Meri Bhairavi - 13 books and stories free download online pdf in Hindi

मेरी भैरवी - 13 - माया का रहस्य और आध्यात्मिक साधना

माया ने चुप्पी तोड़ते हुये क्या ..मैं इस युवक के साथ आध्यात्मिक साधना करूंगी...माया की बात सुनकर वहां उपस्थित सभी लोग दंग रह गये..और कुछ देर के बाद वो बजुर्ग बोला जो स्वर्ण महल का मालिक था...पुत्री तुमने मेरी बात को शायद ध्यान से नहीं सुना होगा..इस युवक की जान को वो ही स्त्री बचा सकती है जैसे योगिनी मण्ड़ल में पारांगता प्राप्त कर ली है..और तुम तो अभी बीस वर्ष की हो और योगिनी मण्डल में पारांगता प्राप्त करने लिए बड़ी -बडी साधिकाओं की उम्र गुजर जाती है तब भी वे योगिनी मण्ड़ल में प्रवेश प्राप्त नहीं कर पाती है ..उसमें पूर्णता प्राप्त करना अपने आप में बहुत बड़ी बात है।यदि योगिनी मण्ड़ल में प्रवेश भी मिल जाये तो वो भी अपने आप में बहुत बड़ी उपलब्धि है।
बजुर्ग बात सुनकर माया कहती है दादा जी ...मैंने पांच वर्ष पूर्व ही योगिनी मण्ड़ल को पूर्ण कर लिया है और अब मैं शक्ति मण्ड़ल के प्रथम चरण के बेहद नजदीक हूं।
मैंने अपना एक गुढ़ रहस्य आज तक सभी लोगों से छुपाकर ही रखा था...मेरे पिता जी परमहंस प्रचण्डनाथ जी ...माया के मुंह से परमहंस प्रचण्डनाथ का नाम सुनकर वह बजुर्ग माया को बड़े गौर से देखने लगता है..और कहता है..,क्या तुम परमहंस प्रचण्डनाथ की पुत्री ...वो प्रचण्डनाथ ...जिसने अपने शक्तियों से एक बार समस्त मायावी दानवों का संहार किया था।
बजुर्ग की बात सुनकह माया उनसे कहती है ..,जी दादा जी मैं उस परमहंस प्रचण्ड़नाथ की पुत्री योगिनी माया हूं...पांच वर्ष पूर्व ही मेरे पिता जी ने अखण्ड़ समाधि ली है...और मुझे गुरू कपालीनाथ के आश्रम में भेज दिया...गुरू कपालीनाथ जी ने मुझे बहुत सी साधना करवाई वहां,..और मेरे योगिनी मण्ड़ल के अंतिम चरण को पूर्ण करने में मेरी मदद की थी। गुरू कपालीनाथ की जानवर एक बार एक ड़ायन ने बचाई थी ..तो उस समय गुरू कपालीनाथ उस ड़ायन को वचन दिया था कि भविष्य में यदि उसे उनकी मदद की आवश्यकता होगी तो वे उनकी मदद अवश्य करेंगे। मेरी शक्तियों को बढ़ता देखकर एक बार उस ड़ायन ने गुरू कपालीनाथ से कहा ...कपालीनाथ ..तुम मेरा एक एहसान है ....तो उसके बदले मैं आज तुमसे कुछ मांगना चाहती हूं...तुम मना तो नहीं करोगे..,गुरू कपालीनाथ कहा...कजली तुम जो मांगो की मैं तुम सहर्ष ही दे दूंगा...मुस्कुराते हुये कजली डायन ने कहा कि तुम पहले मुझे वचन दो कपालीनाथ..गुरू कपालीनाथ ने कजली डायन को वचन दे दिये और फिर कजली ड़ायन ने मुस्कुराते हुये कपालीनाथ मुझे यह लड़की चाहिए..,उसकी बाते सुनकर गुरू कपालीनाथ ने कहा ...कजली ये तुम क्या कह रही हो...तुम मुझसे जो शक्ति चाहो मांग लो...इस लड़की को मैं तुम्हें नहीं दे सकता हूं...यह लड़की मेरी पुत्री के समान है .,.और गुरू प्रचण्डनाथ की पुत्री है...इस लड़के अलावा तुम जो चाहे मांग लो..चाहे मेरे प्राण ही क्यों ना मांग लें..,मैं उन्हें भी सहर्ष तुम्हें दे दूंगा।
गुरू कपालीनाथ की बात सुनकर वह कजली डा़यन उनसे कहती है..बहुत बाते सुनी थी तुम्हारे बारे मैंने कपालीनाथ...कि तुम अपने वचनों के बडे़ पक्के हो...कभी अपने वचन को भंग नहीं करते हो..पर आज मालूम हुआ कि लोग तुम्हारे बारे में मिथ्या बाते ही करते है।
उस गुरू कपालीनाथ को खुद पर बहुत गुस्सा आ रहा था..क्यों वचन देने से पहले कुछ सोचा -समझा नहीं..ना चाहते हुये उन्होंने मुझे कजली डा़यन को सौंफ..दिया ..उसके बाद कजली ड़ायन मुझे ड़ायन क्षेत्र लेकर आई और वहां पर उसने मुझे काले जादू की शिक्षा दी..तिलस्मी विद्याओं का ज्ञान भी दिया।डा़यन क्षेत्र में कजली डायन ने सभी को ये भी बताया कि मैं उनकी बेटी हूं।इसलिए डायन क्षेत्र की ड़ायने मुझे कजली ड़ायन की बेटी मानते है और मुझे माया डायन के नाम बुलाते है। परंतु सच तो ये है कि मैं वास्तव में एक योगिनी हूं..,ना कि डायन।।माया अपना पूर्ण रहस्य उजागर नहीं करती है...वास्तविक में उसने योगिनी मण्डल में ही पारांगत ही नहीं पाई ..,बल्कि उसने गुप्त योगिनी मण्डल को भी पूर्णता से पार कर लिया ..गुप्त योगिनी मण्ड़ल में पारांगत होने के बाद ही शक्ति मण्ड़ल और उसके बाद स्वर्ग मण्ड़ल,फिर देवी मण्ड़ल तत्पश्चात भैरवी मण्डल और महाभैरवी मण्ड़ल आते है ...महाभैरवी मण्ड़ल में पारांगत होने के बाद ही एक साधिका साक्षात भगवती स्वरूपा हो जाती है।
माया के रहस्य को सुनकर वह बजुर्ग अपने घुटने के बल बैठ कर हाथ जोड़कर माया को प्रणाम करता है और अन्य लोग भी ऐसा करते है।
फिर माया सभी को कक्ष से बाहर जाने को कहती है और अंदर से कक्ष का दरवाजा बंद कर देती है।फिर कुछ देर सिद्धेश्वर को देखती रहती है और फिर झिझकते हुये अपने शरीर से वस्त्र निकाल लेती है और फिर सिद्धेश्वर के शरीर से वस्त्र निकालकर उसकी गोद में बैठकर आध्यात्मिक साधना करने लगती है..उसने अपने और सिद्धेश्वर के चारों ओर एक तेजपुंज प्रकाश तैयार किया...जिसके कारण उन दोनों को भी आसानी से नहीं देख पाता ...फिर माया गुप्त योगिनी मण्ड़ल का आवाहन करती है और देखते ही देखते उस प्रकाश के पूंज में नौ गुप्त योगिनियां उनके चारों ओर प्रकट हो जाती है और क्रमबद्ध रूप से वे योगिनयां त्रिभुजाकार में क्रमबद्ध होकर अपने -अपने स्थापन पर खड़ी होती है और फिर वे योगिनियां अपने अंदर से आध्यात्मिक ऊर्जा को बाहर निकालकर माया के शरीर में प्रवाहित कर देती है और माया के माध्यम से वह उर्जा गुप्तांग से होती हुई सिद्धेश्वर के मूलाधार चक्र में प्रवेश करती है और इसी तरह से मूलाधार चक्र से होते हुये एक -एक चक्र पर पहुचंते हुये अंत में सिद्धेश्वर के सहस्त्रार चक्र पर पहुंचती है और फिर माया इस ऊर्जा को अपने तपोबल से सिद्धेश्वर के सहस्त्रार चक्र में स्थापित कर देती है...यदि माया ऐसा नहीं करती तो यह ऊर्जा फिर एक बिजली के गति के साथ सिद्धेश्वर के अंदर उसके चक्रो में प्रवाहित होती रहती है और जिसके प्रभाव से वह शांति के साथ जीवन व्यतीत नहीं कर पाता और पागल तक हो सकता था।
सहस्त्रार में ऊर्जा स्थापित करने के बाद सिद्धेश्वर की कुण्ड़लिनी शक्ति जाग्रत हो गई थी। कुण्ड़लिनी शक्ति वह शक्ति है जो प्रत्येक व्यक्ति के अंदर विद्यमान होती है और सुसुप्तावस्था में रहती है ...इस जीवनदायिनी शक्ति कहती है ..कुण्ड़लिनी शक्ति जाग्रत होने के बाद व्यक्ति मृत्यु पर विजय प्राप्त कर लेता है और ऐसा योगी अपनी ईच्छा के अनुसार ही मृत्यु का वरण करता है...तीन घंटे तक की आध्यात्मिक साधना वापिस अपने वस्त्र धारण कर लेती है ...और प्रकाश पूंज को हटा देती है।माया की आध्यात्मिक ऊर्जा का कुल बीस प्रतिशत भाग ही खर्च हुआ था।
सिद्धेश्वर अभी भी बिस्तर पर लेटा हुआ था..उसके शरीर में ओज तेज और दिव्यता की आभा चमक रही थी।
वस्त्र धारण करने के बाद माया ने सिद्धेश्वर को उसके वस्त्र पहना दिये और फिर कक्ष के दरवाजे को खोला और दरवाजे के बाहर स्वर्ण महल का मालिक बजुर्ग,सुहाना और वे दो हटे-कटे आदमी अभी तक वहां पर प्रतीक्षा करते हुये खड़े था...माया के दरवाजे खोलते ही स्वर्ण महल का बजुर्ग जल्दी से माया से पुछता है ..पुत्री क्या.साधना सफल रही ...क्या वह बच पायेगा ना...माया हां में अपना सिर हिलाती और कुछ नहीं कहती है...माया को थोड़ी-थोड़ी कमजोरी महसूस हो रही थी..तो उसने बजुर्ग से कहा दादा जी ..मेरी ऊर्जा खर्च हो गई है इसके लिए अब मुझे कुछ समय तक आध्यात्मिक साधना करनी होगी।
माया की बात सुनकर बजुर्ग बोला पुत्री तुम हमारे स्वर्ण महल के तिलस्मी कुण्ड़ में जाकर वहां अपनी आध्यात्मिक साधना करो ...वहां की आध्यात्मिक ऊर्जा के प्रभाव से तुम्हारी जितनी भी आध्यात्मिक ऊर्जा खर्च हुई है वो दुगुनी गति के साथ बढ़ेगी और माया से यह कहते हुये बजुर्ग माया को तिलस्मी कुण्ड़ ले जाता है ।माया को तिलस्मी कुण्ड़ छोड़ने के बाद वह बजुर्ग सिद्धेश्वर के कक्ष में आ जाता है और उसे देखकर बजुर्ग को उसके अंदर जबरदस्त आध्यात्मिक आभा का आभ्यास होता है.,,और मन ही मन मुस्कुराते हुये कहता है ...यह युवक सौभाग्यशाली है ..,,उसे एक योगिनी मण्ड़ल को पार कर चुकी स्त्री मिली है..और उसकी ऊर्जा से यह युवक अब योगी मण्ड़ल में प्रवेश कर चुका है।
उधर माया तिलस्मी कुण्ड के स्वच्छ नीले पानी में प्रवेश करती है...पानी से भाप का धुआं देख रहा था...कुण्ड़ किनारे वाले स्थान पर प्रवेश करने पर माया वहां पर आध्यात्मिक साधना करती है तो उसे कुण्ड़ में अतुलनीय आध्यात्मिक ऊर्जा का आभास होता है जो धीरे -,धीरे माया के शरीर के रोमछिद्रों से उसके अंदर प्रवाहित हो रही थी..शरीर के नकारात्मकता को निकालर अलग कर रही थी...फिर माया के मन में विचार आता है कि क्यों ना इस कुण्ड़ के बीचों बीच में जाकर आध्यात्मिक साधना की जाये ....माया जैसे ही कुण्ड़ के मध्य की तरफ बढ़ने लगती है ..पानी और अधिक गर्म सा महुसस होने लगता है और साथ ही साथ आध्यात्मिक ऊर्जा का प्रवाह भी अत्याधिक महसुस होने लगता है....माया धीरे -धीरे करके आगे बढ़ती और जैेसे -जैसे माया आगे बढ़ती जाती वैसे वैसे कुण्ड़ के पानी की गर्माहट और अधिक महसुस होती ..यदि कोई सामान्य मनुष्य होता तो उसका शरीर पानी की गर्माहट से अभी तक झूलस गया होता..शरीर की चमड़ी उखड़ कर अलग हो चुकी होगी।
परंतु माया ने गुप्त योगिनी मण्ड़ल को पूरा कर लिया था...जिसके कारण पानी की गर्माहट को कोई ज्यादा असर नहीं हो रहा था उस पर।माया अब कुण्ड़ के बीच पहुंच चुकी और कुण्ड़ की बीचोंबीच उसके शरीर का भाग गले तक पानी के अंदर डूब चुका था...अब सिर्फ उसका चेहरा ही पानी से बाहर था और कुण्ड़ के बीचोंबीच पानी की गर्माहट अत्याधिक और पानी उबालकर गुलगुले बना रहा था...अत्याधिक गर्म होने के कारण माया भी अब पानी के गर्मपन को बर्दाशत नहीं कर पा रही थी।उसे ऐसा लगना लगा उसके शरीर की चमडी़ जल रही हो और उसके शरीर से अलग हो रही हो...माया फिर भी जबरदस्ती से पानी की गर्माहट को बर्दाशत करने लगी और आध्यात्मिक साधना को करने लगी...कुण्ड़ के बीचोंबीच आध्यात्मिक ऊर्जा इतनी अधिक की माया की आध्यात्मिक ऊर्जा तीव्रता के साथ बढ़ने लगी।पूरे एक दिन की साधना करने के बाद माया ने अपनी साधना तोड़ी और कुण्ड़ से बाहर निकल गई..कुण्ड़ से बाहर निकलते ही उसे अपने शरीर में बहुत तेज दर्द महसुस होने लगा ...और उसकी त्वचा भी कुण्ड़ के गर्म पानी से झूलस सी गई थी।
फिर माया कुण्ड़ के पास ही बनी कालभैरव की मूर्ति के समक्ष ध्यान करने लगी..ध्यान करते करते माया को अपने अंदर एक दिव्य तेज आभा का आभास महसुस होती है और कुछ देर ध्यान करते हुये उसे महसुस हुआ कि उसने अपनी खोई ऊर्जा भी प्राप्त कर ली ...बल्कि प्राप्त ही नहीं की...अपितु उसने शक्ति मण्ड़ल में भी प्रवेश कर लिया और शक्ति मण्ड़ल के सभी चरणों में भी पारांगता प्राप्त कर ली है।
तभी माया की आँखें किसी तेज प्रकाश पूंज के चमकने से खुल जाती है और आँखें खोलते ही वह सामने का नजारा देखकर हैरान हो जाती है...वो देखती है कि उसके सामने भैरव मूर्ति से तेज प्रकाश निकल रहा है जो उसके शरीर के जख्मों को भर रही है और कुछ देर के बाद वह प्रकाश गायब हो जाता है...प्रकाश के गायब होेते है माया के शरीर की सारे घाव खत्म हो जाते है और उसकी त्वचा का रंग निखर जाता है और सोने की तरह चमकने लगती है।
अपनी उपलब्धि को देखकर माया बेहद खुश थी और फिर वह तिलस्मी कुण्ड़ से बाहर आकर महल में आ जाती है। माया की सुन्दरता में अब और निखार आ गया था...मुलायम त्वचा,शरीर में यौवन की कांति,मदमस्त आँखे,और गोरपन ..,सबकुछ एक अपूर्व सौंदर्य की प्रतिमूर्ति में ढल गई थी...ऐसा अद्वितीय सौंदर्य जो एक कवि की कल्पना होती है,..जिसे देखकर मनुष्य ही नहीं बल्कि देवतायें भी अपने आप खो बैठते है और अपने दिल को हार बैठते है।
ऐसे सौंदर्य में माया का पूरा शरीर ढ़ल गया था...जो किसी की भी कल्पना से परे था..माया को महल में देखकर सभी पुरूष एक ही नजर में उसकी सुन्दरता के दीवाने हो गये थे..एक पल के लिए स्वर्ण महल का मालिक बजुर्ग भी उसके अपूर्व सौंदर्य को देखकर स्वयं के ऊपर नियंत्रण खो बैठा था...जब उसे इस बात का एहसास हुआ तो उसे स्वयं पर ही लज्जा आ गई...माया को देखकर वह बजुर्ग बोला ...पुत्री तुमने अपनी साधना पूर्ण कर ली ..माया ने हां मै जबाव दिया और उसके बाद उनसे पुछा कि ..,सिद्धेश्वर अब कैसा है ..,उसे होश आया कि नहीं।
नहीं पुत्री उसे होश नहीं है ...वैद्य ने शक्तिवर्धक रसायनिक औषधि दी है उसे ..और कहा है कि जल्दी ही होश आयेगा उसे...अभी आध्यात्मिक ऊर्जा उसके आतरिक के घावों को भर रही है और इस शक्तिवर्धक औषधि के सेवन से आध्यात्मिक ऊर्जी तीव्र गति से अपने कार्य को करने लगेगी और इसकी आध्यात्मिक ऊर्जा में वृद्धि भी होगी।
क्या सिद्धेश्वर को होश आयेगा...और जब सिद्धेश्वर को मालुम चलेगा की उसकी जान माया ने बचाई है तब सिद्धेश्वर क्या करेगा...क्या सिद्धेश्वर माया से अपने दिल की बात कह पायेगा।
इन्हीं सभी सवालों के जबाव को जानने के लिए पढ़ते रहिये मेरी इस कहानी को जिसका नाम है ...""""""मेरी भैरवी- रहस्यमय तांत्रिक उपन्यास"""""मेरे साथ यानि की आप सबके अपने निखिल ठाकुर के साथ उनकी कलम से ....