Kouff ki wo raat - 1 in Hindi Horror Stories by Vaidehi Vaishnav Vatika books and stories PDF | ख़ौफ़ की वो रात (भाग-1)

ख़ौफ़ की वो रात (भाग-1)

घोर काली अंधियारी रात...दूर -दूर तक रोशनी का बिंदु तक नज़र नहीं आ रहा। रात मानो काले सागर सी चारों ओर लहरा रही हो , उस पर सांय - सांय करती हवा का शोर और शोर से खड़कते सूखे पत्ते बदन में कपकपी पैदा कर रहे थे। हर कदम पर ख़ौफ़ औऱ जान का ख़तरा बरकरार था।

मन कौस रहा था उस पल को जब वह कॉल आया था कि जल्दी मुझसें मिलने आ जाओ , कुछ बहुत जरूरी बात बतानी है।

उत्सुकता भी लालच से कम नही होती। हम निकल पड़ते है बिना सोचे - समझे महज यह जानने के लिए कि आखिर माजरा क्या है .?
भले ही खोदो पहाड़ निकले चुहिया पर हम तो ऐसे मशक्कत करने लगते है जैसे किसी ने खजाने का पता बता दिया हो। पर आज यदि आकाशवाणी भी मुझसें कहे कि इस घने जंगल में खजाना गड़ा हुआ है तो भी मैं कहूंगा कि कृपया खजाने की बजाय यहाँ से बाहर जाने का रास्ता बताएं।

मन को स्थिर रखने के लिए हास्य - विनोद , तर्क - वितर्क सब व्यर्थ लग रहें थे। बस एक रस से मन भर रहा था और वो है भयानक रस। जहन में डरावनी आवाजों का शोर सुनाई दे रहा था जो वास्तव में आ ही नहीं रही थी। मन जब भयभीत होता है तभी सारी भूतिया फिल्मों के सीन याद आने लगते है ,जो मन को और अधिक ख़ौफ़ज़दा कर देते है।

मैं अपनी उधेड़बुन में बेतहाशा भागे जा रहा था तभी मुझसें कुछ टकराया...मैं जोर से चीख़ पड़ा।

कुछ तो था शायद कोई जानवर या फिर भूत....
भूत के ख्याल से ही मेरे दौड़ने की गति तेज़ हो गई मानो पैर में पहिये लग गए।

बिना मंजिल और रास्तों के यहाँ -वहाँ भटकता हुआ मैं बहुत थक गया। अंधेरे में कुछ सूझ भी नहीं रहा था। मैं एक बड़े से पेड़ के तने से टिक कर बैठ गया। मैंने बेग से पानी की बॉटल निकाली । पानी खत्म हो गया था। बॉटल के पेंदे में चुल्लू भर पानी बचा होगा। विचार तो आया कि इसी में डूबकर मर जाना चाहिए इस खतरनाक जंगल मे भूतों के हाथों मरने से तो अच्छा यही उपाय है।

पर इंसान आखिरी सांस तक भी जीने की चाह कहाँ छोड़ता है। मैंने बॉटल में बचे एक - दो घुट पानी को पीकर ही अपनी प्यास बुझाई। मोबाइल की बैटरी भी डाउन थी। पता होता ऐसी मुसीबत में फंस जाऊंगा तो कभी गाने नहीं सुनता।

मोबाईल की मद्धम रौशनी में मुझें अपने सामने कुछ दिखा । लगा जैसे कोई उल्टा लटका हुआ है और जिसके बाल जमीन को छू रहें है। जान हलक में आ गई। मैंने कसकर अपनी आँखें मिच ली।

भगवान को न मानने वाला मैं तेज़ आवाज़ में हनुमान चालीसा पढ़ने लगा -

"भूत पिशाच निकट नहीं आवे , महावीर जब नाम सुनावै ।"

मन मे सकारात्मक ऊर्जा का संचार हुआ और हिम्मत भी आ गई। मैंने आँखे खोली.. मोबाइल की मद्धम रौशनी में सामने देखा तो बरगद की जड़ हवा में लहराती हुई दिखी। जान में जान आई। मैंने राहत की सांस ली। राहत कुछ पल की ही थी। मैंने देखा दूर दो चमकीली आँखे मुझें देख रही है। बस आँखे ही दिखाई दे रही थी। ये भी पहचान पाना मुश्किल था कि यह आँखे इंसान की है या हैवान की ? बड़ी भयानक आँखे लग रही थीं। मैं पैर को सिर पर रखकर वहाँ से भागा।

शेष अगलें भाग में...


किसकी थी वो दो चमकीली आंखे..? जानने के लिए कहानी के साथ बनें रहे।


धन्यवाद


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Megha

Megha 4 months ago

Sushma Kumari

Sushma Kumari 4 months ago

Jyoti thakur

Jyoti thakur 5 months ago

Puri story kha ha 🤨

Amit Singh Chauhan