Kamwali Baai - 13 books and stories free download online pdf in Hindi

कामवाली बाई - भाग(१३)

डाक्टर की बात सुनकर अर्जिता बोली....
तो क्या गंगा मेरी बहु बनने को राजी होगी?
क्यों नहीं होगी?वो अगर सनातन से प्यार करती होगी तो जरूर राजी होगी,डाक्टर बोली।।
लेकिन मैं उससे कैसें बात करूँ?मैं ने उसका कितना अपमान किया?अर्जिता बोली।।
तुम उससे प्यार से बात करोगी तो वो तुम्हारी सारी पुरानी बातों को भूल जाएगी,डाक्टर बोली।।
तो फिर मैं अभी गंगा के पास जाती हूँ,अर्जिता बोली।।
ये ठीक नहीं रहेगा,जब गीता यहाँ काम करने आएं तो उससे कहना कि वो गंगा को यहाँ ले आएं,डाक्टर बोली...
अगर गंगा ना मानी तो,अर्जिता बोली।।
वो मान जाएगी,बस तुम कोशिश तो करो उसे मनाने की,डाक्टर बोली.....
फिर जब गीता काम पर आई तो अर्जिता ने गीता से कहा....
गीता!एक बात बोलूँ,,
जी कहिए,गीता बोली।।
मैं गलत थी,गंगा गंगाजल की तरह पवित्र है,अगर तुम गंगा को यहाँ ले आओ तो मैं उससे माँफी माँग लूँगी क्योंकि मैनें उसका अपमान करके बहुत बडी़ भूल की है,मैं उसे पापिन समझती थी लेकिन ऐसा नहीं है,अर्जिता बोली।।
ये आप क्या कह रहीं है?गीता बोली।।
मैं सच कह रहीं हूँ,अर्जिता बोली।।
तो क्या आपको पता चल गया कि गंगा के पेट में किसका बच्चा है?गीता ने पूछा।।
हाँ!अर्जिता बोली।।
तो कौन है उस बच्चे का बाप?गीता बोली।।
और कोई नहीं सनातन ही उसके बच्चे का बाप है,अर्जिता बोली।।
ये क्या कह रहीं हैं आप? ऐसा कैसे हो सकता है,गीता बोली।।
ऐसा ही हुआ है,अर्जिता बोली।।
तो अब आप क्या करेगीं?गीता ने पूछा।।
तुम पहले गंगा को यहाँ ले आओ,जो भी कहना है मैं उसी से कहूँगी,अर्जिता बोली।।
जी!ठीक है!लेकिन वो ना आई तो,गीता बोली।।
उससे कहना कि उसके होने वाले बच्चे की दादी ने उसे बुलाया है,ये सुनकर वो जरूर आएगी,अर्जिता बोली।।
सच!तो क्या आप गंगा को अपनाने के लिए तैयार है,गीता बोली।।
हाँ!वो ही मेरी बहु बनेगी,अर्जिता बोली।।
फिर अर्जिता ने गीता को अपनी कार से भेजा,गंगा और गीता कार में बैठकर वापस आईं,गंगा अर्जिता के सामने आई और उसके पैर पकड़ कर रोने लगी फिर बोली.....
मुझे माँफ कर दीजिए,मैं ये सब नहीं करना चाहती थी,लेकिन मैं क्या करूँ अपने दिल के हाथों मजबूर हो गई थी,मैं छोटे बाबू को चाहने लगी थी,उनकी मासूमियत ने मेरा मन मोह लिया था,उस दिन मैं अपने दिल के हाथों मजबूर हो गई और मैनें उन्हें खुद को सौंप दिया....
कोई बात नहीं,लेकिन तुम मुझे ये सच्चाई उस दिन ही बता देती तो बात इतनी नहीं बढ़ती,अर्जिता बोली।।
मैं बहुत डर गई थी,मैं छोटे बाबू पर कोई लांछन नहीं लगाना चाहती थी,गलती मेरी थी तो मैं ही उस सजा की भागीदार थी,इसलिए मैने आपको कुछ नहीं बताया,गंगा बोली।।
कोई बात नहीं ,मैं सब समझ गई,तो अब बताओ तुम मेरी बहु बनना चाहोगी,सारी उम्र मेरे सनातन का ख्याल रख सकोगी,अर्जिता बोली।।
उनके लिए तो मैं कुछ भी कर सकती हूँ,मैं उन्हें बहुत चाहती हूँ,इतना कहते कहते गंगा की आँखें भर आईं,
अभी सोच लो क्योंकि तुम्हें पता है कि मेरा सनातन कैसा है,बाद में मत मुकर जाना,अर्जिता बोली।।
चाहें तो आप लिखवा लें ,मैं अपनी जिम्मेदारियों से कभी भी मुँह ना मोड़ूगी,गंगा बोली।।
तो फिर अन्दर जाओ,सनातन भी तुम्हारा बेसब्री से इन्तज़ार कर रहा है,मैनें उससे कह दिया है कि गंगा से तुम्हारी शादी होने वाली है,अर्जिता बोली।।
ये सुनकर गंगा शरमा गई तो गीता बोली....
अब शरमाती क्या है?जा भीतर जा और सनातन भइया से मिल ले।।
फिर गंगा सनातन के कमरें में पहुँची उसने देखा कि सनातन अपना सामान ब्यवस्थित कर रहा था,उसे ऐसे देखकर गंगा बोली....
क्या हो रहा है?
सनातन पीछे मुड़ा और गंगा को देखकर बोला.....
तुम आ गई गंगा!मैं कमरा ठीक कर रहा था,मम्मा बोली थी कि अब हमारी शादी होने वाली है तो मुझे जिम्मेदार बनना पड़ेगा,इसलिए जिम्मेदार बन रहा हूँ,
तब गंगा बोली....
ये तो बहुत अच्छी बात है,
अब तुम्हें मुझे छोड़कर नहीं जाओगी ना!सनातन बोला।।
नहीं..कभी नहीं,गंगा बोली।।
और फिर गंगा और सनातन की शादी हो गई,गीता ने फिर अर्जिता का घर ये कहकर छोड़ दिया कि....
अब मेरी सहेली इस घर की छोटी मालकिन बन गई है,मैं उसका नाम भी नहीं ले सकती और मालकिन कहना मुझे अच्छा नहीं लगेगा,जब भी जी करेगा तो मैं आप लोगों से मिलने आ जाया करूँगीं और जब गंगा की सन्तान होगी तो मैं जी भरके नाचूँगी और आप लोंग भी मुझे भूल मत जाना...
इस तरह से उस दिन के बाद गीता ने उस घर को छोड़कर एक लेखिका के घर का काम पकड़ लिया जो सम्पादक भी थीं,उनकी उम्र पचास के ऊपर थी,उनका नाम त्रिवेणी सिंह था,वें तलाकशुदा थीं,वें समाज में अपनी एक अलग पहचान बनाना चाहतीं थीं,जो कि उनके पति को ये पसंद नहीं था,इसलिए उन्होंने अपने पति को तलाक दे दिया और अपनी बच्चियों के साथ अपनी बूढ़ी माँ के घर में रहने लगीं थीं,हलांकि उनके पति अक्सर अपने बच्चों से मिलने उनके घर आतें रहते थे,त्रिवेणी जी की विधवा और बूढ़ी माँ तो चाहती थीं कि त्रिवेणी अपने पति को तलाक ना दे लेकिन त्रिवेणी नही मानी,त्रिवेणी जी की दो बेटियाँ हैं,वें अपनी बेटियों से बहुत प्यार करतीं हैं,बड़ी बेटी गार्गी लगभग इक्कीस साल की है और काँलेज पहुँच गई है,साथ साथ ब्यूटीशियन का कोर्स भी कर रही है और छोटी बेटी त्रिशा अभी दसवीं में है और उसकी उम्र लगभग सोलह साल है,उनका हँसता खेलता परिवार है,
बस कभी कभी त्रिवेणी जी और गार्गी के बीच इसलिए बहस हो जाती है क्योंकि गार्गी अपने काम की वज़ह से घर आने में लेट हो जाती है तो त्रिवेणी जी उस पर गुस्सा करतीं हैं,उन्हें पसंद नहीं की जवान बेटी घर देर से लौटे,लेकिन गार्गी का काम ही कुछ ऐसा है कि उसे देर हो ही जाती है,गार्गी की एक बहुत अच्छी दोस्त हैं शिवाली तो गार्गी अक्सर उसके साथ ही घूमने जाती है,दोनों साथ साथ काँलेज में भी पढ़ती हैं और ब्यूटीशियन का कोर्स भी कर रहीं हैं इसलिए दोनों अक्सर साथ में रहतीं हैं,
शिवाली की माँ उसे बचपन में ही छोड़कर जा चुकी है और उसके पिता ने दूसरी शादी कर लीं,सौतेली माँ का व्यवहार शिवाली के लिए अच्छा नहीं है,उसके पिता बहुत बड़े बिजनेसमैन हैं इसलिए उनके पास अपनी बेटी शिवाली के लिए समय ही नहीं है,इसलिए वो जब चाहे जहाँ घूमती है और चाहे जिसके साथ भी पार्टियांँ करती है,कभी कभी तो वो अपने पिता के कमरें से शराब की बोतल भी उठा लाती है और फिर शिवाली और गार्गी दोनों मिलकर शराब पीते हैं,जब कभी गार्गी शराब के नशे में घर लौटी तो त्रिवेणी उस पर बहुत गुस्सा हुई,त्रिवेणी को बिल्कुल भी पसंद नहीं है कि गार्गी शिवाली के साथ रहे,त्रिवेणी को शिवाली की आदतें अच्छी नहीं लगतीं,उसकी नजरों में शिवाली एक रईस बाप की बिगड़ी हुई बेटी है,लेकिन गार्गी को शिवाली पसंद है वो उसकी दोस्ती नहीं छोड़ना चाहती,फिर त्रिवेणी ये सोचकर समझौता कर लेती है कि चलो कम से कम उसकी बेटी गार्गी का कोई लड़का दोस्त नहीं है,लड़की ही दोस्त है,
त्रिवेणी को लगता है कि इतनी ही गनीमत है ,नहीं तो आजकल की लड़कियों को देखो तो दिनभर लड़को के साथ घूमकर माँ बाप का नाम बदनाम करतीं हैं,अभी गार्गी की उम्र कच्ची है इसलिए वो थोड़ी नासमझ है,काँलेज पूरा होते ही समझ आ जाएगी,जब कभी शिवाली उनके घर आती है तो वो बड़े अदब से त्रिवेणी और उनकी माँ के साथ पेश आती है,इसलिए त्रिवेणी सोचती है कि शायद बिन माँ की बच्ची है इसे अच्छा बुरा और दुनियादारी के बारें में सिखाने वाला कोई नहीं है इसलिए शायद ये इतनी अल्हड़ है,मन की बुरी नहीं है बस थोड़ी हरकतेँ ही अजीब हैं इसकी....
गीता उनके घर काम रही थी,गीता को वो घर अच्छा लगने लगा था क्योंकि त्रिवेणी जी गीता को कुछ कहतीं नहीं थीं,त्रिवेणी जी की माँ को भी गीता दोनों बेटियों की तरह नानी कहकर ही पुकारती थी,उसके ना तो दादी थी और ना ही नानी,त्रिवेणी जी की माँ सुनन्दा से मिलकर गीता को लगा कि नानी ऐसी होती है,वो सुनन्दा जी की बहुत सेवा करती और सुनन्दा जी गीता को अपने जमाने की कहानियांँ सुनाया करती कि पहले तो ऐसा होता था ,पहले तो वैसा होता था.....
उस जमाने में बत्ती नहीं होती थी,हम लोंग लालटेन और ढ़िबरी जलाकर रौशनी किया करते थे,कुओं से पानी खींचना पड़ता था और घर की चकरी पर गेहूँ पीसकर आटा निकालना पड़ता था,वो बतातीं थीं कि उनकी सास इतनी खराब थी कि घी,अचार और गुड़ वगैरह एक कोठरी में ताले के भीतर रखतीं थीं,मजाल है कि हम बहुएंँ किसी पड़ोसन से बात करके अपना दुखड़ा रो लें,पिटाई तक कर दिया करती थी,फल मिठाइयों खाने को तो हम तरस जाते थे,तेरे नाना जी तो अपनी माँ के सामने चूँ भी नहीं करते थे,सास मिलने ही ना दिया करती थी,रात में कभीकभार आते थे तो दो चार बातें तभी होतीं थीं वो भी खुसर पुसर....
गीता नानी से इतनी खुल गई थी कि उनसे हँसी मज़ाक भी कर लिया करती और त्रिवेणी की दोनों बेटियाँ भी गीता को पसंद करती थीं,गार्गी अपने पुराने कपड़े,एयरिंग्स,जूते चप्पल गीता को दे दिया करती थी,वें ज्यादा पुराने नहीं होते थे केवल एक दो बार के पहने हुए होते थे इसलिए गीता उन्हें रख लिया करती थी और त्रिवेणी की छोटी बेटी त्रिशा ने गीता को पढ़ना लिखना भी सिखा दिया था,अब गीता खटाखट लिख पढ़ृ लेती थी,इसलिए गीता ने अब अपने घर पर अखबार मँगाना शुरू कर दिया था और वो सारी खबरें चटखारे लगा लगाके अपनी माँ कावेरी को सुनाती...
त्रिवेणी कभी कभी गीता से मज़ाक में कहती....
गीता!तू ने अब पढ़ना लिखना सीख लिया है तो कभी अपनी आत्मकथा लिखना,उसे मैं किताब के रूप में छपवा दूँगीं।।
तब गीता कहती....
जी!आण्टी!मन तो है कि अपनी जिन्दगी के बारें में सबको बताऊँ?
तब त्रिवेणी जी कहतीं....
हाँ!जरूर!तुम अपनी आत्मकथा लिखोगी तो सुपरहिट होगी क्योंकि सब इस विषय में जानना चाहते हैं ,मैं भी!मैं तो कब से सोच रही थी कि इस विषय पर कुछ लिखूँ?
आपकी ये इच्छा मैं कभी ना कभी पूरी जरूर पूरी करूँगीं,गीता कहती,
और ऐसे ही अब गीता की जिन्दगी ने एक सही मोड़ ले लिया था,इसी बीच त्रिवेणी के एक जान पहचान वालों के यहाँ त्रिवेणी अपने परिवार के साथ मिलने गई,उनके यहाँ एक रसोइया काम करता था जिसका नाम भोला था,वो ब्राह्मण जाति से था और उस परिवार में चार सालों से रह रहा था,पूरा परिवार भोला की तारीफ करते ना थकता,भोला खाना बहुत ही अच्छा बनाता था और पूरे परिवार का खाना यूँ चुटकियों में तैयार कर देता था,गीता ने उसे देखा तो वो गीता को अच्छा लगा,
भोला था भी बहुत हँसमुँख और यूँ चुटकियों में सबका दिल जीत लेता था और उसने गीता का भी दिल जीत लिया,गीता उसे पसंद करने लगी और वो भी गीता को पसंद करने लगा,लेकिन गीता को उसके ब्राह्मण होने पर डर था वो इसलिए कि अगर ये बात शादी तक पहुँची तो क्या भोला के घरवाले उसे अपना लेगें,तब इस बात पर भोला कहता...
तुम चिन्ता मत करो,मेरे घरवाले तुम्हें जरूर अपनाऐगें....
और इस तरह से गीता की प्रेमकहानी आगें बढ़ चली,वो अब खुद को बहुत ही खुशनसीब समझने लगी थी,लेकिन कहते हैं ना कि सुख के दिन जल्दी बीत जाते हैं यही गीता के साथ भी हुआ....
वो एक रोज़ जब सुबह सुबह त्रिवेणी जी के यहाँ काम पर पहुँची तो किसी ने भी दरवाजा नहीं खोला,वो बहुत परेशान हो गई कि कोई दरवाजा क्यों नहीं खोल रहा,वो पड़ोसियों के पास पहुँची और पड़ोसियों ने पुलिस को बुलवाया, पुलिस ने दरवाजा तुड़वाया तो देखा कि सारा परिवार जख्मी हालत में है,उस रात त्रिवेणी के पति भी घर आएं थे क्योंकि त्रिशा का बर्थडे था इसलिए.....
पुलिस ने जल्दी से एम्बुलेंस बुलवाई और सबको हाँस्पिटल भेजा,लेकिन उनमें से केवल गार्गी ही बच पाई थी,बाकी कोई भी ना बचा था,ये सुनकर गीता के होश उड़ गए और वो रोने लगी,पुलिस ने गीता से पूछताछ की और उसने सबकुछ बता दिया,फिर पुलिस ने अपनी तहकीकात शुरू की कि आखिर पूरे परिवार को कौन मार सकता है,सभी जख्मी हालत में मिले...
इधर गीता अपनी माँ कावेरी से लिपट लिपटकर बहुत रोई...

क्रमशः....
सरोज वर्मा.....