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अंधेरा बंगला - 5

भाग 5

अब तक आपने देखा कि उन चारो दुष्टों ने रूही ओर राजल को मार दिया था अब वह लोग उनके बच्चो को मारने का सोच रहे थे अब आगे की कहानी देखते है।


चारो दोस्त उनके कमरे में गए तब शिवम ओर शिविका ने कहा अरे आप लोग यहां,
तब अमर ने कहा हा बेटा हम भी आपके साथ खेलने आ गए, तब छोटी शिविका ने कहा मम्मी पापा कहा है ?

तब समर ने बताया, आपके मम्मी पापा बाहर गए है इसलिए तो हम आपके साथ खेलने आ गए है, शिविका ने कहा मुझे मेरे मम्मी पापा के पास जाना है ।

मनीष ने कहा अभी हम आपको वही भेज देंगे ,शिवम ने कहा ठीक है तो फिर ले चलिये , उसके ऐसा बोलते ही अमर ने शिवम के पीठ पर बड़ी बेरहमी से छुरा मार दिया ।

शिवम वही के वही मर गया यह देख कर शिविका बोली ,
"भैया भैया उठिये भैया" रोहन बोला बेटा अब तुम्हारे भैया नहीं उठेंगे पर तुम चिंता मत करो हम तुम्हे तुम्हारे भैया के पास भेज देते है।

"नहीं नहीं ,मुझे मम्मी के पास जाना है शिविका रोते हुए बोली, रोहन ने तभी छोटी सी शिविका के गले मे चाकू मार दिया ,शिविका की वही के वही जान चली गई , ओर चारो कातिल शिविका ओर शिवम की लाश को उठा कर कोई अलग जगह पर दफना दिया।

तब ऐसे ही अंधेरे बंगले में रहते इस खुश खुशहाल परिवार की उनके ही कुछ दोस्तो ने पैसो की लालच में हत्या कर दी ओर उनके बंगले को उन्होंने बेचना शुरू कर दिया था ,जी भी पैसा मिलता आपस में बांट लेते थे बहुत से लोग उसमे रहने आए ओर चले गए। फिर समय बीतता एक दिन पैसों को लेकर चारो मे जगडा हो गया ओर चारो ने एक दूसरे को ही पैसों कि लालच में मार दिया।

जो लोग भी इस बंगले मे रहने वह थोड़े दिनों में वहा से चला जाता था क्युकी उनको कुछ आत्मा की मौजूदगी वहा पर लगती थी। जब कोई वहा रहने जाता था तब कुछ दिन बंगले मे थोड़ी रोनक रहती थी ओर चला जाता था ,तब वही अंधेरा छा जाता था।

जब लोगो को यह यकीन होने लगा की यहा सच मे कुछ आत्माओं का निवास है तब से कोई भी इस बंगले को खरीदने की हिम्मत नहीं करता था , ओर फिर यह बंगला वीरान पड़ा रहता।

जो भी यहां रहने आता था उन्हे वहा दो छोटे बच्चे ओर एक औरत ओर आदमी की परछाई दिखाई देती थी ,वह आत्माएं राजल रूही ओर शिवम शिविका की ही थी उनकी आत्माओं को मुक्ति नहीं मिल पाई थी इसलिए वह अभी भी उनके बंगले में भटक रही थी।

उस परिवार की हत्या को 95 साल बीत चुके थे फिर भी आज भी उनकी आत्मा इस बंगले में भटकती है क्युकी इनकी आत्मा मुक्ति की कोई पूजा ही हुई नहीं थी , उनका कोई रिश्तेदार था ही नहीं की कोई इनके लिए पूजा करवाए ।


आज रहीमपुर गाव मे एक छोटा सा मेला लगा था , सब लोग मेले में मजे करने आए थे ,यह मेला अंधेरे बंगले के पास मे ही लगा था , आज गांव के सारे लोग वहा इक्कठे हुए थे सब लोग मजा कर रहे थे।

मेले में बहुत सारे खरीदारी की दुकानें भी लगी हुई थी ,हर तरह का समान लोग बेच रहे थे ,खाने का , घर का ,बच्चो के खिलौने और वहा बहुत सारे झूले भी थे बच्चे जाकर सारे झूले मे बैठ रहे थे।

आज गांव मे बहुत रॉनक थी तब ही एक ४ साल की बच्ची अपनी मां से दूर खेलते खेलते अंधेरे बंगले की ओर चल पड़ी ,जेसे वह बंगला उस बच्ची को अपनी तरफ खींच रहा हो, तभी उसकी मां उसे ढूंढ रही थी तब उसने देखा उसकी बच्ची भागते हुए अंधेरे बंगले की और चली गई है।

बंगले का गेट अपने आप खुल गया ओर बच्ची के अंदर प्रवेश करते ही गेट अपने आप बंध हो गया। जेसे ही उसकी मा मंजरी ने यह देखा कि उसकी ४ साल की बेटी गुड़िया बंगले के अंदर चली गई है उसकी तो चीख निकल गई ओर जोर से वह बोल "मेरी बच्ची को कोई बहार निकालो"।

तब ही गांव के सारे लोग देखने लगे सब ने जब यह जाना की एक बच्ची अंदर चली गई है सब गांव वाले ओर उस बच्ची की मां भाग कर बंगले के गेट के पास खड़े हो गए ओर गांव के मुखिया राजवीर सिंह ने बच्ची की मां से कहा ,
कहा था मेने कोई इस बंगले के पास नहीं जायेगा ,ओर आज तुम्हारी लापरवाही से तुम्हारी बच्ची की जान खतरे मे है।

कहानी का अगला भाग 6 जल्द ही आयेगा😊
तब तक सोचिए आगे क्या हो सकता है।

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