Chutki Didi - 7 books and stories free download online pdf in Hindi

छुटकी दीदी - 7

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आज ज्योत्सना सलोनी के बालों में तेल लगाने बैठ गई। अपनी माँ की गोद में सटकर बैठना उसे बहुत अच्छा लगा। आज उसने अनुभव किया, ममता की छाँव में कितना आनन्द होता है!

‘माँ, तीन दिन बाद सिमरन के साथ आपकी दिल्ली जाने की टिकट है।’ 

सलोनी चाहती थी कि माँ इसी प्रकार सदैव उसे गोद में बिठाए रहे। माँ से अलग रहकर बहुत प्यासा रहा उसका बचपन। स्कूल में कई बार कठिन क्षण आते तो उसे अपनी माँ की बहुत याद आती थी।

‘बेटी, दो मास हो गए अपना घर छोड़े, फिर सिमरन के स्कूल भी खुलने वाले हैं। तू चाहे तो कुछ दिन मेरे साथ दिल्ली चल।’

‘हमारा मन तो बहुत है आपके साथ रहें, परन्तु कुछ नौकरी के फार्म भरने हैं। यहाँ पर तो हमें सब व्यवस्था का पता है। हमारी इच्छा यही है कि हमारी नौकरी दिल्ली में लग जाए तो नानी को भी मना लेंगे और सब साथ-साथ रहेंगे।’

‘भगवान करे ऐसा ही हो! तीन पीढ़ियाँ एक साथ मिलकर रहेंगे तो बहुत आनन्द आएगा।’

कोलकाता छोड़ने से पहले नानी ने धोतियाँ, चद्दरें, शाल आदि अनेक सामान ज्योत्सना को दिया जो वे वर्ष भर सहेजती रही थीं। सिमरन के लिए भी नानी ने उसकी पसन्द की दो नई ड्रेस सिलवाईं। सलोनी ने अपने कई छोटे हो गए कपड़े उसे दिए और उसकी पसन्द के गिफ़्ट आइटम ख़रीदे। सब पाकर सिमरन बहुत खुश हुई। उसने बार-बार सलोनी को आश्वासन दिया, ‘सलोनी दीदी, आप माँ की तनिक भी चिंता ना करना। अब दिन में दो बार सुबह शाम उनसे मिलने ज़ाया करूँगी।’

सलोनी को गोद में बिठाकर उसके बालों में तेल लगाया तो ज्योत्सना की ममता जागृत हो गई। कभी भाग्या को गोद में लेकर उसके बालों में तेल लगाया करती थी। आज पहली बार सलोनी के बालों को सहलाते हुए उसके अंत:करण से निकला, ‘ये बेटियाँ भी कितना सुख देती हैं!’

ज्योत्सना और सिमरन के जाने के बाद घर फिर सूना-सूना हो गया। लंबी-लंबी दोपहर काटने के लिए नानी फिर क्रोशिए के साथ भजन गाते हुए कलाकारी करने लगी। दो-तीन दिन तो सलोनी को भी सूनापन लगता रहा, फिर वह अपनी पढ़ाई में व्यस्त हो गई।

सेन्ट्रल स्कूल में कला शिक्षिका के लिए उसने अपना प्रार्थना पत्र भेजा तो सलोनी ने फ़ोन करके सुकांत को सूचित किया, ‘नमस्कार सुकांत बाबू’

‘अरे सलोनी, बताओ कैसी हो?’

‘अच्छी हूँ। आज हमने सेन्ट्रल स्कूल में अपना प्रार्थना पत्र जमा करवा दिया है।’

‘वाह, बहुत ख़ूब। लगता है, हमसे पहले तुम्हारी नौकरी लग जाएगी।’

‘आपके मुँह में घी शक्कर डालने का वादा हमें याद है।’

‘ईश्वर से मेरी प्रार्थना है कि तुम्हें जल्दी सफलता मिले ताकि हमारी एक मंज़िल तो पूरी हो जाए।’

‘और दूसरी मंज़िल?’

‘दूसरी मंज़िल पार करवाने के लिए मुझे उत्तरदायित्व सौंपा है। मैं उसकी तैयारी कर रहा हूँ। अभी तो अम्मा के सामने मैंने विवाह की बात छेड़ी है। उन्होंने कोई विरोध नहीं किया। तुम्हारी माँ और नानी का उत्तरदायित्व लेने की बात अभी नहीं की है। उपयुक्त समय देखकर करूँगा।’

‘ठीक है सुकांत बाबू, फ़ोन रखती हूँ।’ सलोनी लज्जा-सी गई। उसके मन में लड्डू फूट रहे थे, क्योंकि उसको अपनी मंज़िल समीप आती दिखाई दे रही थी।

……..

समुद्र के किनारे बने शहर में रहने से परेशानी होती है। इधर बरसात का मौसम शुरू हुआ और उधर शरीर चिपचिपा रहने लगा। स्नान घर से निकलो तो तुरन्त शरीर से पसीना निकलने लगता है।

सलोनी ने सोचा था, आज कैनवस पर लगे चित्र को अवश्य पूरा करूँगी। एक तो यह अलसाया मौसम, दूसरा कैनवस पर लगे नारी मन के चित्र को लेकर उथल-पुथल चल रही थी।

नारी को भी ईश्वर ने कैसा बनाया है …! सुन्दरता, कोमलता, दया, ममता, स्नेह, प्यार और समर्पण, इतने सारे गुण होने के बावजूद उसे दोयम दर्जे पर रखा जाता है। यही तो नारी की महानता है, जिसे वह अपने चित्र में दिखाना चाहती है। रंग तैयार कर रही थी कि भाग्या का फ़ोन आ गया।

‘नमस्ते भाग्या दीदी।’

‘कैसी हो बहन, सलोनी?’

‘हम तो ठीक हैं। हमारे बबुआ जी और बेबी जी कैसे हैं?’

‘अरे, कुछ मत पूछो, बहुत शरारती हो गए हैं।’

‘अरे सुन, कल माँ का फ़ोन आया था भाग्या। उन्होंने हमें बुलाया है, परन्तु हमारे लिए बड़ा संकट है।’

‘क्या संकट है?’

‘दीदी, माँ के पास जाऊँ तो तुमसे, नानी से नहीं मिल सकती और नानी के घर रहूँ  तो माँ से नहीं मिल सकती।’ 

‘हमारा छोटा-सा तो परिवार है और वह भी दूर-दूर बिखरा हुआ है। हमें मिलकर कुछ ऐसा करना चाहिए, जो सब एक साथ रहने लगें।’

‘हाँ दीदी, हमने इस बारे में कई बार सोचा है। परन्तु अब तक हमारी पढ़ाई की अड़चन थी। अब हमारी पढ़ाई भी पूरी हो गई है तो अब पुनः सोचा जा सकता है।’

‘देखो सलोनी, नानी को दिल्ली शिफ़्ट किया जा सकता है, क्योंकि कोलकाता तो हमारे नाना जी व्यापार करने के लिए गए थे। किराए की आमदनी बनाने के लिए उन्होंने बाडी को ख़रीद लिया तो नानी कोलकाता की बन गई। पिताजी दिल्ली में प्राइवेट नौकरी करते थे तो पश्चिम विहार में एक फ़्लैट ख़रीद लिया। दिल्ली के आसपास तो अपना सारा परिवार, रिश्तेदार हैं। इसलिए हमें नानी को दिल्ली शिफ़्ट करने के बारे में सोचना चाहिए,’ भाग्या ने सुझाव दिया।

‘दीदी, सोचते तो हम भी ऐसा ही हैं। ठीक है, नानी से सलाह करते हैं। सब साथ-साथ रहने लगेंगे तो अनेक समस्याओं का हल निकल आएगा,’ विषय बदलते हुए सलोनी ने पूछा, ‘तो कब आ रही हो दीदी तुम माँ के पास?’

‘एक तारीख़ के आसपास टिकट बनवाना चाहती हूँ। तुम भी आ जाओ तो खूब मज़ा रहेगा।’

‘कुछ करती हूँ दीदी, एक-दो दिन में हमारी टीचिंग प्रैक्टिस की डेट आनी है, उसके बाद हम अपना कार्यक्रम बनाएँगे।’

‘फिर तो रक्षाबंधन भी आ जाएगा …. सचमुच बहुत मज़ा आएगा … बेबी बबुआ को राखी बांध देगी।’

‘भाग्या, तुम किसको राखी बाँधोगी,’ सलोनी का स्वर उदास हो गया।

‘मैं अपनी छुटकी दीदी सलोनी को राखी बाँधूँगी… उम्र में छोटी होने के बावजूद वही तो हर प्रकार से मेरा मार्गदर्शन करती है … सलोनी, तुम्हारे कारण मैं अपने आप को बहुत सुरक्षित अनुभव करती हूँ। पिछले जन्म में अवश्य तुम मेरी माँ रही होगी,’ भाग्या ने पलटकर प्रश्न किया, ‘एक बात तो बता, तुम रक्षाबंधन पर किस को राखी बाँधोगी?’

‘प्रत्येक वर्ष तो हम यहाँ अपने पीपल दादा को राखी बांधते हैं। यह हमें भरपूर ऑक्सीजन देकर हमारे जीवन की रक्षा करता है। दीदी, सचमुच में ये वृक्ष ही तो हैं जो हमें ज़िंदा रखने के लिए सब कुछ देते हैं। जीवनदायिनी ऑक्सीजन, भोजन देते हैं तथा प्रकृति का संतुलन बनाए रखते हैं। तभी तो हम लोग ज़िंदा रहते हैं। इस प्रकार ये हमारे सबसे बड़े रक्षक हैं। तभी तो हम कई वर्षों से अपने पीपल दादा को राखी बांधते हैं और वृक्षों की रक्षा करने का संकल्प लेते हैं। इस बार यदि दिल्ली में होंगे तो कॉलोनी के पार्क में किसी भी वृक्ष को भाई बनाकर उसकी पूजा अर्चना करके राखी बांध देंगे।’

‘सच कहूँ सलोनी, जीवन को देखने का, उसमें उत्सव तलाशने का तुम्हारा नज़रिया एकदम अलग है। हम तो प्रत्येक रक्षाबंधन के दिन भाई को याद करके उदास हो जाते हैं। सचमुच, मेरी छुटकी बहुत निराली है। दुनिया में सबसे श्रेष्ठ है मेरी छुटकी दीदी …. मुझे तुम पर बहुत गर्व है।’

‘अच्छा, झूठी-मूठी बातों से अपनी चोंच बंद कर, अब हम फ़ोन रखते हैं। बाय दीदी।’

‘लो, बेबी की नींद खुल गई है … चलो, अपनी बेबी से बात कर लो।’

‘हैलो बेबी, … हैलो … हम तुमसे मिलने दिल्ली आएँगे, तब तुम्हारे साथ खूब मस्ती करेंगे। … अच्छा दीदी, फ़ोन रखती हूँ।’

‘ठीक है छुटकी,’ कहते हुए भाग्या ने फ़ोन बंद कर दिया।

जब भाग्या को सलोनी पर बहुत प्यार आता है तो वह उसे छुटकी कहकर सम्बोधित करती है।

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