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अग्निजा - 67

प्रकरण-67

ऐसे ही करीब एक सप्ताह गुजर गया। न तो जीतू मिलने के लिए आया, न ही उसका कोई फोन ही आया। इस बात से खुश हो या दुःखी, केतकी को समझ में नहीं आ रहा था। जीतू से मुलाकात हो तो कोई न कोई वादविवाद तो होता ही था, बेहतर है कि उससे मिला ही न जाये। लेकिन इसका अर्थ तो यह भी होता है कि उसको मुझमें कोई रुचि नहीं। अभी से? उसकी तथाकथित सामाजिक विचारों के फ्रेम में मैं कहीं फिट नहीं बैठती हूं, उसने कहीं ऐसा तो मान नहीं लिया है? और कभी भी उसमें फिट नहीं बैठ पाऊंगी, ऐसा तय तो नहीं कर लिया है? और इन बातों को घर में कैसे बताया जाये इस दुविधा में तो नहीं होगा वह? जो भी हो, फिलहाल तो उससे मिलने के कारण होने वाले वादविवाद से मुक्ति तो मिली, ये अच्छी बात है। बाकी भोलेनाथ जो करेंगे, वो अच्छा ही करेंगे। भोलेनाथ की याद आते ही केतकी के सामने प्रभुदास बापू का चेहरा आ गया। उसके चेहरे पर चमक और मुस्कान फैल गयी। वह आत्मविश्वास और आशा से भर उठी। इतने अच्छे मूड में रहते ही भावना ने आकर उसे गले से लगा लिया।

“अरे, क्या हुआ? अचानक इतना प्रेम से कहां से उमड़ पड़ा?” भावना ने उत्तर देने के बजाय उसे और कस कर गले से लगा लिया। “मेरा एक काम करने का वचन दो तो छोड़ूंगी।”

“वाह, ये अच्छी जबरदस्ती है...पर काम क्या है?”

“पहले तुम कहो कि करोगी...वचन दो...फिर बताऊंगी.. ”

“चलो...वचन देती हूं...तुम्हारा काम हो जाएगा...अब बोलो...” भावना ने केतकी के गाल पर खुशी से एक चुंबन दे दिया, “थैंक यू...लव यू...यू आर ग्रेट...”

“ए मस्तीबाज...मस्का बाद में मारना...पहले काम क्या है यह बता..”

“हमारे कॉलेज की ट्रिप जे वाली है...”

“तो अच्छा है, जाने दो... ”

“गोआ जा रही है...पांच दिनों के लिए...”

“अच्छी जगह है, गुड चॉइस...”

“मुझे भी जाना है....मेरी सभी सहेलियां जा रही हैं...तुम्हें मुझे अपने घर से अनुमति दिलवानी है।”

“सॉरी...ये काम बड़ा कठिन है...”

भावना ने पैर पटके... “केतकी बहन...देखो तुमने वचन दिया है...हां..”

“अरे, पर मैं कहां जानती थी कि तुमने इस काम के लिए मुझसे वचन लिया है...तुम अपने बाप को और हमारी मां को अच्छी तरह से पहचानती ही हो। ”

“तो अब...?” भावना दुःखी हो गई थी।

“अरेरे...मेरी गुड़िया...इतनी जल्दी उदास हो गई...देखो, ट्रिप के लिए जो पैसे देने होंगे, वो मुझसे ले लो, और दे दो। उसके बाद घर में बताएंगे कि ट्रिप पर सभी को जाना जरूरी है। फिर वो लोग मना नहीं कर पाएंगे। और पैसे मैं दे रही हूं इसलिए उन पर बोझ भी नहीं पड़ेगा। फिर भी, उन्हें अच्छा तो लगेगा नहीं। तुमको तरह-तरह के उपदेश दिए जाएंगे। गोवा में क्या-क्या करना है, क्या नहीं करना है, कैसे रहना है-इस तरह सलाहें तुमको दी जाएंगी...लेकिन वहां क्या करना है, ये तुम अपने मन से तय करना।”

“वाह, क्या बात है...तुम तो मेरे लिए अलादीन का चिराग हो..जादुई चिराग। थोड़ा सा रगड़ो और उत्तर देने वाला हाजिर।” भावना यह खुशखबर अपनी सहेली को बताने के लिए भाग गई। आईने में अपनी ओर देखते हुए केतकी मन ही मन बुदबुदाई, “हां, चिराग ही हूं मैं पुराना। तुम्हारे लिए जादू का...लेकिन दुनिया के लिए कबाड़ में फेंकने के लायक।”

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तीसरे दिन शाला की छुट्टी होने के बाद तारिका ने केतकी को हंस कर ताना मारा, “लगता है फिलहाल जीतू भाई बिजी हैं..ठीक तो हैं न..?” केतकी हंस कर बोली, “चलो, आज जरा घूमेंगे-फिरेंगे। कुछ खाएंगे-पीएंगे...चलेगा?”

तारिका ने हंस कर हां कहा।

दोनों ने अपनी-अपनी स्कूटी दक्खन सेंटर के सामने खड़ी की और अंदर गईँ। दोसा मंगवाया। दोसा आते तक तारिका इधर-उधर देखती रही। तभी उसका ध्यान एक कोने में गया। उस कोने में अधिक भीड़भाड़ नहीं थी। उधर एक टेबल पर प्रसन्न शर्मा बैठा हुआ था और वह इडली की खाली प्लेट की तरफ देखते हुए विचारों में गुम दिखाई दे रहा था।

तभी वेटर दोसा लेकर आ गया। तारिका ने केतकी को इशारे से उस कोने की तरफ देखने के लिए कहा, “शर्मा की तरफ देखो....साउथ इंडियन डिश को कभी हाथ भी नहीं लगाता...लेकिन आज देखो उसको....” केतकी ने कुछ नहीं कहा। लेकिन उसके मन में अनजान भावना उमड़ पड़ी।

तारिका, केतकी को जबरदस्ती शर्मा के टेबल की तरफ लेकर गयी। दोनों को सामने देख कर आश्चर्य हुआ। उसने जबरदस्ती हंसने का प्रयास किया। लेकिन उस हंसी के पीछे की उदासी को केतकी ने अनुभव किया। केतकी ने थोड़ी शरारत के साथ पूछा, “प्रसन्न सर, इन दिनों आपका रियाज साउथ इंडियन डिशेज के साथ तो नहीं चल रहा?”प्रसन्न ने बेमन से जवाब दिया, “संगीत के बारे में आपका ज्ञान पड़ा विस्तृत मालूम पड़ता है...चलिए मेरी छोड़िए...आपने कुछ मंगवाया या नहीं? ” तभी वेटर उन दोनों को तलाशते हुए आया उनकी प्लेट प्रसन्न के टेबल पर रख दी। प्रसन्न ने अपने लिए मेदूवड़ा मंगवाया था। तारिका तो देखती ही रह गई। प्रसन्न बोला, “पहले सोचा था नाश्ता करूंगा। लेकिन एक और प्लेट खा ली तो रात को भोजन करने की आवश्कता ही नहीं रहेगी। ठीक है न तारिका दीदी?”

पता नहीं क्यों, पर केतकी ने प्रसन्न की ओर देखना टाला। बिल आते साथ केतकी ने अपने हाथ में ले लिया। प्रसन्न कुछ बोलता, इसके पहले ही उसने काउंटर पर जाकर बिल के पैसे दे दिए। प्रसन्न को यह अच्छा नहीं लगा। उसका मन उदास हो गया। तारिका को केतकी का यह व्यवहार कुछ समझ में नहीं आया। वह उठ कर हाथ धोने के लिए बेसिन की तरफ गई। उतनी ही देर में केतकी बाहर निकली और उसने स्कूटी चालू भी कर दी। हाथ उठा कर दूर से ही तारिका को बाय कह कर निकल गई। प्रसन्न और तारिका एकदूसरे की तरफ देखते रह गए। उन दोनों के मन में अनेक प्रश्न थे, लेकिन पूछने की हिम्मत नहीं थी...और आवश्यकता भी नहीं थी।

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भावन गोवा से लौटी तो बहुत खुश थी, लेकिन उसे बुखार चढ़ गया था। हमेशा की तरह ही रणछोड़ दास और शांति बहन ने उसे डांटा। जयश्री ने मुंह बिचकाया। यशोदा को चिंता हुई और उसने तुरंत सुदर्शन चूर्ण और काढ़ा बना कर उसे पीने के लिए दिया। भावना का मुंह कड़वा हो गया। तभी केतकी वहां पहुंची। “मेरी इस गुड़िया को गोवा से ज्यादा अपने घर में अच्छा लग रहा है?” यशोदा ने चिढ़ कर कहा, “और सिर पर चढ़ाओ उसको....बुखार कितना है देखो तो...”

उसको छुए बिना ही केतकी बोली, “बुखार तो दो दिन में उतर जाएगा...मौज की या नहीं पहले ये बताओ...”

“खूब...खूब मौज की...ये ट्रिप जीवन भर याद रहेगी। वो समुद्र....वो शाम...वो नारियल पानी...वो हवा...मानो कोई और ही दुनिया थी वो...”

“वाह...ये यादें ....ये अनुभव तुमको और समृद्ध करेंगी। अब हर साल एक ट्रिप पर अवश्य जाना। अलग-अलग जगहों को देखना..मुझे तुम्हारी इस ट्रिप से बहुत खुशी हुई है।”

“दीदी, तुम भी जाओ गोवा...बहुत अच्छा है। तुरंत ही प्लान बनाओ। हनीमून वहीं मनाना।” केतकी झूठमूठ को नाराज हुई, उसका हाथ पकड़ कर अपना चेहरा गंभीर किया, “लगता है बुखार उतर चुका है...इसी लिए इतनी बड़बड़ चालू है। मां, दो तो वो सुदर्शन चूर्ण...एकदम चार चम्मच दे देती हूं इसको। ”

“वो सुदर्शन चूर्ण छोड़ो, लेकिन तारिका दीदी के लिए लाये हुए काजू कल स्कूल में ले जाना मत भूलना।” केतकी कमरे से बाहर निकली तब उसके मन में एक ही शब्द घूम रहा था, हनीमून। मैं इन लोगों को कितने दिनों तक भ्रम में रख पाऊंगी। दस दिन हो गए, जीतू इधर आया नहीं। कौन जाने उसके मन में चल क्या रहा है?

उस समय जीतू भी केतकी के ही बारे में सोच रहा था। उसके दोस्त पव्या ने नया धंधा शुरू किया है। उसमें जीतू को भी फायदा दिखाई दे रहा था। ऐसा मौका जीवन में कभी कभार ही आता है। इस मौके को हाथ से जाने नहीं देना है। इस मौके का फायदा उठाकर यदि सबकुछ ठीक हो गया तो जिंदगी एकदम आराम से चलने लगेगी, बिलकुल अनिल कपूर की तरह...झक्कास...लेकिन इसके लिए केतकी की मदद की जरूरत है। उसके बिना तो यह काम होने ही वाला नहीं। लेकिन अब वह मदद करेगी क्या?

अनुवादक: यामिनी रामपल्लीवार

© प्रफुल शाह

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