Robert Gill ki Paro - 3 books and stories free download online pdf in Hindi

रॉबर्ट गिल की पारो - 3

भाग 3

रॉबर्ट उस पहाड़ी के सामने खड़ा था जहाँ टैरेन्स का बंगला था। हालांकि काफी समय हो चुका था, शाम ढले। लेकिन, चारों ओर उजास फैला था। उसने अपलक पहाड़ी पर बने उस बंगले को देखा जहाँ जीवन और मृत्यु दोनों आमने सामने थे। हाँ! उसने ऐसा ही महसूसा था उस रात जब वह टैरेन्स के साथ इस बंगले पर था। लेकिन ऊपर चढ़ते हुए उसे महसूस हुआ कि बंगले में कोई शोर है, जैसे कुछ लोग आपस में बहस कर रहे हों। करीब 20 मिनिट चढ़ने के बाद वह बंगले के बरामदे के सामने खड़ा था। गेट खुला पड़ा था लेकिन बरामदे की जाली में बड़ा सा ताला लटका था, जिसकी चाभी उसके पास थी। उसने ताला खोला और अंदर प्रवेश किया। अब बातचीत और बहस की आवाजें अंदर से स्पष्ट आ रही थीं। कौन होगा अंदर सोचते हुए वह भीतर गया तो आगे के चार कमरों में कोई नहीं था। उसने दरवाजा खुला छोड़ दिया। ताकि कमरे की सीली हवा बाहर निकल सकें। सभी कमरे एक दूसरे से जुड़े थे, जिनके दरवाजे उसने खोल दिए। पीछे कौन है सोचते हुए वह वरांडे से निकल कर पीछे के कमरों में चला गया।

उसने दरवाजा खटखटाया।

एक लंबी लड़की लाल काली स्कर्ट पहने बाहर निकली। वह हैरत से रॉबर्ट को देखती रही।

उसने अपने साथियों को आवाज दी।

‘‘देखो कोई नया लड़का नाटक में एंट्री मारने आया है।’’ सभी हँसने लगे।

‘‘कौन हो तुम?’’ एक लड़के ने पूछा। उसने अपना परिचय बताया और यहाँ आने का मकसद भी।

उसे याद आया टैरेन्स ने उसे बताया था कि कभी कभी नाटक मंडली इसे किराए पर ले लेती है, ताकि सुकून से वे लोग यहाँ नाटक का रिहर्सल कर सकें

‘‘अंदर आओ रॉबर्ट।’’ एक बड़ी उम्र के व्यक्ति ने उसे बैठने के लिए एक स्टूल दिया।

‘‘रेड वाइन लोगे?’’ उन्होंने कहा।

‘‘नो थैंक्स।’’ रॉबर्ट ने कहा।

लेकिन एक प्लेट में वाइन का गिलास और कुछ खाने की चीजें लेकर वह लंबी लड़की आई। उसने चुपचाप प्लेट ले ली और खाने लगा।

‘‘कब से बनाते हो तस्वीरें ?’’ उसी बड़ी उम्र के व्यक्ति ने उससे पूछा।

‘‘बचपन से।’’ रॉबर्ट ने कहा।

‘‘अच्छा! हम लोग तो नाटक प्ले करते हैं। मैंने ही लिखा है। युद्ध पर है, जहाँ कुछ सोल्जर दुश्मनों द्वारा पकड़े जाते हैं। सभी साहसी हैं लेकिन एक सोल्जर है जो सोल्जर होते हुए भी डरपोक है। उसकी यह प्रेमिका है।’’ उन्होंने लंबी स्कर्ट वाली लड़की की तरफ इशारा किया। डरपोक सोल्जर लोहे की मोटी सांकल (चेन) से बंधा है, ‘‘चल फिर सकता है।’’

‘‘रहने दीजिए, मिस्टर ब्रोनी, सारी कहानी अभी ही सुना देंगे, तो अंत में क्या रह जाएगा।’’ एक पिद्दी से लड़के ने उन्हें टोका।

‘‘हाँ! हाँ! ठीक कह रहे हो। ओके मिस्टर रॉबर्ट, कल मिलते हैं।’’

वह उठ खड़ा हुआ। लड़की को एक भरपूर नजर से देखा तो वह मुस्कुरा दी। और उसने अपना नाम लीसा बताया।

‘‘गुड बाय आॅल आॅफ यू’’ कहता हुआ उठ खड़ा हुआ। वह जूते उतारना चाहता था। दस घंटों से जूतों के अंदर बंद पैरों को राहत चाहिए थी। हवा में ठंडक और सिहरन थी। वह वापिस आया और अपने कमरे को वहाँ रुकने लायक बनाने लगा। उस दिन रात को देखा कमरा और फिर दूसरे दिन दो घंटों में देखे कमरे से आज अलग था वह कमरा। अलमारियाँ वह खोलना नहीं चाहता था क्योंकि उनके भीतर मृत्यु की गंध थी। लेकिन टैरेन्स ने कुछ किताबें मंगवाई थीं। नाम और जिल्द का रंग बताया था ताकि जल्दी से वह ढूंढ सकें।

उसने टेबिल को खाली किया और उस पर अपने कैनवस रखे। रंगों को वह बाद में चित्र में भरता था। अत: उसे डिब्बे में ही बंद रहने दिया। कल सुबह जल्दी उठना है, ताकि वह सूर्योदय के कुछ चित्र बना ले। शायद वह उस लड़की अर्थात लीसा के भी चित्र बनाए ऐसा उसने सोचा।

बाहर बरामदे में अब भी उजाला था। पीछे पहाड़ पर क्षितिज में अंधेरा हो रहा था। जिसके कारण पेड़ काले-काले दिखाई दे रहे थे। उसने अपने लम्बे बैग से रेड वाइन की बोतल निकाली और एक प्लेट में सेब के टुकड़े करके उन पर नमक छिड़ककर आराम से बैठ गया। थकान तो थी ही लेकिन आँखों के सामने फ्लावरड्यू आ गई। जब उसने ड्यू को पहली बार देखा तो वह अख्खड़ और बदमिजाज दिखाई दी थी, बल्कि घमंडी भी। लेकिन दूसरी बार मिलने पर वह उससे प्यार ही करने लगा था।

यहाँ पर चित्रकारी करने के पश्चात वह फिर से ड्यू से मिलने जाएगा और फिर लौटकर अपने घर जहाँ वह चित्रों में बाकी बचे अंतिम स्ट्रोक देगा।

एकदम अंधेरा होने तक वह बरामदे में बैठा रहा। जब ठंडी हवा से उसका शरीर सिहरने लगा तो वह भीतर आया और अलमारी पर रखे लैन्टर्न को जलाकर टेबिल पर रख दिया।

उसने रास्ते से खरीदा हुआ भुना चिकन प्लेट में निकाला और खाने लगा। साथ ही वाइन पीता रहा। निश्चय ही नीचे जाकर उसे प्रतिदिन खाने का प्रबंध करना होगा।

आरामकुर्सी पर बैठे-बैठे वह उनींदा हो उठा था। तभी अलमारी के ऊपर से एक लाल कपड़े का बैग नीचे गिरा। वह चौंक पड़ा, बल्कि सिहर गया। दिमाग मानो सुन्न हो गया। बैग को गिरना था तो आज ही क्यों? जबकि उसने तो अलमारियों को छेड़ा भी नहीं है, बस लैन्टर्न ही उतारा था। न हवा थी न कोई शोर, न ही ऐसी हलचल। फिर बैग में क्या था? उसका जानना जरूरी था। फिर भी जब उसने उस पोटलीनुमा बैग को अपनी ओर खींचा तो उसे लगा कि उसे ऐसा नहीं करना चाहिए था। लेकिन उसने बैग की डोरियां खोल डालीं।

एक धुंधली-सी तस्वीर उसके हाथों में थी जो पीली और जर्जर थी। मानो बहुत यत्न से कहीं खड़े होकर यह फोटो खिंचवाई गई थी। नहीं, यह टैरेन्स के डैड नहीं हैं।

उसने फोटो देखकर टेबिल पर रखी। मानो किसी जादूगर बुढ़िया ने कोई रहस्यमय पोटली उसके आगे रख दी हो। या खोल दी हो।

नीले, फिरोजी रंग के नगों से बना एक आभूषणों का सैट रखा था। एक चेन, एक लॉकेट, जिसमें नीला रत्न जड़ा था, वैसा ही नीला रत्न जड़ा हाथों का कंगन और वैसे ही ईयर रिंग्ज, एक पीला कपड़ा जिस पर किसी रंग से लिखा था जो रंग अब धुंधला पड़ गया था। ‘‘मेरे प्यार की निशानी है, जो सिर्फ टैरेन्स की पत्नी के लिए।’’

ढेर सारे सूखे फूल लंबी डंडियों में रहे होंगे जो सूखकर टूट गए थे और काले पड़ चुके थे। उसी के साथ कलात्मक अंगूठियां थीं, जो एक अलग से कपड़े में बंधी थीं।

यह पोटली रॉबर्ट के सामने क्यों गिरी। क्या यह महज इत्तेफाक था अथवा कोई उसे मेरे द्वारा टैरेन्स तक पहुंचाना चाहता था। क्या टैरेन्स अलमारी के ऊपर कभी नहीं देखता कि वहाँ क्या है? यह वह आता भी तो महज कुछ घंटों के लिए या एक रात के लिए जो उसका ध्यान यहाँ जाता ही नहीं। यह सामान उसे क्यों दिया गया? किसने? क्या टैरेन्स की माँ ने या... यह सब अकस्मात ही हुआ।

उसने कुर्सी से पीछे टिककर टेबिल पर पड़ी तस्वीर उठा ली। रहस्य के पर्दे उस पोटलीनुमा बैग से निकलकर सामने आने लगे थे।

तभी तेज आवाज सुनाई दी- ‘‘मैं मरना नहीं चाहता, मैं जीना चाहता हूँ। मुझे युद्ध से भय लगता है। मुझे जीना है... मुझे जीना है...। वहाँ मेरी प्रेयसी है ‘एन्ड्रा’, जो मेरा इंतजार कर रही है।’’

फिर एक भयावह चीख सन्नाटे में गूंज गई। और रुलाई के स्वर छन-छन कर दरारों से अंदर आकर उसे भिगोने लगे। वह दब्बू ठिगना लड़का कातर होकर पुकार रहा था। ‘‘मुझे जीना है... मुझे जीना है।’’ शायद उसके शरीर पर लोहे की मोटी सांकल बंधी थी, जिसकी आवाज यहाँ तक आ रही थी। मानो कोई उसे दंड देने के लिए खींच कर ले जा रहा था। और मृत्यु किसी भी पल आ सकती थी। कोई चीखा था। ‘‘लेकिन हम तो भाग सकते हैं, यह तो जंजीरों में जकड़ा है।’’

कैसी अजीब सी बात थी कि जिस मृत्यु को वह अलमारियों के भीतर बंद होना महसूस कर सकता था, वह आवाजों में और लाल बैग में उपस्थित थी।

पलकों में नींद नदारद थी लेकिन वह सोना चाहता था।

वह तो फ्लावरड्यू से मिलकर ज़िंदगी जीने के लिए आया था, लेकिन यहाँ तो शब्द-अहसास, हवा सब कुछ मृत्यु की गंध में लिपटे थे।

अचानक ही एक अलसाई सी खुमारी उस पर छाने लगी। रेड वाइन अधिक पीने का नशा उस पर छा चुका था। उसकी कनपटियां दर्द करने लगी थीं। अगर वह नहीं सोया तो निश्चय ही बीमार पड़ जाएगा। उसे अंधेरी काली परछाईं ने ढंक लिया था और वह गहरी नींद में सो गया।

’’’

सुबह देर से उसकी नींद खुली। उसको किसी की बातचीत की आवाज अपने ही कमरे के सामने सुनाई देने लगी। वह उठकर खिड़की के पास आया तो देखा नाटक मंडली नीचे उतर रही थी। सिर्फ लीसा उसकी खिड़की की काँच में खटखट कर रही थी। लीसा ने दोनों हाथों से अपना चेहरा छुपाकर काँच से भीतर झाँका, उसे जागता पाकर उसने उठने का इशारा किया और हँसते हुए नीचे की ओर दौड़ने लगी। उसने दरवाजा खोला तो देखा वह अपनी मंडली में शामिल हो चुकी थी और मुड़-मुड़कर उसे देख रही थी।

वह फिर जाकर बिस्तरे पर टिककर बैठ गया। मेज पर पड़ी तस्वीर उसने उठा ली। उजाले में तस्वीर का चेहरा साफ नजर नहीं आ रहा था। क्या टैरेन्स इस चेहरे को पहचान लेगा? क्या माँ के दु:ख को वह और नजदीक से पढ़ पाएगा? उसने तस्वीर को लाल बैग में रखकर बैग के फीते को बाँध दिया।

अपने दैनिक कार्यों से निपटकर उसने कैनवस निकाला और बंगलो के पीछे की ओर जाकर कैनवस स्टैण्ड पर रखकर कुछ स्कैच तैयार किए। पहाड़ धूप में मानो पिघल रहा था। पेड़ भी छोटे-छोटे और अपरिचित से दिख रहे थे।

नजदीक के पेड़ों पर ओस की बूंदें सूख चुकी थीं। पाइन्स के पेड़ों से कुछ फल नीचे गिरे पड़े थे। कुछ पेड़ों में ही लटके हुए थे।

जब वह कैनवस और स्टैण्ड उठाकर भीतर आ रहा था, तभी उसने देखा वे लोग ऊपर चढ़ रहे थे। लीसा के हाथों में कुछ खाने की चीजें दिख रही थीं। उसे भी भूख महसूस हुई। सोचा नीचे जाकर नाश्ता करेगा और फिर आसपास की जगह घूमेगा।

लेकिन ऐसा मौका ही नहीं मिला। लीसा ने उसके हाथ में नीचे से लाया हुआ नाश्ता रख दिया।

‘‘यह तुम्हारे लिए रॉबर्ट। जानते हो जब हम नाश्ता कर रहे थे, तब मुझे तुम्हारी याद आई। तुम चित्र बना रहे होगे और भूखे भी होगे। नीचे आने में समय बर्बाद होगा इसलिए मैंने सोचा...। वह मुस्कुराने लगी।

‘‘शुक्रिया।’’ उसने नाश्ता हाथ से ले लिया।

‘‘आओ देखो मैंने कुछ स्कैच बनाए हैं।’’ वह लीसा का हाथ पकड़कर उसे अंदर खींच लाया। वह स्कैच देखने लगी। कुछ आश्चर्य से, कुछ मुग्धता से।

‘‘अरे, यह पहाड़ तो ऐसा लग रहा है, मानो धूप से पिघल रहा हो।’’

वह हँसने लगा। कहा- ‘‘जो जैसा दिखता है, वैसा ही बनाता हूँ। लेकिन मेरा स्कैच सार्थक हुआ।’’

‘‘वह कैसे?’’ वह बोली।

‘‘क्योंकि मैंने भी वही महसूसा था कि पहाड़ धूप से पिघल रहा है।’’ रॉबर्ट ने कहा।

अब उसने गौर से लीसा को देखा। बेहद घुंघराले बाल एक चमकीले रिबिन में बंधे थे। लंबी झालर लगा लेस वाला वह टॉप पहनी थी। और उससे एकदम अलग ही रंग की स्कर्ट। एक हाथ में चांदी का पत्थरों वाला ब्रेसलेट था। और दूसरे हाथ में किसी धातु का कड़ा। वह एक दुबली-पतली लड़की थी। चंचल भी थी। दोनों में नाटक और चित्रकारी पर बात होती रही। उसने प्लेट में नाश्ता निकाला और खाने लगा। जब खाया तो महसूस हुआ कि उसे सचमुच भूख लगी थी।

‘‘मैं तुम्हारी पेन्टिंग बनाऊंगा।’’ रॉबर्ट ने कहा।

‘‘मुझे मालूम था।’’ वह बोली।

‘‘कैसे?’’

‘‘यह तो नहीं मालूम लेकिन ऐसा कल से ही लग रहा था।’’

‘‘अच्छा।’’ वह मुस्कुरा दिया।

‘‘तुम यहाँ पहले भी आती रही हो?’’

‘नहीं, पहली बार आई हूँ। लेकिन मिस्टर ब्रोनी आते रहे हैं, तब भी जब मिसिस पीटर जीवित थीं।’’

‘‘अच्छा।’’ वह आश्चर्य में डूब गया।

‘‘हाँ! मिस्टर पीटर शायद पहले से उनके पड़ोसी थे। फिर उन्होंने यह बंगला बनवा लिया। और सब यहाँ आ गए। इतने वीरान बंगले में कैसे रहती होंगी मिसिस पीटर। मैं तो कभी ऐसे वीरान बंगले में नहीं रह सकती। जबकि मिस्टर पीटर अपने व्यापार के सिलसिले में हमेशा बाहर ही रहते हैं। मुझे भुतहा बंगला लगता है।’’

‘‘ऐसा क्यों?’’

‘‘वैसे ही। अकेली वीरान जगह को ऐसा ही कहा जाता है। मेरी माँ ने बताया था।’’

दोनों हँसने लगे।

‘‘नाटक कब प्ले करोगे तुम लोग?’’

‘‘अगले महीने हम पूरे इंग्लैंड में घूमेंगे। नाटक करेंगे और यही हमारी कमाई होती है।’’

‘‘तुम्हें कमाना इतना जरूरी क्यों है?’’

‘‘कमाना तो सभी को जरूरी है मिस्टर रॉबर्ट।’’

‘‘लेकिन तुम्हें?’’

‘‘मेरे डैड नहीं हैं। जब मैं छोटी थी तभी उनकी मृत्यु हो गई। माँ ने मुझे बड़ा किया, पढ़ाया ज्Þयादा नहीं, तो भी... देखभाल भी की।’’

‘‘मुझे अफसोस है।’’ रॉबर्ट ने कहा।

‘‘ठीक है, और कह भी क्या सकते हो?’’

‘‘तुम चंचल हो और थोड़ी र्यूड (१४ीि) भी।’’

‘‘ऐसा तुम्हें क्यों लगा?’’

‘‘बस ऐसे ही।’’ रॉबर्ट ने कहा।

टेबिल पर प्लेट सरकाकर उसने लीसा की ओर देखा। ‘‘चलो ढलान पर उतरेंगे और मैं तुम्हारा स्कैच बनाऊंगा।’’

‘‘लेकिन तुम तो पेन्टिंग बनाने का कह रहे थे।’’

‘‘पहले मैं स्कैच बनाता हूँ। बाद में उसमें रंग भरता हूँ।’’

‘‘कब भरोगे रंग?’’

‘‘घर जाकर। यानि लंदन जाकर।’’

‘‘मैं कैसे अपनी स्वयं की पेन्टिंग देखूंगी?’’

मेरे घर आना पड़ेगा पेन्टिंग देखने और तुम मेरे घर आओगी तो पेन्टिंग दिखाने से पहले मैं तुम्हारे साथ बहुत शरारत करूंगा।’’

‘‘शरारत क्यों करोगे?’’

वह हिचकिचा गया। बोला-‘‘क्योंकि तुम बहुत सुंदर हो, चंचल हो और युद्ध में दुश्मनों द्वारा फांसी पर लटकाए जा रहे सोल्जर की प्रेमिका भी...।’’

‘‘यह तो कोई कारण नहीं हुआ शरारत करने की स्वतंत्रता लेने का।’’

‘‘अच्छा छोड़ो, तुमको दब्बू कैरेक्टर अच्छा लगता है?’’

‘‘नहीं।’’

‘‘फिर कैसे वह तुम्हारा प्रेमी बना?’’

‘‘वह सोल्जर है। कहीं न कहीं साहसी भी, लेकिन मरने से डरता है।’’

‘‘सोल्जर मरने से नहीं डरता।’’

‘‘क्यों? क्या तुम भी सोल्जर हो?’’

‘‘हाँ।’’ वह हँसने लगा।

‘‘बेवकूफ बना रहे हो? है न?’’

‘‘नहीं सच, मैं इंडिया भी जा रहा हूँ। बल्कि ईस्ट इंडिया कंपनी की इंडियन आर्मी में ही भरती हुआ हूँ।’’

‘‘मुझे सोल्जर अच्छे लगते हैं।’’ लीसा ने उसे लाड़ से देखते हुए कहा।

‘‘और इस घर के मालिक मि. पीटर का बेटा टैरेन्स भी सोल्जर है, लेकिन वह इंडिया जाना नहीं चाहता।’’

‘‘तुम्हें सोल्जर पसंद हैं?’’ कहता हुआ रॉबर्ट लीसा के नजदीक आ गया। फिर उसे खड़ा करके उसके घुंघराले बालों से खेलने लगा।

‘‘चलो फिर मेरा स्कैच बनाओ।’’ लीसा ने कहा।

‘‘यह ब्लाउज उतार दो, मैं हाफ न्यूड तस्वीरें बनाता हूँ।’’ रॉबर्ट ने कहा।

‘‘रहने दो। मैं जा रही हूँ। मिस्टर ब्रोनी मेरा इंतजार कर रहे होंगे।’’

रॉबर्ट हँसने लगा। कहा- ‘‘प्रकृति भी तो नग्न है। पेड़, पहाड़, नदी, समुद्र सभी नग्न होते हैं। वे तो मना नहीं करते कि मेरा स्कैच नहीं बनाओ।’’

‘‘वे अपने आप में कपड़े पहने हैं, जेवर पहने हैं। उनकी नग्नता प्राकृतिक है। वे कुछ भी उतार नहीं सकते।’’

वह जाने को मुड़ी तो रॉबर्ट ने उसका हाथ पकड़ लिया। ‘‘अच्छा छोड़ो ये सब बातें। यह एकदम यूं ही था एक छोटा-सा मजाक। यदि तुम अर्धनग्न पेन्टिंग के लिए मानती तो बात ही और थी। जानती हो अर्धनग्न मूर्तियां, नग्न मूर्तियां, मैथुन करती मूर्तियां वहाँ इंडिया में हैं, जो सैकड़ों वर्ष पूर्व बनाई गई थीं।’’

‘‘इसीलिए तुम वहाँ जाना चाहते हो?’’ वह खिलखिला कर हँसने लगी।

‘‘लेकिन यह सच में आश्चर्यजनक नहीं है कि इंडिया के जंगली आदिवासी ऐसी मूर्तियां भी तराश चुके हैं।’’

‘‘हाँ! मैंने इंडिया की जानकारी इकट्ठी की है।’’ रॉबर्ट ने कहा।

‘‘देखो? कितनी जानकारी सही है, यह तो वहाँ जाकर ही पता चलेगा। वरना, चट्टानों से निकली गरम हवा के थपेड़े ही खाते रहना।’’

‘‘चलो हम बाहर चलते हैं किसी पेड़ के नीचे। वहाँ तुम सिर्फ 30 मिनट देना। मैं स्कैच बना लूंगा।’’ कहते हुए रॉबर्ट ने लीसा की बांह पकड़ी और दूसरे हाथ में कैनवस बोर्ड उठाते हुए वे दोनों कमरे से बाहर निकल गए।

बंगले के बाहर बायीं ओर एक घनी फूलों से लदी झाड़ी भी उन्हें मिल गई। लीसा एक ऊंचे स्थान पर बैठ गई। रॉबर्ट ने उसके घुंघराले बालों की पोनी खोल दी। सफेद मासूम चेहरे पर घुंघराले बाल हवा में उड़ने लगे। रॉबर्ट ने बहुत ही प्यार से लीसा को देखा और स्टेंण्ड पर कैनवस को रखकर लीसा का रेखाचित्र बनाने लगा। अचानक ही फ्लावरड्यू उसकी आँखों के सामने आ गई। एक लड़की अमीर घराने की फिर भी उसके चेहरे पर उतनी मासूमियत नहीं थी। कहीं ओर-छोर ड्यू के ऊपर न कोई जिम्मेदारी थी न ही कोई चिन्ता फिर भी चेहरे पर हल्की-सी रूढ़ता या घमंड, सब कुछ होने का घमंड, अपने सौन्दर्य अपने सुखों का घमंड। और लीसा? एक मासूमियत से भरा भोला सौंदर्य... अपने या माँ के सपनों या जरूरतों को पूरा करने की मेहनत... न चेहरे पर कोई चिन्ता, न कोई दर्प... बस एक मासूम खिलखिलाहट... क्या वह सचमुच सिर्फ एक नाटक का पात्र हो गई थी। एक डरपोक सोल्जर की मासूम प्रेमिका।

‘‘क्या सोचने लगे मिस्टर रॉबर्ट?’’

‘‘कुछ भी तो नहीं, बस थोड़ी ही देर में स्कैच बनकर तैयार हो जाएगा।’’ रॉबर्ट ने कहा और सिर को झटका दिया। सचमुच ही तो वह सोच रहा है। एक रईस परिवार में उसकी सगाई... क्या वह फ्लावरड्यू को खुश रख पाएगा।

स्कैच बनकर तैयार था। आधी लीसा स्कैच में मौजूद थी उसके घुंघराले बाल चेहरे पर छाए थे। पीछे घनी झाड़ी थी, जिसमें खिले फूल आकाश में तारों जैसे दिख ,रहे थे।

लीसा स्कैच देखकर बहुत खुश थी। ‘‘यह सचमुच मैं हूँ।’’ उसने सोचा। कल्पना से परे उसका स्कैच बना था। अब रॉबर्ट घर जाकर उसमें रंग भरेगा। रॉबर्ट ने लीसा के नजदीक जाकर आँखों ही आँखों में पूछा- ‘‘कैसा लगा?’’

लीसा ने अपनी पलकें झुका लीं। कुदरती शर्म उसके गालों पर छा गई। रॉबर्ट ने उसके घुंघराले बालों को चेहरे से हटाकर वापिस पोनी में बाँध दिया। उसने लीसा के चेहरे को ऊपर उठाया और माथे को चूमते हुए कहा- ‘‘तुम वाकई सुंदर हो लीसा, एक मासूम और भोला सौन्दर्य।’’

लीसा पुन: शरमा गई।

‘‘क्या तुम रंगों से भरी अपनी पेन्टिंग देखने लंदन आओगी?’’

‘‘हाँ! जब हमारा नाटक लंदन में खेला जाएगा तब मैं तुम्हारे घर अवश्य आऊंगी।’’

‘‘चलो कमरे में चलते हैं, वहाँ कुछ पिएंगे या नीचे उतरते हैं। कुछ खाने को ले आएंगे।’’

‘‘नहीं! मुझे रिहर्सल पर जाना है वरना मि. ब्रोनी नाराज होंगे।’’

रॉबर्ट ने कैनवस और स्टेण्ड हाथ में लिया और दोनों हाथ पकड़कर बंगले के अहाते में तक आए। पीछे रिहर्सल चल रही थी। नाटक के तेज स्वर उसके कानों में टकराते रहे। रॉबर्ट ने सोचा यह इस उम्र की माँग है या और कुछ? उसे लीसा अच्छी लगने लगी थी। शायद हृदय के किसी अछूते कोने में लीसा ने दस्तक दे दी थी।

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अपने कमरे में लौटकर वह आरामकुर्सी पर बैठ गया। सिर पीछे टिकाया तो थोड़ी राहत महसूस हुई। फ्लावरड्यू और लीसा बारबार सामने आतीं। घुंघराले बाल और गोल चेहरे वाली लीसा... उसकी गर्म साँसें वह अपने सीने पर महसूसता रहा। हालांकि वे इतने नजदीक तभी आए थे जब उसने लीसा के बालों की पोनी स्कैच बनाने के लिए खोली थी। थोड़ी देर आँखें बंद किए वह बैठा रहा। फिर सोचा कि कुछ और ही पोज में वह लीसा के स्कैच बनाएगा।

बंगले के पीछे डाउनी बर्च के पेड़ (ऊङ्म६ल्ल८ इ्र१ूँ)थे। जो ढलवा पगडंडी के दोनों ओर लगे थे। पगडंडी कैसे बनी वह समझ नहीं पाया था क्योंकि वहाँ तो नीचे कुछ था ही नहीं, जहाँ कोई उतरता भी। हो सकता है बंगले के साथ बाउंड्रीवाल से कोई चरवाहा अपनी भेड़ें या अन्य कोई जानवर वहाँ से नीचे उतारता हो। बस वहाँ ही वह लीसा के साथ उतरेगा और कुछ स्कैच और बनाएगा। सोचा था कि टैरेन्स के बंगले पर आकर वह सूर्योदय के चित्र बनाएगा। पहाड़ों के पीछे ढलते सूरज को एकाग्र होकर वह देखेगा और कुछ नया प्रयोग करने की कोशिश करेगा। लेकिन अब लीसा ही केंद्र में स्थित हो चुकी थी।

टैरेन्स ने जो किताबें मंगवाई थीं उन्हें ढूंढना था और लाल बैग को भी ले जाना था। मि. ब्रोनी से भी मिलना था कि वे टैरेन्स के माता पिता के बारे में क्या जानते थे।

पीछे के कमरों में रिहर्सल की हलचल थी। रॉबर्ट ने अलमारी खोली और पीछे हट गया। अलमारी की लकड़ियों की गंध थी अथवा कुछ और? उसने अलमारियाँ खोल दीं और दूर जाकर टेबिल पर अपना सामान इधर-उधर करने लगा। ताकि उस गंध से बचा जा सकें। टैरेन्स की दी हुई किताबों की लिस्ट उसने ढूंढी और फिर अलमारी के पास पहुंच गया। तकरीबन सारी किताबें ही ब्राउन जिल्द की नजर आईं। वह किताबों में टैरेन्स के दिए नाम खोजने लगा। जैसा टैरेन्स ने बताया था उसी नाम और क्रम से किताबें मिलीं। किताबें टेबिल पर रख कर उसने अलमारी बंद कर दी ताकि उस गंध से बचा जा सकें। जिससे वह विचलित हो जाता है। जैसा उस दिन हुआ था जिस दिन टैरेन्स के साथ वह इस बंगले पर आया था।

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मिस्टर जॉन एफ पीटर अर्थात टैरेन्स के पिता जूट का व्यापार करते थे। उसके पिता भी यही व्यापार करते थे। मि. ब्रोनी बता रहे थे। आर्थिक स्थिति उनकी अच्छी थी। लेकिन टैरेन्स की मदर एक गरीब परिवार से थी। वह ऐसे घर से आई थी, जहाँ सिर्फ दो कमरे थे। एक रहने का और एक रसोई कह सकते हैं। टैरेन्स की मदर जिसका नाम अगाथा था उसकी एक छोटी बहन भी है। उन लोगों का भेड़ों का एक मामूली व्यापार था। थोड़ा-सा ऊन इकट्ठा करना और उसे साप्ताहिक मंडी में बेच देना। अगाथा की छोटी बहन उसी के समकक्ष उम्र की थी। मैं उस परिवार को अच्छी तरह से जानता हूँ। बल्कि पारिवारिक मित्र भी हूँ। मैं उनके मकान से कुछ ही दूर रहता था। अगाथा के विवाह के पश्चात मैं उसके पति जॉन एफ पीटर का घनिष्ठ मित्र भी बन गया। और मुझे वह सब कुछ मालूम हो गया जैसे मैं उन्हीं के परिवार का कोई सदस्य हूँ।

अगाथा से विवाह तो हुआ लेकिन जॉन एफ पीटर अगाथा से ऐसे व्यवहार करता था मानो वह उसे खरीद कर लाया हो और वह उसकी गुलाम हो। मुझे लगता है यह इसलिए कि अगाथा बहुत गरीब परिवार से थी। अधिकतर चुप रहने वाली अगाथा और भी चुप रहने लगी। वह अपने पति के समक्ष ऐसी समर्पित हुई कि जैसे उसके भीतर सोचने-समझने की शक्ति ही न हो। जॉन एफ पीटर जो सोचता, जो कहता अगाथा भी वही सोचती और वैसा ही कहती। इसी बीच मि. जॉन के पिता गंभीर रूप से बीमार हो गए। मि. जॉन की माँ मैरी जॉन एक संपन्न जमींदार घराने की बेटी थी। अपने पति को लेकर अपने पिता के पास चली गईं। वहाँ कुछ चिकित्सक भी थे। उनके पति का इलाज होने लगा। लेकिन उनकी गंभीर बीमारी किसी के समझ में नहीं आती थी। उन्हें चेस्टपेन होता था। उस दौरान वे पसीने-पसीने हो जाते थे। मुंह से खून के साथ झाग भी वे थूकते थे और ऐसा अटैक लगभग 10 मिनट चलता था। फिर वे ठीक हो जाते और हफ्तों इसी कमजोरी में पड़े रहते। डॉक्टर्स ने कहा था-‘‘बहुत मुश्किल है उनका बचना।’’

तब इन लोगों के पास यह बंगला नहीं था। वे शहर के दूसरे छोर पर सटे-सटे बने घरों में से एक घर में रहते थे। अगाथा एकदम शांत तो थी ही वह यहाँ डरी सहमी भी रहती थी। सबसे ज्Þयादा तो वह अपने पति और उसकी माँ से डरती थी। कभी-कभी पीटर किसी मामूली सी बात पर उसकी पिटाई कर देता। इस सारे व्यवहार में मि. जॉन की माँ का हाथ होता। माँ चाहती थी वह अपने जैसी किसी अमीर घर की लड़की जॉन एफ. पीटर के लिए लाए। जिसके लाए रुपयों से उनका बेटा इस व्यापार को और आगे तक बढ़ा सकें। क्योंकि वह भी बहुत रुपया अपने घर से लाई थी। इस बंगलो की जमीन भी उसके माँ के घर के रुपयों से खरीदी गई थी। जब यह बंगलो बन रहा था तब भी उन लोगों ने इसे बनाने में मदद की थी। टैरेन्स के दादा अपनी पत्नी को बहुत प्यार करते थे। उनका नाम मैरी था। वे उनको मैरी जॉन कहकर पुकारते थे। शायद इसके पीछे मैरी जॉन की पैदाइशी परिवार का शाही ढंग से रहन-सहन का इतिहास रहा हो। मि. ब्रोनी कहते हैं-‘‘लीसा, क्या तुम हम लोगों को गरम पानी में ब्रेंडी पिला सकती हो। शायद इससे विचारों में और तेजी आ जाए और जैसा देखा व सुना वह सब कह सकूं।

बहुत देर तक कमरे में चुप्पी छाई रही। लीसा तीन गिलासों में ब्रेंडी लाई और साथ में प्लेट में काजू। मि. ब्रोनी ने ब्रेंडी का एक घूंट भरा और चार-पांच काजू खाए। लेकिन रॉबर्ट ने सिर्फ ब्रांडी पी क्योंकि काजू में से सीलन की बांसी गंध थी। रॉबर्ट का पीछा यह गंध नहीं छोड़ रही थी जो टैरेन्स के कमरे की अलमारियों से आ रही थी। उसने इन अलमारियों से आती गंध को नाम दिया था ‘‘मृत्यु गंध।’’

टैरेन्स की माँ की मृत्यु किन हालातों में हुई थी, उसे यह जानने की उत्सुकता थी। शायद टैरेन्स को भी न पता हो कि उसकी माँ की मृत्यु और उनके जीवन के बारे में, मि. ब्रोनी नामक कोई व्यक्ति सब कुछ जानता है।

जब लीसा ने बताया कि मि. ब्रोनी इस परिवार के बारे में सब कुछ जानते हैं, तो उसकी उत्सुकता बढ़ गई थी।

टैरेन्स के टूटे-फूटे वाक्यों में कहीं स्पष्टता नहीं थी कि वह अपनी माँ की मृत्यु के बारे में बताए। बल्कि रॉबर्ट को लगता था कि कहीं कुछ अनकहा रह जाता है जो टैरेन्स कहना चाहता है, लेकिन रुक जाता है। रॉबर्ट जानना चाहता है कि आखिर क्या था वह... टैरेन्स का माँ के प्रति मोह... प्यार.. दु:ख। बावजूद टैरेन्स की इस बारे में चुप्पी। वह मित्र के दु:ख को बांट लेना चाहता था। इसलिए सब कुछ जान लेने की उत्सुकता उसे मि. ब्रोनी के समक्ष घसीट लाई थी।

और उसने मि. ब्रोनी से आग्रह किया था कि वे जो कुछ जानते हैं उसे बताएँ। वह टैरेन्स का अभिन्न मित्र है।

‘‘जानते हो रॉबर्ट?’’ मि. ब्रोनी ने कहना शुरू किया। वे एक ही सांस में पूरी ब्रांडी पी गए और खाली गिलास लीसा के आगे बढ़ा दिया। अगाथा की छोटी बहन खासी खूबसूरत है। जॉन एफ पीटर उसकी तारीफ अगाथा के समक्ष करता था और यह भी कि अगाथा न मिली होती तो वह अवश्य उसकी छोटी बहन से शादी करता। वह उस पल को कोसता जब अगाथा से उसकी शादी हो गई थी।

 


अगाथा अपमान में डूब जाती। मि. जॉन एफ पीटर ढेर सारे रुपये अगाथा की माँ को देता, जिससे उनके घर का खर्चा चलता। अगाथा ने देखा था कि उसका पति उसकी छोटी बहन जीनिया को घसीट लेता और उस पर चुंबनों की बौछार कर देता। तब अगाथा की माँ अपनी भेड़ों के साथ नीचे तराई वाले स्थान में होती। और अगाथा अपने उभरे हुए पेट को लिए घर के काम में व्यस्त रहती थी। टैरेन्स होने वाला था। टैरेन्स के आने के पूर्व दो मिसकैरेज अगाथा के हो चुके थे। अत: वह इस बच्चे के समय ज्Þयादा सावधानी बरतती थी। वह न अधिक चलती थी, न भागम-भाग करती थी, जिससे इस शिशु को वह जन्म दे सकें।

अगाथा की माँ को पता था कि उनका दामाद उनकी छोटी बेटी को फंसा चुका है। वह पीटर का स्वभाव जानती थी। यदि वह विरोध करती तो पीटर अगाथा को भी छोड़कर जा सकता था। जबकि अगाथा माँ बनने वाली है, घर में एक नया सदस्य आने वाला है। घर की आर्थिक स्थिति कैसे सम्हलेगी? भेड़ों का झुंड कम होता जा रहा है। कई भेड़ें बूढ़ी हो गई हैं। और कई स्वाभाविक मृत्यु से मर चुकी हैं। किन्हीं-किन्ही भेड़ों को ऐसी बीमारी लग चुकी है कि रात को सोती हैं और सुबह मरी मिलती हैं। जीनिया भी पीटर को बहुत अधिक पसंद करती थी। जॉन एफ. कतई सुंदर नहीं था। उसके चेहरे पर फैली हुई नाक थी और लाल चकत्ते वाली त्वचा थी, जो कहीं-कहीं ब्राउन हो गई थी। वह बहुत हैल्दी था। उसके बाल भी ऐसे ब्राउन थे, जिसमें लालपन ज्Þयादा था। लंबाई-मोटाई दोनों ही उसे अजीबो-गरीब बनाते थे। वह सदैव अपना एक ग्रे कलर का कोट पहने रहता था और वैसा ही ट्राउजर। बहुत अधिक ठंड में वह उसी कोट के नीचे और भी दो स्वेटर पहन लेता था। अगाथा की माँ स्वेटर बुनने का काम भी करती थी। वह मफलर अपने कानों पर कस कर बाँधे रहता। ठंड के अलावा वह हैट लगाता जिसके दोनों ओर से ब्राउन बाल झाँकते रहते। अगाथा का तो माता-पिता द्वारा पसंद किया गया विवाह था लेकिन जीनिया ने उसको कैसे पसंद किया... हँसने लगे मि. ब्रोनी और फिर एक ही साँस में ब्रांडी का गिलास खाली कर दिया, जिसे पहले से लीसा ने भरकर रखा हुआ था। मि. ब्रोनी के किस्से में उलझा रॉबर्ट घूंट-घूंट ब्रांडी पीता रहा। बीच-बीच में मि. ब्रोनी तले सीलन की बास वाले काजू खाते रहे। लीसा ने भी अपना दूसरा गिलास खाली कर दिया था। उसने तीसरा पैग लेने से इंकार कर दिया। मि. ब्रोनी ने अपना और रॉबर्ट का गिलास आगे सरकाया और हँसते हुए कहा- ‘‘लीसा दो पैग से ज्Þयादा पी नहीं पाती, उल्टी कर देती है।’’

फिर वे देर तक हँसते रहे। हँसते हुए ही बताया पहली बार स्टेज पर गई लीसा तो उसने दो पैग ले लिए। अपने डर को भुलाने के लिए। जब स्टेज का डर नहीं भागा तो उसने तीसरा पैग भी ले लिया। जब स्टेज पर उसका रोल नहीं होता था तब वह सीढ़ियों के पास बैठकर उल्टी करती थी। और फिर भागकर स्टेज पर आकर अपना रोल करने लगती। उन दिनों हम लोग शेक्सपीयर का एक नाटक स्टेज पर कर रहे थे। कौन-सा नाटक था लीसा?

...लेकिन लीसा को नाटक का नाम याद नहीं आया। मि. ब्रोनी भी चुप हो गए और धीरे-धीरे काजू कुतरते रहे।

लगा कि बातचीत थम गई है। मि. ब्रोनी की आँखों में लाल डोरे झाँकने लगे थे। उन्होंने अपना बॉटल ग्रीन कोट उतारकर कुर्सी के पीछे टांग दिया। लीसा ने बताया था- ‘‘वे हर समय कोट पहने रहते हैं।’’ कोट के कई हिस्से फट गए थे। जैसे उसकी जेबें, कॉलर उधड़ा हुआ और पीठ पर एक दो छेद। क्या कोई कह सकता है कि यह इंसान स्टेज शो का बेहतरीन निर्देशक कहा जाता है। कोट उतारने के बाद उसमें से आॅफव्हाइट कमीज झाँकने लगी थी, जिसकी बांहों पर कोई लेस लगी थी, जो फट चुकी थी। शायद यह शर्ट कभी सफेद रही होगी। यह उनका प्रिय कोट है। शो के समय व काला कोट, काला पेंट और अंदर रेशमी कमीज पहनते थे और उस पर लाल टाई, और कभी-कभी लाल बो लगाते थे। सुनहरी चेन में लटकी एक घड़ी उनके पॉकेट से लटकती रहती थी। कुल मिलाकर मि. ब्रोनी अपनी टीम के लोकप्रिय नायक थे। पहले वे स्वयं नाटक में हिस्सा लेते थे। बाद में उन्होंने अपनी टीम बना ली। वे स्वयं निर्देशन करते थे। नाटक में संगीत और बाजों का प्रबंध भी उनके निर्देशन के अनुसार होता था। लीसा ने बताया था कि वे लंदन से छत्तीस मील दूर किसी गांव में रहते थे। छै: सीटर वाली एक गाड़ी उनके पास थी, जिसे 2 घोड़े चलाते थे। उसमें ही हम लोग सफर करते हैं। गाड़ी को चलाने के लिए एक ड्राइवर रखा गया है। अक्सर इसी बंगले पर वे नाटक का रिहर्सल करते रहे हैं। हम पूरे ब्रिटेन में घूमते रहते हैं।

‘‘माफ करना मि. रॉबर्ट।’’ बहुत देर की चुप्पी के बाद मि. ब्रोनी बोले। ‘‘बहुत कुछ बताना है शायद एक रात भी कम पड़ जाए।’’

एक शाम अगाथा ने अपनी माँ से पूछा- ‘‘माँ, तुम सब कुछ जानती हो फिर जी़निया को मना क्यों नहीं करतीं। तुम्हारे अनुसार जी़निया सुंदर है, घरेलू कामों में भी काफी अच्छी है। उसे तो कोई भी लड़का पसंद कर लेगा। मेरा घर क्यों टूटे?’’

माँ काफी देर चुप रही थीं। फिर बोलीं-‘‘तुम ठीक कहती हो। लेकिन किसी इंसान को पूर्णतया समझ जाने की उम्र से तुम छोटी हो। तुम्हारा पति जॉन तुम्हें क्यों पसंद नहीं करता, यह तो मैं नहीं जानती। लेकिन, अगर हमने विरोध किया तो निश्चय ही तुम जी़निया और मैं, आने वाला नया मेहमान (उन्होंने उसके पेट की ओर देखते हुए कहा) भारी मुसीबत में पड़ जाएंगे। जॉन हमें छोड़कर चला जाएगा।

‘‘तो तुम चुप रहोगी माँ?’’ अगाथा ने पूछा।

वहाँ ऐसी खामोशी छा गई, मानो कमरे में कोई है ही नहीं। एक सच सामने से उन दोनों के बीच छोटी-सी जगह से गुजर चुका था। अब उन दोनों के बीच में सिर्फ यथार्थ था। या यूं कहें सिर्फ वर्तमान और भविष्य था। एक ‘आह’ भरकर अगाथा उठ गई। माँ गुमसुम बैठी रह गईं। बहुत देर बाद वे किचिन में गईं और अगाथा को आवाज लगाई-‘‘अगाथा यह दूध पी लो। जानती हूँ तुम मना करोगी। लेकिन यह नन्हें मेहमान के लिए जरूरी है।