Shraap ek Rahashy - 25 books and stories free download online pdf in Hindi

श्राप एक रहस्य - 25

वाह क्या बात है...मतलब तुमने ख़ुद अपने ही बेटे को मार डाला। तुम तो मुझसे भी बड़े बेईमान लगते हो। तुम्हें अंदाजा भी है, तुमने ये काम कर के मुझपर कितना बड़ा अहसान किया है। मैं उसकी मौत ही तो चाहता था।" बड़े बेशर्मी से घिनु ने कहा।

"लेकिन उस छोटे से बच्चे की मौत से तुम्हें भला क्या फ़ायदा होता...?"

"अरे फ़ायदा ही फ़ायदा है। तुम्हारा बेटा कोई आम इंसान नहीं था। वो तो एक महान राजा था। जिसे किसीने एक वरदान दिया था कि उसके बाकी के जन्मों में उसे कोई दर्द नहीं होगा और जो उसके साथ बेईमानी करेगा, वो उसके हिस्से के दर्द को झेलने के लिए उसके साथ ही जन्म लेगा। वो वरदान पाने वाला राजा ही तुम्हारा बेटा था और उसी वरदान में लिपटे श्राप से मैं उपजा हूँ। मैंने ही उस जन्म में उसके साथ बेईमानी की थी। और बाकियो को लगता था कि मैं हर जन्म में पछताऊंगा, अपने किये पर रोऊंगा और देखो हो क्या रहा। जिसे वरदान मिला था वो तो मारा गया और जिसके हिस्से में श्राप आया था वो अब पूरी दुनियां में राज करेगा।"

इसके बाद भी अखिलेश बर्मन काफ़ी देर तक घिनु से बातें करते रहे,और तारीफ़े करते रहे उसके घिनौने कारनामों की। वो वहीं कर रहे थे जैसे उन्हें सोमनाथ चट्टोपाध्याय ने सिखाया था। लेकिन इसके वाबजूद कहीं न कहीं वे प्रभावित हो रहे थे घिनु कि बातों से,उसकी शक्तियों से। और इसी के साथ उनके भीतर से ख़त्म हो रहा था आत्मग्लानि का वो पवित्र अहसास। वे शायद बुराई के भयानक मकड़जाल में धीरे धीरे फंसते जा रहे थे। फ़र्क बस इतना था कि ये सब उनकी मर्जी से हो रहा था।

बुराई आपको दूर से लुभाती है और अच्छाई को करीब से ही जाना जा सकता है। कुछ ऐसा ही अखिलेश बर्मन के साथ हो रहा था।

"आख़िर बचा ही क्या था उनके पास अब..? हजारों मिन्नतों के बाद ईश्वर ने एक सन्तान दी थी, वो भी चला गया। गया क्या ख़ुद उन्होंने ही उसे भेज दिया। एक बीवी है जिससे वो अपने पूरे जीवन में सबसे अधिक प्रेम करते है, लेकिन क्या वो अब कभी उनसे प्यार कर सकेगी..? वे तो उसकी नज़र में सबसे बड़े दुश्मन बन चुके है। क्या है ऐसा जो वे खो सकते है..? कुछ भी तो नहीं। उम्र भर सिर्फ़ पैसा बटोर कर उन्हें क्या ही मिला सिवा अथाह पैसों के। क्या हो जाएगा अगर घिनु की मदद से वो ख़ुद को दुनियां के सबसे रईस इंसान बना ले..? कम से कम मौत के बाद भी उन्हें याद तो रखा जाएगा। हो सकता है घिनु उन्हें मरने ही ना दे।"

कुछ दिन और बीते और अब शहर सतर्क हो गया था। घाटी तो वैसे भी वीरान थी। अखिलेश जी रोज़ ही रात में घिनु से मिलने जाते और दूसरी तरफ़ सोमनाथ चट्टोपाध्याय सांसे थामे उनका इंतजार किया करते थे। आख़िर वो घिनु था, बेईमानी और धोखेबाज़ी का मिसाल था वो। उसपर यकीन करना ही तो मुश्किल था। वे कहा जानते थे....उधर तो कुछ और ही खिचड़ी पकने लगी थी।

"मैं तुम्हें शिकार ला दिया करूँगा। बदले में तुम उनसे वो काम करवाना जो मैं चाहता हूं।" अखिलेश बर्मन ने एक रात घिनु से कहा। जो कि शायद चाहता भी यही था। लेकिन अपने मुंह भला वो कैसे बोलता की उसके दायरे में सिर्फ़ घाटी ही आती है, वो यहां से बाहर नहीं जा सकता। ऐसा करने पर उसकी छोटी सी ही सही लेकिन एक कमज़ोरी तो अखिलेश बर्मन को मालूम हो जाएगी ना...,लेकिन कितना अच्छा हो अगर लोग ख़ुद ही चलकर यहां आये। वो मान गया।

"मुझसे और नहीं पिया जाएगा बर्मन साहेब। आप अब बस कीजिये। सालों बाद ऐसी दावत मिली है आज। लेकिन देखिए शराब लेने की भी एक लिमिट होती है। मेरी बीवी की कसम की वजह से मैं सालों शराब से दूर रहा अब इतनी ज़्यादा पी लूंगा तो हज़म नहीं कर पाऊंगा।"

अखिलेश बर्मन :- "अरे अभी तो पूरी बोतल ही पड़ी है, चंदन जी। आप तो ऐसा कर रहे जैसे ये पहली बार हो। आप एक समय में कितने बड़े खिलाडी रह चुके थे क्या ये मुझसे छूपा है। चलिए अभी तो बस शुरुआत है।"

चंदन मित्तल :- "नहीं नहीं, अब जाने दीजिए। पहले की बात कुछ और थी, उस वक़्त बीवी नहीं थी,बच्चे नहीं थे, अब तो घर जाकर सबको मुँह भी दिखाना है। ना जाने आपको क्या सूझी आज अचानक आपने इतना तगड़ा प्लान बना लिया। प्रकाश जैन, और दिलेर साहू को भी बुला लेना चाहिए था, हम चारों की जोड़ी तो ख़ूब जमती है।"

अखिलेश बर्मन :- "उनकी भी बारी आएगी, आज पहले आपको तो निपटा लूं।"

इस बार अखिलेश जी की बात को सुनकर "हो..हो" कर के हँस पड़े थे चंदन मित्तल। दोनों अखिलेश जी के एक पुराने फार्म हाउस में थे और स्विमिंग करते हुए पुल में बैठकर शराब गटक रहे थे। अपने करियर के शुरुआती दिनों में इन चारों ने मिलकर चारों मतलब अखिलेश बर्मन,चंदन मित्तल,प्रकाश जैन और दिलेर साहू चारों ने पार्टनरशिप में ही अपने बिज़नेस को शुरू किया था। लेकिन फ़िर आपसी मतभेदों की वजह से चारों अलग हो गए और वर्तमान में चारों ही अपने अपने जगह पर आज क़ाबिल थे। अखिलेश जी जानते थे किसकी क्या कमी है, तभी तो आज उन्होंने चंदन मित्तल को बुलाया है क्योंकि वे शराब के लिए पागल थे।

लेकिन बार बार चंदन मित्तल अपने परिवार का हवाला दे रहे थे और घर लौटने की जल्दी मचा रहे थे। ये सब सुनकर अखिलेश जी के पागलपन को और बढ़ावा मिलता जा रहा था, क्योंकि हाल ही मैं उन्होंने अपने परिवार को खोया था। इसलिए परिवार की बातें सुनकर उनका गुस्सा बेमतलब ही बढ़ता जा रहा था।

रात के दो बजे होंगे जब गले तक अल्कोहल पीकर और सर से पाँव तक पानी मे भींगकर ही दोनों फार्म हाउस से भींगे ही बाहर निकले। अखिलेश जी के लिए तो चंदन मित्तल को संभालना भी मुश्किल हो रहा था। जैसे तैसे उन्हें गाड़ी के पिछले सीट में बिठाकर वे ख़ुद ड्राइविंग सीट पर बैठ गए। उनके हाथ पैर कांप रहे थे...आख़िर आज वे जो काम कर रहे थे उस काम की आदत नहीं थी उन्हें। ये बात अलग थी कि अपने बिज़नेस में उन्होंने कई तरह के धोखे वाले काम किये है, लेकिन इस तरह जान तक लेने वाली हरक़त उनके लिए एकदम नयी थी।

उन्होंने अपने कोट के दायीं जेब से एक अच्छी तरह से फोल्ड किया हुआ पेपर निकाला उसे खोलकर पढा और मुस्कुरा दिए। बेईमानी से लिपटी एक टेढ़ी मुस्कान।

क्रमश :- Deva sonkar