Chutki Didi - 9 in Hindi Fiction Stories by Madhukant books and stories PDF | छुटकी दीदी - 9

छुटकी दीदी - 9

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एक छोटा-सा परिवार एकत्रित हुआ तो माँ के घर में शादी जैसा त्योहार हो गया। सलोनी और नानी कोलकाता से पहुँच गईं। बड़की दीदी भाग्या अपने दोनों बच्चों के साथ आ गई तथा सिमरन भी सारा दिन नन्हे-मुन्ने बच्चों के साथ खेलने के लालच में वहीं रहने लगी। ख़ाली-ख़ाली रहने वाले परिवार के सदस्य अचानक व्यस्त रहने लगे।

सलोनी ने नौकरी सम्बन्धी सारी औपचारिकताएँ पूरी कर दीं। स्कूलों में ग्रीष्म अवकाश की छुट्टियाँ चल रही थीं, इसलिए एक जुलाई से स्कूल खुलेंगे तो सलोनी की ड्यूटी चालू हो जाएगी।

बचपन से सलोनी की आदत थी, वह अपने लिए बहुत ही आवश्यक खर्च करती थी। बचपन में दोनों बहनों को जेब खर्च के पैसे मिलते तो वह बड़की दीदी भाग्या को ही दे देती या उसके लिए कोई सामान ले आती। जब भी वह कुछ ख़रीदारी के विषय में सोचती तो छुटकी पहले बड़की दीदी के लिए ख़रीदने की बात कहती।

बड़की दीदी बचपन से लालची और झगड़ालू स्वभाव की रही। बाज़ार से सब सामान वही ख़रीद कर लाती थी। सामान तो बहुत होशियारी से ख़रीदती थी, परन्तु बीच में कमीशन अवश्य रख लेती। नानी प्रायः टोक देती, ‘छुटकी बहुत समझदार और संतोषी लड़की है,’ पास में रहने से नानी को उससे अधिक प्यार हो गया था। इसलिए वह हमेशा सलोनी की प्रशंसा करती रहती।

सामने वाले फ़्लैट में अग्रवाल जी रहते थे। अग्रवाल जी की पत्नी वीणा से भी माँ का बहुत प्रेम था। जैसे ही छुटकी अपनी नौकरी लगने का प्रसाद देने गई तो वीणा भी  ज्योत्सना को बधाई देने उसके साथ आ गई।

‘अरे ज्योत्सना, बधाई हो। छुटकी तो एकदम टीचर बन गई। कभी इसको छोटी-सी देखा था।’

‘वीणा, बड़की को जुड़वाँ बच्चे हुए हैं, वह भी आई है। मेरी माई भी कोलकाता से आई है। सब दिन भर बच्चों के साथ लगे रहते हैं।’

‘ज्योत्सना, हमने यह मकान बेचना है … देखो, आपके सामने है …. आवश्यकता है तो ख़रीद लो, सबसे पहले आपके लिए है …।’

‘बहन, ना तो हमें आवश्यकता है और ना ही हमारे पास इतने पैसे हैं।’

‘अरे, अपने किसी जानकार को दिलवा दो, कम-से-कम पड़ोस तो अच्छा रहेगा।’

‘ठीक है बहन, सोचते हैं।’

‘आप अपने लिए ख़रीदें तो हमें सब शर्तें मंज़ूर हैं। आपके परिवार को तो हम अपने परिवार का ही हिस्सा मानते हैं। आपके पास जाएगा तो हमें लगेगा कि अपने ही पास है।’

सलोनी सब बातें ध्यान से सुन रही थी, उसकी जिज्ञासा बढ़ी तो उसने पूछ लिया, ‘आंटी, किसी को बताना भी पड़े तो इसकी क़ीमत क्या बताएँ?’

‘देखो बेटी, तुमसे तो कोई पर्दा नहीं है। प्रॉपर्टी डीलर को दिखाया था। उसने कहा है कि पचास से सत्तर लाख के बीच में सौदा बनना चाहिए। तुम लोग एक-दो दिन में विचार कर लेना। कोई ग्राहक आया भी तो पहले हम तुमसे चर्चा करेंगे।’

‘धन्यवाद आंटी। आप हमारी माँ को इतना सम्मान देती हैं, बहुत अच्छा लगा।’

‘हम दोनों एक-दूसरे से पूछकर सब काम करते हैं। ठीक है बहन। अब चलती हूँ।’

वीणा के जाते ही सलोनी ने नानी को वहीं बुला लिया। सबके सामने उसने अपनी बात रखी - ‘नानी, हमारे सामने वाला फ़्लैट वीणा आंटी का है। वे बेचकर अपने बेटे के पास अमेरिका जाना चाहते हैं। नौकरी के कारण हमें अब दिल्ली में ही रहना पड़ेगा। यदि आप इस फ़्लैट को ख़रीद लें और यहाँ आ जाएँ तो सब साथ रह सकते हैं। आपकी बात भी रह जाएगी, क्योंकि बार-बार आप कहती हैं कि बेटी के घर में कैसे रहूँ।’

‘पैसा कहाँ से आएगा?’ नानी ने शंका प्रकट की।

‘नानी, कोलकाता वाला मकान बेच देते हैं तो लगभग हमारे पास एक करोड़ रुपया आ जाएगा। पचास लाख का यह फ़्लैट ख़रीद लेंगे और पचास लाख नानी के पास बच जाएगा, जिसे यदि बैंक में जमा करवा दिया जाए तो प्रत्येक मास इतना ब्याज मिल जाएगा कि ख़र्चा आसानी से निकल जाएगा।’

‘सोचते हैं छुटकी। रात को फिर से सब बातों पर विचार करते हैं। अब तो मेरे लिए अकेला रहना भी कठिन हो जाएगा। ठीक है, शान्ति से विचार बनाते हैं। चलो, खाना खा लो।’

खाना खाते हुए भी सब मकान के विषय में सोचते रहे। ज़िन्दगी का बहुत बड़ा निर्णय था, इसलिए सब प्रत्येक पहलू पर सोच-विचार कर लेना चाहते थे। भाग्या को जब यह बात बताई तो वह भी शत-प्रतिशत सहमत हो गई।’

रात को बिस्तर पर जाकर सबने इस विषय पर चिंतन किया कि माँ के सामने वाला फ़्लैट नानी के लिए ख़रीदा जाए या नहीं।

सबसे महत्त्वपूर्ण चिंतन तो नानी का था। उन्होंने सोचा, सलोनी ने अब तक मुझे सगी बेटी की तरह प्यार दिया है, … मेरी देखभाल की है, … अब उसने ज़िद पकड़ रखी है कि शादी तब करेगी जब कोई ऐसा लड़का मिल जाए जो मेरी और उसकी माँ को भी सँभाल सके। संयोग से कोई लड़का मिल भी गया तो वह एक को दिल्ली और दूसरी को कोलकाता में कैसे सँभालेगा और फिर उसे अपना घर भी तो सँभालना होगा। कोलकाता तो हमारी व्यापारिक भूमि है। व्यापार करके धन कमाकर सब अपने देश में लौट आते हैं। कोलकाता तो कोसों दूर है। यहाँ तो सब अपने हैं। चारों ओर सगे-सम्बन्धी रहते हैं। एक-दो घंटे में कोई भी रिश्तेदार पहुँच सकता है। … बेटी के घर में आकर पड़े रहना तो मुझे कभी पसन्द नहीं था, परन्तु अलग मकान में तो कोई परेशानी नहीं है, चाहे उसका कोई सम्बन्धी आए, चाहे हमारा।… सबसे बड़ी कठिनाई तो यह है कि एकदम नगद ब्याना देने का काम कैसे बनेगा? कोलकाता का मकान बिकना कौन-सा इतना आसान काम है…. परन्तु एक बार कष्ट उठाकर भविष्य में सुख हो जाए तो वह कष्ट तुरन्त उठा लेना चाहिए … खैर, जो भी हो, कल बैठकर सब बातों पर विचार करेंगे। …. वैसे एक बात तो है, वहाँ के पड़ोसियों जैसा साथ तो यहाँ नहीं मिल पाएगा, विशेषकर सुकांत की माँ जैसा, जो चौबीस घंटे सहायता करने के लिए तैयार रहती है …. परन्तु कुछ बड़ा पाने के लिए छोटे-छोटे लालच तो छोड़ने ही पड़ेंगे …. आख़िर सलोनी ने सबके भले के लिए ही सोचा है। … सब चिंतन करने के बाद उन्होंने अपनी स्वीकृति दे दी।

……..

माँ बहन देर तक फ़्लैट के विषय में सोचती रहीं। वीणा का फ़्लैट तो हमारे फ़्लैट से भी अच्छा है। … छह महीने पहले इसका बेटा अमेरिका से आया था, तब इसने सारे मकान की मरम्मत, सफ़ेदी-रोगन कराया था … बिल्कुल नए जैसा बन गया है … इतना समीप ऐसा अच्छा मकान कभी भी नहीं मिलेगा। … वीणा तो हमेशा मेरा बहुत आदर करती है … शायद पचास लाख में ही मान जाए। इतना सस्ता मकान इस कॉलोनी में नहीं मिल सकता। फिर माई हमारे साथ रहेगी तो एक-दूसरे का बहुत सहारा रहेगा। साथ रहेगी तो हमको इनकी चिंता भी नहीं रहेगी। सबसे बड़ी कठिनाई कोलकाता वाले मकान को बेचने तथा यहाँ रजिस्ट्री कराने की है। वैसे तो हमारी छुटकी बहुत समझदार है, परन्तु कभी इतना बड़ा लेनदेन उसने किया नहीं। हाँ, सीताराम भाई से सहायता ली जा सकती है। मेरा जो रुपया उसके पास जमा है, उसे वापस लेकर वीणा को ब्याना दिया जा सकता है, बाद में जैसे ही कोलकाता का मकान बिकेगा, फ़्लैट की रजिस्ट्री करा ली जाएगी।

भाग्या ने तो इस बात को सुनते ही अपना फ़ैसला सुना दिया। यह फ़ैसला आज तक का हमारे लिए सबसे अच्छा फ़ैसला है। सलोनी ने तो सब सोचकर इस बात को आगे बढ़ाया था, फिर भी वह आगे की सोचती रही। .. बाक़ी सब तो ठीक हो जाएगा, परन्तु कोलकाता का मकान बेचना … कब बिकेगा … कितने का बिकेगा … यदि अपनी गरज से बेचेंगे तो ठीक क़ीमत नहीं मिलेगी … और यहाँ वीणा आंटी मकान को जल्दी बेचना चाहती है, क्योंकि उन्हें बेटे के पास अमेरिका जाना है, इसलिए वे जाने से पहले रजिस्ट्री कराना चाहेगी …। हाँ, कोलकाता के मकान के बारे में हमें सुकांत बाबू की सहायता लेनी पड़ेगी और यहाँ माँ के चचेरे भाई से … क्योंकि माँ का लेनदेन उन्हीं से चलता है ..। सुकांत बाबू को शायद यह निर्णय अच्छा ना लगे … वह तो हमारी दिल्ली की नियुक्ति को लेकर ही उदास हो गए थे … जब उन्हें पता लगेगा कि हम सब स्थाई रूप से दिल्ली शिफ़्ट हो रहे हैं तो वे बिखर जाएँगे … कल जब उनका कोलकाता से फ़ोन आया तो कितने दुखी थे … ‘सलोनी, इस बार तो घर आना बहुत कष्टदायक लग रहा है। बार-बार नज़र तुम्हारे घर की ओर घूम जाती है। मुख्य द्वार पर ताला लटका देखता हूँ तो लगता है, मेरी क़िस्मत को ही ताला लग गया है। सच सलोनी, इस बार तुम यहाँ नहीं हो तो अकेलापन मुझे काट रहा है। शान्तिनिकेतन में मेरा कोर्स लगभग पूरा हो गया है। अब तो वहाँ कभी-कभी ही जाना पड़ेगा, बस नौकरी के लिए भागदौड़ करनी है …।’

‘केवल दिल्ली के लिए करना, सुकांत बाबू।’

‘ठीक है सलोनी, मुझे तुम्हारी शर्त याद है, लेकिन तुम कोलकाता कब आ रही हो? … मेरी अम्मा तुम्हारी नानी को बहुत याद करती है,’ नानी के माध्यम से उसने अपनी पीड़ा को व्यक्त किया।

‘हाँ सुकांत बाबू, हमारी नानी भी उनको बहुत याद करती है। अगले सप्ताह पच्चीस तारीख़ की हमारी टिकट है।’

‘पता नहीं, यह पहाड़ जैसा सप्ताह कैसे कटेगा!’

‘घबराओ नहीं, ये दूरियाँ प्यार को अधिक गहरा बना देती हैं। हम आपके लिए ढेर सारा प्यार लाएँगे। ओ.के., ख़ुश रहना, अब हम फ़ोन रखते हैं।’

सलोनी ने अपने मन को मज़बूत किया, सुकांत बाबू की नौकरी भी तो दिल्ली में लग सकती है। देखा जाएगा, परन्तु कल हमें इस फ़्लैट का तो फ़ैसला कर ही लेना चाहिए।

……..

सुबह जब नाश्ता करने के लिए बैठे तो सबके मन में फ़्लैट की ही बात चल रही थी। इसकी शुरुआत छुटकी ने की - ‘माँ और तो हमारे लिए सब अच्छी बातें हैं, परन्तु एक कठिनाई लगती है कि वीणा आंटी को फ़्लैट जल्दी बेचना है और हमें कोलकाता वाला मकान बेचने में समय लग सकता है। इसके अतिरिक्त हमें फ़्लैट का पक्का करने के लिए कुछ राशि तो उन्हें देनी ही पड़ेगी।’

‘मेरी भी यही चिंता है,’ नानी ने उसकी बात का समर्थन किया।

माँ ने समाधान प्रस्तुत किया - ‘देखो, अपना सीताराम भाई के पास लेनदेन रहता है। दस लाख रुपया तो हमें उनसे मिल सकता है, जो हम वीणा को देकर फ़्लैट पक्का कर लेंगे, बाक़ी तुम अपनी नानी के साथ एक बार कोलकाता चली जाओ, मकान बिक ही जाएगा। सब साथ-साथ रहने का आनन्द लेना है तो भागदौड़ तो करनी ही पड़ेगी। समय रहते सब अपने कन्ट्रोल में कर लेंगे तो अच्छा है। बाद में तो किसी से सँभाला भी नहीं जाएगा।’

सुनकर सलोनी उत्साहित हो गई। सबसे बड़ी समस्या का समाधान माँ ने कर दिया।

‘हम आज ही वीणा आंटी से बात कर सकते हैं।’

‘ठीक ग्यारह बजे तक उनके पति भी घर पर होते हैं। उनके सामने ही सब बातें हो जाएँ तो अच्छा है। मैं वीणा को फ़ोन कर देती हूँ और नाश्ता करने के बाद हम उनके पास चलते हैं। भगवान चाहेंगे तो काम बन जाएगा।’

यह सुनकर नानी ने कहा, ‘ठीक है बेटी, मेरे बैग से एक चाँदी का सिक्का निकाल ले। यदि ठीक-ठाक क़ीमत में बात बन गई तो उनको टोकन के रूप में दे देंगे।’

फ़्लैट में वीणा आंटी ने भरपूर स्वागत किया। नानी ने उसका सजा-धजा ड्राइंगरूम देखा तो सोचने लगी - ‘हे कान्हा जी, इतना सुन्दर फ़्लैट!  …इस कार्य को सफल करना।’

‘क्या लोगी, सलोनी?’ वीणा ने पूछा। 

‘कुछ नहीं आंटी, अभी नाश्ता करके आपके पास आए हैं।’

‘अरे ज्योत्सना, आपकी माई हमारी भी माई हैं। पहली बार हमारे घर आई हैं, हमारे तो भाग्य खुल गए।’

‘कल तुमने फ़्लैट की चर्चा की तो हमारा मन कुछ-कुछ तैयार हुआ, क्योंकि हम माई को यहीं लाने की सोच रहे हैं। साथ-साथ रहेंगे तो एक-दूसरे का दुख-सुख बाँट लेंगे।’

‘बहुत अच्छी बात है ज्योत्सना। आपको यह फ़्लैट देकर हमें बहुत ख़ुशी होगी। कल को हमें यहाँ एक-दो दिन के लिए रहना भी पड़ जाए तो आपके पास ठहर तो जाएँगे।’

‘ऐसा ना कहो वीणा। यह फ़्लैट हमारे पास रहे या ना रहे, फिर कभी दिल्ली में आना हो तो हमारे पास ही रहना,’ ज्योत्सना ने अधिकार पूर्वक कहा।

वीणा के पति ने कहा - ‘भाभी जी, आपको तो शायद मालूम नहीं, आपके पति ने ही हमें यह फ़्लैट दिलवाया था। उनके हम पर बहुत उपकार हैं। हम इस फ़्लैट की चाबी आपको ही देकर जाएँगे, आप चाहे इसका कुछ भी करना।’

‘फिर भी भाई साहब, इसकी क़ीमत निश्चित कर लें तो अच्छा रहेगा। हम कुछ टोकन मनी आपको दे देंगे।’

‘देखो भाभी जी, तीन-चार दिन पहले एक प्रॉपर्टी डीलर को बुलाया था। उसने हमको पचास से साठ लाख रुपए का सौदा बताया था। अब आप जैसा ठीक समझो, फ़ैसला कर लो।’

‘तो अंकल जी, आप हमारे लिए पचास लाख में निश्चित कर दो। पापा ने आप पर उपकार किए, आप हम पर उपकार कर दो,’ सलोनी ने नि:संकोच कह दिया।

‘देखो भाभी जी, छुटकी हमारी बेटी जैसी है। इसने जो कहा है, हम इसकी बात को इनकार नहीं करेंगे। आप परेशान मत होना, जैसे चाहो, पेमेंट कर देना।’

‘धन्यवाद भाई साहब। आज या कल में हम दस लाख देकर अनुबंध करवा लेंगे। जैसे ही हमारा कोलकाता वाला मकान बिक जाएगा तो चालीस लाख रुपए आपको देकर इसकी रजिस्ट्री करवा लेंगे।’

‘अरे, कोलकाता में आपने मकान बेचना है तो हमारे को बताना। वहाँ हमारे बहुत व्यापारी रहते हैं। कोई-न-कोई ग्राहक मिल ही जाएगा।’

‘अंकल जी, आपने तो हमारी सारी समस्या ही हल कर दी। हम परसों ही कोलकाता जी रहे हैं।’

‘ठीक है बेटा, तुम कोई चिंता ना करना।’

‘देखो, तुम मेरी बेटी जैसी हो,’ नानी उठकर वीणा के समीप आ गई, ‘इस ख़ुशी के अवसर पर यह मेरा शगुन ले लो,’ कहते हुए नानी ने चाँदी का सिक्का उसके हाथ पर रख दिया।

वीणा ने सिक्का हाथ में लेकर माथे से लगा लिया, ‘यह मेरी माँ का प्रसाद है। … देखो ज्योत्सना, एक बात और कहती हूँ। हमें तो यहाँ का सब सामान बेचना है, जो चाहिए, रख लेना। किसी को भांग के भाड़े देकर क्या फ़ायदा?’ वीणा उनको द्वार तक छोड़ने आई।

‘ठीक है बहन। आपका बसा-बसाया घर है। हमको भी कोलकाता से अधिक सामान नहीं लाना पड़ेगा,’ कहते हुए ज्योत्सना बरामदा पार कर गई।

माँ अपने पूजा घर के सामने जाकर गोपाल जी की कृपा का आभार प्रकट करने लगी। भाग्या भी सब समाचार सुनकर बहुत ख़ुश हुई। सलोनी सोच रही थी, जो कार्य हमें पहाड़ जैसा लग रहा था, भगवान ने चुटकी में सब आसान कर दिया। हे भगवान, तेरी अनुकंपा अपरंपार है!

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Sushma Singh

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