Kamwali Baai - 19 in Hindi Women Focused by Saroj Verma books and stories PDF | कामवाली बाई - भाग(१९)

कामवाली बाई - भाग(१९)

मैं जब कमरें पहुँचा तो छलिया ने पूछा....
कपड़े पहुँचाने में कोई दिक्कत तो नहीं, हुई किसी ने कुछ कहा तो नहीं.....
मैनें कहा,नहीं!
लेकिन मज़ा तो आया होगा इतनी सारी लड़कियांँ देखकर,छलिया बोला।।
मैं तेरे जैसा लफंगा नहीं हूँ,मैनें कहा...
अच्छा!बेटा! मुझसे छुपा रहा है,मैं लफंगा ही सही लेकिन तेरी आँखें तो कुछ और ही बता रहीं हैं,छलिया बोला।।
ऐसी कोई बात नहीं है,मैनें कहा,
वो तेरे गालों की लाली बता रही है कि कोई बात तो जरूर है,छलिया बोला।।
तू तो ऐसे ही मेरे मज़े ले रहा है,मैनें कहा।।
ना भाई!हम तो उड़ती हुई चिड़िया के पर गिन लेते हैं और किसी आश़िक को सूँघकर बता देते हैं कि वो किसी के प्यार में पड़ा है,छलिया बोला।।
तू तो ख्वामख्वाह बातें बना रहा है,मैं ने कहा।।
ना...ना...भाई!अब बता भी दे कि वो कौन है शायद मैं उसे जानता हूँ,छलिया बोला...
जब छलिया ने ऐसा कहा तो मुझे उस लड़की के बारें में जानने की उत्सुकता हुई और मैनें छलिया से पूछा...
तुम सारंगी को जानते हो?
तब वो बोला...
कौन सारंगी?वो जो रमाबाई के कोठे पर रहती है...वही जिसके सिले हुए कपड़े तू आज देने गया था,
मैनें कहा...हाँ..भाई..वही।।
अरे!वो तो बहुत नकचढ़ी है,वो तो पत्थर मारकर ग्राहकों का सिर तोड़ देती है,बड़ी खतरनाक लड़की है,रमाबाई जो उस कोठे की मालकिन है उसकी मजाल है जो एक दिन भी सारंगी की मरजी के बिना सारंगी से धंधा करवा लें,उसने तो एक दिन रमाबाई को भी खूब धोया था,इसलिए रमाबाई अब उसके मुँह नहीं लगती,छलिया एक साँस में इतना सब कह गया....
लेकिन शक्ल से तो ऐसी नहीं दिखती,वो तो बड़ी भोली भाली दिखती है,मासूम सी दिखती है,मैनें कहा...
यार!उसकी शकल में मत जा! वो बस देखने में ही मासूम है,एक नम्बर की लड़ाका है,मैं भी उससे मार खा चुका हूँ,छलिया बोला।।
मुझे छलिया की बात सुनकर हँसी आ गई तो छलिया बोला....
हँस मत भाई! और उसके चक्कर में मत पड़,वो तुझे भी धो देगी,
अब कुछ भी हो,मैं उससे बात तो करके ही रहूँगा,मैनें कहा।।
तब छलिया बोला....
पागल हो गया है क्या?क्यों शेरनी के मुँह में हाथ देने की सोच रहा है?
अब वो जैसी भी हो लेकिन मुझे वो भा गई है,एक बार उससे बात तो जरूर करके रहूँगा,मैनें कहा।।
अब तूने जान बूझकर कुएँ में कूदने का सोच रखा है तो मैं कुछ नहीं कर सकता मेरे भाई!लेकिन कुछ हो गया ना तो रोते हुए मेरे पास मत आना,छलिया बोला।।
मदद तो तू ही करेगा मेरी उससे मिलने में,मैनें कहा।।
भाई!मैं इस लफड़े में फँसने वाला नहीं हूँ,तू कहीं और फरियाद लगा,छलिया बोला।।
तब मैनें उससे भावनात्मक तरीके से पटाना शुरू किया और उससे बोला....
भाई!तेरे सिवा मेरा इस दुनिया में और है ही कौन और कहाँ जाकर फरियाद करूँ,तू मेरे साथ है तो जिन्दगी जीने की हिम्मत बँधी हुई है अब तू भी मुझे जग्गू दादा की तरह छोड़ने की बात कर रहा है,मेरी बात सुनकर छलिया भावुक हो उठा और बोला....
यार!अब रुलाएगा क्या?मैं भी तो तेरी तरह अनाथ ही हूँ,हम दोनों ही एक दूसरे का सहारा हैं,मैं तेरे जैसे दोस्त को खोना नहीं चाहता,मैं करूँगा तेरी मदद सारंगी से मिलने में...
तब मैनें उससे कहा....
सच!तू मेरे लिए ये करेगा,तू कितना अच्छा है।।
तब छलिया बोला....
मैं जब तक ठीक नहीं हो जाता,तब तक तो ये मुश्किल है...
ठीक है,मैं तक इन्तजार कर लूँगा,मैनें कहा...
और ऐसे ही कई दिन बीते मेरी सेवा से छलिया की सेहद में सुधार आने लगा, धीरे धीरें दो चार रोज़ के बाद अब वो बिलकुल ठीक होकर अपने काम पर भी जाने लगा था,फिर एक दोपहर वो मेरे पास आया,जिस कपड़े की दुकान में मैं काम करता था वहाँ पर और मुझसे धीरे से बोला....
भाई!अपने मालिक से आधे दिन की छुट्टी माँग ले,
मैनें उससे पूछा,लेकिन क्यों?
आज वो बाज़ार आई है,छलिया बोला।।
कौन बाज़ार आई है?मैनें पूछा।।
वही जिसने तेरा चैन चुरा लिया है....सारंगी....मेरे भाई...सारंगी,छलिया बोला।।
ठीक है तो मैं मालिक से कोई बहाना करके छुट्टी माँग लेता हूँ,मैनें कहा।।
और फिर मैनें मालिक से कहा कि मेरे कमरें के बगल वाले कमरें में एक लड़का रहता है उसकी बहुत तबियत खराब है,अस्पताल में भरती है उसे देखने जाना है अगर आधे दिन की छुट्टी मिल जाती तो...
मैं ईमानदार था उनकी दुकान का काम हमेशा ईमानदारी से करता था,उन्हें मुझ पर पूरा भरोसा था इसलिए उन्होंने मुझ पर विश्वास करके आधे दिन की छुट्टी दे दी और मैं खुशी खुशी छलिया के संग बाज़ार की गलियों में सारंगी को ढ़ूढ़ने चल पड़ा,हम दोनों बहुत देर तक बाज़ार की गलियों की ख़ाक छानते रहे लेकिन हमें सारंगी कहीं भी नज़र नहीं आई,तब मैनें गुस्से से छलिया को फटकारते हुए कहा....
कहाँ है वो?उसके चक्कर में मेरी आधे दिन की छुट्टी भी खराब करवा दी....
यार!मैं जब अपने ट्रेलर मास्टर की दुकान पर था ,तब वो मुझे दिखी थी,मैनें उसे पास जाकर भी देखा,वो वही थी,वो बाज़ार आई है लेकिन हो सकता है कि अब तक चली गई हो...,छलिया बोला।।
तू पागल है,तूने किसी और को देखा होगा,मैनें कहा।।
नहीं!वो वही थी,मैनें उसे पास जाकर देखा था,पूरी तसल्ली करने के बाद ही तुझे लिवाने गया था,छलिया बोला।।
चल....झूठा...मुझे बेवकूफ बनाया तूने,मैनें कहा।।
नहीं!यार!सच !वही थी,अच्छा चल अब अपना मूड मत खराब कर ,चल तुझे मैं गोलगप्पे खिलाता हूँ,तेरा मूड अच्छा हो जाएगा,छलिया बोला।।
नहीं मुझे कोई गोलगप्पे नहीं खाने,मैने कहा।।
चल ना यार!तू मेरा भाई है ना!मेरी बात नहीं सुनेगा,छलिया बोला।।
उसकी बात सुनकर मैं मुस्कुरा दिया और उसके साथ गोलगप्पे खाने चल दिया,हम चाट के ठेले पर पहुँचे तो मैनें देखा कि सारंगी भी वहाँ अपनी सहेली के साथ गोलगप्पे खा रही थी,उसे वहाँ मौजूद देखकर छलिया बोला....
यार !तेरी तो निकल पड़ी,वो खड़ी है देख ले उसे जीभर के।।
हम चाट के ठेले के और नजदीक गए और छलिया चाटवाले से बोला....
भइया!हम दोनों भी गोलगप्पे खिला दो....
छलिया की आवाज़ सुनकर सारंगी की सहेली ने उसे देखा फिर बोली.....
छलिया तू यहाँ क्या कर रहा है?
हम दोनों भी तेरी तरह गोलगप्पे खाने आएं हैं,छलिया बोला।।
बस,फिर हम भी गोलगप्पे खाने लगें,गोलगप्पे खाते खाते मेरी नज़र सारंगी पर चली जाती,वो भी मुझे देखकर अनदेखा कर देती शायद उसने भी मुझे पहचान लिया था ,तभी ठेले पर दो लोंग और आएं और चाटवाले से बोले.....
भाई!तेरे ठेले पर तो चाट खाने से हमारा धरम भ्रष्ट हो जाएगा,तेरे ठेले पर धन्धेवालीं भी चाट खातीं हैं,
ये सुनकर सारंगी की सहेली मीना को बहुत गुस्सा आ गया और वो बोली....
तू हमें पहचानता है इसका मतलब है कि तू भी हमारे कोठे पर कई बार आया होगा।।
तब उनमें से एक बोला...
ऐ....औकात में रह,जुबान सम्भालकर बात कर,दो कौड़ी की औरत मुझसे बकवास करने चली है,
तब मीना बोली.....
हम तो औकात में ही हैं,शायद तू अपनी औकात भूल रहा है,
तब उनमें से दूसरा बोला...
क्या बोलीं?तेरी इतनी हिम्मत,अब तेरी औकात मैं दिखाता हूँ....
दूसरे वाले का इतना कहना था कि सारंगी उसके पास गई और उसके गाल पर जोर का थप्पड़ लगाते हुए बोली....
ये है हमारी हिम्मत और औकात....
और इतना कहकर उसने चाटवाले के पैसें दिए और दोनों चलतीं बनी और मैं उन्हें जाते हुए देखता रहा,तब छलिया बोला...
यार देख क्या रहा है?चल उनके पीछे पीछे चलते हैं...
मैनें जल्दी से चाटवाले के पैसे दिए और उनके पीछे चल दिए,हम चलते चलते उन दोनों के बगल में पहुँचे और उनके साथ चलने लगें,तब छलिया मीना से बोला...
अच्छा मज़ा चखाया तुम दोनों ने उन दोनों को....
तू भी मज़ा चखना चाहता है तो आजा,मीना बोली।।
ना....ना....हम दोनों तो तुम्हारी तारीफ़ करने आएं थे,छलिया बोला।।
अब तारीफ़ हो गई हो तो यहाँ से चलते बनो,सारंगी बोली।।
आप तो बुरा मान रहीं हैं जी!हम दोनों तो यूँ ही चले आएं थे आप दोनों के पीछे,मैनें कहा.....
तू वही है ना जो उस दिन मेरे कपड़े देने आया था,सारंगी बोली।।
जी!हाँ!ये वही है और उस दिन से तुम्हें देखकर अपनी सुध बुध खो बैठा है,कहता तुमसे प्यार हो गया इसे,छलिया बोला।।
क्या यार!कैसीं बातें कर रहा है?मैनें छलिया से कहा।।
हम धन्धेवालियों से सबको मौहब्बत हो जाती है लेकिन केवल एक रात के लिए,एक रात के बाद वो मौहब्बत छू भी हो जाती है,सारंगी बोली।।
नहीं!जी!ये तुमसे सच्ची मौहब्बत करता है,छलिया बोला।।
छलिया की बात सुनकर सारंगी हँसी....हा...हा...हा..हा....फिर बोली...
रात को मेरे पास आने वाला हर इन्सान दारू पीकर यही कहता है,हम धन्धेवालियाँ हैं,हमारे नसीब में सच्ची मौहब्बत कहाँ?
लेकिन मैं आपसे सच में प्यार करने लगा हूँ,मैनें कहा।।
तब सारंगी बोली.....
फालतू की बातें मत कर,किसी शरीफ़ लड़की से शादी करके अपना घर बसा ले,
और फिर इतना कहकर वो मीना के साथ निकल गई....
तब छलिया बोला....
यार!बड़ी सख्त है पिघली ही नहीं।।
शायद हालातों ने उसे ऐसा बना दिया है,मैनें कहा।।
हाँ!यार!बहुत दुख झेले होगें बेचारी ने शायद इसलिए इतनी पत्थरदिल हो गई है,छलिया बोला...
जैसी वो बाहर से दिखती है वैसी वो भीतर से नहीं है,उसके पत्थर दिल को मैं पिघलाकर ही दम लूँगा,उसके भीतर भरें ग़मों को मैं निकालकर ही रहूँगा,मैनें कहा...
भाई!लेकिन उससे अब तू मिलेगा कहाँ?आज तो वो तुझे इत्तेफाक से मिल गई,छलिया बोला।।
तू अपना काम मुझे दे दे कुछ दिनों के लिए,मैनें कहा,
लेकिन वो रोज़ रोज थोड़े ही कपड़े सिलवाती होगी,छलिया बोली।।
कोई बात नहीं ,मैं खाली बण्डल लेकर चला जाऊँगा उसके पास,मैनें कहा,
तेरा दिमाग़ खराब है,तू अभी जानता नहीं है,उस कोठे की मालकिन रमाबाई और उसके मुसटण्डे गुण्डों को,छलिया बोला।।
यार!कुछ भी हो मौहब्बत की है तो अब मैं कुछ भी कर गुजरने को तैयार हूँ,मैनें कहा।।
वो तो ठीक है लेकिन तू अपनी जान क्यों जोख़िम में डाल रहा है मेरे भाई?छलिया बोला।।
अब कुछ भी हो सलीम को अनारकली से मिलने से कोई नहीं रोक सकता,मैनें कहा...
फिर हम दोनों खिलखिलाकर हँस पड़े...

क्रमशः....
सरोज वर्मा....


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