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फुल टाइम मेड


दोपहर को जैसे ही रुचि घर में घुसी घर का नजारा देख उसका खून खौल गया।सिंक बर्तनों से भरी थी। गीले तौलिए बेड पर पड़े उसे मुंह चिढ़ा रहे थे और चिप्स के पैकेट सैंटर टेबल पर पड़ेहंस रह थे।कुछ कपड़े जो वह सुबह-सुबह सुखाकर गई थी कड़ी धूप में पड़े रूचि के साथ साथ अपनी किस्मत को रो रहे थे।उसने बच्चों के कमरे में जाकर देखा। दोनों बच्चे अपने कान में ईयर फोन लगा किताब सामने रख मस्त मगन थे और पतिदेव का उसे पता था कि आज शनिवार था तो देर से उठे होंगे और आराम से अपना नाश्ता कर उसे लेट कर पचा रहे होंगे।
स्कूल से आते आते वैसे ही आज उसे काफी देर हो गई थी और घर की ऐसी अस्त व्यस्त हालत देख उसका माथा पीटने का मन कर रहा था।एक बार तो उसका मन हुआ बच्चों समेत पतिदेव को खूब खरी-खोटी सुनाए लेकिन फायदा क्या था। इससे पहले भी तो कितनी बार उन्हें समझाया लेकिन नहीं...!! आज तक किसी के कानों पर जूं रेंगी है जो अब उन्हें अक्ल आएगी।

उसने एक तरफ अपना पर्स रखा और घर को समेटने में लग गई।
"मम्मी आप कब आए! हमें तो पता ही नहीं चला।"दोनों बच्चों ने बेपरवाही से पूछा।
रुचि ने कोई उत्तर नहीं दिया और वह बाहर का काम समेट किचन में बर्तन मांजने लगी। खटपट की आवाज सुन उसके पतिदेव बाहर निकले और उसे किचन में बर्तन साफ करते देख बोले।
"अरे आते ही काम शुरू कर दिया। कुछ देर आराम कर लो काम तो होता रहेगा।"
इस पर भी रूचि का मन किया किया कह दे जैसे सुबह से हो ही तो रहा है।लेकिन वह मुंह पर ताला लगा चुपचाप काम में लगी रही।काम करके उसने दो निवाले अपने पेट में डालें और थोड़ी देर आराम करने के लिए लेट गई।

"क्या बात है तबीयत खराब है क्या आज!! अरे यार कुछ बताओ ना बताओगी नहीं तो पता कैसे चलेगा!!"रूचि की चुप्पी देख उसके पति देव ने माहौल को हल्का करने के लिए गाना शुरू कर दिया

तुम रूठा ना करो कि मेरी जान निकल जाती है
तुम हंसती रहती हो तो बिजली सी चमक जाती है।

बच्चे भी जो किसी काम से अपने कमरे से बाहर निकले थे । अपने पापा के गाने की आवाज सुन वहीं आ गए और हंसते हुए बोले

"अब तो मम्मी अपनी नाराजगी छोड़ ही दो। देखो तो पापा कितने प्यार से आपके लिए गाना गुनगुना रहे हैं।यह सुन रुचि से रहा नहीं गया और वह किसी तरह अपने गुस्से पर काबू कर शांत स्वर में बोली

" बेटा, मम्मी को बिना वजह गुस्सा करने की आदत नहीं।तुम्हें मेरा गुस्सा तो दिखा लेकिन अपनी कमियां नहीं। मैं भी आराम से तुम सबकी तरह घर को फैला छोड़कर गाना गुनगुना सकती हूं लेकिन नहीं..!! मैं ऐसा चाहूं भी तो नहीं कर सकती क्योंकि मैं तुम सबकी तरह लापरवाह नहीं। मुझे फिक्र है तुम सबकी।

लेकिन तुम तीनों को सिर्फ अपनी अपनी।।"

"ऐसा भी क्या कर दिया मम्मी हमनेएएएए....!!"

"यह भी मुझे बताना पड़ेगा। शायद आपको भी अब तक अंदाजा नहीं होगा तो सुनिए।नौकरी आप भी करते हैं और मैं भी!! पहले घर पास था और छोटा भी। मैं जल्दी घर आ जाती थी लेकिन अब दूर घर होने की वजह से मुझे आने में समय लगता है और उसे समेटने में भी।।बड़ा घर लेने का शौक मुझसे ज्यादा तुम तीनों को चढ़ा था। सबको अपने कमरे अलग चाहिए थे। अपना स्टेटस मेंटेन करना था।चलो आगे बढ़ना अच्छी बात है लेकिन अब इस घर को मेंटेन करने की जिम्मेदारी सिर्फ मेरी तो नहीं।।कामवालियों के रेट यहां पिछले घर से दुगने हैं तो सोचा था मिल बांटकर काम कर लेंगे।सबने सहमति जताई थी लेकिन धीरे-धीरे सबने अपने हिस्से की जिम्मेदारी है मेरे ऊपर डाल दी। क्या मैं इंसान नहीं।।आपकी तो सप्ताह में 2 दिन की छुट्टी होती है लेकिन मुझे तो सिर्फ संडे मिलता है।आप अपने ऑफिस कार से जाते हो और तुम दोनों आराम से स्कूल बस से। जो घर के आगे से ही तुम्हें ले जाती है लेकिन मैं कभी रिक्शा, कभी मेट्रो कितना चलना पड़ता है। थक जाती हूं मैं।कभी किसी ने सोचा है। हां तुम दोनों की पढ़ाई जरूरी है मानती हूं लेकिन अपना पढ़ाई का स्ट्रेस दूर करने के लिए जब तुम घंटा घंटा भर गाना सुन सकते हो तो अपनी मम्मी की हेल्प कराने के लिए 10-15 मिनट का समय नहीं निकाल सकते।

ऐसा है पतिदेव जो आप सबके सामने मेरी बड़ाइयों के सूखे पुलिंदे बांधते आए हो कि इसने तो हमेशा से घर का सारा काम अकेले ही बड़ी सुघडता से संभालती आईऔर मैं बेवकूफ भी इन बातों को सुन खुश होती आई हूं। यहां तक की इस घर की बड़ी लोन की किस्त को देखकर भी मैंने सोचा था जैसे अब तक मैनेज करती आई हूं आगे भी कर लूंगी लेकिन नहीं आप लोगों का रवैया देखकर अब नहीं।मैं भी इंसान हूं। मेरा शरीर कोई मशीन नहीं आपकी उम्र बढ़ रही है तो मेरी घट नहीं रही। मुझे भी अब आराम चाहिए।घर सबका, जिम्मेदारी सबकी। अगर सब जिम्मेदारी उठाने के लिए तैयार है तो मैं भी खुशी-खुशी अपने हिस्से की जिम्मेदारी उठाने के लिए तैयार हूं लेकिन अगर पहले की तरह सोचो कि मैं ही सारा काम करूं तो अब नहीं!!वरना सबकी तरह मेरे पास भी समय नहीं। फुल टाइम मेड लगाइए और आराम से चैन की बंसी बजाइए।"कहते हुए रुचि का गला रूंध गया।पति के साथ साथ दोनों बच्चों के पास कुछ भी कहने के लिए शब्द नहीं थे। कहते भी क्या... उन्होंने तो अपनी मम्मी को सुपर वूमेन समझा हुआ था। जो कभी थकती ही नहीं और पतिदेव उनके लिए तो उसकी पत्नी थी ही मशीन।अपनी दो छुट्टियां भी उन्हें कम लगती थी और पत्नी की एक छुट्टी वह तो घर की साफ सफाई के साथ-साथ उन सबकी फरमाइशों को पूरा करने में कब निकल जाती इस बारे में तो उन्होंने कभी सोचा ही नहीं।

आज इतने बड़े मकान के कारण जो यार दोस्तों में उनकी वाहवाही हो रही है। उसमें आधे से ज्यादा श्रेय उनकी पत्नी का ही था।उसके बाद भी!!!
"सॉरी रुचि! गलती मेरी ही है। कभी मैंने इस ओर ध्यान दिया ही नहीं और मेरी परिपाटी पर ही यह दोनों चल पड़े। तुम हमेशा घर के कामों में लगा देख, हमें लगता था कि घर का कामकाज तुम्हारी जिम्मेदारी है और शायद तुम्हें इसे करके खुशी मिलती होगी लेकिन यह नहीं सोचा कि तुम्हें भी आराम की जरूरत है । तुम भी थकती होंगी।आज तुमने अपने मन का गुबार निकाल सही किया वरना मैं तो कभी समझ ही नहीं पाता।"
"मम्मी हम भी..!!" दोनों बच्चे अपनी मम्मी के पास बैठ उनके आंसू पोंछते हुए बोले।
" प्लीज इस बार हमें माफ कर दो । हम प्रॉमिस करते हैं कि आज के बाद आपको घर ऐसा बिखरा नहीं मिलेगा और जितना हो सकेगा हम आपकी हेल्प करेंगे।"

"हां रूचि!! मैं भी अपनी तरफ से खुद को बदलने की पूरी कोशिश करूंगा और एक बात। अगर तुम्हें लगता है कि तुम्हें फुल टाइम मेड रखनी चाहिए तो खुशी से रखो और भी तो खर्चे होते हैं। यह भी मैनेज कर लेंगे।तुम्हारी खुशी, तुम्हारा स्वास्थ्य रुपयों पैसों से बढ़कर नहीं।"रुचि का पति उसका हाथ अपने हाथ में लेते हुए बोला।
"नहीं माए डियर हस्बैंड और मेरे प्यारे बच्चों । मुझे अपने घर को अपने हाथों से सजाना संवारना और तुम्हें बना कर खिलाना अच्छा लगता है। इससे मुझे संतुष्टि मिलती हैं लेकिन बस अब बढ़ती उम्र में तुम लोगों का थोड़ा सहयोग चाहती हूं और कुछ नहीं।"

रुचि ने मुस्कुराते हुए कहा।सुनकर सबने हां में सिर हिला दिया। कुछ देर पहले जो घर का तनावपूर्ण माहौल था। वो अब हंसी खुशी में बदल गया।दोनों ही बच्चे अपनी मम्मी पापा के गले में बाहें डालते हुए खुशी से गाने लगेएक दूसरे से करते हैं प्यार हमएक दूसरे के लिए बेकरार हम।

दोस्तों कैसी लगी आपको मेरी यह रचना और कहानी में व्यक्त विचार। अपनी राय कमेंट कर जरूर बताएं। सरोज ✍️