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उजाले की ओर –संस्मरण

उजाले की ओर - - - - संस्मरण

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स्नेही एवं प्रिय मित्रो नमस्कार

जीवन की भूलभुलैया बड़ी ही जकड़ने वाली है, जीवन में चलते हुए हम किन्ही ऐसे मार्गों में खो जाते हैं जिनसे निकास का मार्ग ही नहीं मिलता | वास्तव में यह हमारी मानसिक स्थिति पर निर्भर करता है कि ऐसे समय हम उलझन में से किस प्रकार सही मार्ग निकाल पाते हैं |

बहुधा देखा यह गया है कि हम किसीके कहने में अथवा किसीकी देखा-देखी किसी ऐसे मार्ग पर चल पड़ते हैं जो हमें और भी विकट स्थिति में लाकर पटक देता है| हम भुला ही बैठते हैं कि परमात्मा ने हमें एक निर्णय-शक्ति प्रदान की है जिसका हमें स्वयं प्रयोग करना है न कि किसी अन्य के इशारों पर नाचना है |

आजकल ‘मीडिया’ में नए-नए गुरुओं का खुलासा हो रहा है | लेकिन यह बात कोई नई नहीं है | वास्तविकता यह है कि धर्म के नाम पर अनेक गुरु जन्मते रहे हैं और आजकल तो इनकी बाढ़ सी ही आ गई है | जिधर देखो उधर गुरु ही गुरु ! जब वे छद्मवेषी निकल जाते हैं तब उनको प्रताड़ित किया जाता है | सही भी है उनके कलुषित कार्य की प्रशंसा तो नहीं की जा सकती | किन्तु एक गंभीर प्रश्न यह है जिसका चिंतन होना आवश्यक है कि आखिर इन्हें गुरु बनाता कौन है? क्या हम ही लोग नहीं ? हम ही लोग तो हैं जो अपनी बहन-बेटियों को उनका आशीर्वाद लेने भेजते हैं| क्या धर्म का वास्तविक अर्थ हम समझते हैं ? और इसी अपनी नासमझी के कारण धर्म के नाम पर किसी न किसी संप्रदाय के चंगुल में फँस जाते हैं | जीवन है तो प्रतिदिन किसी न किसी समस्या अथवा बात का सामना तो करना ही पड़ेगा | यह भी सही है कि कभी-कभी हम किसी ऐसे भंवर में स्वयं को फँसा हुआ पाते हैं कि हमें किसी के साथ सलाह-मशविरे की आवश्यकता हो ही जाती है किन्तु यह भी तो विचारणीय है कि हमें इसके लिए भी तो चैतन्य होना होगा कि हम किससे सलाह ले रहे हैं? आँख खोलकर, बुद्धि से समझकर अपना सलाहकार चुनना ठीक नहीं है क्या? थोड़ी सी चेतना की ही तो आवश्यकता है|

कई बार तो यह देखकर बहुत अफ़सोस होता है कि हम भँवर में स्वयं जा फँसते हैं और अपने साथ औरों को भी फँसा देते हैं बाद में पछताते हैं और उस स्थिति में से निकलने के लिए छटपटाते रहते हैं किन्तु आगे का मार्ग अवरूद्ध हो जाता है | ऐसे में क्या किया जाय?

अपने स्नेही पाठक-मित्रों से मैं इस विषय पर उनके विचार जानना चाहूंगी|मित्रो ! यदि आपके पास इससे संबंधित अपने कोई अनुभव अथवा विचार हों तो कृपया साझा करें| मैं आप लोगों के अनुभव व सुझाव आपके नाम के साथ रविवारीय परिशिष्ट में देने का प्रयास करूंगी, यदि आप अपना नाम लिखने की अनुमति देंगे | अन्यथा अगले रविवार से मैं अपने अनुभव तो आप लोगों के साथ साझा करना चाहूंगी ही | आप लोगों की सुविधा के लिए मैं अपना ‘ई.मेल’ आपसे साँझा कर रही हूँ जिससे मैं आपके अनुभवों को यथासमय, यथाशक्ति बारी-बारी से शब्द दे सकूँ |

अपने गुरु स्वयं बनें, मन में झांकें आप,

तब न होगा किसीको कोई भी संताप ||

 

आप सबकी मित्र

डॉ  प्रणव भारती