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कविता

छुआ था। जब तुमने रूमानी होकर मुझे पहली बार

सहम सी गई थी मैं, सिमट सी गई थी मैं

छलक सी गई थी मैं, और एक जगह जड़ सी हो गई थी मैं

वो अजीब सी छुअन, ना जाने कैसी छुअन थी

पर पहले जैसे छूते थे। तुम, वैसी नहीं थी वो

छुआ था जब रूमानी होकर, तुमने मुझे पहली बार

बदन पर वस्त्रों का बोझ लग रहा था।, उन्हें खुद से अलग होने के इंतज़ार में थी। मैं

गालों पर लाली उभर रही थी।, आखों में शरारत भरने को तैयार थी।, मैं

मंद-मंद मुस्कान होटों पर बिखर रही थी, कानों में एक वाघ संगीत गूंज रहा था।

सीने में एक उभार आ गया था, कमर में खुद प खुद खिंचाव पैदा हो रहा था

पंजे ज़मीन पर रुकने को तैयार न थे।, कमर से नीचे की नशे अपने आप ऐठने लगी थी।

पूरा जिस्म तुम्हारी बाहों की गोद मे झूलने को तैयार था

छुआ था। जब तुमने रूमानी होकर मुझे पहली बार

तुम मेरे कमर तक के बदन को जब चुम रहे थे। लग रहा था। जैसे वर्षों बाद रेगिस्तान में बारिश की बूंदे पड़ी हो,

तुम्हारे हाथ मेरे जिस्म पर जैसे-2 रेंग रहे थे। लग रहा था। जैसे वो हिस्सा आज दोबार बन रहा हो,

तुम्हारे जिस्म का पसीना मेरे बदन पर गिरकर ऐसे रिस रहा था। जैसे नदी का कोई बन्द टूट गया हो,

तुम्हारे बदन की खुश्बू मेरी सांसों में ऐसे घुल रही थी। जैसे लम्बे अंतराल के बाद नमी हवा में घुली हो,

ये जो भी हो रहा था। इन सबसे बस एक ही ख्वाहिश जहन में पैदा हो रही थी। कि शरीर का हर अंग तुम्हारे अंगों में कैद हो जाए।

छुआ था। जब तुमने रूमानी होकर मुझे पहली बार

उप्पर की चुहलबाजियों के बाद मैं चाहती थी। तुम नीचे के अंगों से थोड़ा खिलवाड़ करो।

यू तो बिस्तर पर मैं पूरी निर्वस्त्र थी। पर एक काले धागे से गुथे हुए कपड़े जैसा कुछ ने अभी तक रोके हुए था। पूरी तरह तुम्हारी हो जाने से,

मैं चाहती थी तुम, मुझे उस काले कपड़े से आज़ाद करो। और कुछ देर तक मेरी जांगो के बीच बने अर्ध्दगोले को रिझाओ,

छुआ था। जब तुमने रोमानी होकर मुझे पहली बार

अब तक मैं जो चाह रही थी। तुम वो सबकुछ चुपचाप कर रहे थे।

पर ये सब मेरी ही बर्दास्त से बाहर हो रहा था।

इसलिए मेरा शरीर तो शरीर, मेरी ख्वाहिस भी हो चली थी। कि अब तुम अपने उस उभरे हुए भाग को जिसका भार मेरा बदन संभाल नही पा रहा था। उसे मेरे तिकोने हिस्से के भरे जल में डुबो दो

छुआ था जब तुमने रोमानी होकर मुझे पहली बार

मेरे आंनद का अंत करीब आ रहा था।

खुशी के मारे मैं चिल्लाना चाहती थी। पर वो आवाज़ सिसकियों में बदल रही थी।

मेरा जिस्म चाहता था। अंत से कुछ सेकंड पहले का समय ठहर जाए

पर प्यार चाहता था। तुम्हे सुकून मिले

और अंत में तुम्हारे शरीर से निकले रस की वो भीनी सी गंध और मेरे शरीर का वो आनन्दित एहसास तुम्हें मेरे पहले से ज्यादा करीब ले आया था।

इस पूरी क्रिया में लगा था। जैसे कोई पवित्रता मेरे शरीर पर अपनी छाप छोड कर चली गयी हो,

छुआ था। जब तुमने रोमानी होकर मुझे पहली बार