Kouff ki wo raat - 4 books and stories free download online pdf in Hindi

ख़ौफ़ की वो रात (भाग-4)

अब तक आपने पढ़ा - राहुल अधेड़ उम्र की महिला के साथ एक जर्जर से मकान में आ जाता है।


अब आगें...

अरे साहब ! हम है मुड़िया । माचिस की तीली खत्म हो गई है। आपके पास माचिस है क्या ?

मेरा दिल जोर- जोर से धड़क रहा था। हाथ-पैर कांप रहे थे। मैंने कांपते हाथों से अपनी जीन्स की दोनों जेब टटोली । एक जेब मे लाइटर मिल गया। लाइटर देते हुए मैंने उस महिला से कहा - माचिस नहीं है इसी से काम चला लो।

"हो साहेब" - लाइटर लेकर वह महिला कमरे से बाहर चली गई। मैं फ़िर से वीरान जंगल को देखने लगा। जंगल के दानवाकार पेड़ भयानक लग रहे थे। तभी मेरी निगाह बरगद के एक पेड़ पर पड़ी। कुछ था वहाँ...

मैं कमरे से बाहर निकला और पेड़ कि तरफ़ तेज़ गति से बढ़ने लगा। अँधेरा इतना ज़्यादा था कि हाथ को हाथ नहीं सूझ रहा। उस पेड़ पर वो सफ़ेद रंग की लहराती आकृति क्या थी ?

राहुल को भूत प्रेत पर ज़रा भी विश्वास नहीं था। वह एक क्राइम रिपोर्टर है इसलिए हर घटना को वह ऐसे देखता जैसे किसी अपराधी के विषय मे जानकारी जुटा रहा हो। वह बेखोफ आगे बढ़ता जा रहा था।

वह बरगद के पेड़ के पास खड़ा हो गया । आसपास के ही किसी पेड़ से उल्लू की आवाज़ आ रही थी। तभी राहुल के कान में किसी ने उसका नाम पुकारा। राहुल.....राहुल....गर्दन घुमाकर राहुल ने जैसे ही मुड़कर देखना चाहा एक ज़ोरदार तमाचा उसके गाल पर पड़ा। अचानक हुए इस प्रहार से वह तिलमिला उठा। गाल को सहलाता हुआ वह चारों तरफ़ घूम गया। दूर-दूर तक कोई दिखाई नहीं दिया। अब तक हर घटना को विज्ञान से जोड़ने वाले राहुल को आज न जाने क्यों अपनी दादी द्वारा सुनाए भूतों के किस्सों पर यकीन होने लगा । पसीने की बूंदें उसके माथे पर झलक आई। उसने घर लौटना ही उचित समझा। वह घर कि ओर जाने के लिए दो - चार कदम चला ही था कि उसके गले मे एक फंदा कसने लगा और फिर एक तेज़ झटके से उसे किसी ने ऊपर खींच लिया। वह हाथ पैर चलाता हुआ बरगद के पेड़ की जड़ से बंधा हुआ हवा में झूल रहा था। जड़ उसके गले को कसती जा रही थी मानो अजगर अपने शिकार को जकड़ रहा हो। अचानक जड़ की पकड़ ढीली हो गई और राहुल धड़ाम से नीचे गिर गया।

खाँसता हुआ वह हौले से खड़ा हुआ। बरगद की सभी जड़े लहरा रही थी मानो शैतान के आने की ख़ुशी में नाच रही हो। राहुल बदहवास सा वहाँ से भाग गया। भागता हुआ वह अचानक ऐसे रुक गया जैसे तेज़ स्पीड से आती गाड़ी में अचानक ब्रेक लग गए।

सामने का मंजर देखकर राहुल की हवाईय्या उड़ गई। जिस कुँए के पास उसे वह अधेड़ उम्र की महिला मुड़िया मिली थीं। उसी कुँए की मुँडेर पर सफ़ेद चेहरे और धँसी हुई बिना पुतली वाली आँखों की मुड़िया चल रही थीं। दूध से सफ़ेद चेहरे पर हरे रंग के गुदने के निशान उसके चेहरे को औऱ अधिक भयानक बना रहे थे।

राहुल की हालत पतली हो गई। वह पत्थर की मूर्ति बना उस महिला को आँखे फाड़े देखता रहा।
कनपटी से रिसती हुई पसीने की धार गले तक आ गई। महिला ने राहुल को देखा और बत्तीसी दिखाकर हँसने लगीं। उसके दांत और मुंह ऐसे लग रहे थे जैसे अभी किसी का खून पीकर आई है।

शेष अगलें भाग में....