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अग्निजा - 58

प्रकरण-58

भिखाभा आवेश में आ गए और कुर्सी के ऊपर दोनों पैर रख कर बैठ गए, “चलो, इसका मतलब है बड़े लोगों की रजामंदी है...यशोदा बहन, आपको कुछ कहना है?”

यशोदा कुछ कहती इसके पहले ही रणछोड़ बोल पड़ा, “वो क्या कहेगी? आप हैं और मेरी मां ने रजामंदी दे दी है...उसके बाद बाकी किसी का कोई प्रश्न ही नहीं...आप हमारी हां ही समझें।”

“तो अब लड़के और लड़की की राय जान लेते हैं। तुम दोनों बाजू के कमरे में जाकर एकदूसरे से बात कर लो, तब तक हम लोग यहां बातें करते हैं। भावना, केतकी को लेकर अंदर के कमरे में गई। उसने केतकी के कान में कहा, “ना कहने में ज्यादा देर मत लगाना दीदी।” केतकी बिना कुछ बोले धीरे से हंस दी। भावना खुश थी। केतकी दीदी बहुत हुआ तो दो-चार प्रश्न पूछेगी और उतने ही उत्तर देने पड़ेंगे उसको। लेकिन इस परीक्षा का नतीजा तो पहले से ही तय है। जीतू कुमार फेल...वह मन ही मन हंसते हुए खुशी-खुशी कमरे से बाहर आई और कुर्सी पर आकर बैठ गई।

जीतू अंदर आया, तब केतकी कुर्सी पर बैठी हुई थी। सामने पलंग था। जीतू पलंग पर बैठ गया। उसने गुटके की पुड़िया निकाली। केतकी की ओर देखे बिना ही गुटका अपने हाथ पर डाला। उसमें चूना मिलाया और अंगूठे से बड़ी देर तक उसे मलता रहा। उसके बाद जबड़ा फाड़ कर गुटका मुंह में भरा। थोड़ी देर उसे चबाता रहा। गुटके का रस अंदर जाते ही उसमें फूर्ति आ गई। “आहाहा...कमाल का गुटका बनाता है ये आदमी...गुटका मालूम है न? चलो जाने दो...देखो यदि मुंह में गुटका हो तो ही मेरा दिमाग काम करता है। ऐसा समझ लो कि यह मेरे दिमाग का ईंधन है। बिना मिलावट वाला खालिस इंधन...” उसने कोई बहुत बड़ा मजाक किया हो, इस तरह से वह खुद ही बड़ी जोर से हंस पड़ा। उसके बाद केतकी की ओर देखते हुए बोला, “जरा उठ के खड़ी हो जाओ...देखूं जरा...” केतकी को कुछ समझ में नहीं आया। “अरे शिक्षक हो इतना भी नहीं समझ में आता? मैंने कहा उठ कर खड़ी हो जाओ।”

केतकी खड़ी हो गई। जीतू उसके चारों ओर चक्कर लगा कर उसे देखने लगा। जैसे किसी चीज का निरीक्षण कर रहा हो। बाजू की दीवाल पर आईना था। उसकी ओर देखते हुए वह बोला, “तुम्हारा कद मुझसे थोड़ा-सा कम है।” उसको संतोष हुआ, “लेकिन तुम ऊंची एड़ी की चप्पलें नहीं पहन पाओगी, ठीक है न...” केतकी कुछ बोलती इसके पहले ही जीतू ने दूसरा आदेश दिया, “जरा चल कर दिखाओ तो...” केतकी को आश्चर्य हुआ लेकिन वह चुपचाप दरवाजे तक चल कर गई और फिर वहां से वापस आई।

जीतू ने दांतों से सुपारी तोड़ी और बोला, “हम्मम, मजा आ गया...एकदम कड़क सुपारी दातों के नीचे आए तो उसे फोड़ने में बड़ा आता है...मैं साफ कहता हूं.. लड़की की ऊंचाई बहुत अधिक या फिर बहुत कम नहीं होनी चाहिए। लड़के से ज्यादा हो तो बेचारा शर्म से मर जाए.. कभी-कभी लड़कियों के पैर में खराबी होती है लेकिन उसके घर वाले बताते नहीं हैं। शादी के बाद मालूम हो तो क्या फायदा? वो मुझे चलेगा नहीं इसलिए चल कर दिखाने के लिए कहा। और एक बात पहले ही बता देता हूं, घर के लोगों के मनमुताबिक चलना होगा। उनका आदर करना होगा। मां की बात माननी होगी और मेरी भी... यह अलग से बताने की आवश्यकता नहीं। मेरी व्यक्तिगत बातों में दखलंदाजी करने की जरूरत नहीं। ”

केतकी को अब खीज होने लगी थी। उसे समझ में ही नहीं आ रहा था कि इस आदमी पर गुस्सा करें कि हंसें। लेकिन उसने अपने आप पर नियंत्रण रखा। जीतू अचानक उठा। कमरे से लगे बाथरूम में गुटका थूक कर आया। उसके ओठों के किनारे से गुटके के निशान अभी भी बाकी थे। टीशर्ट पर छींटे पड़े हुए थे। इसका उसे भान भी नहीं था। “गुस्सा न आए तो एक प्रश्न पूछना था...लेकिन उसे पूछे बिना काम कैसे चलेगा?” केतकी ने कौतूहल से उसकी ओर देखा। जीतू गुटका चबाते-चबाते बोला, “तुम्हारा किसी के साथ कोई लफड़ा-वफड़ा तो नहीं है? और वह गंदे तरीके से हंसा “होगा तो भी कोई बताएगा क्या?” केतकी ने सिर हिलाकर नहीं कहा। फिर से धीरे से पूछा, “आपका किसी के साथ ऐसा संबंध था क्या?”

जीतू के तन-बदन में लहर उठी,“अरे नहीं...लेकिन मर्दों के ऐसे संबंध रह सकते हैं न?”

“यानी पुरुष प्रेम में पड़ सकते हैं, लेकिन स्त्री नहीं?”

“वैसी बात नहीं है। लड़कियों को शोभा नहीं देता...चरित्र नाम की भी कोई चीज होती है कि नहीं ?”

“तो फिर पुरुषों के चरित्र का क्या, वह भी तो किसी लड़की के प्रेम में पड़ सकता है न, फिर किसी स्त्री का चरित्र ही कैसे खराब माना जाएगा, यह विचार भी करना चाहिए कि नहीं?”

जीतू ने उसके सामने अपने दोनों हाथ जोड़ लिए, “ये देखो, मुझे लेक्चर देना नहीं है...लेक्चर से ही परेशान होकर तो मैंने कॉलेज छोड़ दिया था...” अचानक उसे कुछ याद आया. वह थोड़ा रुका और फिर बोला, “तुम्हारी कुछ समझ में आया? यानी मैंने कॉलेज गए बिना ही बाहर से परीक्षा देकर डिग्री ले ली है यूपी के विश्वविद्यालय से। भिखाभा ने यह तो बताया ही होगा।”

“कौन सी डिग्री ली है?”

“अरे, तुम तो ऐसा प्रश्न पूछती जा रही हो जैसे मुझे नौकरी देने वाली हो...पहले मालूम होता तो अपनी फाइल साथ लेकर आता...वो सब छोड़ो...तुमको एक खुशी की बात बताऊं क्या?” केतकी उसकी तरफ देखती रह गई। जीतू गुटका चबाते-चबाते बोला, “मेरी हां है...”

लेकिन केतकी को ठीक से सुनाई नहीं दिया..उसने पूछा, “क्या कहा?”

जीतू को गुस्सा से उठा। बाथरूम में जाकर गुटका थूक कर आया., “मैंने कहा, मेरी हां है...मुझे मंजूर है...अब सुनाई पड़ा? चलो...अब बाहर चलें... ”

“अरे, लेकिन मेरी हां या ना तो आपने पूछी ही नहीं?”

“लड़की की काहे की हां और ना? फिर भी चलो अब कह ही डालो...”

“मुझे विचार करने के लिए एक दिन और चाहिए...”

“वाह...तो फिर बाहर जाकरतुम ही सबको यह बात बताओ...” बाहर निकलते समय केतकी के चेहरे पर पक्का इरादा झलक रहा था तो जीतू के चेहरे पर नाराजी। उसने मीना बहन के कान में कुछ कहा। मीना बहन हंसते हुए बोली, “देखिए, मेरे जीतू को तो केतकी पसंद है, लेकि...लेकिन ” सभी उनके चेहरे की तरफ देख रहे थे। “लेकिन केतकी ने विचार करने के लिए एक दिन की मोहलत और मांगी है...मुझे अच्छा लगा.. विचारपूर्वक ही कोई निर्णय लेना चाहिए...”

रणछोड़, भिखाभा और शांति बहन भीतर ही भीतर जलभुन रहे थे लेकिन किसी ने कुछ नहीं कहा। यशोदा को केतकी का निर्णय अच्छा लगा। लेकिन साफ-साफ मना करने की जगह एक दिन का और समय मांगने के पीछे क्या मकसद है, यह भावना को समझ में नहीं आया।

भिखाभा ने नाराज होते हुए हाथ जोड़ लिए, “देखिए, मैंने मेरा काम कर दिया। अब आगे की बातें आप दोनों परिवारों को मिल कर तय करनी हैं...और लड़के-लड़की ने अपनी बात मीना बहन से कह दी...अब आगे क्या करना है आप लोग तय करें। ”

लौटते समय केतकी और भावना स्कूटी पर सवार होकर आगे निकल गईं। भावना ने रास्ते में उससे कई प्रश्न किए लेकिन केतकी कुछ नहीं बोली। भावना के मन में केवल प्रश्न नहीं थे, केतकी को लेकर चिंता भी थी और उस पर गुस्सा भी आ रहा था।

“तुम जानती भी हो, बाहर वो मीना बहन क्या बोलीं?”

“मुझे कुछ भी नहीं जानना है। तुम जरा चुप रहो और मुझे विचार करने दो।”

“अब इसमें और क्या विचार करना है? साफ शब्दों में ना कह दिया होता तो हम अभी दक्खन सेंटर में पार्टी करने के लिए गए होते।” थोड़ी ही देर में स्कूटी दक्खन सेंटर के दरवाजे पर जा खड़ी हुई। दोनों ने वहां भरपेट खाया।

फिर केतकी बोली, “मैंने विचार कर लिया। मुझे ये शादी मंजूर है।”

 

अनुवादक: यामिनी रामपल्लीवार

© प्रफुल शाह

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