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नर्क - 2

पियूष ड्राइव करके ऑफिस पहुंचा। काफी बड़ा ऑफिस था। अंदर जाते ही सारा स्टाफ उसे गुड मॉर्निंग बोलने लगा, पर उसने किसी को कोई जवाब न दिया। शायद स्टाफ भी इसका अभ्यस्त था तो सब तुरंत अपने-अपने काम लग गए। चेयरमैन के केबिन में जाने के बाद वहां एग्जीक्यूटिव चेयर पर बैठकर उसने चपरासी को बुलाने की घंटी बजायी। चपरासी के आने के बाद वो बोला-" निशा मैडम को भेजो।" चपरासी 'जी साहब' कह कर चला गया।

उसके बाद एक लड़की वहांँ आयी। गोल, मोटे लेन्सेस का चस्मा लगाए, बालों में तेल लगाकर गुंथी हुई चोटी, सलवार सूट पहने हुए वो किसी भी एंगल से इतनी बड़ी कंपनी की कर्मचारी नहीं लग रही थी। वो थोड़ी दब्बू लग रही थी। वो बॉस के केबिन में डरते-डरते घुसी। बॉस के चेहरे पर गुस्सा साफ दिख रहा था। वो (पियूष) बोला-" कुकरेजा वाली फाइल लाओ।"

निशा(डरते-डरते)-" सर, उसमे थोड़ा काम बाकी है मेरे भाई की तबियत ज्यादा ख़राब है तो मुझे टाइम नहीं मिला।"

पियूष गुस्से से फट पड़ा-" व्हाट द हेल! आपकी पर्सनल प्रॉब्लम के चलते मैं अपनी कंपनी में ताला लगा लूँ?? आपके भाई के कुछ भी हो मुझे क्या मतलब है?? अगर उसकी इतनी फिक्र है तो आप जॉब छोड़ दीजिये और उसकी देखभाल करिये। मुझे हर हाल में आज ये फाइल कम्पलीट चाहिए। नाउ गेट लॉस्ट एंड डू योर जॉब।"

वो वहांँ से निकली और अपनी चेयर पर आकर बैठ गयी और फुट-फुट कर रोने लगी। उसके माँ बाप 4 साल पहले ही मर गए। रिश्तेदारों ने मदद करने की जगह उसके माँ बाप का धन ही लूटा। मजबूरी में अपना और अपने भाई का पेट पालने के लिए उसने 20 साल की उम्र में इस कंपनी में नौकरी कर ली।

उसके बॉस उसको बेटी की तरह मानते थे। वो उसके स्वाभिमान से जीने में उसकी पूरी मदद करते थे। पर कुछ वक्त पहले पियूष ने इस कंपनी को खरीद लिया था। पियूष निशा के सीधे-सादे रहन-सहन को देख कर उसे पसंद नहीं कर रहा था। साफ शब्दों में वो उस से चिढ़ता था। जबकि पियूष कसिनोवा (दिलफेंक) तरह का था। वो लड़कियों से घिरा ही रहता था्। शहर भर उसकी इस प्रवृति को जानता था। उसके कई अफेयर्स चर्चा में थे और ऊपर से अथाह पैसे और उसकी शक्ल सूरत अच्छी होने की वजह से उसका घमंड भी सातवे आसमान पर ही था।

इधर कुछ समय से निशा का छोटा भाई भी शख्त बीमार रहने लगा था। उसकी किडनियाँ काफी खराब हो चुकी थी। उसके इलाज और दोनों भाई-बहन के खर्चों के लिए निशा को मजबूरी में ये नौकरी करनी ही थी।

उसने कोशिश की, फाइल जल्दी निबटाने की पर वो न कर पायी और पियूष ने भी उसको कह दिया कि फाइल पूरी उसे हर हाल में आज ही करनी है। घर पर उसका भाई भी अकेला है। उसकी देखभाल करने वाला भी कोई नहीं है। पर वो किसी भी हालात में अपनी नौकरी को कोई भी खतरा नहीं आने दे सकती थी। उसे अपने राहुल( भाई) की बहुत चिंता हो रही थी।

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रात के अँधेरे में समुन्द्र किनारे एक आदमी बार-बार किसी को टोर्च जला-बुझा कर सिग्नल दे रहा था। थोड़ी देर में दूर समुन्द्र में एक बोट से उसको वैसा ही सिग्नल दिया गया और थोड़ी देर में वो बोट समुन्द्र किनारे आकर लगी।

टोर्च वाला आदमी बोला-" क्या भाई लोग आज तो बड़ी लेट कर दी?? चलो अब सारी पेटियां फटाफट नीचे रख दो। मुझे जल्दी पन्ना सेठ के पास जाना है।"

पर बोट के केबिन से कोई आवाज नहीं आयी थी। वो वापस बोला-" क्या रे भाई लोग, क्यों टाइम खराब कर रहे हो?? अरे कन्हैया, राजू कहाँ मर गए?? ये प्रैंक करने का टाइम नहीं है। बहुत काम बाकी है। जल्दी आओ बाहर..."

फिर भी कोई जवाब न आया। झुँझलाकर वो बोट के अंदर गया, लाइट जलाई तो अंदर का दृश्य देखकर भौचक्का रह गया। सामने सब की कटी-फटी लाशें पड़ी थी। किसी को आधा काटा हुआ था तो किसी को बीच में से चीरा हुआ था। चारों तरफ खून और शरीरों के टुकड़े बिखरे पड़े थे। पहले तो वो आँख फाड़े ये दृश्य देखता रहा फिर अचानक उसे याद आया कि अगर ये सब मर चुके थे तो फिर सिग्नल किसने दिया था। उसके मन में खौफ आया ये सोचकर कि हत्यारा यहीं कहीं है। अचानक एक आहट सुनकर वो पलटा और पलटते ही एक पल के लिए ही उसकी आँखों में आतंक छाया क्योंकि अगले ही पल उसकी गर्दन उसके धड़ पर न रही... लाशों में एक लाश और बढ़ गयी थी.

To be continued......