Kamwali Baai - 27 books and stories free download online pdf in Hindi

कामवाली बाई - भाग(२७)

उसके बाद मालकिन हमेशा ब्यस्त रहने का बहाना ढूढ़तीं रहतीं,वें छोटे बाबू के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताने की कोशिश करतीं और अब छोटे बाबू भी उनके व्यवहार से खुश रहने लगे थे,जिन्दगी यूँ ही बीत रही थी,छोटे बाबू अब चौदह साल के हो चले थे और मालकिन उनसे बात करनें में ऊर्दू के शब्दों का इस्तेमाल करतीं थीं,जिससे छोटे बाबू की ऊर्दू बहुत अच्छी हो गई थीं,वें सबसे बहुत सलीके से बात करते थे और सबके साथ बड़े अदब के साथ पेश आते थे,मेरे भी दोनों बच्चे अब बड़े हो चले थे,मेरे माँ बाप अब बीमार रहने लगें थे इसलिए धनिया दोनों बच्चों को लेकर गाँव में रहती थीं और दोनों बच्चे गाँव के सरकारी स्कूल में ही पढ़ते थे और मैं यहाँ मालिक की सेवा में लगा था,सच तो ये है कि मालिक ही नहीं चाहते थे कि मैं उनकी नौकरी छोड़ू,मैं उनका पुराना नौकर जो था इसलिए उन्हें मुझ पर बहुत भरोसा था.....
समय का पहिया चल रहा था और पहिए के साथ सबकी जिन्दगी भी चल रही थी...इसी बीच मालकिन एक दिन शाँपिंग गई तो एक साड़ी के शोरूम में उनकी दुकानदार से बहस हो गई,मालकिन जो साड़ी खरीदना चाहतीं थीं वो बिक चुक थी और वैसी दूसरी साड़ी वहाँ और नहीं थी,मालकिन ने भी जिद पकड़ ली कि उन्हें तो वहीं साड़ी चाहिए,लेकिन शोरूम का मालिक नहीं माना और मालकिन मायूस होकर घर आ गईं,थोड़ी देर के बाद एक व्यक्ति घर आया मैने ही दरवाजा खोला,तब वो मुझसे बोला....
क्या मिसेज सिसौदिया यहीं रहतीं हैं?
मैने कहा, जी!यहीं रहतीं हैं,
तब उन्होंने कहा ,आप उन्हें बुला देगें ,मैं उनसें मिलना चाहता हूँ।।
जी!आप यहीँ रूकिए,मैं उनसे कहकर आता हूँ कि कोई साहब आएं हैं और इतना कहकर मैने मालकिन से उस व्यक्ति के बारें में बताया,मालकिन बाहर आईं और उस व्यक्ति को देखकर बोलीं......
जी आपकी तारीफ़ ?
जी!मैं नवीन हूँ,वो व्यक्ति बोला।।
जी!वो तो मैं देख रही हूँ कि आप मुझे अपने नाम के मुताबिक नए से ही लग रहे हैं लेकिन फिर भी मैंने आपको पहचाना नहीं,मालकिन बोलीं।।
जी!मैं वही हूँ जिसने वो साड़ी खरीदी थीं,जो साड़ी आपको पसंद थी,,वो व्यक्ति बोला।।
तो मैं क्या करूँ?आपने साड़ी खरीद ली तो खुश हो जाइएं,मालकिन बोलीं....
जी!मैं चाहता हूँ कि आप ये साड़ी मेरी तरफ से उपहारस्वरूप रख लें,वो व्यक्ति बोला।।
लेकिन क्यों?आपने मुझसे कुछ उधार ले रखा है जो मैं ये साड़ी रख लूँ,मालकिन बोली।।
नहीं!आपको ये साड़ी पसंद थी,इसलिए चाह रहा था कि ये साड़ी आप अपने लिए रख लें तो अच्छा रहता,वो व्यक्ति बोला।।
मैं किसी की दी हुई खैरात नहीं लेती,मालकिन बोलीं।।
नहीं जी!आप ऐसा मत समझिए,ये खैरात नहीं है,मेरी तरफ से उपहार है,वो व्यक्ति बोला।।
आप की हिम्मत कैसें हुई मुझे साड़ी देने की और आप मुँह उठाकर मेरे घर कैसें चले आएं,जान ना पहचान,बड़े मियाँ सलाम,मालकिन बोलीं।।
जी!मैं आपसे कभी मिला नहीं हूँ लेकिन आपको अच्छी तरह से जानता हूँ,वो व्यक्ति बोला।।
अच्छा जी,अब आप की इतनी हिमाकत हो गई कि आप मुझसे जान पहचान भी रखते हैं,ए....मिस्टर ज्यादा हवा में मत उड़ो ,नहीं तो मुँह के बल गिरोगे और तुम्हारे सारे दाँत टूटकर बाहर आ जाऐगें,समझ नहीं आता आपको,मैनें कहा ना कि मैं अन्जानों से कुछ नहीं लिया करती ,आप चुपचाप यहाँ से तशरीफ़ ले जाएं तो बड़ी मेहरबानी होगी मुझ पर,आप जैसे उठाएगीरे बहुत फिरते हैं,मालकिन बोली।।
और फिर वो व्यक्ति अपना सा मुँह लेकर वहाँ से चला गया और मालकिन ने उसके जाते ही मुझसे कहा कि कोई भी ऐरा गैरा घुसने ना पाएं इस घर में,आया बड़ा मुझे साड़ी देने.....
फिर कुछ देर बाद घर के दरवाजे की घंटी फिर बजी,मैने जाकर दरवाजा खोला तो सामने साहब उसी व्यक्ति के साथ खड़े थे,साहब ने उस व्यक्ति से कहा....
आओ....मनोज...भीतर आ जाओ,
नहीं!भइया!मैं भीतर नहीं आऊँगा,अभी कुछ देर पहले मैं इसी घर से जलील करके निकाला गया हूँ,इसलिए तो बाहर जाकर खड़ा हो गया था और आपके आने का इन्तजार कर रहा था,मनोज बोला।।
तब मालिक हँसें.....हा....हा....हा...हा....और उससे पूछा...
किसने निकाला तुम्हें यहाँ से जलील करके?
जी!इस घर की मालकिन ने,मनोज बोला।।
सल्तनत तो ऐसी बिल्कुल नहीं है,वो तो मेहमानों की खातिरदारी बड़े प्यार से करती है,मालिक बोलें।।
जी!उन्हें शायद मालूम नहीं होगा कि मैं इस घर का मेहमान हूँ इसलिए तो कुत्ते की तरह दुत्कार भगाया उन्होंने मुझे,मनोज बोला।।
सल्तनत को कोई गलतफहमी हुई होगी,मालिक बोले।।
हो सकता है शायद मेरी शकल ही कुत्ते जैसी हो इसलिए उन्होंने मेरे साथ ऐसा व्यवहार किया हो,मनोज बोला।।
मालिक एक बार और हँसें फिर उन्होंने मालकिन को आवाज़ लगाते हुए कहा.....
सल्तनत....सल्तनत...देखो तो मैं तुम्हारे लिए एक कुत्ता लाया हूँ....
मालिक की बात सुनकर मनोज का चेहरा उतर गया और वो बोला....
भइया!आप भी मेरा मज़ा लेने लगें..
तभी मालकिन बाहर आईं और उन्होंने मनोज देखा तो बोली.....
आप!...अभी निकाला था ना आपको घर से,आप फिर से मुँह उठाकर चले आएं और अब इनकी सिफारिश लेकर घर में घुसे हो....
तब मालिक बोलें....
इन्हें माँफ कर दीजिए बेग़म साहिबा! ये मेरा दूर का मौसेरा भाई हैं,यहाँ किसी नौकरी के सिलसिले में आया है ,यहाँ आने से पहले मुझे इसने ने टेलीफोन से सूचना दी थी कि ये हमारे शहर आ रहा हैं तो मैने कहा कि जब इतना बड़ा घर पड़ा है तो होटल में रूकने की क्या जरुरत है,तुम सीधे घर आ जाना और जब ये यहाँ आ रहा था तो मौसी के कहने पर शोरूम से इसने तुम्हारे लिए साड़ी खरीदी कि पहली बार हमारे घर आ रहा है तो कुछ उपहार ले ले तुम्हारे लिए और वही साड़ी शोरूम में तुम्हें भी पसंद आ गई जो इसने पसंद की थी और तुमने शोरूम में हल्ला मचा दिया,ये वहीं शोरूम पर तुम्हें हल्ला मचाते हुए देख रहा था,तुम इतने गुस्से में वहाँ से निकल आईं,तब ये नहीं जानता था कि तुम ही मिसेज सिसौदिया हो,तब इसने शोरूम वाले से तुम्हारी पहचान पूँछी तो उन्होंने कहा कि तुम मिसेज सिसौदिया हो,तब ये तुम्हें पहचान गया,तब इसने सोचा सीधे घर जाता हूँ ये साड़ी भाभी को दे दूँगा तो वें खुश हो जाएगी,ये घर आया तो तुमने इसे कुत्ता समझकर जलील करके घर से निकाल दिया और जब मैं घर आया तो ये मुझे बाहर खड़ा मिला और इसने मुझे सारी सच्चाई बता दी.......
मुझे ख्वाब थोड़े ही आ रहा था कि ये आपके भाई हैं,माँफ कीजिए गलती हो गई मुझसे,मालकिन बोली।।
जी!ठीक है भाभी जी!अब रहने दीजिए,मनोज बोला।।
जी!अब मुझसे गलती तो हो गई है,उसकी जो सज़ा आपको मुनासिब लगे तो दे दीजिए,मालकिन बोलीं।।
जी!ऐसी कोई बात नहीं है,सबसे गलती हो जाती है जो आपसे भी हो गई,मनोज बोला।।
चलो भाई दोनों देवर भाभी अपना आपसी मनमुटाव दूर कर लों और सल्तनत आज का खाना तुम बनाओं,देखना मनोज तुम्हारे हाथों का खाना खाकर अपना गुस्सा भूल जाएगा,मालिक बोले।।
जी!बहुत अच्छा!पहले मैं आप दोनों के चाय नाश्ते का इन्तजाम करती हूँ और इतना कहकर मालकिन रसोई में जाने लगी तो मनोज बोला.....
इसे तो लेती जाइए जो सारे फसाद की जड़ है,ये आपका उपहार,मनोज बोला।।
और फिर सभी उस साड़ी को देखकर हँसने लगें......
फिर इस तरह उस दिन के बाद मनोज यही रहने लगा क्योकिं उसकी नौकरी इसी शहर में पक्की हो गई थी,अब जब भी मालिक ब्यस्त रहते तो वें मनोज से कह देते कि तुम जाकर अपनी भाभी को शाँपिंग करवा लाना,उसके साथ यहाँ चले जाना उसके साथ वहाँ चले जाना....
अब मालकिन जब देखो तब मनोज के साथ घूमने निकल जातीं और छोटे बाबू अपनी पढ़ाई में ब्यस्त रहते थे इसलिए मालकिन को उनकी चिन्ता करने की भी जरूरत नहीं पड़ती थी,वें छोटे बाबू को हम सबके भरोसे छोड़कर चलीं जातीं थीं,मनोज को क्या था उसे तो मालकिन के जरिए मनमानी दौलत उड़ाने को मिल रही थी,वो भी मालकिन के लिए अपनी नौकरी से समय निकाल ही लेता।।
इस तरह से एक साल के भीतर दोनों में नजदीकियांँ बढ़ गई और अब मनोज हर घड़ी मालकिन के साथ रहने लगा और जब मालिक घर पर नहीं होते तो मालकिन मनोज के कमरें में ही घुसीं रहतीं,अब छोटे बाबू भी पन्द्रह साल के हो चले थे,जब भी वें पढ़ाई करने के बाद अपनी माँ के साथ समय बिताना चाहते तो मालकिन मनोज के साथ उलझीं रहतीं,अब तो घर में खाना भी मनोज की पसंद का बनने लगा था,छोटे बाबू ये सब अच्छी तरह से महसूस कर रहे थे,वें भी अब छोटे नहीं रह गए थे,उन्हें अपनी माँ का किसी पराएँ मर्द के साथ नजदीकियांँ बढ़ाना बिल्कुल भी नहीं भा रहा था,इसी बात से वें अपनी माँ से कटे कटे रहने लगें,
और फिर एक दिन छोटे बाबू ने हंगामा खड़ा कर दिया क्योंकि उन्होंने अपनी माँ को मनोज के साथ एक ही बिस्तर पर देख लिया था,छोटे बाबू भी अब जवानी में कदम रख रहे थे और वें ये सब अच्छी तरह से समझने लगे थे,अपनी माँ की इस हरकत से उनका मन घृणा से भर गया और उस दिन के बाद उन्होंने अपनी माँ से बात करना बंद कर दिया,अभी तक ये बात मालिक के कानों तक नहीं पहुँची थी लेकिन फिर एक रात वें व्यापार के सिलसिले में कहीं बाहर जाने वाले थे और उस दिन उनकी फ्लाइट मिस हो गई और वें घर लौट आएं,इस बात का पता मालकिन को नहीं था,उन्होंने सोचा घर जाकर वें सल्तनत को चौका देगें और वो खुश हो जाएगी,इसलिए वें चुपचाप ही अपने कमरें की ओर बढ़ गए,उस कमरें में वें दोनों इतने मदहोश थे कि दरवाजा भीतर से बंद करना ही भूल गए,जब मालिक ने दरवाजा खोला तो दोनों ही बिस्तर पर निर्वस्त्र थे ,ये देखकर साहब का खून खौल गया और वें चीखें.....
अच्छा तो मेरी नामौजूदगी में ये सब होता है यहाँ.....
और फिर मालिक इतना बोलकर उस कमरें से बाहर आ गए और फिर उस दिन के बाद मालिक ने मालकिन से बात करना तो क्या उनके चेहरे की ओर देखना बंद कर दिया,कहते हैं ना कि किसी का शोर इतना नहीं खलता लेकिन किसी की चुप्पी किसी को तोड़कर रख देती है.....
वही मालकिन के साथ हुआ,मालिक की चुप्पी से धीरे धीरे मालकिन का दम घुटने लगा,मनोज भी उसी रात घर छोड़कर चला गया था,मालकिन अब भीतर से टूटने लगी थी साथ में मालिक भी उदास रहने लगें,उस घर में जहाँ चमन बरसता था अब उस घर में मनहूसियत छा गई,अब मालकिन बीमार रहने लगी,वें दिनभर बिस्तर पर ही पड़ी रहतीं,हम नौकर ही उनका हाल चाल पूछते और उनका ख्याल रखते,उनकी बीमारी इतनी बढ़ गई कि वो अब बिना सहारे के हिल डुल भी नहीं पातीं थीं ,बाद में पता चला कि उन्हें कैंसर हो गया,इस बीमारी ने शायद उनके मस्तिष्क में जन्म लिया था,उन्होंने मरने की ठान ली थी इसलिए शायद उन्हें ये बीमारी हो गई वो कहते हैं ना कि इन्सान जैसा सोचने लग जाता है तो वैसी ही चीजें उसके आस पास सक्रिय हो जातीं हैं,शायद मालकिन की मनोदशा मौत को पुकार रही थी,इसलिए मौत उनके पास खुदबखुद आ पहुँची थी,फिर डाक्टर ने उन्हें अस्पताल में भरती होने को कहा,वे भरती हो गईं लेकिन बाप बेटे में से कोई भी उनसे मिलने ना जाता,ये देखकर मेरा जी जलता था इसलिए मैने धनिया को गाँव से बुलवा लिया था,मैने सोचा धनिया मालकिन के पास बैठकर दो घड़ी बात कर लिया करेगी तो उनका दर्द कुछ कम हो जाएगा,लेकिन इन्सान का दुख पराओं को नहीं अपनों को देखकर कम होता है।।
अपनें गुनाहों की जो सजा मालकिन भुगत रहीं थीं,वो उनका मन ही जानता होगा,उनके दर्द की दवा डाक्टरों के पास भी नहीं थीं,वें रोज तिल तिल कर मर रहीं थीं,वें डाक्टरों से कहतीं कि उन्हें जहर का इन्जेक्शन देकर जल्दी से रिहा किया जाएं,लेकिन ये पाप करना तो तो डाक्टरों के वश में भी नहीं था,फिर एक दिन इसी तरह रोते तड़पते मालकिन संसार से विदा हो गईं,मालिक ने अस्पताल वालों को उनके अन्तिम संस्कार का खर्चा भेज दिया और दोनों बाप बेटे उनके अन्तिम संस्कार में नहीं गए,मालिक ने अस्पताल वालों से कह दिया था कि मालकिन का अन्तिम संस्कार मुस्लिम रीति रिवाज के अनुसार हो,हिन्दू रीति रिवाज से नहीं ,मालकिन के जाने के बाद,मालिक ने फिर कभी भी दूसरी शादी के बारें में नहीं सोचा,वें मालकिन से बहुत मौहब्बत करते थे और कुछ सालों बाद वें भी इसी चिन्ता में चल बसें,तब से छोटे बाबू अपनी माँ की बरसी के दिन ऐसे ही उदास रहते हैं...
ये कहते कहते लक्ष्क्षू काका की आँखें भर आईं और उस दिन मैं उदास मन से सिसौदिया साहब के घर से वापस लौटी,मैने तब सोचा इतना हँसने मुस्कुराने वाला इन्सान दिल में इतना दर्द दबाकर बैठा है,अगर सिसौदिया साहब अपनी माँ को अब भी माँफ कर दें तो शायद उनका दर्द खतम हो जाएगा,वें अपनी माँ को चाहते थे लेकिन उनका धोखा देना शायद वें बरदाश्त नहीं कर पाएं तभी उनकी ऐसी हालत हो गई हैं,

क्रमशः....
सरोज वर्मा....