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ब्रह्मास्त्र - फ़िल्म समीक्षा

नन्दी को फ़िल्म में हाथी बताया हैं। ईशा जो आलिया का नाम हैं। उसका मतलब पार्वती तो अंदाजा लगा सकते हो फ़िल्म कैसी होगी।

अमेरिकन लोगों( हॉलीवुड का मतलब बहुत सारे देशों का सिनेमा हैं। लेकिन सुपर हीरो की फिल्में केवल अमेरिका बनाता हैं। इसलिए अमेरिकन सिनेमा का इस्तेमाल किया हैं।) ने पहले कॉमिक्स लिखी, उसके बाद 1980-90 के दशक में फिल्में बनाई, वो ज्यादा नहीं चली। उसके बाद उन्होंने वक़्त लिया और दोबारा से तैयारी की, उस तरह के लेखक, निर्देशक ढूंढे जिनका इन चीज़ों में इंटरेस्ट हो, फिर बिना ये बताए कि वो यूनिवर्स जैसा कुछ बना रहे हैं। फिल्में बनानी शुरू की, दूसरी तरफ बॉलीवुड हैं। जिसने कोई तैयारी नहीं की, सीधा यूनिवर्स बनाने निकल पड़ा। पहले पार्ट की स्टोरी तक नहीं लिखी और तीसरे पार्ट का अंत क्या होगा सोच लिया। वो भी एक ऐसी कहानी पर जो पहले एक अरब सूफी रूमी के ऊपर लिखी गयी थी। लेकिन अचानक डायरेक्टर के दिमाग में आया कि उसके पापा बचपन में उसे भारतीय अस्त्रों के बारे में बताते थे। तो उसे ये कहानी अस्त्रों पर सेट करनी चाहिए। तो बस बनकर तैयार हो गयी एक और बॉलीवुडिया फ़िल्म

भई सीधी सी बात हैं। यूरोप के सारे देश कभी सुपर हीरो फ़िल्म नहीं बनाते, क्योंकि उन्हें पता हैं। कि उनकी इस काम में महारत नहीं हैं। तो दूसरे तरह की फ़िल्म बनाते हैं। लेकिन हमारे यहाँ बिना ये ध्यान दिए कि किस चीज़ में महारत हैं। बस के कैमरा पकड़ लेते हैं।

कहानी; कहानी क्या थी। एक शब्द में कहूँ तो प्रेम कहानी वो भी 600 करोड़ की,

रणवीर कपूर आलिया से प्यार करता हैं। और उसे सपने आते हैं। वो उन सपनों का पीछा करते-करते ब्रह्मास्त्र तक पहुँच जाता हैं। ये फ़िल्म का मैन प्लाट हैं।

शाहरूख खान और नागार्जुन ब्रम्हास्त्र के तीन टुकड़ो की रक्षा करते हैं। और दोनों ही मर जाते हैं। दूसरी तरफ अमिताभ बच्चन ब्रह्मास्त्र की शक्तियों की रक्षा का एक आश्रम चला रहा हैं। जो आश्रम कम और फाइव स्टार होटल ज्यादा लगता हैं। ये फ़िल्म का साइड प्लॉट हैं।

रणवीर कपूर फ़िल्म के विलेन(जिसका नाम देव हैं।) का बेटा हैं। और उसकी माँ एक अच्छी इंसान हैं। जो देव से प्यार करती थी। लेकिन देव की अति महत्वकांक्षाओं के कारण उसने देव से युद्ध किया और उसे पत्थर की आधी मूर्ति टाइप में बदल दिया। ये अगली फिल्म की कहानी का रेफरेंस हैं।

पटकथा; जिसने लिखी हैं। अभी हाथ काट दो उसके, क्या थी ये, और क्यों थी। ये बस लिखने वाला जानता हैं। पहले एक घण्टे में रोमांस, दूसरे एक घण्टे में अमिताभ के मोनोलॉग डायलॉग और जहाँ जरूरत ना हो वहाँ गाने;

जैसे कि शुरुआत में शाहरुख खान के साथ बड़ा अच्छा सीन चलता रहता हैं। और दर्शकों को लगता हैं। पूरी फिल्म ऐसी होगी। लेकिन फ़िल्म मेंअचानक से गाना बजने लगता हैं। उसके बाद आलिया के साथ रोमांस और फिर कहीं जाकर वो शाहरुख वाला सीन आता हैं। लेकिन तब दर्शकों को लगता हैं। अब ये क्यों दे दिया। फ़िल्म में अच्छा खासा तो रोमांस दिखाया जा रहा था।

और कभी भी रणवीर कपूर का बचपन चालू हो जाता हैं। हर सीन में आलिया को दिखाया हैं। चाहे उसकी जरूरत हो या ना हो, अमिताभ बच्चन वैसे गुरु हैं। पर जानकारी के नाम पर उसके पास एक जवाब, हमें अभी सवालों के जवाब ढूंढने होंगे। रणवीर कपूर फ़िल्म के अंत तक कंफ्यूज रहता हैं। कि उसे करना क्या हैं।

संवाद; बकवास, भाषा पर कोई ध्यान नहीं दिया। लगता हैं। जैसे सीन के अंदर जो बोला जा रहा हैं। वो इसलिए हैं। कि कहीं फ़िल्म मूक फ़िल्म ना बन जाएं। वरना उसका सीन से तो कोई खास लेना देना नहीं हैं। कुछ डॉयलोग हँसाने के लिए हैं।

जैसे; ये पटाखे क्यों फोड़ेगा ये तो अपनी पटाखा लेकर आया हैं। यहाँ पटाखा शब्द आलिया के लिए इस्तेमाल हुआ हैं।

इस उम्र में शराब मत पिया करों।

मेरे गुंडे, तेरे गुंडे

ऐसे संवाद हैं।

निर्देशन; ये लव स्टोरी बनाने वाले डॉक्टर अचानक से सुपर हीरो टाइप मूवी बनाने लगे तो ऐसी ही बनेगी। लेकिन इन पर बनाना तो लव स्टोरी आता हैं। तो बस पूरी फिल्म में आलिया-रणवीर की लव स्टोरी हैं। रणवीर अपनी शक्ति पहचान रहा हैं। आलिया के लिए, वो बचा रहा हैं। आलिया को, वो आग छोड़ रहा हैं। आलिया के लिए, इस बन्दे को कोई मतलब नहीं हैं। किसी और से पूरी फिल्म में, इसे केवल प्रेम प्रसंग चालूं रखना हैं। लास्ट में ब्रह्मास्त्र की वजह से दुनिया खत्म होती हैं। लेकिन डायरेक्टर दिखा क्या रहा हैं। आलिया घायल हो रही हैं। रणवीर उसे बचा रहा हैं। बाकी दुनिया का एक भी सीन नहीं, ऐसा ही एक सीन हैं। रणवीर, आलिया को अनाथालय ले जाता हैं। आलिया देखती है। इस जैसा इंसान मिलना मुश्किल हैं। और यही हैं। मेरा हमसफर, सच में ये सीन हैं। एक सुपर हीरो टाइप फ़िल्म के, डायरेक्टर को खुद से पूछना चाहिए। कि मैंने ये कारनामा क्यों बनाया।

एक्शन; एक्शन अधूरा सा लगता हैं। मतलब स्क्रीन पर कुछ देखने की कसक मन में रह जाती हैं। और जो स्क्रीन पर चल रहा होता हैं। वो अजीब लगता हैं। लास्ट के एक्शन में दिमाग में झुनझुनाहट पैदा होती हैं। लगता हैं। बस ये जो चल रहा हैं। खत्म हो जाये। लेकिन वो सब रुक-रुककर चलता रहता हैं।


अंतिम बात ये हैं। कि हम फ़िल्म की किसी भी चीज़ से रिलेट नहीं कर पाते, हीरो-हीरोइन अपनी वास्तविक ज़िंदगी से निकलकर किरदारों में घुस नहीं पातें। फ़िल्म की शुरूआत में हज़ारों साल पहले की कहानी कार्टून के माध्यम से दिखाई हैं। लेकिन नक्शा अब का दिखाया हैं। अरे जब हज़ार साल पहले की बात बता रहे हो तो उस वक़्त का अखण्ड भारत का नक्शा दिखाओ ना, और वो भी आर्यव्रत के नाम लेकर, लेकिन इन्होंने क्या दिखाया आज का नक्शा, ऊपर से फ़िल्म के अंदर जबरदस्ती जहाँ जरूरत नहीं हैं। वहाँ भगवानों के नाम ले-लेकर डायलॉग हैं। फ़िल्म में कही भी कोई भी संस्कृत में श्लोक बोलने लगता हैं। फ़िल्म में 50 से ऊपर योद्धा होने के बावजूद आलिया बता रही हैं। क्या करना हैं। तो अंत में ये ही कहना चाहूँगा की फ़िल्म 600 करोड़ का एक जोक हैं। जिस हँसी भी नहीं आती।