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अग्निजा - 56

प्रकरण-56

केतकी के मन में हलचल हुई। उसके मन में एक संवेदना जागृत हुई। खुद को नापसंद डिश दूसरे को खिलाने के लिए आग्रहपूर्वक ले जाना और उसे उन डिश को खाते हुए देख कर प्रसन्न होना? ऐसा कहीं होता है क्या? एक तो केतकी को इतनी अच्छाई का अनुभव नहीं था और उस पर अच्छा पुरुष ये शब्द तो जैसे उसके शब्दकोश में था ही नहीं। लेकिन इस प्रसन्न के मन में वास्तव में है क्या? ये कहीं मेरे...मेरे प्रेम में तो नहीं पड़ गया है? नहीं...नहीं...मैं उसके लायक नहीं हूं। बिलकुल भी नहीं। दूसरी बात, ये कोई प्रेम नहीं...केवल दोस्ती की खातिर वह ऐसा कर रहा है। कुछ भी हो लेकिन मुझे इससे दूर रहना होगा। सावधान रहना होगा। केतकी इन विचारों से जैसे-तैसे बाहर निकल पाई।

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भिखाभा ने रणछोड़ को खूब फटकार लगाई। बोले, “घर में औरतों के सामने तुम्हारी कुछ नहीं चलती। अरे वह लड़की तुम्हारे सामने जो चाहे वो बोल रही थी। तुमने उसकी इतनी देखभाल की लेकिन उसे तुम्हारी जरा भी परवाह नहीं। तुम मूर्ख हो। ऐसे में तुम नगरसेवक की मेरी गद्दी कैसे संभाल पाओगे? लेकिन हमारा इतने बरसों का संबंध है इस लिए तुमको एक मौका और देता हूं। देखो, अपनी बेटी को तैयार करके इस शादी को पक्का करवाओगे तो मैं मानूंगा कि तुम मेरे हाथ के नीचे तैयार हुए हो। देखो, यदि इस बार भी तुमसे बात नहीं बनी तो मैं तुम्हारी जगह किसी दूसरे को काम पर रख लूंगा।”

रणछोड़ को लगा कि यह कुलच्छिनी तो उसका सत्यानाश करके ही मानेगी। लेकिन अब उसे ऐसे नहीं छोड़ना है। थोड़ा कड़क होना ही पड़ेगा।

रणछोड़ ने भिखाभा को वचन दिया कि वह सबकुछ ठीक कर लेगा। यह सुन कर भिखाभ जोर से हंसे। मानो वह रणछोड़ का उपहास उड़ा रहे हों। यह देख कर रणछोड़ को बहुत बुरा लगा। उसके स्वाभिमान को ठेस पहुंची।

इस गुस्से में वह चंदा के घर पहुंच गया। चंदा का मूड पहले से ही खराब था। उसने रणछोड़ दास को जरा भी भाव नहीं दिया। पानी को भी नहीं पूछा। बहुत बार पूछने पर वह चिढ़ कर बोली, “तुमको जब घर से समय मिल जाता है, या वहां मन उचाट हो जाता है तब इधर आते हो, ऐसे संबंध मुझे कतई पसंद नहीं। पहले आपके जीवन में मेरा स्थान क्या है, ये तय करो, उसके बाद ही यहां आने और मुझसे मिलने की बात सोचना।”

रणछोड़ वहां से पैर पटकते हुए निकला और अपने दो पुराने दोस्त प्रवीण और विनोद के साथ देसी दारू की दुकान में जाकर बैठ गया। बड़ी देर तक तीनों वहां पीते हुए बैठे रहे। पीने के कारण उन तीनों में वादविवाद भी हुआ। विनोद का कहना था कि उसे तीन-तीन बेटे हैं, इस लिए असली मर्द वही है। प्रवीण उससे लड़ने लगा, क्योंकि उसे दो बेटियां थीं और उसके बाद एक बेटा भी हुआ। इन दोनों की लड़ाई में रणछोड़ का दिमाग और खराब हो गया। उसके नसीब में एक भी बेटा नहीं? तीन-तीन पत्थर ही? उसने गिलास पटका और तेजी से बाहर निकल गया।

घर पहुंच कर उसने नशे और गुस्से के जोर में दरवाजा ठोकना शुरू किया। थोड़ी ही देर में भावना ने दरवाजा खोला। उसका धक्का देकर रणछोड़ भीतर आया और सीधे यशोदा के कमरे में गया। वहां पर यशोदा और केतकी हंस-हंस कर बातें कर रही थीं, यह देखकर उसका गुस्सा और बढ़ गया। “जितना हंसना हो, हंस लो...फिर हंसने का मौका नहीं मिलेगा।” यशोदा ने कहा, “आप कहना क्या चाहते हैं, समझ में नहीं आया...”

“समझने की जरूरत नहीं, केवल सुन लो...और बस जैसा कहूं, वैसा ही करना है, नहीं तो..”

केतकी ने पूछा, “नहीं तो...?”

“यदि जीतू के साथ तुम्हें शादी न करनी हो, और इस घर से जाना नहीं हो तो, तुम्हारे लिए इस घर में अब कोई जगह नहीं रहेगी। ये घर छोडना पड़ेगा और अपनी मां को भी अपने साथ लेकर जाना होगा...” यशोदा स्तब्ध रह गई, “लड़की का मन न मानता हो, तो भी शादी के लिए हां कर दे...?”

“अधिक होशियारी दिखाने की जरूरत नहीं है। उस लड़के में क्या बुराई है? और इस अभागिन में कौन से हीरे-मोती जड़े हैं? इसे मना करना हो तो उसका और अपना बोरिया बिस्तर समेटना शुरू कर दो। तीनों को हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाएगा। ये कुलच्छिनी जल्द से जल्द यहां से शादी करके निकले या फिर तुम दोनों हमेशा के लिए इस घर से निकल जाओ।”

“लेकिन, अभी उन लोगों की तरफ से रजामंदी आई कहा हैं...”

“वो सब ठीक हो जाएगा...भिखाभा पर मुझे पूरा भरोसा है। लेकिन यदि तुमने अपनी बेटी को समझाया नहीं तो मुझ से बुरा इस दुनिया में कोई नहं होगा, ये याद रखना।” इतना कह कर रणछोड़ दास ने दरवाजा धड़ाक से बंद किया और वहां से निकल गया।

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दरवाजा जोर से खुला और कल्पु अंदर आई। सिंकदर जैसी विजयी चाल से वह अंदर आई और मीना बहन के पास सोफे पर बैठ गई। थोड़ी देर रुक कर उसने कहना शुरू किया, “ये जो केतकी है न, वह रणछोड़ दास की सौतेली बेटी है। रणछोड़ दास की की दूसरी पत्नी से उसके पहले पति से हुई बेटी। उस आदमी के मरने के बाद उसने इससे दूसरी शादी की। पहली पत्नी से उसे भी एक बेटी है, जयश्री। रणछोड़ दास और यशोदा की एक ही बेटी है भावना। रणछोड़ दास और उसके घर वाले केतकी को नापसंद करते हैं। रणछोड़ दास केतकी को घर से जल्दी से जल्दी निकालना चाहता है। केतकी से उसने अपने घर में गधे की तरह काम करवाया है। लेकिन लड़की हिम्मतवाली है। उसने जैसे-तैसे इतनी पढ़ाई की और आज इतने अच्छे पद पर काम कर रही है। उसने घर में इतने अत्याचार सहन किए हैं कि अब बाहर किसी की कोई भी बात सहन करने के लिए तैयार नहीं। शाला में उसकी एक खास सहेली है तारिका। और ये केतकी एक मैडम को बहुत मानती है, उनका नाम है उपाध्याय मैडम। हर बात में वह उनकी सलाह लेती है... ” इतनी बातें सुनने के बाद मीना ने थोड़ा विचार किया और बोली, “यानी नियंत्रण में रखा जाए तो घोड़ी बड़े काम की साबित होगी?”

“हां, मां तुम ठीक कह रही हो। पर यह काम भाई को करना पड़ेगा।”

“वह तुम मुझ पर छोड़ दो, कोई मुश्किल नहीं। लेकिन ये भिकाभा इस रिश्ते के लिए इतनी उछलकूद क्यों कर रहा है?”

“...तो उसका ऐसा है कि उसकी इच्छा थी कि केतकी अपनी शाला के इलाके में उसका प्रचार करे, लेकिन केतकी ने ऐसा करने से साफ मना कर दिया। इस बात पर उन्होंने रणछोड़ दास को खूब डांटा था। और उसी इलाके में कम वोट मिलने के कारण भिखाभा की हार हुई थी। रणछोड़ दास भी बहुत गुस्सा हुए थे।”

“इसका मतलब है इस लड़की की शादी अपने परिवार में करवाकर उसे हमारा भला नहीं करना है, उसके भीतर में कुछ पक रहा है। उसकी इच्छा लड़की को दुःख देने की दिखती है।

“ठीक है न... उनको फोन करके दो दिनों में बताते हैं और मिलते हैं ऐसा कहो...और बेटा, तुमने इतनी जानकारी इकट्ठा करने के लिए खूब मेहनत की ..अब मेरे जीतू को समझाना पड़ेगा..और भिखाभा के साथ बदला तो लेना ही है...”

तभी वहां अपने मुंह गुटका भर कर जीतू आ पहुंचा। मीना बहन ने उस पर गुस्सा करते हुए कहा, “जाओ, पहले बाहर जाकर गुटका थूको..और तुरंत आओ..एक बहुत जरूरी बात करनी है तुमसे। ”

जीतू अपनी नापसंदगी जताते हुए पैर घसीटता बाहर गया। उसने खिड़की से ही गुटका थूक दिया। वह जब मीना बहन के पास आकर बैठ गया तो उन्होंने उसे पट्टी पढ़ाना शुरू किया। “देखो, उस दिन तुम्हारे चेहरे को देख कर सभी को समझ में आ गया था कि तुमको लड़की बहुत पसंद है। लेकिन मैं जो कह रही हूं उसे ध्यान देकर सुनो..वह लड़की तुमसे ज्यादा होशियार है, बहुत पढ़ी-लिखी है, तुमसे ज्यादा कमाई करती है और एकदम स्पष्ट बोलने वाली है। यदि उसकी लगाम खींच कर नहीं रखी तो कल वह न तेरी न मेरी, किसी की नहीं सुनेगी। इस लिए उसके प्रेम में पड़ कर उसके पीछे-पीछे घूमने की बजाय मर्द की तरह रहना होगा। उससे शादी न होती तो तुम कुंआरे रह जाते, यह बात उसे महसूस नहीं होनी चाहिए। कुल मिलाकर एक बात याद रखनी है कि यदि तुमको और हमको सुख से रहना हो तो उस बेलगाम घोड़ी को थोड़ी भी ढील नहीं देनी होगी।”

“पर मां, क्या तुमको ऐसा लगता है कि वह मुझे हां कहेगी?”

 

अनुवादक: यामिनी रामपल्लीवार

© प्रफुल शाह