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प्रेम के रंग

 

तुफान थम चूका था और बरसात के बाद आकाश साफ हो चुका था। मौसम सुहाना हो गया था। पत्तों पर जमी जल की बुंदें, नीचले पत्तों पर गिर कर टप-टप की आवाज पैदा कर रही थी।
बरसात के कारण पेड़ के नीचे जमा लोग अपने-अपने रास्ते हो चले थे। पेड़ के नीचे अब भी मौजूद थे दो लोग, केशव और कजरी।
केशव सिर पर जमा हो चुकी बुदों को झटक रहा था और कजरी सिर पे रखा भींगा आंचल हाथ में लेकर निचोड़ रही थी। केशव भी चुपचाप और कजरी भी बेआवाज, मगर दोनों एक दुसरे से आँखों ही आँखों में बातें कर रहे थे।
रास्ते पे आने जाने वाले लोग बिना रूके उन दोनों को एक सरसरी निगाह से देखते और आगे निकल जाते।
दुर पे निकल आया इन्द्रधनुष अनोखा रंग बिखेर रहा था।
केशव ने कहा ’’ कोई जवाब अगर नहीं सुझ रहा हो तो चलो, तुमको तेेरे घर छोड़ दूं। ’’
कजरी के चेहरे पर किसी भी तरह की शिकन को न पहचान कर केशव की ललाट पर बल पड़े और केशव वहाँ से चल पड़ा, केशव के वहाँ से चलते ही कजरी भी पीछे-पीछे चल दी।
अपना सवाल अधुरा समझ कर केशव कुछ और सोचने लगा मगर कजरी उसके सवाल में उलझी-उलझी चल रही थी, इसलिए धिमी गति से चलने के कारण केशव और कजरी का फासला थोड़ा ज्यादा बढ़ गया था। उस फासला को पाटने के लिए केशव चेहरा आगे की और करके वहीं खड़ा हो गया। कुछ ही क्षण के बाद केशव न मुड़ कर देखा तो कजरी उसी जगह ठीठकी हुई थी, कजरी की झुकी हुई गर्दन और सड़क पर पड़ा कंकड़ गिनती नज़र से उसकी दुविधा का सहज अंदाजा हो गया।
केशव ने पास आकर कहा ’’ हमको माफ करो, मैं अपना सवाल वापस लेता हूं। चलो घर चलो। ’’
खामोश कजरी के कदम तो आगे बढ़े मगर उसको बरबस याद हो आया केशव का गली मंे भटकना और खिड़की खुलने के इन्तजार में पड़ा रहना।
कजरी के दिल में कुछ सुगबूगाहट हुई और उसके कदम केशव के बराबर की चाल चलने लगे।
कजरी ने पास आकर कहा ’’ रूको, तुम्हारे सवाल ने तो उलझन में घेर रखा है, मैं चाहती हूं कि इस उलझन का रास्ता, रास्ते में ही निकल जाए। ’’
केशव ने मन में सोचा कि नेकी और पुछ पुछ। केशव की पाँचों ज्ञानेन्द्रियाँ कजरी के मुंह से ’ हाँ ’ सुनने को तत्पर हो गए।
कजरी ने पुछा ’’ तुम्हारा संबंध छाया कि साथ वही है न, जो संबंध तुम मेरे साथ स्थापित करना चाहते हो ? ’’
केशव का यह सवाल कजरी के मन-मस्तिष्क में सरसरी पैदा कर गया।
केशव ने विश्वास दिलाने का सफल प्रयास करते हुए कहा ’’ मेरा विश्वास करो कजरी, पड़ोस में रहने के कारण छाया से बात होती है, वरणा उसके लिए मेरे मन में इस तरह की कोई बात नहीं है। मेरा पुरा प्रेम तुमको ही समर्पित है और रहेगा। ’’
बात का विश्वास होते ही कजरी की आँखें ’ हाँ ’ बोल गयी। एक दिल से दुसरे दिल तक प्रेम का आवागमन होने लगा। आकाश का इन्द्रधनुष तो लुप्त हो चुका था, मगर प्रेम रूपी इन्द्रधनुष की सुन्दरता का दोनों सिरा एक दुसरे के दिल को रंगीन एहसास से भर चुका था।

समाप्त