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दृष्टिकोण - 6 - ACCEPTANCE

 

 ACCEPTANCE.. 

 

ये कहानी एक सैनिक के बारे में बताई गई है जो वियतनाम में युद्ध करने के बाद आखिरकार घर लौट रहा था।

उसने सैन फ्रांसिस्को से अपने माता-पिता को फोन किया। - 

"माँ और पिताजी, मैं घर आ रहा हूँ, लेकिन मेरे पास पूछने के लिए एक सवाल है। मेरा एक दोस्त है जिसे मैं अपने साथ घर लाना चाहता हूं।  

"ज़रूर,"  पिताजी ने उसे जवाब दिया, 

"हम उससे मिलना पसंद करेंगे।" - माँ ने भी समर्थन दिया   

 

बेटे ने बात आगे चलाते हुए कहा -  "पहले मेरी पूरी बात सुन लो,.. "

माँ और पिताजी उन्हें सुनने लगे.. 

बेटे ने जारी रखा, - "उसके बारे में आपको सब कुछ पता होना चाहिए, वह लड़ाई में बहुत बुरी तरह से घायल हो गया था। उसने explosive land mine  पर कदम रखा और एक हाथ और एक पैर खो दिया। उसके पास जाने के लिए और कोई जगह नहीं है, और मैं चाहता हूं कि वह हमारे साथ रहे..” 

पिताजीने तुरंत कहा - "मुझे यह सुनकर दुख हुआ बेटा, हम उसे रहने के लिए जगह खोजने में मदद कर सकते हैं।"

"तुम्हारे पापा सही कहे रहे है बेटे,.. " माँ ने भी यही कहा  

 "नहीं, माँ.. " कुछ चुप रहकर उसने आगे कहा, "पिताजी, मैं चाहता हूँ कि वह हमारे साथ रहे।" 

 

थोड़ी देर दोनों और ख़ामोशी हो गयी...
दोनों तरफ से सिर्फ एक-दूसरे की धड़कन सुनाई देती थी। .

 

"बेटा," पिता ने कहा, "तुम नहीं जानते कि तुम क्या पूछ रहे हो। ऐसी अक्षमता वाला कोई व्यक्ति हम पर एक भयानक बोझ होगा। हमारे पास जीने के लिए अपना जीवन है, और हम इस तरह की जिम्मेदारी नहीं ले सकते। ऐसे अपाहिज इंसान को अपने जीवन में involve नहीं कर सकते। मुझे लगता है कि तुम्हे अपने घर आ जाना चाहिए और इस आदमी को सरकार के भरोसे छोड़ना चाहिए। आखिर ये फ़र्ज सरकार का बनता है "

माँ ने भी कहा - "मुझे यकीन है की - वह अपने दम पर जीने का रास्ता खोज ही लेगा"  

 

इतने में बेटे ने फोन रख दिया। माता-पिता ने उससे ज्यादा कुछ नहीं सुना।

 

कुछ दिनों बाद, उन्हें सैन फ्रांसिस्को पुलिस का फोन आया और उन्हें बताया गया कि उनके बेटे की इमारत से गिरकर मौत हो गई...  

पुलिस इसे आत्महत्या मान रही थी। 

शोक से सहमे माता-पिता सैन फ्रांसिस्को गए.. वहां से उन्हें अपने बेटे के शव की पहचान करने के लिए शहर के मुर्दाघर में ले जाया गया। 

माँ और पापा ने अपने बेटे को पहचान लिया, लेकिन उन दोनों को कुछ ऐसा भी पता चला जो वे नहीं जानते थे, … 

उनके बेटे के केवल एक हाथ और एक पैर था।

दोनों ही एक दूसरे का मुँह तकते रहे गए.. 

 

कभी कभी बच्चा ज्यादा सेंसिटिव या ऑवर थिंकर हो तो बच्चे अपने माँ बाप को कुछ इस तरह जांचते है.. जैसे इस कहानी में माँ बाप को बेटे द्वारा जांचा गया था... 

हम क्या सही है या क्या गलत है उसमे नहीं जाते है ...

मगर ... 

जिस stressful हालात में बच्चे दिन रात जिन्दगीमे अकेले लड़ रहे होते है, उन हालातो में उनका अपने माँ-बाप के सामने ज्यादा इमोशनल हो जाना आम बात है,..

यहाँ बात सिर्फ अपाहिज या शारीरक रूप से जरूरतमंद बच्चो की नहीं है, बल्कि उन सब बच्चो की है जिनको इमोशनल सपोर्ट या मेन्टल सपोर्ट की जरुरत है.. 

 

हम में से बहुत से लोग इस कहानी के माता-पिता की तरह हैं। हमें उन लोगों से प्यार करना आसान लगता है जो आसानी से पाले जा सकते है.. लेकिन हम ऐसे लोगों को पसंद नहीं करते हैं जो हमें असहज महसूस कराते हैं। हम उन लोगों से दूर रहना पसंद करेंगे जो हमारे जैसे स्वस्थ, सुंदर या स्मार्ट नहीं हैं।  

कभी कभी जाने अनजाने में हमसे अपने असहाय माँ-बाप के साथ भी ऐसा बेरुखा सा बिहेव हो जाता है और कभी कभी हम अपने बच्चो को भी Ignore कर देते है और हमे पता तक नहीं होता की वो कितने हर्ट होते है..  ईश्वर का शुक्र है, की कोई हमारे साथ ऐसा व्यवहार नहीं करता। हमारे परिवार में सब हमें बिना शर्त प्यार करते है और हमें हमेशा के लिए परिवार में स्वीकार करते है चाहे हम जैसे भी हो हमारा स्वागत करते है...  

 

आज की रात, सोने से पहेले उपरवाले से एक छोटी सी प्रार्थना करें कि, वो आपको भी संसार के सारे इंसानो को वो जैसे है वैसे स्वीकारने की शक्ति दे, और दुसरो के बारेमे ये समझने की काबिलियत दे की वो लोग हम से अलग नहीं है..