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सच्चा प्यार

बचपन की दहलीज़ पार कर रेखा और नीति जवानी की सीढ़ियाँ चढ़ रही थीं। आज कॉलेज का पहला दिन था, कॉलेज कैंपस में नीति और रेखा अपनी धुन में बातें करते हुए आगे बढ़ रही थीं। तभी वरुण से रेखा की टक्कर हो गई, रेखा उसे देखती ही रह गई और उसके हाथ से बैग नीचे गिर गया।

“सॉरी,” कहते हुए वरुण ने बैग उठाकर रेखा को दिया, बैग लेते हुए उसने कहा, “थैंक यू।”

तभी वरुण की नज़र नीति पर पड़ गई और वहीं अटक गई।

नीति को वरुण का इस तरह देखना अच्छा लग रहा था।

क्लास में पहुँचकर पता चला कि वे तीनों एक ही क्लास में हैं। वरुण को तो मानो बिना मांगे ही उपहार मिल गया। नीति से दोस्ती करने के लिए वह उनके पास आकर बैठ गया।

“मेरा नाम वरुण है, हम मिल तो पहले ही चुके हैं, परिचय अब कर लेते हैं।“

रेखा ने कहा, “मैं रेखा और यह नीति।“

साथ में पढ़ाई करते, घूमते-फिरते, उन तीनों की दोस्ती गहरी होती जा रही थी। रेखा और नीति दोनों वरुण को चाहती थीं किंतु आपस में एक दूसरे को उन्होंने यह बात नहीं बताई। वरुण तो पहली बार में ही नीति को अपना दिल दे चुका था।

वरुण कई बार अपने मन की बात नीति से कहना चाहता किंतु डरता था कि कहीं वह नाराज़ ना हो जाए वरना दोस्ती से भी हाथ धोना पड़ेगा। वह जानता था कि पहले पढ़ाई पूरी करना ज़रूरी है। ढाई वर्ष गुजर गए, अब वरुण अपने आप को रोक नहीं पा रहा था। उसका मन कहता, अपने दिल की बात बता दे, वरना कहीं देर ना हो जाए।

एक दिन वरुण ने रेखा से कहा, “रेखा मुझे तुमसे ज़रूरी बात करना है ।”

रेखा के मन में लड्डू फूटने लगे उसे लग रहा था ढाई वर्ष लगा दिए वरुण ने यह कहने में कि वह उससे प्यार करता है।

शाम को रेखा लाइब्रेरी में वरुण से मिली तब उसके दिल की धड़कनें तेज हो गईं।

उसने कहा, “बोलो वरुण, क्या बात है ?”

“रेखा मुझे तुम्हारी मदद की ज़रूरत है, करोगी ना?”

“तुम बोल कर तो देखो।”

“रेखा तुम मेरी अच्छी दोस्त हो।”

यह सुनते ही रेखा ने सोचा कि अगला वाक्य आई लव यू ही होगा।

वरुण ने कहा, “रेखा मैं नीति से प्यार करता हूँ पर कहने में डरता हूँ । क्या तुम यह मैसेज उस तक पहुँचा सकती हो ?”

यह सुनते ही रेखा ने अपने दिल पर पत्थर रख लिया और आँखों के दरवाज़े पर ताला लगा दिया ताकि एक भी आँसू बाहर ना निकल पाए। उसका मन चाह रहा था कि वरुण के सामने अपना दिल खोल कर रख दे और कह दे, “नीति तुमसे प्यार नहीं करती, किसी और से…!”

“नहीं-नहीं मैं यह क्या सोच रही हूँ, मैं अपने दोस्तों को धोखा नहीं दे सकती।” अपने अरमानों का गला घोंटते हुए उसने कहा, “वरुण तुम चिंता नहीं करो, मैं तुम्हारा मैसेज ज़रूर पहुँचा दूंगी।”
भारी कदमों और टूटे हुए दिल के साथ रेखा वहाँ से चली गई।

रात को रेखा बिस्तर पर गई तो नींद उसकी आँखों से ओझल हो चुकी थी। वह करवटें बदलते हुए प्यार की परिभाषा ढूँढ रही थी कि आख़िर प्यार है क्या ? कभी सोचती प्यार को छीन लेना ही सच्चा प्यार है, कभी सोचती प्यार तो त्याग का दूसरा नाम है, जिससे तुम प्यार करते हो उसकी इच्छा पूरी करना ही प्यार है। रेखा ने प्यार की अनेक परिभाषाएँ गढ़ लीं।

वह सोच रही थी कि वरुण को उसके प्यार से मिलवा दूँ ? नहीं, नहीं झूठ कह देती हूँ कि नीति ने मना कर दिया। फ़िर उसका मन उसे धिक्कारने लगा, यह क्या सोच रही है, यह पाप है । इस पाप का बोझ तो पूरी ज़िन्दगी उतर ना पाएगा। इस बोझ के तले ऐसी घुटन होगी, जिसमें तीन ज़िंदगी दफ़न हो जाएंगी ।

इन ख़्यालों में उलझी रेखा दूसरे दिन जब कॉलेज पहुँची, उसके लिए इस काम को अंजाम देना बहुत मुश्किल था। वरुण को ख़ुशियों भरा जीवन देने के लिए उसने अपने प्यार की कुर्बानी देने का मन बना लिया था।

नीति से मिलने पर रेखा ने कहा, “मेरे पास तेरे लिए बहुत बड़ा सरप्राइज़ है।”

“मैं भी तुझे एक सरप्राइज़ देने वाली हूँ, पहले मेरी बात सुन, मैं वरुण से प्यार करती हूँ पर कभी उसे क्या, तुझे भी बता ना सकी।”

नीति के यह शब्द रेखा को शूल की तरह चुभे ज़रूर किंतु प्यार की परिभाषा में त्याग ढूँढ़ने वाली रेखा ने स्वयं को सँभालते हुए कहा, “अब मेरा सरप्राइज़ भी सुन ले, वरुण का मैसेज है।”

“क्या है, जल्दी बता।”

“पहले बोल, मुझे क्या देगी?”

“जो तू मांगेगी”

“ठीक है तो सुन, वरुण तुझसे प्यार करता है, मुझे तेरा जवाब लेकर आने को कहा है।”

नीति ने यह सुनकर उसे गले लगाते हुए कहा, “रेखा आई लव यू, तू मेरे लिए इतनी बड़ी ख़ुशी लेकर आई है।”

“चल अब अपना प्रॉमिस पूरा कर, तूने कहा था ना कि जो मैं मांगूंगी, तू देगी।”

“तू मांग तो सही, तेरे लिए तो जान भी दे दूँगी।”

“मुझे जान नहीं, मुझे तो वरुण चाहिए नीति।”

“क्या, यह क्या कह रही है तू?”

“मैं सच कह रही हूँ, बोल देगी? हट जाएगी रास्ते से?”

कुछ देर के लिए वहाँ सन्नाटा छा गया फ़िर नीति की आवाज़ आई, “रेखा वरुण से कह देना नीति किसी और से प्यार करती है।”

रेखा ने उसे सीने से लगाते हुए कहा, “अरे पगली मैं तो मज़ाक कर रही थी, तेरा दिल देख रही थी ”, कहते हुए उसने अपने प्यार को हमेशा के लिए दोस्ती में बदल दिया, जो आसान नहीं था।

तभी उन्हें वरुण आता हुआ दिखाई दिया, उसके पास आते ही रेखा ने कहा, “वरुण यह ले तेरा प्यार, मैं अपने साथ लेकर आई हूँ,” कहते हुए उसने वरुण के हाथ में नीति का हाथ थमा दिया।
अपने इस दर्द में भी उसे ख़ुशी का एहसास हो रहा था, उसे महसूस हो रहा था कि यही तो है सच्चा प्यार।

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक