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नर्क - 5

निशा का दिल टूट गया। उसे लगने लगा कि अब उसको और उसके भाई को मरना ही पड़ेगा इसके अलावा और कोई चारा ही नहीं बचा वो बस मुँह नीचे छुपाकर रोये ही जा रही थी। उसको रोते देख उसकी कलीग और खास सहेली मधु उसके पास आयी। वो बोली- "क्या हुआ निशा??" हालाँकि वो समझ रही थी कि क्या हुआ होगा, सब ने उसकी और मैनेजर की बात सुन ली थी।

निशा ने रोते-रोते वो लिफाफा उसको पकड़ा दिया। मधु ने वो लेटर पढ़ा उसका चेहरा कठोर हो गया। वो बोली चलो मेरे साथ। निशा चौंक गयी कि मधु उसे कहा लेकर जाएगी। मधु ने कुछ पुछा ही नहीं बस उसका हाथ पकड़ा और उसे लगभग खींचते हुए ले जाने लगी।

वो बॉस के पास के केबिन में निशा को ले गयी। निशा कुछ समझ न पा रही थी कि हुआ क्या है। मधु उसे केबिन में ले जाकर निशा को बोली-" बैठ"।

निशा वहांँ पड़ी एक कुर्सी पर बैठने लगी तो मधु ने उसे कहा-" अरे घोंचू, यहाँ नहीं उस चेयर पर बैठ।" कहकर उसने वहांँ की सबसे शानदार कुर्सी की तरफ इशारा किया जो हेड के लिए थी।

निशा कुछ समझ न पा रही थी, वो बस मधु के पागलपन को देख रही थी। मधु को जब लगा की उसकी सहेली सच में बड़ी बोड़म(भोली) है तो उसने उस लेटर को निशा की आँखों के आगे किया। निशा ने उसे पढ़ना शुरु किया। जैसे-जैसे एक-एक अक्षर उसकी नजरों से गुजरा उसकी आँखों और चेहरे के भाव पल प्रतिपल बदलने लगे। लेटर उसके प्रोजेक्ट मैनेजर के पद पर नियुक्ति के लिए था और इसके अनुसार उसका वेतन भी पहले से लगभग दुगुना था।

मधु ने उसके आश्चर्य की परवाह न करते हुए उसे जबरदस्ती उस कुर्सी पर बिठाया और चेहरे पर पूरी शरारत लाते हुए बोली-" बॉस, आपको बंसल कंस्ट्रक्शन की फाइल लाकर दूँ???"

निशा जो अब तक सदमे में थी, बेवकूफों की तरह मुँह खोले हुए थी। उसको कुछ सुनाई ही न दे रहा था बस इतना ही बोली-"हँ.....।" फिर क्या था मधु खुशी में जोर-जोर से उछल उछल के चिल्लाने लगी।

पूरा स्टाफ वहांँ इकट्ठा हो गया, जब सबको ये पता चला कि निशा का प्रमोशन हुआ है तो सब आश्चर्यचकित रह गए। परन्तु सब निशा के लिए बहुत खुश भी थे। निशा का व्यवहार सबके लिए बहुत अच्छा भी था और उसकी स्थिति को देखते हुए सबको उस से सहानुभूति भी थी। फिर क्या था सबने निशा के लिए मिलकर पार्टी अरेंज कर दी ऑफिस में। सबको निशा से स्नेह था।

पर इधर अपने केबिन में बैठा पियूष ये सब देख रहा था। उसने न कुछ कहा किसी को और न ही शामिल हुआ उनकी खुशी में। बस एक रहस्यमिश्रित मुस्कुराहट के साथ सबको देख रहा था। उसके चेहरे पर कुछ अलग और बड़ा झलक रहा था जैसे उसका कोई मकसद पूरा हुआ हो या होने जा रहा हो।

शाम को सब अपने-अपने घर की तरफ निकल रहे थे। निशा भी अपने घर की तरफ निकली। 'इस बार सैलेरी मिलते ही एक कार फाइनेंस करवा लूंगी। घर, ऑफिस आना-जाना भी आसान रहेगा और राहुल को भी ट्रीटमेंट के लिए लाने ले जाने में आसानी रहेगी।

राहुल को जब बताऊंगी तो वो बहुत खुश होगा। बस अब मेरा भाई जल्दी से जल्दी ठीक हो जाये। आज राहुल को कहीं बाहर लेकर जाऊंगी। इतने दिनों से वो बिस्तर पर ही है। कितना परेशान हो गया होगा। अरे....... !!!!

ये पियूष फिर से चोरों की तरह कहाँ जा रहा है!!! क्या करूँ इसके पीछे जाऊँ या.... कहीं पिछली बार की तरह फंस गयी तो..... ना भाड़ में जाए मेरी बाला से। पर पिछली दो बार जब ये निकला था तो काफी हत्याएँ हुई थी। ये तो क्या करता होगा हत्याऐं, एक नंबर का लम्पट ( कैरेक्टरलेस) है। पर.... नहीं यार, इतना भी बुरा नहीं है। उस दिन पहाड़वाले जंगल में मुझे तो कुछ नहीं कहा जबकी मैं कितनी बेबस थी। पर यार.. ये अजीब ही है। उस दिन कार भी कहाँ से आयी थी??? कुछ समझ नहीं आ रहा। अभी इतना अँधेरा भी नहीं पड़ा है। देख ही लेती हूँ, कि जनाब कहाँ जा रहे है।'

ऐसे ही अंतर्द्वंद में उलझी निशा को पता ही न चला कि कब उसके पैर पियूष का पीछा करने लगे।

निशा पियूष के पीछे-पीछे एक नाईट क्लब तक पहुँची। काफी बदनाम नाईट क्लब था, जहाँ कई बार ड्रग्स के लिए भी रैड पड़ चुकी थी। परन्तु फिर भी पता नहीं क्यों अभी तक चल ही रहा था। काफी जवान जोड़े यहाँ अपनी रातें रंगीन करने आते थे। सब के सब बिगड़े हुए नहीं होते थे, कुछ मासूम भी होते थे जो आधुनिकता की दौड़ में पहली-पहली बार दोस्तों के कहने से मनोरंजन के लिए आते थे।

म्यूजिक अपने शबाब पर था, काफी जोड़े थिरक रहे थे। अचानक ऐसा लगा कि कोई गुर्रा रहा है। परन्तु ये गुर्राहट तेज लाउड स्पीकर चलने के बावजूद सुनाई दे रही थी। कुछ लोगों ने इससे म्यूजिक का ही हिस्सा मान नजरअंदाज किया वहीं कुछ लोग सहम भी गए।

आनन्-फानन् में क्लब खाली होने लगा। बस कुछ लोग ही वहाँ रहे जो पूरे मिजाज में थे; कि तभी उनके मिजाज ठीक करने कुछ आ गया था। जी हाँ...., उसे 'कुछ' ही कहना ठीक होगा, क्योंकि वो किसी भी तरीके से इंसान नहीं लग रहा था।

नीला शरीर जो तकरीबन 7 फुट का रहा होगा, लम्बे बाल,जो उसके चेहरे को लगभग ढ़के हुए थे। मजबूत हाथ पैर, जिनके नाखून बढे हुए पर जानवरों की तरह मुड़े हुए थे। उसने एक पेंट ही पहन रखी थी जो काफी बुरी हालत में थी जैसे कोई सैंकड़ों साल पुरानी हो और उस पेंट का आकार भी आज के जमाने जैसा नहीं था।

वो लोग उसे किसी तरह का मजाक मानते अगर उसके एक हाथ में बड़ा सा फरसा न होता जिससे अभी ताजा खून टपक रहा था। यानी उस फरसे ने किसी के रक्त से अपनी प्यास बुझाई थी अभी हाल ही में। सब लोग सहम गए। उस 'कुछ' ने जरा सा मुँह खोल कर हर्रर्रर..... की आवाज की तो उसके दांत दिखाई दिए जो किसी भी कोण से इंसान के नहीं थे।

अचानक वहां चीख पुकार मच गयी और सब लोग भागने लगे। परन्तु जिस भी दरवाजे या खिड़की की तरफ कोई पहुँचता वो बंद हो जाता और जोर लगाने के बावजूद टस्स से मस्स न हो रहा था।

इतने में किसी ने अपने पास रखी पिस्तौल निकाल ली और वहाँ क्लब के गार्ड्स भी आ गए गन्स लेकर। स्थिति चेतावनी वाली ना लगने पर सबने अपनी गन्स का मुँह खोल दिया। गोलियां उस ' कुछ' के शरीर में पचासों सुराख कर गयी। वहाँ सिगरेट या हुक्के के धुंएं की बजाय बारूदी धुंआं हो गया था।

जैसे ही धुंआं छंटा सब की हवा ही छंट गयी, क्यूँकि न तो गोलियों के छेदों से कोई रक्त की बूँद भी निकली न उसकी साँसें। ऊपर से वो तो हिला भी नहीं। सबकी विस्फारित नजरों ने ये भी देखा कि उसके घाव तेजी से भर रहे हैं।

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निशा खुद पर खीज रही थी, क्यूँकि पियूष क्लब के पास पहुँच कर फिर गायब हो गया और ढूँढे़ से भी न मिल रहा था। क्लब में घुसना उस जैसी सीधी और डरपोक लड़की के लिए आसान न था। अंत में काफी सोच विचार और तीन उँगलियों के नाखून चबाने के बाद उसने अंदर जाने का फैसला ही किया। वो कलेजा मजबूत करके अंदर तो घुस गयी परन्तु वहाँ का माहौल उसे दमघोंटू लगा। अगर वो ज्यादा देर रुकी तो शायद बेहोश ही हो जाएगी। उसने तुरंत फैसला किया वहाँ से निकलने का। अचानक उसने देखा कि किसी कारण से वहाँ भगदड़ मची है और सब भागने की कोशिश कर रहे हैं पर दरवाजे बंद हो गए।

निशा ने पलट कर देखा तो उसकी आँखों में मौत नाच उठी। सामने बहुत ही भयानक दृश्य था। वो शख्श जो उसे दिख रहा था उसमे इरादे बहुत ही खतरनाक थे......

To be continued.......