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अग्निजा - 81

प्रकरण-81

डॉक्टर ने वही रेशमी डोर फिर से खींची, और वही लड़का दोबारा अंदर आ गया। एक प्लेट में गुड़ और साथ में पानी के तीन गिलास लेकर आया था।

“मन हल्का हो गया। अब पानी पीकर शरीर को शांत करें। मुंह मीठा करें फिर हम शुभ कार्य की शुरुआत करेंगे।”

तीनों ने पानी पीया। पानी फ्रिज का नहीं था, फिर भी उसे पीने के बाद तीनों को ठंडा महसूस हुआ। गुड़ भी स्वादिष्ट और अलग ही था। “केमिकल फ्री शुद्ध गुड़ है यह। काली मिट्टी के मटके का पानी है। केतकी बहन पसंद आया कि नहीं?”

केतकी कुछ उत्तर देती इसके पहले ही डॉक्टर ने फिर से एक बार अपनी आंखें बंद कर लीं। करीब दो मिनट तक उनके होंठ हिलते रहे। वह क्या बोल रहे थे ये तो सुनाई नहीं दे रहा था लेकिन वह किसी देवता का नामस्मरण कर रहे होंगे, ऐसा लग रहा था। आखिर में उन्होंने तेज आवाज में ‘ओम निसर्गदेवताय नमः’ कहा और वह उठे। चार अगरबत्तियां जला कर प्रकृति के चित्र के समक्ष रख दीं। पूरा कमरा सुगंध से भर गया। डॉक्टर अपनी कुर्सी पर आकर बैठ गये। “मैं केवल एक ही शर्त पर इलाज करता हूं।”

भावना पहली बार बोली, “कबूल है सर।”

“आपकी बहन बड़ी संवेदनशील है।”

केतकी ने हंस कर पूछा, “कौन सी शर्त?”

“विश्वास रखें। लेकिन मुझ पर नहीं, अपने आप पर। विश्वास रख कर इलाज करवाएं। इससे मुझे फायदा होगा, यह विश्वास मन में रखें। ऐसा करने वाली होंगी, तो ही इलाज करूंगा।”

“हां डॉक्टर साहब, मैं विश्वास रखूंगी। एकदम प़ॉजटिव रहूंगी।”

“बढ़िया. और दवा एकदम समय पर लीजिए। दवा बरबाद करना पाप है। दवा यानी प्रकृति का खजाना है। उसका सदुपयोग होना चाहिए, ठीक है कि नहीं दीदी?”

“ठीक है, दस दिनों की दवा देता हूं। सुबह-शाम एक-एक पुड़िया ठंडे दूध के साथ लेनी है। ठंडा यानी फ्रिज का नहीं। इस दवा को लेने से पहले आधा घंटा और लेने के बाद एक घंटे को कुछ भी खाना नहीं है। ”

भावना ने मजाक में पूछा, “सर, क्या-क्या नहीं खाना है?”

“बहुत सी बातें ध्यान में रखनी हैं। ये बातें दवा से भी अधिक महत्वपूर्ण हैं। गुस्सा नहीं करना है, नाराज नहीं रहना है, चिड़चिड़ नहीं करनी है. जो मन में आए वो करें। मन की मानें। शरीर को दुलारें। उसको मनाएं। उससे प्यार करें। मेरी बात समझ में न आई हो तो एक उदाहरण देता हूं। मान लीजिए बहुत ठंड है, और ऊपर से पानी भी गिर रहा हो...और मन कह रहा हो कि आइसक्रीम खाना है, तो खाइए। मन को मारिए मत। कहिए, कर पाएंगी ऐसा? ”

केतकी हामी भरते हुए मुस्कराई, लेकिन भावना बोली, “करेगी, करेगी...क्यों नहीं कर पाएगी...? उसके मन की बात उससे पहले मुझे पता चल जाती है। दीदी का काम बस दवा लेना है। बाकी सब उससे करवाना मेरी जिम्मेदारी। ”

डॉक्टर ने खुश होकर अपने टेबल के दराज से दो-तीन बॉक्स निकाले। उसमें से बीस पुड़िया निकाल दींष “रोज दो पुड़िया। और एक बात, यदि आपको आर्थिक दृष्टि से संभव हो तो इन दवाओं के दस हजार रुपए दें। न हों तो अपनी मुलाकात हुई इस बात के लिए ईश्वर का धन्यवाद मानें। ”

प्रसन्न पहली बार बोला, “कोई परेशानी नहीं, लेकिन कल दे दें तो? या फिर कल पैसे देने के बाद दवा ले जाएंगे।” बिना कुछ कहे डॉक्टर ने दूसरा दराज खोला। उसमें से एक पैकेट निकाला और प्रसन्न के हाथ में दे दिया। प्रसन्न ने उसे खोल कर देखा तो, उसमें एक हस्ताक्षर किया हुआ दस हजार रुपए का कोरा चेक था। उसने आश्चर्य से डॉक्टर की तरफ देखा। “मेरा एक तरीका है। तीन महीनों के इलाज के बाद यदि कोई फायदा न हुआ तो, मैं पैसे वापस कर देता हूं। ये चेक आप घर ले जाएं। दस हजार कल लाकर देंगे तो भी चलेगा।”

तीनों ही आश्चर्य और खुशी के साथ डॉक्टर की तरफ देखते रहे। बाहर निकले तब केतकी और भावना बहुत प्रसन्न थीं। भावना ने अति आनंद में प्रसन्न का हाथ पकड़ लिया, “थैंक यू वेरी मच। आपके कारण एक औलिया से भेंट हो गई और केतकी बहन की समस्या का अंत पास आ गया। ” उत्तर देने की बजाय प्रसन्न ने रिक्शा बुलाया। रिक्शे में बैठते साथ भावना ने केतकी के कंधे पर सिर रख दिया, “ओके, मन भाई, आपका मन दक्खन सेंटर, दक्खन सेंटर कर रहा है, ठीक है न?” तीनों हंस पड़े।

उस रात को केतकी ने दवा की पहली पुड़िया दूध के साथ ली, और बाल वापस आऩे की खुशी में ही शांति से सो गई।

सुबह उसकी नींद बाकी दिनों की अपेक्षा जल्दी खुली। उसका चेहरा ताजातरीन लग रहा था। ब्रश करने के बाद वह भावना के साथ नाश्ता करने बैठी। उसका रोज का नाश्ता लगभग तय ही था। रात की बची हुई दो बासी रोटियां, अचार और चाय। बालों की परेशानी शुरू होने के बाद से तो वह सुबह का नाश्ता करना ही भूल चुकी थी। बहुत हुआ तो एकाध रोटी खा लेती थी। लेकिन आज तो उसने दो खत्म करके तीसरी भी ली। भावना देखती रह गई। केतकी ने खुशी में तीसरी रोटी भी खत्म कर दी और जब वह चौथी रोटी में से आधी ले रही थी तो भावना ने बची हुई आधी भी उसकी थाली में रख दी। भावना ही नहीं, केतकी को भी इस बात पर आश्चर्य हुआ कि आज उसने चार रोटियां खा लीं? यह देख कर केतकी से अधिक भावना को आनंद हुआ। ‘वाह, केतकी बहन के मन पर बहुत सकारात्मक असर हुआ है। मुजे प्रसन्न को एक बार फिर से धन्यवाद देना होगा।’ केतकी जल्दी से तैयार हुई। इतना सारा नाश्ता कर लेने के बाद आज वह खाना नहीं खा पाएगी, ऐसा सोच रही थी लेकिन यह बात झूठी ठहरी। खाना उसने ठीक से खाया। बाकी दिनों से थोड़ा अधिक ही। यह देख कर यशोदा को बड़ी खुशी हुई।

शाला में तीसरे पीरियड के समय केतकी छोटे बच्चों की तरह रिसेस की प्रतीक्षा करने लगी कि कब छुट्टी हो और वह खाना खाए। रिसेस में उसकी ध्यान में आया कि तारिका आज भी कहीं दिखाई नहीं दे रही है। इधर वह रिसेस में किसी से मिलने के बहाने या फिर लाइब्रेरी में जाने की बात कह कर निकल जाती थी। केतकी को लगा कि वह वास्तव में काम में व्यस्त रहती है। उसकी मदद करनी चाहिए। फटाफट अपना टिफिन खत्म करके वह तारिका को देखने के लिए स्टाफरूम से बाहर निकली। उसने देखा तारिका अपनी ही कक्षा में बैठी है। वह अपने टिफिन में से पोहे खा रही थी। केतकी ने यह सब दूर से ही देखा और विचारों में खो गई। उसको याद आया कि कई बार तारिका उसे शाला में आने से पहले ही फोन करके बता देती थी कि आज टिफिन मत लाना। आज पोहे बनाए हैं, तुम्हारे लिए भी लेकर आऊंगी। फिर आज? होगी कोई उसकी समस्या, लेकिन वह मुझसे क्यों नहीं कहती? बताएगी आराम से, मैंने भी कहां अपने बालों की समस्या के बारे में खुद होकर सबको बताया था?

केतकी सुबह-शाम नियमित रूप से दवा की पुड़िया ले रही थी। उत्साह में रहने लगी थी। अच्छे से खाने-पीने लगी थी। ऐसा करते-करते छह दिन कब निकल गए, पता ही नहीं चला। उसे ध्यान में आया कि आज सातवां दिन है। उसने भावना को बुला कर पूछा, “मेरे सिर पर देखो, कोई फरक दिख रहा है क्या...या पहले जैसों की तरह ये भी निरुपयोगी साबित हुआ?”

अनुवादक: यामिनी रामपल्लीवार

© प्रफुल शाह

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