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नर्क - 11

"सर, मैं ऐसी ड्रेस नहीं पहन सकती मेरे घर वाले अलाऊ नहीं करते."

"मिस निशा, ये बहाना नहीं चलेगा। जहाँ तक मुझे मालूम है, आप और आपके भाई के अलावा मुझे और कोई फेमिली मेंबर मिला ही नहीं, शायद है भी नहीं।"

"सर प्लीज सर, माफ कर दीजिये आगे से आपसे ऊँची आवाज में बात नहीं करुँगी।"

"लुक मिस निशा, ये आपको जोश में होश खोने से पहले सोचना चाहिये था। अब या तो आप एग्रीमेंट अनुसार मुझे 20 लाख रूपये हर्जाना देंगी या फिर ये ड्रेस पहन कर मेरे साथ चलेंगी। सोच लीजिये चॉइस इस योर्स।"

"सर प्लीज, सर... निशा की आँखों में आँसू आ गए। पियूष एक बार उसको घूर कर देखने लगा। पर फिर बड़ी ढिठाई से बोला-" मैं लाउन्ज में 20 मिनट वेट करूँगा फिर चला जाऊंगा। आप अपने तरीके से अपने आप साईट पर आ जाना। फिर वो वहाँ से चला गया। निशा मायूस सी उसको मन-मन भर की गालियां दे रही थी। उसने भारी मन से उस ड्रेस को देखा। वो एक बैकलेश गाउन (वन पीस)था जो थोड़ा फैशनेबल था। निशा इस तरह की रिवीलिंग ड्रेस कभी नहीं पहनी थी। वो तो हमेशा सीधी-सादी ही बनी रही।

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पियूष नीचे लाउन्ज में बैठा वेट कर रहा था 20 मिनट की जगह 40 मिनट हो गए थे। अपनी घड़ी में देखते-देखते वो अब झुंझलाने लगा था। उसे रह-रह कर निशा पर गुस्सा आ रहा था। उसने मन में सोचा -' इस लड़की को तो सबक सिख.......ये क्या?????

निशा नीचे उतर रही थी, वही ड्रेस पहन कर। पियूष का मुँह खुला रह गया। निशा सकुचा रही थी। वो लिफ्ट से बाहर आकर रुक गयी। पियूष ने नोटिस किया कि न सिर्फ वो बल्कि वहाँ मौजूद हर शख्स उसे ही देख रहा था। निशा असल में बहुत ही ज्यादा खूबसूरत लग रही थी। उसे देख कर पियूष को उस सपने की याद आ गयी। निशा सकुचाते हुए उसके पास आयी और उसे धीरे से बोली -" सर, सब मुझे ही घूर रहे हैं। पक्का मैं बहुत खराब लग रही हूँ। प्लीज मुझे ड्रेस बदलने दीजिये। मैं 5 मिनट में आ जाउंगी, प्लीज सर।"

पियूष को और तो कुछ नहीं सूझा उसने बस निशा की बाजू पकड़ी और लगभग खींचते हुए उसे अपने साथ होटल के बाहर ले जाकर थोड़ी जबरदस्ती के साथ कार में बैठा लिया और कार स्टार्ट कर ली।

निशा चलती कार में बार-बार बेचैनी से पहलू बदल रही थी। जगह-जगह से ड्रेस को खींच-खींच कर अपने को ढ़कने का प्रयास कर रही थी। हालाँकि ड्रेस कोई ज्यादा खुली न थी पर निशा ने ऐसी कभी पहनी न थी तो वो असहज महसूस कर रही थी। वो बार-बार पियूष को पूछ रही थी -" सर, मैं गन्दी लग रही हूँ न?? सर, प्लीज ड्रेस चेंज करवा दो। सर, वहाँ क्लाइंट्स के सामने बड़ी बेइज्जती हो जाएगी मेरी। सर प्लीज, आइंदा ऐसा नहीं करुँगी। सर, गुस्से में जुबान स्लिप हो गयी थी।"

पर पियूष चेहरे पर कठोरता लिए बिना कोई शब्द बोले बस ड्राइव कर रहा था। जल्दी ही वो वहाँ पहुँचे। वो लोग शिमला से सोलन के बीच हाईवे के काफी पास एक खूबसूरत पहाड़ी पर थे। जो काफी अच्छी पिकनिक स्पॉट थी। वहाँ पर वो लोग (कुकरेजा) लैंड प्रॉपर्टी (जमीन) के मालिक थे जिस पर पियूष की कंपनी एक बड़ा रिसोर्ट बनाने वाली थी। पियूष वो जमीन उनसे खरीद रहा था तो वो सौदा करने आये थे। चूँकि निशा उसकी प्रोजेक्ट मैनेजर थी तो ये प्रोजेक्ट उसे ही संभालना था।

जैसे ही जमीन के मालिक (कुकरेजा) आये वो पियूष से बोले -" वाह, पियूष जी आज तो भाभीजी के साथ आये हैं। आपने शादी कर ली और इतनी सुन्दर भाभीजी लाये हो, इसकी पार्टी भी न दी?? ये तो सही बात न हुई.. आज तो पार्टी लेंगे।"

पियूष - "जी नहीं मिस्टर कुकरेजा, हमारी शादी नहीं हुई।"

कुकरेजा -"अरे, तो आपकी मंगेतर है?? कोई बात नहीं शादी तो हो ही जाएगी पर पार्टी तो आपको देनी ही पड़ेगी।"

पियूष कुछ कहना चाहता था पर रुक गया क्यूंँकि अगर वो कुछ भी बोलता तो मिस्टर कुकरेजा कोई नयी बात कर लेते और वो डील जल्दी खत्म करना चाहता था। निशा ने भी कुछ कहने के लिए मुँह खोला पर कुछ सोच कर चुप रह गयी।

उन लोगों के बीच में जमीन की डील हो गयी थी। दोनों पार्टियों को इस से अच्छा-खासा फायदा हुआ। कुकरेजा को अच्छे दाम मिले और पियूष को अच्छी प्रॉपर्टी।

शाम को उसी पहाड़ी के पास एक छोटे से परन्तु अच्छे होटल में वो लोग जश्न मना रहे थे। कुकरेजा ने अपनी फेमिली बुला ली थी। औरतों के हाथ में ज्यूस और लाइट ड्रिंक थे जबकि आदमियों के हाथ में उनके हिसाब से ड्रिंक (वाइन) थी। पार्टी चल रही थी, पियूष किसी काम से होटल के अंदर गया हुआ था। अचानक सबको तेज चीखों की आवाजें सुनाई दी। कुकरेजा और उसके गार्ड्स ने सभी लेडीज को अंदर जाने के लिए कहा और कुछ आदमियों को चीखों का पता लगाने भेजा। परन्तु थोड़ी देर बाद और भी चीखें गूंजीं। कुकरेजा ने खतरा भांप लिया और सभी लोग होटल के अंदर चले गए।

इस अफरा-तफरी में निशा को पियूष दिखाई न दिया तो वो सबकी नजर बचा कर वहाँ से निकल गयी। वो चीखों की दिशा में गयी वहाँ जाके उसने देखा कि वहाँ लाशें ही लाशें पड़ी है। कुछ लाशें वहाँ घूमने आये पर्यटकों की तो कुछ उन बेचारे गार्ड्स की थी। परन्तु कुछ लाशें इस तरह थी जैसे उनके कंकाल पर सिर्फ स्किन ही थी बीच का मांस, खून और नसें गायब, एकदम गायब, जैसे कभी थी ही नहीं। बाकी लाशें इतनी बुरी तरह काटी गयी थी कि कइयों की तो आंतें ही वहाँ छितरा गयी थी।

कुल मिलकर वहाँ नर्क का सा नजारा था। बस एक यमदूत चाहिए था जो वहीं लाशों के बीच ही खड़ा था। हाथ में वही रक्तरंजित फरसा लिए जिससे खून टपक रहा था, उसने अभी जैसे स्नान किया हो रक्त से। उस यमदूत ने सीधा निशा की आँखों में देखा जैसे उसे उसी का इंतजार था। वो बड़े ही वहशी भाव से हंसने लग गया और वहाँ से चला गया। निशा इतना भयानक और विभत्स दृश्य देख कर बेहोश होकर गिर गयी।

To be continued.....