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अग्निजा - 77

प्रकरण-77

कुछ देर बाद थोड़ी शांत होने के बाद केतकीने भावना की तरफ देखा। अपने दोनों हाथ उसके गालों पर रखकर याचना के स्वरों में कहा, “भावना, मुजे अकेला मत छोड़ना...हमेशा मेरे साथ रहना वरना शायद मैं...”

केतकी बहन ऐसे खराब विचार अपने दिमाग से निकाल डालो। मैं सांस लेना छोड़ सकती हूं, अपनी जान छोड़ सकती हूं, पर तुमको कैसे छोड़ सकती हूं भला ?

“मुझे कुछ भी हो जाये, तो भी नहीं छोड़ोगी न?”

“अरे होना क्या है तुमको? और यदि कुछ हो भी जाये तो तुम मेरी बड़ी बहन हो, यह सच तो रहने वाला ही है न ? लेकिन तुम्हारे इस तरह का संदेह जताने पर मुझे दुःख हुआ। मैं भले ही छोटी हूं, पर इसकी सजा दिए बिना मानूंगी नहीं। सजा दूं? ”

केतकी ने बड़े यत्नपूर्वक अपने बहते हुए आंसुओं को रोका और बोली, “तुम यदि इसी तरह मेरे साथ हमेशा रहोगी और इसी तरह प्रेम करती रहोगी तो मुझे तुम्हारी कोई भी सजा मंजूर है। कहो, क्या सजा है....”

“सजा यह है कि ये दोसे सूख जाएं इससे पहले एक टुकड़ा मुझे खिलाओ, और फिर मैं तुम्हें खिलाऊंगी। ” दोनों बहनें एकदूसरे को इडली-दोसे का नहीं, प्रेम का ग्रास खिला रही थीं। खाने के बाद भावना ने केतकी की ओढ़नी से अपने हाथ पोछे, “अब जरा ताकत आई लड़ाई करने के लिए.. अब बोलो...पिछले कुछ दिनों से तुम्हारा ये सब क्या चल रहा है?” बिना कुछ कहे केतकी ने अपने सिर पर बंधा हुआ स्कार्फ हटा दिया। उसके सिर से पतले हो चुके बालों को देखकर भावना को झटका लगा। “ये क्या हुआ...किस कारण?”

केतकी ने विस्तारपूर्वक उसे सबकुछ बता दिया। भावना ने रुंआसे चेहरे से, लेकिन गुस्से में चिल्लाकर पूछा, “इतना सबकुछ हो गया, और तुमने किसी को कुछ नहीं बताया? मुझे भी नहीं..”

“पहले ऐसा लगा कि ठीक हो जाएगा। दवाई शुरू कि लेकिन कोई फायदा ही नहीं हुआ। बाल इतने पतले हो गए हैं कि किसी को भी सिर दिखाने में शर्म आती है।”

“अब शर्माना छोडकर किसी बड़े डॉक्टर को दिखाएंगे। हरेक बीमारी पर दवा होती ही है। सबकुछ ठीक हो जाएगा, जल्दी ही। लेकिन ठीक होने में एक परेशानी है।”

“कौन सी परेशानी?” केतकी के स्वर में चिंता थी।

“मैंने कहीं पढ़ा है कि बालों का संबंध सीधे ओठों से होता है, इस लिए हंसने से ओठों की मांसपेशियों की कसरत होती है और खून सीधे बालों की जड़ों तक पहुंचता है और बाल मजबूत होने में मदद मिलती है। यदि तुम हंसोगी, तो ठीक होगा...” केतकी खिलखिलाकर हंसने लगी। दोनों बहनों के चेहरे पर हंसी और आंखों में आंसू थे।

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एक दिन जीतू अचानक टपक पड़ा। केतकी के सिर पर स्कार्फ बंधा देखकर वह हंसने लगा। केतकी कुछ नहीं बोली। भावना ने ही बताया, “दीदी को ठंड लग रही है और सिर भी दुख रहा है इस लिए स्कार्फ बांधा है।”

जीतू ने उसकी तबीयत के बारे में पूछताछ या फिर कोई चिंता न दिखाते मुंह बिचका दिया, “मैंने कितनी ही बार इसको बताया है कि बाल खुले मत रखो और बेकार ही लड़कों के आकर्षण का केंद्र मत बनो। लेकिन मेरा सुनता कौन है..ये अच्छा हुआ। अब हमेशा ही स्कार्फ बांध कर रहा करो...ठीक है...?”

केतकी को बहुत गुस्सा आया, ‘इस आदमी को किसी के प्रति भी जरा सी सहानुभूति नहीं?, चिंता नहीं? जाने दो, मुझे कौन-सा इसके साथ अपना जीवन गुजारना है, निश्चित ही मैं दूसरी यशोदा बनकर तो रहने वाली नहीं। कभी भी नहीं।’

मां को केतकी की चिंता करते हुए देखकर भावना से रहा नहीं गया। उसने केतकी की बीमारी के बारे में यशोदा को बता ही दिया। केतकी के बारे में सलाह लेने के लिए भावना, उपाध्याय मैडम और तारिका से मिली। साथ ही अलग-अलग तरीके की दवाइयां शुरू की गईं। एक डॉक्टर ने सलाह दी, “विग लगाना शुरू करें, इससे बाल जाने का टेंशन नहीं रहेगा। बाहर निकलते समय दुविधा नहीं होगी। इलाज से बाल लौटते तक विग लगाती रहें।” भावना ने बड़ी जिद की तो केतकी ने दस हजार रुपए खर्च करके विग बनवा लिया लेकिन वह विग उसे सहन नहीं हो रहा था। उसे लगाकर इधर-उधर जाने में सहज नहीं लग रहा था। सिर पर बोझ लग रहा था। एक बार भावना के कहने पर केतकी विग लगाकर बाहर निकली, लेकिन उसे चलने में परेशानी हो रही थी। एक लड़की का धोखे से धक्का लगा और केतकी लड़खड़ा गई। इतने छोटे से धक्के से ही विग नीचे गिर गया। आते-जाते लोग यह देखकर हंसने लगे। उनके लिए यह मनोरंजन था। केतकी ने जैसे-तैसे वह विग उठाया और वहां से भागती हुई निकल गई। जाते-जाते उसने वह विग नाली में फेंक दिया।

यशोदा बड़ी चिंता में पड़ गई। गंजेपन की बीमारी से बाल पूरी तरह निकल जाते हैं, यह तो उसे मालूम था। इससे शारीरिक वेदना नहीं होती, लेकिन मानसिक वेदना का क्या? उसके मायके में, पड़ोस के एक गांव की लड़की को यह बीमारी हुई तो उसके सगे मां-बाप ने उसे गाय के गोठे में रख दिया था। दो-चार बार उस लड़की ने बाहर निकलने की कोशिश की तो गांववालों ने उसे पागल समझकर गांव से बाहर निकाल दिया। उसके बाद वह कहां गई, कौन जाने, लेकिन फिर वापस गांव में दिखाई नहीं दी। मां-बाप ने भी अपनी लाड़ली को खोजने की कोशिश नहीं की। बाल न होने के कारण मानो स्त्री का अस्तित्व ही अस्वीकार्य हो जाता है। वह मानो अपशकुनी हो।

यशोदा सबसे छुप कर किसी से बात करती रहती और इस पर कोई दवा, कोई इलाज हो तो उसके बारे में पूछती रहती थी। किसी ने बताया था कि मेथी की पाउडर रोज रात को दस दिनों तक सिर पर फैलाकर रखो और सुबह सिर धो डालो। गंजापन दूर हो जाएगा। यशोदा बुरा न मान जाए, इस लिए केतकी ने वह उपाय भी किया। लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा। एक बुजुर्ग गांधीवादी स्त्री ने बताया, “तीन दिन पुराना स्वमूत्र सिर पर लगाकर देखें। एक सप्ताह में बाल लौट आएंगे।” मां का मन रखने के लिए केतकी यह भी करने के लिए तैयार हो गई,लेकिन उसे वैसा करने की इच्छा हुई ही नहीं। दुर्गन्ध से उसे उल्टियां होने लगीं। उसके लिए अहमदाबाद से दवाइयां आईं और पुणे से भी। लेकिन किसी का भी कोई परिणाम नहीं मिल रहा था। एक आयुर्वेदिक डॉक्टर से मिलने के लिए तो वह मुंबई तक चली गयी थी। एक अतिहोशियार आदमी ने तो उसके मुंह पर यहां तक कह दिया, “दीदी, आप बड़ी धीरज  और हिम्मतवाली हैं, जो यहां तक आ गयीं। इस बीमारी के कारण तो कितने ही लोग निराशा में डूब जाते हैं और कितने तो आत्महत्या भी कर लेते हैं। ” उस मुंहफट और अतिहोशियार आयुर्वेदाचार्य की दवाई से कोई फायदा नहीं हुआ।

एक बड़े हेयरस्पेशलिस्ट से मिली। उनका बड़ा नाम था। उनका विज्ञापन नियमित रूप से समाचार पत्रों में आता था। उसमें कितने ही रोगियों के सिर के बाल जाने और वापस आने के फोटो छपे रहते थे। यशोदा और भावना को लगा कि यह आदमी अवश्य ही अच्छा इलाज करेगा।

अनुवादक: यामिनी रामपल्लीवार

© प्रफुल शाह

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