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दृष्टिकोण - 5 - COMMUNICATION..

COMMUNICATION 

 

 

कम्युनिकेशन दो इंसान के बिच का वो पूल है जो एक दूसरे के विचारों का आदान प्रदान करता है.. 

 

कम्युनिकेशन में २ बाते महत्वपूर्ण है.. 

(१) बात खुद करो 

(२) हर टॉपिक पर बात करो 

 

(१) बात खुद करो..

 

क्यूकी बात जब मुंह बदलती है तो कभी-कभी मतलब भी बदल देती है.. 

क्या मतलब है इसका ? 

एक example से समझते है इसको... 

 

अगर आप किसीको ये बताना चाहते हो की - 

"उस दिन मेने ये बात उनसे नहीं कही.. " 

तो आप उस बन्दे को खुद बताए.. कम्युनिकेशन आपका हो ये ही बहेतर है.. आप जब किसीसे कोई बात करते हो तो आप ही को मालूम होता है की आप क्या कहना चाहते हो... 

 

"उस दिन मेने ये बात उनसे नहीं कही.. " - इस एक ही लाइन के कई मतलब निकल सकते है यदि ये बात आप के आलावा कोई और कहता है.. इसीलिए कहते है की - बात जब मुंह बदलती है तो कभी-कभी मतलब भी बदलती है..  

 

इसे इस तरह देखिए,.. 

"उस दिन मेने ये बात उनसे नहीं कही.. " आप उस लाइन के जिस शब्द पर ज्यादा वजन रखोगे बात का मतलब उस हिसाब से बदल जाता है.. 

 

जिस शब्द को अंडर-लाइन किया देखते हो उस पर वजन देकर उस शब्द को जोर से और बाकि की लाइन को नोर्मल तरीकेसे बोलो,..  आप खुद समझ पाओगे..   

 

(१)    "उस दिन मेने ये बात उनसे नहीं कही.. " - ये आपका एक सामान्य स्टेटमेंट है 

 

(२)    "उस दिन  मेने ये बात उनसे नहीं कही.. "  - इस का मतलब ये है की मेने ये बात उनसे उस दिन नहीं कही थी किसी और दिन कही थी.. 

 

(३)   "उस दिन  मेने  ये बात उनसे नहीं कही.. " - इस का मतलब ये है की उसदिन मेने ये बात उनसे नहीं कही थी किसी औरने कही होगी.. 

 

(४)   "उस दिन मेने  ये बात  उनसे नहीं कही.. " - इसका मतलब है की उस दिन मेने ये बात उनसे नहीं कही कोई और बात कही थी..  

 

(५)   "उस दिन मेने ये बात  उनसे  नहीं कही.. " - इसका मतलब है की उस दिन मेने ये बात उनसे नहीं कही किसी और से कही थी...  

 

हर एक से बात करना कम्फर्टेबल नहीं होगा आपके लिए.. मगर समजो,..  की अगर आप चाहते हो की जो आप कहना चाहते हो सामने वाला ठीक वो ही समजे, तो बात तो आप ही को करनी पड़ेगी..

 

(२) हर टॉपिक पर बात करो.. 

 

अगर कुछ गलत हो रहा है तो कितने लीडर होंगे जो अपनी टीम के साथ वैसे अनकम्फर्टेबल टॉपिक पर बात करना चाहेंगे ? क्या करनी नहीं चाहिए ? कल आप १५-२० लोगो की टीम सँभालते होंगे.. कम्यूनिकेशन तब भी उतना ही जरुरी है, और खुद करना जरुरी है.. 

 

एक केमेस्ट्री क्रिएट करो अपनी ऑडियन्स के साथ की आप केलिए किसी भी टॉपिक पर बात करना मुश्किल ना हो.. अवेलेबल रहो अपनी टीम के लिए ताकि कोई भी टीम मेम्बर आप तक पहुँच सके.. 

 

उतना ही नहीं टीम लीडर होने के बावजूद भी अगर आप नर्वस हो तो सब के सामने सच बोलो.. कम्युनिकेशन तो फिर भी शुरू होगा.. बात शुरू करने से पहले सब के लिए कम्फर्टेबल माहौल बनाओ ताकि हर कोई बिना डरे आप से खुल कर बात कर सके.. 

 

हो सकता है आप को सब से पहले अपना डर सब के सामने रखना पड़े.. कोई बात नहीं.. पर बात करो... बात की शुरूआत करते ही आप सब को बता दो की हो सकता है किसी को इस बात से दुःख या तकलीफ पहुंचे पर इस डिस्कशन का इरादा किसी को दुखी करना तो बिलकुल ही नहीं है... ये बताओ सब को की इस टॉपिक पर इस तरह का अनकम्फर्टेबल कम्यूनिकेशन आज हम सब के लिए ज्यादा जरुरी है...   

 

जब आप किसी के भी साथ कोई भी टॉपिक पर बात कर सकते हो तब आप सामने वाले इंसान के लिए एक ease create कर देते हो जिस से हर कोई आपके साथ भी आसानी से बात कर सकता है.. 

 

हर टॉपिक पर बात करना कम्फर्टेबल नहीं होगा आपके लिए.. मगर समजो की अगर आप लीडर हो या कुछ सोल्यूशन चाहते हो तो बात की पहल तो आप ही को करनी पड़ेगी.. First to the unknown... First to the difficult.. First to the uncomfortable..  और ये बिहेवियर, घर हो, चाहे दोस्तों के बिच हो, या फिर ऑफिस हो - हर जगह लागू होती है..