Jhopadi - 9 books and stories free download online pdf in Hindi

झोपड़ी - 9 - अगर तुम साथ हो

दादाजी और मैंने गांव वालों के साथ मिलकर अपनी शक्ति से बहुत ज्यादा काम कर दिया था। इसलिए हमने कुछ समय आराम करने की सोची। हमने काफी दिनों आराम किया। घूमे- फिरे। इससे हमें काफी रिलैक्स महसूस हुआ। काफी दिनों बाद हम पूरा आराम कर-कर के जब बोर हो गये। मतलब हमने जी भर कर आराम कर लिया, तब हमने कोई और कार्य करने की सोची। एक मेरे रिश्ते के चाचा गांव से बाहर जाकर बस गये थे। उनका घर काफी दिनों से खाली था। यह एक -दो कमरों का घर मुझे बहुत पसंद आया। क्योंकि यह एकांत में था। थोड़ी सी खाली जमीन भी यहाँ थी। मैंने यह घर सस्ते में खरीद लिया। इसके बाद मैंने पूरे घर का सामान बाहर चौक में रखवाया और पूरे घर की अपने हाथों से सफाई की। पूरे घर की अपने हाथों से रिपेयरिंग और चूना आदि किया। दरवाजे, बिजली के कनेक्शन और पानी का कनेक्शन सब मैंने अपने हाथ से ठीक किये। इसके बाद मैंने बाहर रखे सामान में से कुछ काम का सामान ठीक-ठाक करके घर के अंदर रख दिया और बाकी सामान कबाड़ में दे दिया और जो कबाड़ में नहीं दिया उसे जला दिया। 1-2 कमरों का ये घर कम सामान की वजह से काफी बड़ा और सुंदर लगने लगा। इसके बाद मैंने घर के बाहर की जमीन को अपने हाथ से समतल किया और उसकी बाउंड्री अपने हाथ से की। इसके बाद मैंने वहां सुंदर-सुंदर फलदार और फूलदार पौधे लगा दिए। अब खाली समय मैं कभी दादाजी के पास तो कभी इस छोटी सी कुटिया में गुजारने लगा। टाइम पास करने के लिए मैंने यहां एक अच्छी उन्नत नस्ल की गाय पाल ली। जिसे मैं चरने के लिए अगल-बगल छोड़ देता और शाम को उसका दूध दुह लेता।


इस घर में मुझे कुछ सुंदर-सुंदर पुस्तकें भी मिली थी। उनका मैंने अच्छी तरह से संरक्षण, बाइंडिंग और सुंदरीकरण किया और उन्हें पढ़ने लगा। यह प्राचीन समय की पुस्तकें थी। इन से मुझे बहुत ज्ञान प्राप्त हुआ। घर में मुझे एक सुंदर सी तलवार भी मिली थी। जिसे ठीक-ठाक कराकर मैंने अपनी बैठक में लटका दिया। खाली समय में मैं उससे तलवारबाजी का अभ्यास करने लगा। वहां मुझे एक सुंदर वीणा भी मिली थी। जिसकी रिपेयरिंग करके मैंने उसे भी बैठक में रख लिया। खाली समय में मैं इस पर संगीत की प्रैक्टिस करने लगा। इस तरह मैंने बहुत कम पैसों में एक सुंदर सा घर तैयार कर लिया। जो बहुत छोटा और एकांत में था। लेकिन मैंने इसे बहुत ही ज्यादा सुंदर और रमणीय बना दिया था। यहां मैंने क्योंकि एक उन्नत नस्ल की गाय रखी थी। इसलिए मुझे गौ सेवा का फल भी मिलने लगा। यहां मैं सभी काम अपने हाथों से करता था और सादगी से रहता था। सादगी से मतलब एक जींस की पेंट पहनता और एक जींस की कमीज पहनता। यहां मैंने कुल 1-2 जोड़ी कपड़े ही रखे थे।


यहां वक्त गुजारने में बड़ा मजा आता था। यहां आकर मेरा शारीरिक और मानसिक विकास बहुत ही ज्यादा तीव्र गति से होने लगा। बुद्धि में मैं अरस्तू के समान हो गया। रणनीति में सिकंदर के समान और शरीर में भीम के समान। यहां आकर मुझे लगा कि जैसे मेरी आयु बढ़ने की जगह घट रही है और शरीर बूढा़ होने की जगह जवान होता जा रहा है। कुछ एक दोस्तों को और दादा जी को भी मैं यह जगह देखने का मौका देता था। यह जगह देखकर उन्हें भी बहुत-बहुत भव्य और आध्यात्मिक अनुभूति होती और उन्हें इस जगह पर आकर बहुत ही ज्यादा अच्छा लगता।


यहां मैंने कुछ दिन बाद एक छोटा सा मंदिर भी बनाया। इस मंदिर में मैं रोज भगवान शिव की पूजा करने लगा। राम का नाम जपने लगा। मुझे विश्वास था कि एक दिन भगवान मेरी भक्ति से प्रसन्न होकर जरूर सशरीर प्रकट होंगे और कुछ वक्त मेरे साथ बिताएंगे और मुझे आशीर्वाद देंगे। कई बार सपनों में मुझे देवी -देवताओं के दर्शन हुए और कई बार मैंने यहां भगवान की उपस्थिति महसूस की। सच में मेरी ये छोटी सी कुटिया स्वर्ग लोक का ही एक छोटा सा रूप थी। मैंने इस कुटिया का नाम रखा मिनी स्वर्ग। एक दिन मौसी अपनी पोते की शादी में घूमने आई तो मजाक -मजाक में कहने लगी, बेटा यह कुटिया मुझे दे दो। यहां आकर मुझे ऐसे लगता हे कि मैं जीते जी बैकुंठ धाम में आ गई हूं। मैंने भी मजाक में कहा मौसी ले लो कुटिया और साथ में मुझे भी फ्री में ले लो। यह सुनकर सभी बहुत जोर- जोर से हंसने लगे। इस तरह आनंदमय रूप में हमारा समय कटने लगा। बीच-बीच में मैं गांव और अपने शहर के विकास पर भी ध्यान देता रहा। इस तरह हमारे अच्छे कर्मों की वजह से ही हमे शशरीर स्वर्ग प्राप्त हुआ और यह स्वर्ग कोई और नहीं, इसी पृथ्वी लोक में हमारे द्वारा रचा गया था। सच में मनुष्य चाहे तो इसी धरती को, अपने मोहल्ले को, अपने गांव को अपने कर्मों के द्वारा स्वर्ग बना सकता है।


आपको क्या लगता है? जीवन का आनंद क्या है? मानव जीवन का उद्देश्य क्या है? मनुष्य को कैसे जीना चाहिए? मनुष्य क्या बुरी शक्तियों से परे रह सकता है? क्या वो पूर्ण शराफत से जीवन व्यतीत कर सकता है? तो मेरा कहना है हां। मनुष्य को एक देवता की तरह जीना चाहिए और देवता की तरह जीते- जीते उसे सभी को देवताओं जैसे बनने की प्रेरणा देनी चाहिए। इस तरह से मनुष्य दया, करुणा आदि गुणों को अपनाकर बैकुंठधाम को धरती पर ही उतार सकता है। स्वर्गलोक का जो चित्रण मनीषियों ने किया है, उस स्वर्गलोक को इसी धरती पर साकार कर सकता है।


सत्य है मनुष्य के अंदर अगर अच्छे गुण हैं। मतलब परमात्मा है तो वह बेधड़क कह सकता है। हे परमात्मा अगर तुम हमारे साथ हो तो हमें किस चीज की कमी है? दैहिक, दैविक और भौतिक आपदाये हमारा क्या बिगाड़ सकती हैं? हम बिंदास होकर जी सकते हैं। अगर हे भगवान तुम हमारे साथ हो।


तो प्रिय मित्रों, प्रिय पाठको आपको क्या लगता है? आप और हम इस धरती को स्वर्ग बना सकते हैं कि नहीं? लेकिन कहना तो पड़ेगा अगर भगवान तुम हमारे साथ हो तो यह धरती क्या हम तो नरक लोक को भी स्वर्गलोक बना सकते हैं।