Nafrat ka chabuk prem ki poshak - 17 books and stories free download online pdf in Hindi

नफरत का चाबुक प्रेम की पोशाक - 17

नफ़रत के उस चाबुक की मार ने मेरे हँसते खेलते बाबू को हँसने से भी लाचार कर दिया। आखिर में सभी डाक्टरों ने हाथ ऊपर कर दिए और कह दिया कि अब ये कभी चल फिर नहीं सकेगा। माथे पर गहरी चोट लगने के कारण इसका दिमाग जहाँ था वहीं रहेगा।
मैंने इसमें भी अल्लाह की मर्जी मानी और दिल से सेवा करने लगी अपने बाबू की।
मैं चाहती थी कि मैं फिरदौस के खिलाफ़ थाने में रपट लिखवा दूँ पर राशिद की बहनों का ख्याल कर रह जाती। अम्मी और मुझे उम्मीद थी कि राशिद एक दिन जरूर वापस आएगा इसलिए हमने वहाँ लगभग एक साल और उसका इंतज़ार किया।
और खुद ने भी राशिद को ढूंढने की खूब कोशिश की पर वो नहीं मिले।
अम्मी जान अब जोधपुर छोड़ने का मन बना चुकी थी इसलिए यहाँ से जाने से पहले वो बानो के बेटे को देखना चाहती थी।
पर फिरदौस ने उल्टा अम्मी पर पर बानो के बेटे को उठाकर ले जाने की कोशिश कइल्जाम लगा दिया।
अम्मीजान बानो के बेटे को भी बहुत प्यार करती थी क्योंकि वो राशिद का बेटा था। इसलिए जब फिरदौस ने उन पर ये इंल्जाम लगाया तो वो टूट गई और कभी उन लोगों की शकल ना देखने की कसम खाली।
जबसे अम्मी जान हमारे घर रहने लगी तब से जैसे हमारे घर में हमारी अम्मी की कमी पूरी हो गई दोनों बडी आपा भी अपना दुख-दर्द अम्मी को बताती। अब दोनों छोटी बहनों का निकाह हो गया और वो दूसरे शहर अपने-अपने ससुराल चली गई थी।
दोनों ने ही अब्बू की ख्वाहिश पूरी की थी दोनों ही मास्टरनियां बन गई थी इसलिए जोधपुर बहुत कम आ पाती थी।

अब मैं फिर राशिद की पसंद की पोशाकें पहनने लगी और अम्मी पोते - पोती को संभालती तो मेरी आपा के निकाह की बात भी करती रहती थी। अब फिरदौस हमें पहले से ज्यादा परेशान करने लगी ।
एक बार उसने कुछ बदमाशों को मेरी घोड़ा गाड़ी के पीछे लगा दिया। उस दिन बडी मुश्किल से बचकर घर आई थी मैं।
एक बार में रेलवे स्टेशन पर सवारी लेने गई थी तब उसने घोडे को जहर देने की कोशिश की । पर किसी ने देख लिया इसलिए मेरा बादशाह बच गया
मैं और अम्मी उसके इरादे जान गई थी कि अब वो हमें जीने नहीं देगी। रुखसार भी पढ़ने के लिए जाने लगी थी। एक बार मैंने फिरदौसा को रुखसार की स्कूल के पास देखा।
तब से मुझे डर लगने लगा और मैंने और अम्मी ने शहर छोड़कर चले जाने में ही बेहतरी समझी ।
हालांकि अम्मी मेरी बात मान गई पर उन्होंने मेरे दोनों बडी आपा का घर बसाने की इच्छा जताई।
पहले तो आपा नहीं मानी पर अम्मी ने उन्हें बहुत समझाया और उनका निकाह करवा दिया।
निकाह के बाद छोटी आपा अपने शौहर के साथ हमारे घर पर ही रहने लगी और बडी आपा इस शहर में अपने ससुराल रहने लगी। बड़ी आपा के शौहर की पहली बीबी का बिमारी के कारण इंतकाल हो गया था इसलिए उनके दो छोटे बच्चों के लिए उन्होंने दूसरा निकाह किया।
हमारी आपा भी दोनों बच्चों की अम्मी बनकर बहुत खुश थी वो उन बच्चों को बहुत प्यार करती थी और उन्हें कभी अपनी अम्मी की कमी महसूस नहीं होने दी।
क्रमशः....
सुनीता बिश्नोलिया