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अभिव्यक्ति.. - 5

 

इंतकाम,... 

 

कसम से इंतकाम का हमें ऐसा सुकून मिले 

खुदा करे की तुम्हे तुमसा कोई हू-ब-हू मिले 

 

जिसे तुम बेपनाह चाहो तुम्हे वो इस तरह मिले 

जैसे की कोई लाइलाज जानलेवा रोग सा मिले 

 

तेरे दिलके हर पहलूमें नाम सिर्फ उसीका मिले 

और दर्द तुम्हे उस नाम से बे-इन्तिहा मिले

 

जिनके सपने सजाते रहो तुम रोज तुम्हे वो रात मिले 

पलक खोलो तो तुम्हे खाख होते सारे जज्बात मिले

 

नाक़ाम ना रहो तूम करने को वो एक ही काम मिले 

की तुम रुस्वा होकर मर जाओ वैसा तुम्हे नाम  मिले 

 

और हा, तुम सलीके से निभाए जाओ मोहोब्बत उनसे  

और तमाम उम्र तुम्हे बस शिकस्त की मात मिले 

 

जब तलक दम रहे तुम्हे बस एक ही जलन मिले

की तुम्हे मोहोब्बत हार जाने का निहायत गम मिले

 

ये दुआ है तुम्हे की तुमसा कोई जरूर मिले  

कसम से इंतकाम का हमें बड़ा ही सुकून मिले 

 

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इश्क़,... 

 

आरजू है इश्क़, सियासत का मुद्दा है इश्क़ 

हकीकत कहु में तुम्हे तो एक खुदा है इश्क़  

मानो उसे तो नमाज़ और इस्लाम है इश्क़ 

न मानो तो सर से पांव तक बे-ईमान है इश्क़ 

 

किसीने कहा था हर दर्दकी दवा है इश्क़ 

तो किसीने समझाया की एक बला है इश्क़ 

किसीने कहा तूफ़ान से भरा है इश्क़ 

तो किसीने कहा गुलशन सा हरा है इश्क़ 

 

अगर छुपाओ तो है दो पलक में इश्क़ 

वरना इस जमीनसे लेकर आसमान तलक है इश्क़  

आँखों से निकले तो गिरता हुआ अश्क़ है इश्क़ 

दिलमे चुभे तो ख़ौफ़नाक रश्क़ है इश्क़

 

कैसे कहु खयालो से बाहर है जो वो कला है इश्क़

दुल्हन की ज़ुकी निगाहो की तरह हया है इश्क़ 

कही नज़्म, कही शायरी तो कही शायर है ये इश्क 

कही आबाद तो कही किसीसे घायल है ये इश्क़

  

 

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तुजे खोने के बाद,.. 

 

इस तरह मिली वो मुझे सालो के बाद

जैसे हकीकत मिली हो ख़यालों के बाद 

में पूछता रहा उस से खताएं अपनी 

वो बहोत रोई मेरे सवालों के बाद 

 

पूछा कि - 

गुमशुदा हो खुद, हमें छोड़कर जाने के बाद 

अब कैसे हो पनाहों में किसी और की आने के बाद, 

हम अब भी वही खड़े है, तेरे रस्ते पर लाने के बाद,   

क्या मिला तुम्हे, दो दो जिंदगी गंवाने के बाद,

 

हम कैस और फरहाद बन गए दिल लगाने के बाद 

तुझे आबाद कर दिया हमने, खुदको जलाने के बाद  

गर मातम तुम्हे सिर्फ निकाह से ही था

तो फिर रूख क्यों बदल दिया उस रात, दरपे आने के बाद 

 

समंदर बहाए थे इन आँखोंने तब, रात होने के बाद 

कि - कोई जान ही ना पाए, सबेरा होने के बाद,

तेरी फ़िक्र ने जान ले ली मेरी, तेरे जानेसे इस कदर,   

कि - जिन्दा रहे गए हम जान, तुझे खोने के बाद,

 


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बस, इतना कर दो,..  

 

नए जहाँ में अपने जो जी चाहो वो कर लो, 

सिलसिला ख़त्म कैसे हो, ये परामर्श भी कर लो..

 

मेरी कैद जिंदगी को, तुम अभी रिहा कर दो.. 

हो सके तो, मेरे हक़ में थोड़ासा हक़ अदा कर दो  

 

रहेनूमा बनकर तुम भी, कभी तो राबता कर लो, 

फलक के जुगनू को इसी वक्त तूम तारा कर दो, 

 

सर-काशीदा जो भी थे नाम-ओ-निशां गुम कर दो 

हो फ़स्ल-ए-गुल या हो खिज़ा, गुलिस्ताँ अपना तुम करदो,.. 

 

वो गलियाँ है जो सुनी, वो घर हे जो वीराना 

हाथसों से बेखबर दर का हर कोना तुम कर दो 

 

अहसास-ए-मोहोब्बत तूम, इस कदर बयाँ कर दो,

कि - दास्ताँ जो भी है अपनी, उसी के नाम तूम कर दो

 

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