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नर्क - 18

.....जमीन में बड़ी दरार आ गयी, चारों तरफ गर्द छा गयी जब वो गर्द थमी और सबकी आँखें देखने लायक हुई तब दिखा वो अद्भुत हथियार जो अच्छी या बुरी हर शक्ति के ख्यालों में था। वो हथियार जो भगवान् शिव ने महान् योद्धा, अपने शिष्य परशुराम जी को दिया और जिसे कार्य पूर्ण होने पर परशुराम जी ने वापस भगवान् को लौटा दिया। वो हथियार जो जिसके हाथों में हो वो ब्रह्माण्ड का सबसे शक्तिशाली योद्धा होता है। 'विद्युदभि',..... जी हाँ 'विद्युदभि', जो किसी भी शक्ति को पल भर में नष्ट कर सकता है। जो परमात्मा ने अपने पुत्र को दिया और किसी कारण से वो यहाँ धरती पर छुपाया गया। उस से एक अलग सी सुनहरी ऊर्जा निकल रही थी। सैंकड़ों साल जमीन के नीचे दफन होने के बाद भी जिसका फल जंगरहित चमक रहा था।

"आऽहाऽऽ कितना मनोरम है। शेष सर्वसाधारण हेतु ये महज एक शस्त्र है, परन्तु एक सच्चा योद्धा इसकी वास्तविक सुंदरता का अवलोकन करेगा। इस से प्रफुस्टित इस ऊर्जा को देखो रक्षकुमारी, ये ऊर्जा शीतलता में हिमाच्छादित हिमालय को और ऊष्णता में एक ज्वालामुख को भी पराजित करता है। इसकी ऊर्जा से ही मेरे सारे कष्ट दूर होते प्रतीत हो रहे हैं।

जानती हो राक्षकुमारी!!! ये महान शस्त्र जिसके बारे में सबको यही ज्ञात है कि काली शक्तियाँ इसे छू भी नहीं सकती, महान् परशुराम का फैलाया एक भ्रम मात्र था। इसकी बहुधा विशेषताओं का तो उन्होंनें उपभोग ही नहीं किया, क्योंकि वो अपने आप में इतने संपूर्ण थे कि उन्हें किसी बाह्य असाधारण बल की आवश्यकता ही नहीं थी, तो उनके हाथों में ये मात्र एक साधारण शस्त्र ही रहा। परन्तु मैं...... परमपिता परमात्मा का पुत्र, इस शस्त्र का वास्तविक उत्तराधिकारी, इसका सही उपयोग करूँगा।"

मेरी प्रिय रक्षकुमारी निशिका तुम्हारे मन में संशय था न कि मैंने उन तुच्छ मनुष्यों की हत्या, उनकी ऊर्जा का भक्षण करके क्यों की?? देखो अब में तुम्हारा संशय दूर करता हूँ। मैं इसे सहज ही स्पर्ष नहीं कर सकता। उन मानवों की ऊर्जा उपभोग में लेकर ही मैं इसको थाम सकता हूँ। वो महान योद्धा(परशुराम) भी 'हस्त' नक्षत्र में ही जन्मे थे तो हस्त नक्षत्र में जन्मे दुष्ट प्रवृति मानव ही इसकी काट होंगे।अतः मैंने उन मानवों की ऊर्जा का अवशोषण कर लिया। यद्यपि मेरे पिता ने मुझे कभी इसके योग्य ही न समझा तथापि देखो मैं आज इसका अधिकारी बनने को अग्रसर हूँ।"

हत्यारे के आखिरी शब्द सुनकर निशा चौंक गयी। तो क्या ये हत्यारा पियूष यानी आयु नहीं है!!!! तो फिर ये कौन है??

इधर हत्यारे ने अपने हाथों को रगड़ा जिससे कालिमा ली हुई ऊर्जा निकलने लगी। उस ऊर्जा को उसने 'विद्युदभि की तरफ जाने दिया। 'विद्युदभि' और जोर से चमका परन्तु कुछ देर लगातार काली ऊर्जा वार से उसकी चमक हलकी पड़ने लगी और कुछ ही देर में वो चमक शांत पड़ गयी। परन्तु कुछ देर और काली ऊर्जा फेंकने के बाद वो परशु कालिमा लिए चमकने लगा और उसका स्वरुप भी बदल गया। अब वो रक्षक परशु की जगह विनाशक परशु लग रहा था, जिसे देखकर मन को शांति नहीं बल्कि भय महसूस हो रहा था।

हत्यारे ने कहना शुरू किया -" मैं तुम्हारे मनोभावों को सरलता से पढ़ पा रहा हूँ। हाँ .... मैं पियूष या यूँ कहूँ मेरा अनुज आयु नहीं हूँ, बल्कि तुम मुझे आयुध या.......इतना कहकर उसने अपना रूप बदल लिया और कहा "....... इस रूप में पहचानती हो।"

निशा को जैसे सैंकड़ों बिच्छुओं ने एक साथ डंक लगाया क्यूँकि आज उसे पता चल गया कि सामने जो हत्यारा खड़ा है वो पियूष नहीं बल्कि आयुष है। वो आयुष जो उसका दोस्त था और जिसने बार-बार निशा की हेल्प की थी। अब निशा समझ गयी थी कि उसने क्यों उसकी मदद की थी। वो तो सिर्फ उसका इस्तेमाल कर रहा था, उस से खेल रहा था।

निशा ने ये ध्यान दिया कि वहाँ आयुष की कंपनी के लोग जमा हो गए थे, परन्तु उनके कपडे़ चाल-ढ़ाल सब बदले हुए थे। वो अब गुंडे या कातिल जैसे लग रहे थे। यानी वो कोई बिज़नेस कंपनी के नहीं बल्कि माफिया कंपनी के लोग थे जिनके सहारे से ही आयुष ने वो विशेष फूल ढुँढ़वाये थे।

आयुष जोर-जोर से हंसने लगा, उसने हँसते-हँसते परशु को उठाने के लिए हाथ बढ़ाया, परन्तु उस से पहले ही एक हाथ ने उसे उठा लिया। वो हाथ जिस धड़ से जुड़ा था वो था माफिया बॉस और उसके चेहरे पर थी कुटिलता। वो बोला -" जब तुमने मुझे महज कुछ फूल ढूँढने का बोला तब मैंने सोचा तुम्हारे जैसा शक्तिशाली भी किसी चीज को ढूँढ नहीं पा रहा तो वो चीज कितनी खास होगी। फिर यहाँ आकर तुम्हारी बात सुनकर मुझे सब पता चल गया। इंतजार का फल मीठा होता है.....मैंने यहाँ इंतजार किया वरना न तो तुम इसको काला करते न मैं इसे पकड़ पाता और अब तो तुम्हारा भी डर भी नहीं मुझे। क्यूँकि तुमने ही कहा है कि ये किसी भी शक्ति को खत्म कर सकता है।"

बॉस का रूप बदलने लगा। उसके शरीर पर जगह-जगह उभार निकलने लगे जो नुकीले बड़े काँटों जैसे हो गए। उसका कद भी 6 फीट से 8 फीट का हो गया। शरीर की मसल्स फूल गयी और रंग भी लाल हो गया। उसकी भयानकता में चार चाँद लगा रहे थे उसके गूंजते हुए तेज ठहाके। वो अब इंसान रहा ही नहीं। कूल मिलाकर 'विद्युदभि' गलत हाथों में पड़ चूका था। अब दुनिया को नर्क बनने से शायद कोई न बचा पायेगा।

आयुष ये देख कर भड़क गया, परन्तु इस से बॉस को कोई फर्क न पड़ा। वो तो अपनी ही धुन में हँसता जा रहा। अचानक बॉस ने हंसना बंद कर दिया। क्यूँकि आयुष के चेहरे भाव बदल गए। जो चिंता उसके चेहरे पर दिखाई दे रही थी, उसकी जगह मुस्कराहट ने ले ली। बॉस हैरान हो गया, वो समझ गया कि कुछ गड़बड़ है। उसे अपना हाथ जलता सा महसूस हुआ। वो अब अपना हाथ जिसमे 'विद्युदभि' थमा हुआ था, ऊँचा नहीं कर पा रहा था। परेशानी उसके विकृत हो चुके चेहरे पर साफ दिख रही थी।

आयुष ने अब गंभीर होकर कहा -" तुम जैसे गन्दी नाली के कीड़े से और उम्मीद भी क्या की जा सकती थी। तू एक अनपढ़, जाहिल इतनी बुद्धि रख सकता है तो मैं तो परमात्मा का बेटा हूँ। तूने सोच भी कैसे लिया कि 'विद्युदभि' इतनी आसानी से तेरे हाथ लग जायेगा। ये बहुत पवित्र शस्त्र है थोड़ी सी काली ऊर्जा इसको हमेशा के लिए बदल नहीं सकती। मैं तो इसे उठाने का नाटक कर रहा था ताकि तेरे दिल का कालापन मेरे सामने आये।"

बॉस का शरीर जलने लगा। ऐसा लग रहा था जैसे आग उसी के अंदर से निकल रही हो। वो हलाल होते बकरे की तरह डकरा रहा था। उसकी चीखे वातावरण की भयावहता को और बढ़ा रही थी। वहाँ उपस्थित सभी के दिलों में ये देखकर खौफ हिलोरे मारने लगा था। जल्द ही बॉस का जलता शरीर लाश बनकर जमीन पर गिर गया। जलते मांस की बदबू वातावरण में फैल चुकी थी पर उस भयानक दृश्य के आगे उस बदबू की तो किसी को परवाह ही न थी। सब आँखें फाड़े अधजले, अधपिघले शव को देख रहे थे। किसी के भी पैर वहाँ से भागने के लिए सहारा न दे रहे थे।

नर्क के माहौल में उस एक लाश से और बढ़ोतरी हो गयी थी.....

To be continued.....