Kouff ki wo raat - 5 in Hindi Horror Stories by Vaidehi Vaishnav Vatika books and stories PDF | ख़ौफ़ की वो रात (भाग-5)

ख़ौफ़ की वो रात (भाग-5)

अब तक आपने पढ़ा राहुल जंगल की ओर चल पड़ता है जहां उसका सामना भूतिया मुड़िया से हो जाता है।

अब आगें...

महिला ने अपना एक हाथ आगे बढ़ाया। जैसे-जैसे हाथ आगे बढ़ता उसकी लम्बाई भी बढ़ती जाती। हाथ राहुल के गले तक आया । राहुल हिल पाने में भी असमर्थ था जैसे वह जम गया हो , जैसे किसी ने उसे कसकर बांध दिया हो। हाथ गले तक आया लेकिन गले के पास आते ही हाथ ऐसे थर्राया जैसे बिजली का झटका लग गया हो। हाथ तेज़ी से पीछे चला गया और उसी के साथ वह आकृति भी जो कुँए की मुँडेर पर खड़ी थीं।

राहुल अचरज में पड़ गया। उसे लगा जैसे किसी ने उसके सारे बंधन खोल दिये। उसने अपने दोनों हाथों को गर्दन पर लगाया तो उसके हाथ मे बजरंगबली के मंदिर का धागा आया जिसे उसकी माँ ने यह कहकर पहनाया था कि बेटा भले तू भगवान को नहीं मानता पर फिर भी उनके लिए सब उनकी संतान ही है कभी तू किसी मुसीबत में होगा तो वह तुम्हारी रक्षा करेंगे।

राहत की सांस लेकर आँख बन्दकर के राहुल ने पूर्ण आस्था से भगवान को धन्यवाद दिया। आज वह भूत औऱ भगवान दोनों में यकीन कर रहा था।

मुड़िया को इस तरह देखकर अब घर जाना राहुल को ठीक नहीं लगा। कैसे भी कर के इस जंगल से निकल जाऊं या फिर यह काली ख़ौफ़नाक रात बीत जाएं - राहुल के ये दो ही मुख्य लक्ष्य थे।

राहुल को गले मे पड़ी सोने की चेन से कीमती वह सूत का धागा लग रहा था जिसकी वजह से वह इस भयावह जंगल मे अब तक जिंदा खड़ा है। उसी के भरोसे उसे यह विश्वास था कि वह इस जंगल से सुरक्षित निकल जाएगा।

अचानक राहुल को गौरव का ख्याल आया। वह बातों को रिकॉल करने लगा। मेरी गौरव से कल रात को बात हुई उसने मुझें बताया था कि सुबह जल्दी निकल जाना क्योंकि यहाँ सिर्फ़ एक ही बस आती है। मैंने जब गौरव से वापसी के साधन का पूछा था तब उसने बताया था कि जो बस आती है वही रात को मुसाफिरों को लेकर वापस शहर लौट जाती है। इस हिसाब से तो गौरव शहर उसी बस से जाता जिससे मैं आया था। इसका मतलब गौरव शहर नहीं गया। वह यही कही है। गौरव की तलाश राहुल का नया लक्ष्य था।

गौरव की खोज करने से पहले मुझें उसी मकान में वापस जाना होगा। हो सकता है वहाँ से कुछ सुराख मिल जाए - राहुल बुदबुदाते हुए बोला।

राहुल डरते-सहमते घर कि तरफ़ चल पड़ा। पगडण्डी पर चलते समय वह यह सोचकर कांप गया कि इसी रास्ते से वह कुछ देर पहले मुड़िया के साथ आया था। क्या वाकई मुड़िया भूत है ? अगर हाँ तो वह अब क्यों नहीं आ रही..?
क्या वह उसी जर्जर मकान में रहती है या उस कुँए में..? ऐसे न जाने कितने सवाल राहुल के मन में किसी अबूझ पहेली की तरह चल रहे थे।
मन केबीसी हो गया था जहाँ सिर्फ़ प्रश्नो की बौछारें हो रही थीं। उत्तर न मिलने पर मानो लाइफ लाइन खत्म हो जाएगी।

सोचविचार करते कब रास्ता कट गया पता ही नहीं चला। राहुल एक बार फिर से उसी जर्जर मकान के बाहर खड़ा था। इस बार वह अंदर जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था। वह चुपचाप घर के बाहर खड़ा घर को देख रहा था।

शेष अगलें भाग में....


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