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उजाले की ओर –संस्मरण

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स्नेही मित्रों !

सस्नेह नमस्कार

आज जबसे मीरा आई थी, भुनभुनाती चली जा रही थी | खासी उम्र है मीरा की | हम सब एक ही कॉलोनी में कई वर्ष रह चुके थे | बाद में सबने अपने-अपने घर बना लिए। स्वाभाविक था अब मिलना काफ़ी कम होने लगा था | कभी जन्मदिवस पर, किसी छोटे-मोटे फ़ंक्शंस पर पुरानी कॉलोनी के सब लोग इक्कठे हो जाते और पुराने दिनों की याद करके खूब इन्जॉय करते |

यह तब की बात है जब हममें से कइयों की नई-नई शादी हुई थी | अपने घरों को छोड़कर आना और अपने बालपन को,किशोरावस्था को, कॉलेज के दिनों को याद करना स्वाभाविक था | उन दिनों कोई कॉलेज छोड़कर आया था तो कोई अपना संगीत,कोई नृत्य और कोई पेंटिंग !हाँ, अपने परिवार को, परिजनों को, बालपन के दोस्तों को तो सभी छोड़कर आए थे और आपस में ही उन रिश्तों को तलाश कर रहे थे जिनसे बचपन से लड़ते झगड़ते बड़े हुए थे।

मीरा बहुत अच्छी कलाकार थी | बहुत सुंदर कत्थक की नृत्यांगना ! नीना बहुत अच्छी पेंटर थी | मैं थोड़ा-बहुत गा लेती थी | यानि जब भी कभी छुट्टी होती हम सब मिलकर खूब उधम मचाते और अपना बचपन और कॉलेज का समय याद करते | लेकिन अब जब बरसों से सबने अलग घर बना लिए थे दूरी के कारण मिलना कम ही होता जा रहा था जो नए वातावरण में खोजने पर भी नहीं मिल रहा था | वैसे, रिश्ते खोजने से कहाँ मिलते हैं। वे तो बस बन जाते हैं जाने कैसे?

एक लंबे अंतराल के बाद हम सब फिर से मिलने की कोशिश करने लगे। मिले भी लेकिन कुछ के स्वभाव में एक बड़ा बदलाव आ चुका था | पहले तो समझ नहीं आया कि जब हम शुरू में साथ रहते थे तब कैसे रहते थे और अब बड़ी उम्र होने पर कितना बदलाव आ गया था! आखिर क्यों?

उस दिन मीरा को देखकर तो बहुत दुख हुआ क्योंकि वह बहुत अच्छी नृत्यांगना थी | उसके हाव-भाव इतने सुंदर होते थे कि हम सब उसकी मुद्राओं पर फ़िदा हो जाते | आज उसमें बदलाव देखकर तकलीफ़ हुई | वह ऐसी लड़की थी जो हर परेशानी में सबके लिए ढाल बनकर खड़ी हो जाती | सबके सामने, सबके लिए खड़ी रहती | हम सब अगर संकोच भी करते तो वह थी न सबकी क्लास लेने वाली !

हम सब बीच-बीच में कुछ देर के लिए तो मिलते ही रहते थे तब पता नहीं चला लेकिन आज जब अधिक समय बाद और अधिक समय तक साथ रहे तब मीरा का भुनभुनाना कुछ अजीब सा लगा | केवल मुझे ही नहीं, हम सबको ही | उसके स्वभाव में बदलाव का कारण जानना जरूरी था |

पता चला कि उसके बच्चे उसकी बात नहीं सुनते थे | वह उनसे थक चुकी थी | पति भी बच्चों का साथ देते, चाहे वे गलत भी क्यों न हों | काफ़ी दिनों तक मीरा चुप बनी रही, अपनी परेशानी मन में लिए घूमती रही। वैसे, परिवार में ये सब बातें कोई नई बात तो है नहीं। कहते हैं न, चार बर्तन साथ हों तो शोर होता ही है। लेकिन ऐसा कुछ होना बहुत गलत था जिसका प्रभाव सीधा किसी के व्यवहार व स्वास्थ्य पर पड़े। परिवार की धुरी होती है महिला ! यदि वह सहज नहीं रह पाती तो पूरे परिवार की नींव ही हिलने लगती है |

पता नहीं क्या होता है हम छोटी - छोटी बातों में जल्दी से अपने मित्रों पर, अपने संबंधियों पर, करीबियों पर इतने नाराज़ हो जाते हैं कि कई बार तो पता ही नहीं चलता कि आख़िर नाराज़गी है किस बात की? अक्सर होता यह है कि हम जिसकी गलती हो उसको समझने के स्थान पर जिसको दबा सकते हैं उसे बोल-बोलकर अपमानित करते रहते हैं और उसकी बात को सुनने के स्थान पर उसे दबा देते हैं |किसी का क्रोध किसी पर निकालते हैं, यह नहीं सोचते कि इसका प्रभाव दूसरे पर कैसा पड़ेगा?|

क्रोध हमारी वो मनोदशा है जो हमारे विवेक को नष्ट कर देती है और जीत के नजदीक पहुँच कर भी जीत के सारे दरवाजे बंद कर देती है। क्रोध न सिर्फ हार का दरवाजा खोलता है बल्कि रिश्तों में दरार का भी प्रमुख कारण बन जाता है। लाख अच्छाइयां होने के बावजूद भी क्रोधित व्यक्ति के सारे गुण उसके क्रोध की गर्मी से मुरझा जाते हैं।

क्रोध पर विजय पाना आसान तो बिलकुल नहीं है लेकिन उसे कम आसानी से किया जा सकता है, इसलिए अपने क्रोध के मूल कारण को समझने की और उसे सुधारने की आवश्यकता होती है | यदि हम थोड़ा ध्यान दें तो देखेंगे कि हमारा क्रोध क्रमश: कम होता चला जायेगा।किसी का क्रोध किसी पर उतरना यानि स्थिति को और बिगाड़ देना |

इसमें एक और बात भी बहुत महत्वपूर्ण है कि पति-पत्नी एक-दूसरे का सम्मान नहीं करेंगे तो पड़ौसी, बच्चे, परिवार के अन्य सदस्य --यहाँ तक कि परिवार में सेवा करने वाले भी उसका सम्मान नहीं कर सकेंगे जिसका अपमान किया जा रहा हो | सबसे बड़ी बात कि जिसका अपमान किया जाता है उसका आत्मविश्वास खंडित होने में देर नहीं लगती |

मीरा के साथ यही हुआ था | वह कुछ कह नहीं पाती थी तो उसके मन पर उन सब बातों का प्रभाव पड़ता था | वह इतना अधिक असहज रहने लगी कि उसके पति को मनोवैज्ञानिक डॉक्टर की सलाह लेनी पड़ी | उसे ही नहीं, उनके पूरे परिवार को लगभग छह माह तक सैशन लेने पड़े क्योंकि ग्रंथियाँ सबके मन में ही घर कर गईं थीं | पानी की तरह पैसा बह्य | अंत में गलतियों का अहसास तो हुआ लेकिन मीरा के मन में हमेशा के लिए नकारात्मकता आ गई |

डॉक्टर ने उसे फिर से नृत्य में रुचि लेने की सलाह डी | उसने शुरू भी किया और काफ़ी सकारात्मक भी हुई लेकिन प्रश्न यह उठा कि ---'आखिर यह सब क्यों होना चाहिए था ?'

हम सब ही रोज़ाना के अपने व्यवहार को तोलकर यदि जीवन जीएँ तो कोई संशय नहीं है कि बेहतर और आनंदित जीवन जी सकेंगे |

 

प्रसन्न, आनंदित रहें |

सस्नेह

आपकी मित्र

डॉ. प्रणव भारती