीं होता तो मैं मम्मी पापा की तस्वीर को ड्राइंगरूम में स्थान देती!"
उसकी ऐसी घमंड भरी बातें सुन अब उसकी ननंद से चुप ना रहा गया। वह शांत किंतु गंभीर स्वर में बोली "नैना, अगर तुम मम्मी पापा को तस्वीर बनने से पहले ही इतना सम्मान और अपने दिल में जगह देती तो हमें क्या उनकी आत्मा को भी शांति मिलती।
जीते जी कभी तुमने उनसे सीधे मुंह बात ना की। आते ही तुम दोनों ने अपनी अलग गृहस्थी बसा ली। चलो वह तो दुनिया का दस्तूर है लेकिन इतनी भी उनसे क्या शिकायत थी कि मिलना जुलना ही छोड़ दिया। इतनी दूर भी तो नहीं थे तुम उनसे कि महीने डेढ़ महीने में एक बार मिल भी ना सको। तुम दोनों व बच्चों का मुंह देखने के लिए तरस गए थे वो!

उन दोनों को तो कभी यह समझ ही ना आया कि उनसे गलती क्या हुई!! अंदर ही अंदर यह बात उन्हें खाए जा रही थी। इसी तनाव में दोनों असमय कितनी बीमारियों का शिकार हो गए।
अगर तुम दोनों की तरह उनके छोटे बेटा बहू भी वैसा ही व्यवहार करते तो शायद वह बहुत पहले ही तस्वीर में बदल दीवार पर टंग जाते।
हम दोनों बहनों को खुशी है कि तुमने इतना सुंदर घर बनाया और चलो जीते जी ना सही मरने के बाद मां पिताजी को अपने घर में स्थान तो दिया।
लेकिन एक बात कहूं नैना!! हम दोनों बहनों को तुम्हारी
तरह तुम्हारी देवरानी से इस बात की बिल्कुल शिकायत नहीं कि उसने मां पिताजी की तस्वीर को घर में नहीं लगाया।
क्योंकि हमें पता है कुछ बातें लोग दिखावे से बढ़कर होती है। कुछ तस्वीरें सजाने के लिए नहीं दिल में बसाने के लिए होती है। समझ तो तुम गई हो ना कि मैं क्या कहना चाहती हूं!"
अपनी नंनद की बातें सुन नैना का चेहरा देखने लायक था। उससे कुछ कहते ना बना। कहती भी क्या! सच ही तो कह रही थी वह दोनों!
सबको अपनी और प्रश्न भरी नजरों से घूरता देख उसने वहां से हटने में ही समझदारी समझी।
दोस्तों कुछ तस्वीरें और छवि मन के आईने में सजी ही अच्छी लगती हैं। उनसे हमारे कई भाव जुड़े होते हैं। अपनी भावनाओं की प्रदर्शनी लगाना जरूरी तो नहीं!
यह मेरा अपना व्यक्तिगत मत है!
सरोज ✍️