Chutki Didi - 21 - Last Part books and stories free download online pdf in Hindi

छुटकी दीदी - 21 - अंतिम भाग

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बारह दिन बाद रविवार को सलोनी की तेरहवीं एवं श्रद्धांजलि सभा का आयोजन स्वामी जी के आश्रम में किया गया। हॉस्पिटल के ऊपर चमकने वाली लाइट का सुन्दर बोर्ड लगा दिया गया था - ‘सलोनी कैंसर हॉस्पिटल एण्ड रिसर्च सेंटर’। आज इसका उद्घाटन प्रदेश के मुख्यमंत्री के हाथों होना था। आश्रम और हॉस्पिटल दोनों को बहुत सुन्दर ढंग से सजाया गया था। आश्रम में सुबह से भंडारा चल रहा था। एक सामाजिक संस्था ने सलोनी को श्रद्धांजलि देने के लिए स्वैच्छिक रक्तदान शिविर का आयोजन किया हुआ था, जिसमें युवक और युवतियाँ बड़े उत्साह के साथ रक्तदान कर रहे थे। निर्बाध गति से भजन-कीर्तन चल रहा था।

सलोनी के स्कूल के स्टाफ़ से बनर्जी मैम के साथ चार अध्यापक आए हुए थे। बनर्जी मैम ज्योत्सना और भाग्या के साथ थी। स्टेज के सामने उन्हें अगली पंक्ति में बिठाया गया था। हॉस्पिटल के मुख्य द्वार से दाईं ओर शिलापट्ट लगाकर वहाँ उद्घाटन की औपचारिकता की जानी थी। स्वामी जी इधर-उधर घूमकर सारी व्यवस्था देख रहे थे। 

मुख्यमंत्री ने आना था, इसलिए सारे आश्रम की सजावट, सुरक्षा की जाँच-पड़ताल, भंडारे की भीड़, पार्टी कार्यकर्ताओं का समूह, मुख्यमंत्री की झलक पाने के लिए बेताब गाँव के लोग, चारों ओर कोलाहल… गहमागहमी थी।

सुकांत भी आश्रम में आया हुआ था। भीड़-भाड़, चहल-पहल से अलग वह शिव मन्दिर के चबूतरे पर बैठा सोच रहा था। वह दूर कोने में बैठा वृक्षों की ओर देख रहा था। जवान पीपल के तने को देखकर उसे सलोनी का आभास हुआ। मन के कैनवस पर उसने सलोनी का चित्र बनाने का प्रयास किया, किन्तु कई प्रयासों के बावजूद वह सलोनी के व्यक्तित्व को कैनवस पर नहीं उतार पाया। अन्ततः उसका मन शरीर से निकलकर सलोनी के पास पहुँच गया, ‘सलोनी… सलोनी … मैं तुम्हारे बिना जी नहीं सकता … कराहता हुआ मन वृक्ष से लिपट गया … सलोनी, तुमने सात जन्म साथ रहने का वायदा किया था, परन्तु एक वर्ष में ही तोड़ दिया … तुम एकदम झूठी हो … बेवफ़ा हो … तुम्हारे शरीर में दिल नहीं, पत्थर है… सोच लो, जब तुम अपना वायदा पूरा नहीं कर सकती तो मैं बंधन में क्यों बंधूँ … क्यों किसी और से दिल लगाऊँ … क्यों नया साथी चुनकर विवाह रचाऊँ, … क्यों, आख़िर क्यों … तुम्हारी मधुर-मधुर यादें ही मेरे जीवन के लिए काफ़ी हैं … उनके साथ रहने … बार-बार उन्हें दुहराने में मुझे बड़ा सुख मिलता है।’

यकायक उसे ख़्याल आया कि वह मन्दिर की सीढ़ियों पर बैठा पीपल के तने को निहार रहा है। सलोनी अब इस दुनिया में नहीं है। … बार-बार वह मेरे ख़्यालों में आ जाती है … यह दिल भी कितना पागल है … बार-बार सच्चाई से दूर भाग जाता है .. फिर-फिर घूमकर सपनों में खो जाता है ..।

सुकांत बाबू को एकांत में गमगीन बैठा देखकर बनर्जी मैम उसके पास आई और पूछा, ‘सुकांत बाबू, क्या सोच रहे हो?’

‘सोचने के लिए अब क्या शेष रह गया है, मैम। सब कुछ तो उजड़ गया। ऐसा समय तो भगवान किसी को न दिखाए!’ कहते हुए उसका गला भर्रा गया।

‘धैर्य रखो सुकांत बाबू, ईश्वर तुम्हारी परीक्षा ले रहा है। इस परीक्षा में तुम्हें धैर्य पूर्वक सफल होना है। जिस कैंसर को सलोनी संसार से भगाना चाहती थी, उसके विरुद्ध जागरूकता का आन्दोलन चला रही थी, उसी कैंसर ने उसे लील लिया। अब हमें उसके अधूरे काम को, कैंसर के विरूद्ध आन्दोलन को आगे बढ़ाना चाहिए।’

‘मैम, मुझसे तो कुछ भी नहीं हो रहा। इस विपत्ति की घड़ी में मैं तो टूटकर बिखर चुका हूँ।’

‘सुकांत बाबू, विपत्ति से घबराओ नहीं, इससे साहस पूर्वक मुक़ाबला करो। यह कोई ऐसी विपत्ति नहीं है कि इसके बाद कुछ भी नहीं बचेगा। समय की मरहम सब घावों को भर देती है।”

‘नहीं मैम, मैं सोचता हूँ, इससे बड़ा हादसा किसी के जीवन में हो ही नहीं सकता..।’

‘सुनो सुकांत बाबू, भगवान राम के चरित्र को तुम अच्छी प्रकार जानते हो। सारी सृष्टि के रचयिता, जीवों के पालनहार। उनपर विपत्तियों का कैसा पहाड़ टूट पड़ा था! जहाँ एक ओर उनके राजतिलक का अभिषेक होना था, वहीं अचानक माता कैकेयी को दिए गए वचनों के फलस्वरूप पिताजी ने उन्हें चौदह वर्षों के लिए वनवास में भेज दिया। एक सुकुमार को अपनी कोमलांगी पत्नी जानकी और छोटे भाई लक्ष्मण के साथ जंगलों में चौदह वर्षों तक भटकना पड़ा। इसके अतिरिक्त उनकी प्रिय पत्नी को रावण अपहरण करके ले गया। फिर वानर सेना … लड़ाई … लड़ाई … अनेक कष्टों के बाद रावण को हराकर पत्नी को छुड़ाकर लाए तो एक धोबी द्वारा लगाए निराधार लांछन स्वरूप पत्नी को फिर से जंगल में भेजना पड़ा। … अब तुम ही सोचो सुकांत बाबू, जब भगवान राम के जीवन में इतने कष्ट आ सकते हैं तो साधारण इंसान का तो कहना ही क्या! हम जैसे इंसानों के जीवन में इतने संकट कभी नहीं आते। विपरीत परिस्थितियों में भी भगवान राम ने अपने कर्त्तव्य और मर्यादा को नहीं छोड़ा, इसलिए हम उन्हें आज भी अपना आदर्श मानते हैं। तुम्हें भी कोरी भावुकता छोड़कर अपने उद्देश्य में आगे बढ़ना चाहिए।’

‘दीदी, भगवान राम की पीड़ा सुनाकर तो आपने मेरी आँखें खोल दी हैं। अब मैं धैर्य के साथ सलोनी के ‘कैंसर के विरूद्ध आन्दोलन’ को आगे बढ़ाऊँगा। दीदी, आपने मुझे सच्ची राह दिखाई है। जब कभी मेरा मन भटकेगा या विचलित होगा तो मैं आपसे मन की बात साझा किया करूँगा।’

‘ठीक है, सलोनी तो मेरी छोटी बहन जैसी थी। अब तुम छोटे भाई बन गए हो। कभी भी मेरी आवश्यकता पड़े तो मुझे याद करना, मुझे अच्छा लगेगा।’

‘धन्यवाद दीदी,’ सुकांत बाबू बड़ी बहन पाकर गदगद हो गए।

अचानक आश्रम में हलचल बढ़ गई। सबकी नज़रें आश्रम के मुख्य द्वार की ओर लगी थीं। कुछ ही मिनटों में मुख्यमंत्री के क़ाफ़िले की गाड़ियों ने आश्रम में प्रवेश किया। स्वामी जी तथा डॉक्टरों की टीम ने उनका स्वागत किया। उन्हें रक्तदान शिविर में ले ज़ाया गया, फिर आश्रम में पूजा-अर्चना की गई। तत्पश्चात् मुख्यमंत्री को हॉस्पिटल के उद्घाटन समारोह में लाया गया।

मुख्यमंत्री जी से सलोनी की माँ और भाग्या का परिचय कराया गया। मुख्यमंत्री ने माँ से उद्घाटन करने का अनुरोध किया, परन्तु माँ ने विनम्रतापूर्वक इनकार कर दिया तो लोक-कल्याण के मंत्र उच्चारण, शंख तथा घड़ियाल की पवित्र ध्वनि के मध्य माननीय मुख्यमंत्री जी ने ‘सलोनी कैंसर रिसर्च सेंटर’ का उद्घाटन किया। स्कूल के बच्चों ने स्वागत गीत गाया तथा नृत्य प्रस्तुत किया। इसके बाद कैंसर के प्रति जागरूकता फैलाने वाली लघु नाटिका की आकर्षक प्रस्तुति की गई। इसके पश्चात् मंच पर आकर ज्योत्सना तथा भाग्या ने मुख्यमंत्री की उपस्थिति में ‘कैंसर हॉस्पिटल एण्ड रिसर्च सेंटर’ के लिए इक्यावन लाख का चेक स्वामी जी को भेंट किया। स्वामी जी ने तत्काल चेक साथ खड़े डॉक्टर भाटिया को दे दिया तथा माँ-बेटी को आशीर्वाद दिया, मुख्यमंत्री ने उन्हें बधाई दी। सलोनी को याद करके माँ की आँखें नम हो गईं।

कार्यक्रम के अन्त में मुख्यमंत्री जी को उद्बोधन के लिए आमंत्रित किया गया।

‘आदरणीय स्वामी जी, हॉस्पिटल स्टाफ़, भाइयो और बहनो! बहुत ख़ुशी की बात है कि आज सलोनी बेटी की स्मृति में उनकी माता ने कैंसर हॉस्पिटल के विस्तार के लिए इक्यावन लाख की धनराशि दान में देकर समाज के समक्ष एक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया है। अपने लिए तो हर कोई जीता है, लेकिन जो व्यक्ति समाज कल्याण की भावना को अपने जीवन का उद्देश्य बना लेता है, उसकी सांसारिक यात्रा चिरस्मरणीय बन जाती है। जैसा मुझे बताया गया है, सलोनी बेटी ने स्वयं कैंसर से पीड़ित होते हुए भी इस नामुराद बीमारी के उन्मूलन के लिए बीड़ा उठाया, इसके विरुद्ध जागरूकता अभियान चलाया और अब उसके परिवार ने इतनी बड़ी धनराशि दान में दी है तो निश्चय ही इन्होंने अपने जीवन का उद्देश्य पूर्ण कर लिया है। हमें सलोनी बेटी और उसे जन्म देने वाली माता पर गर्व है। सलोनी बेटी को नमन करते हुए मैं अपनी सरकार की ओर से इक्यावन लाख रुपए की सहयोग राशि हॉस्पिटल के लिए स्वीकृत करता हूँ,’

पंडाल करतल ध्वनि से गूँज उठा। मुख्यमंत्री ने आगे कहा, ‘सलोनी जैसी बेटियाँ कभी मरती नहीं, सदैव अमर रहती हैं। मुझे आशा ही नहीं, पूर्ण विश्वास है कि ‘सलोनी कैंसर एण्ड रिसर्च सेंटर’ प्रदेश ही नहीं, भारतवर्ष में प्रतिष्ठा प्राप्त करेगा। स्वामी जी की लगन तथा प्रयास की मैं हृदय से प्रशंसा करता हूँ।

जय हिन्द, जय भारत।’

मुख्यमंत्री के उद्बोधन के बाद उन्हें तथा सलोनी की माँ को सम्मान चिन्ह भेंट किए गए और इस प्रकार यह दिवस सलोनी की माँ तथा भाग्या के लिए एक स्मरणीय दिवस बन गया।

माँ कीं आँखों में आँसू थे जो सलोनी को याद करके आए थे, लेकिन उनमें कहीं ख़ुशी भी छिपी थी कि सलोनी को दुनिया याद रखेगी।

स्वामी जी तथा अन्य भक्तों ने उन्हें सम्मानपूर्वक विदा किया। 

इतिश्री

डॉ. मधुकांत

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डबल पार्क, रोहतक-124001

मो.98966-67714