Ishq a Bismil - 46 books and stories free download online pdf in Hindi

इश्क़ ए बिस्मिल - 46

लगभग एक घंटा वह वैसे ही बैठा रहा था।
बिल्कुल खामोश, विरान सा।
ज़मान ख़ान भी उसे छोड़ कर कहीं जाने को तय्यार नहीं थे।
वह उठा था और बिना एक लफ्ज़ कहे कमरे से जा रहा था। ज़मान साहब ने उस से बेचैन होकर पूछा था।
“कहाँ जा रहे हो उमैर?” इस सवाल पर उसके बढ़ते क़दम थमे थे मगर वह मुड़ा नहीं था।
“घबराए नहीं। मैं मरने नहीं जा रहा।“ उसकी इस बात पे ज़मान खान तड़प गए थे। उनका जवान बेटा इस क़दर टूट चुका था। उन्हें बिल्कुल अंदाज़ा नहीं था की ज़िंदगी में कभी ऐसा भी मोड़ आएगा। वह इस बात से ला इल्म थे की उनके बेटे की भी कोई पसंद है जिस से वह शादी का इरादा रखता था। असल में जिस situation में अरीज उन्हें मिली थी, उस situation में वह हर हाल में वही करते जो उन्होंने किया था। क्योंकि उनके पास दूसरा कोई option ही नहीं था। उन्हें लगता था शादी से पहले अक्सर लोग राज़ी नहीं होते लेकिन शादी हो जाने के बाद सब ठीक हो जाता है, और अरीज इतनी अच्छी थी के वह किसी का भी दिल जीत सकती थी। सीरत के साथ साथ सूरत भी थी उसके पास। एक खूबसूरत और खुबसीरात बीवी का साथ कौन नहीं चाहता है। मगर हक़ीक़त उनकी सोच से बिल्कुल उल्टा निकला था। उमैर इतना कह कर रुका नहीं था वह कमरे से चला गया था और ज़मान खान उसे जाते देखते रह गए थे।
वह सिर्फ़ कमरे से नहीं बल्कि घर से भी चला गया था। सड़कों पर यूँही कितनी देर बेमक़सद चलता रहा था। तेज़ धूप ने उसके चेहरे को सुर्ख कर दिया था। लंदन में अपनी तालीम के दौरान वह फिटनेस के इरादे से जॉगिंग और वॉकिंग कई देर तक करता था मगर हिंदुस्तान की दोपहर की इस तेज़ कड़ी धूप में वह शायद पहली दफा पैदल चल रहा था। मगर उसे ना तपती धूप की फ़िक्र थी और ना ही धूप में जलते अपने जिस्म की। ये सारी तकलीफ़ें उन सारी अज़ीयत से बोहत कम थी जो वह अपने अंदर अपने दिल ओ दिमाग़ में झेल रहा था।
वह कोलकाता की सड़कों की भीड़ में चल रहा था की शायद उसके दिल ओ दिमाग़ की बेसुकुनी कहीं पीछे छुट जायेगी मगर ऐसा मुमकिन कहाँ था? ये बेसुकुनी ये ज़िल्लत तो जैसे उसके वजूद से चिमट गया था। यूँही दो घंटे बेमक़सद चलने के बाद वह एक अपार्टमेंट में गया था और उस अपार्टमेंट की सेकेंड फ्लोर के एक फ्लैट की डोर बेल बजाई थी। उसे वहाँ पे खड़े हुए दो मिनट से ज़्यादा हो गए थे फ़िर भी उसने दोबारा डोर बेल नहीं बजाई थी। वह वैसे ही थका हारा खड़ा रहा। तभी दरवाज़ा खुला था।
उसके सामने शॉर्ट्स और कैमिसोल पहने सनम खड़ी थी।
“तुम? What a pleasant surprise मेरी जान? कैसे आना हुआ तुम्हारा हमारी कुतिया में?” वह उसे मज़ाक में छेड़ रही थी। बदले में उमैर ने उसे कोई जवाब नहीं दिया था वह काफी संजीदा दिखाई दे रहा था। सनम उसे देख कर अब परेशान हो गई थी।
“तुम ठीक तो हो? कैसी हाल बना रखी है तुमने अपनी?... बोहत थके हुए लग रहे हो.... आओ यहाँ बैठो मैं तुम्हारे लिए पानी लाती हूँ।“ वह उसे हॉल में रखे सोफे पर बैठा कर किचन गई थी। और यहाँ उमैर सोफे पर आड़ा तिर्छ होकर जैसे ढह सा गया था। जब सनम पानी लेकर उसके पास वापस आई तब वह आँखें बंद किए सो रहा था।
आज Saturday था... सनम घर पे थी क्योंकि आज उसके ऑफिस की छुट्टी थी। उमैर का इस हाल में उसके फ्लैट में आना उसे बोहत परेशान कर गया था। उमैर ने ब्लू जीन्स के उपर लाइट ग्रे कलर की शर्ट पहन रखी थी जो पसीने की वजह से पूरा भीगा हुआ था। उसकी शेव भी बढ़ी हुई थी। सनम को उसकी हालत देख कर जो समझ में आ रहा था वह उसे समझना नहीं चाहती थी। वह बस सब कुछ सही होने की दुआ कर रही थी और वह कर भी क्या सकती थी?
दो घंटे के बाद उसकी आँखें खुली थी। पूरा हॉल निम अंधेरों में डुबा हुआ था। उसने सीधे उठ कर देखा सनम उसे हॉल में कहीं दिखाई नहीं दी। वह वहीं पे बैठा रहा। सनम को ढूँढने के लिए उसने उसके रूम मे जाने की ज़हमत नहीं की थी.... तभी बहरी दरवाज़ा के लॉक को खोलने की आवाज़ आई थी। उसने देखा सनम बाहर से अंदर आ रही थी हाथ में कुछ पॉलीथीन के शॉपेर्स थे। वह मुस्कुराती हुई उसके पास आई थी और उसने वह शॉपेर्स सोफा के सामने लगे सेंटर टेबल के उपर रख दी थी।
“चलो जल्दी से उठो और मूंह हाथ धोकर फ्रेश हो जाओ। बोहत ज़ोरों की भूख लगी है।“ वह कहती हुई हॉल से लगे हुए किचन में घुस गई थी और वहाँ से प्लेट्स, बोल्स, स्पून्स और forks लेकर बाहर आई थी। उन्हें टेबल पर रख कर वह वापस से किचन में गई थी और fridge से पानी की बोतल और ग्लैसेस लेकर आई थी। वह हैरान रह गई थी उमैर अभी तक उसी position में बैठा हुआ था।
“तुम अभी तक बैठे हो... जल्दी करो... “ उसने उसे उठाने की कोशिश की मगर उमैर ने उसका हाथ अपने बाज़ु से हटा दिया था। “मुझे सिर्फ़ कॉफी चाहिए.... हो सके तो वो दे दो।“ वह फ़िर से सोफे पर लेट गया था और अब चुप चाप सीलिंग तके जा रहा था।
सनम उस से हार कर वापस से किचन गई थी और थोड़ी देर बाद उसके लिए कॉफी बना कर ले आई थी।
“कॉफी!” सनम के कहने पर वह अपनी गहरी सोच से बाहर निकला था और उठ कर बैठ गया था।
सनम उसके हाथ मे कॉफी थमा कर उसके बगल में सोफे पर बैठ गई थी और शॉपेर्स से खाना निकाल कर प्लेट्स और बोल्स में डाल रही थी।
उमैर ने जैसे ही कॉफी का एक सिप लिया। उसके कानों में किसी की आवाज़ गूंजी।
“मैं यहाँ वॉक कर रही थी फिर आपको सोए हुए देखा तो आपके लिए कॉफी बना कर ले आई” उसे कुछ याद आया था।
“बोलो क्यों लाई थी.... मैं क्या तुम्हारे सपने में आया था तुम से कॉफी मांगने?” उसे अपनी ही कही हुई बात याद आई थी।
उस से कॉफी का दूसरा सिप लिया नहीं गया था। उसने कॉफी का मग सेंटर टेबल पर रख दिया था। इसकी इस हरकत पर सनम ने उसे ना समझी में देखा था।
“क्या हुआ?... कॉफी अच्छी नहीं बनी?... “ वह पूछे बग़ैर नहीं रह पाई थी।
“नहीं...अच्छी है... लेकिन मुझे अब चाय चाहिए।“ वह कह कर सोफे की बैक से टेक लगा कर उसने अपने जिस्म को ढीला छोड़ दिया। और सनम उसकी इस बात पर उसे हैरानी से देखती रह गई।
ज़िंदगी ने एक ये भी तजुर्बा किया है की हमें जो सबसे ज़्यादा पसंद होता है वह हमारे दिल में रहता है और जो सबसे ज़्यादा ना पसन्द उसका बसेरा हमारे दिमाग़ में होता है। दिल और दिमाग़...ज़िंदगी की इन्ही छोटी छोटी बारीकियों से एक दूसरे से जुदा होते है।
अरीज उमैर की ना पसंदीदा शख्सियत होते हुए भी उसके दिमाग़ पर हर वक़्त छाई हुई रहती है।
क्या अरीज उमैर के दिमाग़ से निकल कर कभी दिल तक पहुंच पाएगी?...
मगर दिल में तो सनम है?
उसका क्या होगा?
उमैर की ज़िंदगी अब क्या नया रुख बदलेगी?
सनम उमैर के इस बदले हुए बर्ताव को कैसे बर्दाश्त करेगी?
जानने के लिए बने रहें मेरे साथ और पढ़ते रहें इश्क़ ए बिस्मिल