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दृष्टिकोण - 8 - HAPPY WOMENS DAY ( 8 MARCH 2023 )

HAPPY WOMAN’S DAY..

8 MARCH

 

WOMENS DAY और उसका एक ही अहसास - "अपनापन"

माँ कहती है - अपने घर जाके शौख पुरे करो 

सास कहती है - तुम्हारे अपने घर में चलता होगा सब, हमारे घर में ये नहीं चलेगा...

अब बताए, औरत कोन सा घर अपना गिने ? पति का या पिता का ?

कभी किसी ने कहा है ? - की - "तुम जिंदगीभर दोनों घर में अपना फर्ज अदा करती हो, तो हक़ भी तुम्हारा दोनों घर पर जीवनभर रहेगा.."     

 

अपनेपन के दो लफ्ज़ो में खुश हो जानेवाली औरत सच में ये नहीं समझती - की - 

हर साल के मार्च महीने की ८ तारीख ही नहीं, हर दिन उसका दिन है.... 

मगर सब कुछ उसका होने के बावजूद,.. उसका अपना कुछ गिना नहीं जाता है..  

कोख औलाद के लिए 

बदन पति के लिए 

दिल महबूब के लिए

कर्ज माबाप के लिए 

फर्ज ससुराल के लिए 

जिम्मेदारीयां अपनों के लिए

संस्कार समाज के लिए

 

मर्द से ज्यादा केपेबल होने का दावा करने की बात ही नहीं है,.. खुद ही अपने आप को किसी से कम समझने की गलती करने की बात है 

 

हजार तरह से जताया जाता है - की - ये तेरा घर नहीं है.. 

फिर भी वो "अपने घर" के भरम में जिए जाती है 

तब भी जब कभी अपमानित होकर छोड़ देती है सब कुछ 

फिर वही बात आ जाती है 

"निकलो मेरे घर से,.. " पतिसे सुनकर  

"जैसा भी हो वो ही तुम्हारा घर है "  ये माँ से सुनने जाती है 

और आखिर में अपने बच्चो के खातिर, - बिन बुलाए - चुप हो कर - वापस चली आती है

फिर, खुद की नजरोमे - खुद गिर कर - खुद ही - खुदको उठाती है 

और  "मुझसे मोहोब्बत सभी को है" - ये जूठ अपने आपको बताती है  

 

क्यों जताया जाता है उससे हर वक़्त - की - तेरा कोई घर नहीं है 

क्यों बताया जाता है इज्जत की दुहाई देकर - की - वो खुश है और उसके साथ सब ठीक चल रहा है 

गर्भ से बहार आकर  मिठाई के बदले सहानुभूति पाती है 

और इस मॉर्डन ज़माने में भी, पठाई के बदले, उसकी बिदाई ज्यादा जरुरी कहलाती है 

फिर भी वो दस साल की उम्र में बिस की हो गई हो वैसा सुलूक करती है 

और अपने ऊपर डाले हुए नियंत्रण को अपनी सेफ़्टी समझती है 

टीन ऐज का शारीरिक परिवर्तन, शादी के बाद माहौल का परिवर्तन,

बच्चे को जन्म देकर मानसिक परिवर्तन, फिर मेनोपॉज़ में भावनात्मक परिवर्तन.. 

और इन सब के बावजूद भी उसके nurture में भेदभाव को नसीब कहे देती है 

बदले में वो समाज की  "खानदानी औरत" होने का खिताब पाती है  

होता होगा संसार की हर औरत के साथ ये सब - सीता से शुरू हो कर..

कभी किसी को ये सवाल हुआ है - की - 

चहेरे पर मुस्कान चिपका कर क्यों निभाया जाता है 

ये धोखा - ये फरेब - ये जुठ - रिवायत के नाम पर

 

घर उसका नहीं है - पर - घर संभालना फर्ज है, 

कमा कर पति को मदद करना भी उसीका फर्ज है,

बच्चे संभालना फर्ज है, बड़ो की सेवा करना फर्ज है,.. 

क्यों सिर्फ उस वक्त "तेरा घर" कहेकर उससे सारा फर्ज निभाया जाता है  

क्यों उसके हक की ना कोई और बात करता है, ना उसे खुद सवाल होता है..   

 

लोगो को दिखाने के लिए बच्चोंसे भी परिवारकी जूठी तारीफ़ करवाती है,  

और खुद ही खुद के आसपास अपनोंकी अच्छाईकी जूठी दीवार बनवाती है

फिर वो अपनी ही बनायीं कैद में इस कदर फंसती है

की अगर बाहर निकलना चाहे तो वो अच्छाई की दीवार के नीचे खुद ही दबती है

  

कितने पैसे लगते है औरत को ये बताने में - की - 

एक जिंदगी संसारमे लाकर तुम सब कुछ कमा लेती हो

खुद को साबित मत करो तुम हर रेस में आगे होती हो  

आंखोमे आज़ादी का जिन्दा ख़्वाब रखती हो 

सचमुच तुम एक शहजादी सा वजूद रखती हो  

अपना साम्राज्य बचाने रणमे सबसे पहले आती हो

आंसू क्या तूम लहू अपना सबसे पहले बहाती हो  

थक चुकी हो तुम - ये तुम भी देख सकती हो 

फिरभी अपने जज्बातो को क्यों बेताब रखती हो 

में तुम्हारा ही हु,.. और आज दिनभी तुम्हारा ही है.. 

कभी तो बहाया करो तुम सवालों के सैलाब को

कभी तो बुझाओ अपने दिलमें लगी आग को    

तुम्हे लेकर जायज़-नाजायज़ क्या होता है ? 

तुमसे जुड़ा हर रिश्ता हीरेसा नायाब होता है... 

बदन और बिस्तरसे दूरभी कई रिश्ते बेदाग होते है

तुमसे जुडे हर रिश्ते तो - हिजाब जेसे पाक होते है 

 

हिसाब करने नहीं जा सकते - की -कितनी औरतो को ये सब कहने वाला मर्द मिला है 

मगर हर औरत खुदमे झांक सकती है - की -किसीभी नाते से किसी मर्दने उसे एक बार भी इनमे से कुछ कहा है ?   

 

अब बताए, 

हर साल 364 दिन इन सब से गुजरती है 

और 8 मार्च के दिन "WOMEN'S DAY" पे जश्न भी मनाती है 

बेवकूफ नहीं होती है वो, मगर बेवकूफी पुरे होश में रहे कर करती है 

और अपने इस घाटे के सौदे को वो बखूबी समझती है   

देवी, दुर्गा, माँ, शक्ति के नाम से नवाज़ी जाती है 

क्योंकी उसे (Woman's Day) एक ही दिन में 364 दिन जीने की कला आती है  

वरना कोनसी औरत को - बिना कोई काम किए - अपने परिवार के साथ -  नीता अम्बानी की तरह - हर सुबह टेबल पर - नौकर ने तैयार की हुई कोफ़ी - नहीं पीनी होती है ? 

 

HAPPY WOMENS DAY..