छुटकी दीदी - 8 books and stories free download online pdf in Hindi

छुटकी दीदी - 8

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सेन्ट्रल स्कूल का नियुक्ति पत्र आया तो कौतुहलवश खोलते हुए सलोनी के हाथ काँपने लगे।

‘नानी, हमारी नौकरी लग गई और वह भी दिल्ली में,’ ज़ोर से चिल्लाकर सलोनी नाचने लगी। दोनों हाथ ऊपर उठाकर ईश्वर का धन्यवाद करने लगी। आवाज़ सुनकर नानी भी वहाँ आ गई, ‘क्या हुआ छुटकी?’

‘नानी, हमारी नौकरी लग गई स्कूल में, और वह भी दिल्ली के स्कूल में।’ सलोनी नानी को गोद में उठाकर नाचने लगी।

नानी ने इस ख़ुशी पर मन्दिर में पाँच सौ रुपए का प्रसाद बाँटने का संकल्प लिया था।

‘हे भगवान, आपने मेरी छुटकी की सब ज़िम्मेदारी पूरी कर दी। अब चाहे वह अपनी माँ के पास …,’ सोचकर नानी की आँखें भर आईं।

‘अरे नानी, हम तुम्हें छोड़कर कहीं नहीं जा सकते। हम तुम्हें अपने साथ रखेंगे। जहाँ छुटकी रहेगी, वहाँ उसकी नानी। अब तक तुमने हमें पाल पोसकर पाँवों पर खड़ा किया है तो अब हम तुम्हारा सहारा बनेंगे। अपने साथ ले जाऊँगी तुम्हें दिल्ली हवाई जहाज़ पर बैठाकर।’

‘छुटकी, अपनी माँ को भी फ़ोन करके बता दे, सुनकर वह भी ख़ुश हो जाएगी।’

‘हाँ, नानी,’ कहकर सलोनी ने माँ को फ़ोन लगाया।

माँ किचन में नाश्ता बना रही थी। सलोनी का फ़ोन देखकर उसने गैस बंद कर दिया।

‘प्रणाम माँ, एक ख़ुशी का समाचार है।’

‘अरे! बता बेटी। बहुत दिनों बाद ख़ुशी का समाचार आया है। जल्दी से बता, मेरी छुटकी।’

‘माँ, हमारी स्कूल में नौकरी लग गई है और वह भी दिल्ली में। हम अब जल्दी ही दिल्ली आ रहे हैं ।’

‘वाह बेटी, … छुटकी होकर भी तूने बड़ा कमाल कर दिया। इस ख़ुशी में मैं माता रानी की चुनरी चढ़ाऊँगी। और सुन, अगले सप्ताह भाग्या भी आ रही है। सब मिलकर ख़ुशी मनाएँगे।’

‘हम नानी को भी अपने साथ लाएँगे।’

‘ज़रूर लाना बेटी, सब नानी का ही आशीर्वाद है। नानी ही तो हम सबकी जन्मदात्री है। सब मिलकर ख़ुशियाँ मनाएँगे। ला, एक बार माई से भी बात करा दें।’

सलोनी ने फ़ोन नानी को दे दिया।

‘माई, आप छुटकी को लेकर चिंता करती थी कि दो-दो लड़कियाँ हो गईं, भविष्य में क्या होगा। अब बताओ, हमारी छुटकी किसी लड़के से कम है?’

‘नहीं बेटी, छुटकी तो लड़कों से भी अधिक समझदार है।’

‘माई, छुटकी के साथ अवश्य आ जाना। कुछ दिन साथ मिलकर ख़ुशी मनाएँगे।’

‘ठीक है, आ जाऊँगी।’ नानी ने दिल्ली जाना स्वीकार कर लिया।

सलोनी ने पुनः अपने नियुक्ति पत्र को पढ़ा और उसे सँभाल कर अपनी टेबल की दराज में रख दिया।

…….

सलोनी के हाथ में जैसे ही नियुक्ति पत्र आया तो अपनी प्रथम ख़ुशी वह सुकांत के साथ साझा करना चाहती थी, परन्तु जैसे ही उसकी दृष्टि घड़ी पर पड़ी तो उसने अपना हाथ रोक लिया। इस समय वे कक्षा में होंगे। बीस मिनट बाद सभी कक्षाएँ समाप्त हो जाएँगी तो इत्मीनान से बातें करेंगे। समय व्यतीत करने के लिए सलोनी पत्रिका पढ़ने लगी।

हाँ, अब तो कक्षा समाप्त हो गई होगी, सोचकर सलोनी ने नंबर मिलाया।

‘हैलो सलोनी?’

‘बहुत बड़ी ख़ुशी का समाचार है, सुकांत बाबू।’

‘जल्दी से सुनाओ।’

‘हमारा नियुक्ति पत्र आ गया है सेन्ट्रल स्कूल दिल्ली से।’

‘वाह-वाह, कमाल हो गया! बहुत-बहुत बधाई हो,’ सुकांत बाबू ने एक बार फ़ोन को चूम लिया। फिर अचानक उसका उत्साह ठंडा पड़ गया, ‘बहुत ख़ुशी है, परन्तु मेरे लिए यह समाचार अच्छा नहीं है।’

‘हाँ, यह बात तो हम भी सोच रहे थे। अब तक तो प्रत्येक मास आपसे मुलाक़ात हो जाती थी। फिर तो मिलने में बड़ा अंतराल हो जाएगा। इस ख़्याल से तो हम भी आहत हो गए हैं। समझ नहीं आ रहा,  आपको पा पाऊँगी या नहीं?’

‘घबराओ नहीं सलोनी, जीवन में बहुत विकल्प हैं। क्या तुम्हें मुझ पर भरोसा है?’

‘हाँ, है। अपने से भी अधिक। सुकांत बाबू, हम आपको विश्वास दिलाते हैं कि यदि सलोनी का विवाह होगा तो आपसे, नहीं तो सलोनी आजीवन कुँवारी ही रहेगी। आप इसे हमारी भीष्म प्रतिज्ञा समझ लें,’ सलोनी ने दृढ़ता से कहा। 

‘तो सलोनी, मैं भी तुम्हारे सामने सौगंध लेता हूँ, यदि किसी के साथ चलना होगा तो वह तुम होगी अन्यथा हमेशा अकेला ही जीवन की यात्रा पूरी करूँगा।’

‘क्या सुकांत बाबू, ख़ुशी का समाचार था और हम इतने गंभीर हो गए! कल की कल देखेंगे। आज हमारे पास यह ख़ुशी आई है तो इस ख़ुशी का उत्सव मना लें। बोलो, क्या खाओगे?’ सलोनी का स्वर मधुर और स्निग्ध हो गया।

‘सुनो, रसगुल्ला रस में डूबा हुआ।’

‘समझ गई। तो लो,’ … पिच … पिच … पिच … जीभ को होंठ से लगाकर तीन बार मीठी रसीली आवाज़ निकाली तो सुकांत बाबू का मन मीठा आनन्द देने वाले रस से सराबोर हो गया।

‘थैंक्यू सलोनी, थैंक्यू। तुम्हें ढेर सारी बधाई। ईश्वर से प्रार्थना है, तुम जीवन की सभी ऊँचाइयों को छुओ।’

‘थैंक्यू डियर, थैंक्यू,’ कहते-कहते सलोनी ने फ़ोन बंद कर दिया। पहली बार सलोनी के मुख से ‘डियर’ सुनकर सुकांत मंत्र-मुग्ध हो गया।

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