Veera Humari Bahadur Mukhiya - 13 books and stories free download online pdf in Hindi

वीरा हमारी बहादुर मुखिया - 13

नंदिता के न मिलने से निराली काफी परेशान हो जाती है....
इशिता उनकी परेशानी समझते हुए कहती हैं...." आप चिंता मत करिए चाची नंदिता आ जाएगी , , मैं उसे देखने जाऊंगी..."
इशिता के जाने की बात सुनकर निराली राहत भरी आवाज में कहती हैं...." बेटा , मुझे तुमपर भरोसा है , तुम उसे कुछ नहीं होने दोगी..."
इशिता एक स्माइल करते हुए बाहर बरामदे में आकर अपनी गन को देखकर और बूट को पहनकर, , वहां से बाहर निकल आती है , , बरखा और सोमेश हाथ में लालटेन लिए उसके पीछे पीछे चल दिए....
इशिता के बाहर पहुंचते हैं चौपाल पर बैठे पंचों ने इशिता को इस तरह जाते हुए जल्दी से खड़े होकर उसके इस समय बाहर आने का कारण पूछा...
" मुखिया जी..!...इस समय आप बाहर कुछ बात हुई है क्या है...?.....कहीं रांगा तो नहीं आने वाला...?.."
इशिता उन्हें देखकर कहती हैं...." घबराइए मत, , रांगा नहीं आ रहा है , हम नंदिता को ढूंढ़ने जा रहे हैं... चाची बता रही थी, वो सुबह से घर नहीं पहुंची..."
नंदिता के खो जाने की बात सुनकर सारे पंच आपस में खुसरफूसर करने लगे.....
आपसी चर्चा के बाद उनमें से एक कहता है...." मुखिया जी..!. हम भी आपकी नंदिता को ढूंढ़ने में सहायता करेंगे..."
इतना कहकर सभी अपने अपने लाठी और लालटेन के साथ इशिता के साथ चले गए..... इशिता उन्हें समझाती हुई कहती हैं....." आप सब चारों तरफ जाकर देखिए , मैं सोमेश बरखा और सुमित गांव के बाहर जाकर देखते हैं..."
इशिता की बात पर सहमति जताते हुए सभी इधर उधर बिखर कर नंदिता को ढूंढ़ने लगे थे.....
इशिता को कवर करते हुए सोमेश और सुमित चल रहे थे , बरखा लालटेन लिए इशिता के बराबर में थी , ....
इशिता अपनी गन को हाथ में लिए नंदिता नंदिता पुकार रही थी , , सोमेश के बताए हुए रास्ते पर जहां अक्सर नंदिता आती जाती थी , वहां ढूंढ़ने पर भी उन्हें नंदिता नहीं मिली ......
सोमेश अपनी बहन के न मिलने पर काफी ज्यादा दुखी हो चुका था...... परेशान सा वहीं घुटनों के बल बैठ गया जिसे देखकर इशिता उसके कंधे पर हाथ रखते हुए उसे समझाते हुए कहती हैं...." सोमेश , टेंशन आई मिन चिंता मत करो , नंदिता को कुछ नहीं होगा , तुम्हें मुझ पर भरोसा नहीं है...."
सोमेश इशिता की तरफ देखते हुए कहता है...." नहीं वीरा जी ... मुझे आप पूरा भरोसा है , लेकिन नंदिता को हमने हर जगह ढूंढ लिया कहीं नहीं है वो , और उसके मवेशी भी नहीं है..."
इशिता उलझन भरी नजरों से बरखा की तरफ देखते हुए धीरे से कहती हैं...." ये मवेशी क्या है...?..."
बरखा उसकी बात सुनकर मुस्कुराते हुए कहती हैं...." वीरा.... मवेशी मतलब उसकी भेड़ बकरी..."
" ओह.... मुझे इन सबके बारे में सीखना पड़ेगा... "
सुमित हंसते हुए कहता है...." वीरा जी....हम सिखा देंगे...."
सोमेश सुमित को घूरते हुए इशिता से कहता है....." वीरा जी..... हमें आगे ढूंढ़ना चाहिए..."
सोमेश की बात पर सहमति जताते हुए इशिता बाकी सबके साथ आगे चल देती है.....
अंधेरा काफी गहरा चुका था , सब तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था , केवल उल्लू और गिदड़ की आवाज गूंज रही थी , जो उस सुनसान रास्ते को डरावना बना रही थी लेकिन इशिता के चेहरे पर जैसे डर कोई लकीर थी ही नहीं वो तो बेखौफ सुखे पत्ते को रौंदते हुए आगे बढ़ रही थी.....
तभी अचानक झाड़ियों में से आवाज़ आने लगी.....