Dastak Dil Par - 12 books and stories free download online pdf in Hindi

दस्तक दिल पर - भाग 12

""दस्तक दिल पर" किश्त-12

मेरा मन किया कैब वाले का मुँह तोड़ दूँ, उसे भी अभी आना था। मैंने उम्मीद भरी नज़र से उसे देखा कि शायद वो रोक ले, मगर वो तो भेजने पर उतारू थी। उसने मेरा बैग उठाया और मेरी ओर बढ़ा दिया।

मैं समझ गया था, वो मुझे नहीं रुकने देगी। मैंने उसका चेहरा पढ़ने की कोशिश की, मगर वो कठोर और भाव शून्य लगा। मैंने बैग उसके हाथ से लेकर एक ओर रखा, और उसके गले से लिपट गया, वो संयत खड़ी थी, फिर उसके हाथ मेरे गिर्द कस गए, मैंने उसे होले से फिर कहा, “रोक लो ना।”

“नहीं, जाओ ..जाओ जल्दी, वो फिर हॉर्न बजायेगा तो पड़ोस के लोग झाँकेंगे।” ये कह कर उसने मुझे अपने से अलग कर दिया।

मैंने अपना बैग उठाया और बिना उसकी और देखे ही, उसके घर से बाहर निकल गया और कैब में जा बैठा। वो कैब के जाने तक दरवाजे पर नहीं आई शायद मेरे दूर जाने के बाद ही गेट बंद करना चाहती थी। मुझे उस पर बहुत गुस्सा आया। वो चाहती तो रोक सकती थी, मैंने गुस्से में मोबाइल का नेट ऑफ कर दिया। उसका मैसेज न पढूंगा, न करूँगा, सुबह तक बात ही नहीं करनी।

कुछ ही देर में कैब ने मुझे स्टेशन छोड़ दिया, मैंने टिकट वगैरह ले ली, ट्रेन आधा घण्टे लेट थी। मैं प्लेटफॉर्म के एक कोने में बैठ गया, बैचैनी थी, उसकी मौजूदगी का एहसास हो रहा था जैसे मुझ में ही बसी हुई हैI मैंने बड़ी ही बेकरारी महसूस की,और तड़पकर मोबाइल का नेट ऑन किया, उसके कोई दस मैसेज आये पड़े थे।

“आज हम फिर से तन्हा हो गए।”

“आप के साथ ये पल गुजारकर लगा जैसे जिंदगी की हर कमी पूरी हो गई।”

“काश ये पल ठहर जाते।”

“आप बहुत अच्छे हो, हमने आप जैसा अच्छा इंसान आज तक नहीं देखा।”

“मैं जानती थी, आज आप मुझे उस तरह से नहीं छुओगे, मुझे अच्छा लगा, हमारे प्यार में शरीर आड़े नहीं आएगा।”

“आपको सीने से लगाकर बहुत अच्छा लगा, हमें अंदाज़ा नहीं था आप गले भी लग जाओगे, पहले हमें असहज लगा, फिर हमने भी आपको कस के सीने से लगा लिया।”

“क्या हुआ आप जवाब क्यों नहीं दे रहे।”

“ओह आप पढ़ भी नहीं रहे, खफ़ा हो ना हमसे।”

“बोलो कुछ तो…...बोलो ना….😔😔😔😥😥।”

उसके मैसेज पढ़कर लगा जैसे किसी ने दिल को ज़ोर से निचोड़ दिया हो, दर्द की एक लहर सी सीने में दौड़ी। मुझे अब उसकी बजाय ख़ुद पर गुस्सा आया, वो भी तो जुदाई का दर्द झेल रही होगी। मैं तो कल परसों घर जाकर फिर बच्चों में घुल मिल जाऊंगा पर वो तो नितांत अकेलेपन में रहेगी। शायद मुझ से ज़्यादा जुदाई उसे खल रही हो, मैंने उसे मैसेज किया “............”

“आप ने मेरे मैसेज का जवाब क्यों नहीं दिया।”

“जी, वो मैं आपसे खफ़ा हो गया था, आपने मेरी कितनी मिन्नतों के बाद भी मुझे अपने घर नहीं रहने दिया, भेज दिया। मैं सुबह चार वाली ट्रेन से भी तो निकल जाता।”
“सुनिये, हमारा भी मन था, आपको रोक लें मगर हम कभी भी आपके परिवार, आपके काम और निजी जीवन मे रुकावट नहीं बन सकते। आपको जाना ज़रूरी था, आज हम फिर अकेले हो गए हैं, आपके कल के नहाये हुए टॉवल को हाथ मे लिए बैठे हैं, और आपको महसूस कर रहे हैं।”

“ओह, जाना, इतना प्यार करती हो हमसे?”

“हाँ, जाना इससे भी ज्यादा।”

“पर जाना , आपको हममें ऐसा क्या दिखता है कि आप हमें इतना प्यार करते हो।”

“जाना, प्यारी जाना, एक बात कहूँ.....आपमें हमें सब कुछ दिखता है।”

“सब कुछ…...सब कुछ क्या?”

“दोस्त, भाई बहन, प्रेमिका , पत्नी , माँ बाप, भगवान …...सब दिखता है जाना, ..सब कुछ।”

“ओह, जाना हमें इतना ऊँचा दर्ज़ा मत दो, हम साधारण इंसान हैं, बहुत साधारण इंसान।”

“नहीं, जाना….आप दुनिया की सबसे अच्छी जाना हो, यू आर द बेस्ट जाना ऑफ द वर्ल्ड।”

“हम कुछ भी नहीं हैं, बस आपका नज़रिया अच्छा है, इसलिए अच्छे लगते हैं हम आपको, आप बहुत बेहतरीन इंसान हो, सबसे हटके, सीधे और सच्चे।”

“लव यूँ, जाना।”

“हेट यू!, ……..आपकी ट्रेन नहीं आई।”

“हेट यू, उँह...बस वो सुंदर सी औरत की आवाज आ रही है कि ट्रेन आने वाली है।”

“हेट यू, ….रहो उसी सुंदर आवाज़ वाली के साथ।”

ट्रेन आ गई थी और मैं ट्रेन में धक्कम पेली में लग गया, कुछ देर में मुझे सीट मिल गई। ट्रेन ने धीरे धीरे प्लेटफॉर्म छोड़ दिया और आगे बढ़ने लगी, जैसे जैसे ट्रेन आगे बढ़ रही थी उससे बिछड़ने का दर्द उतना ही ज्यादा बढ़ता जा रहा था, मैं आँखें बंद कर पीछे सिर टिका कर बैठ गया, उसका ही चेहरा हर कहीं आ रहा था।

अचानक मोबाइल ने अपने होने का एहसास दिलाया मैसेज आया था रात के पौने एक पर उसी का मैसेज आ सकता था। उसने एक फ़ोटो भेजी थी जिसमें उसने डेयरी मिल्क की वो चॉकलेट पकड़ी हुई थी। नीचे टेक्स्ट मैसेज था, “इसे बहुत संभाल कर रखेंगें ताउम्र, आपको सीट मिली।”

“हाँ सीट मिल गई, और आपका रबड़ बेंड अभी भी मेरी कलाई से लिपटा हुआ है, इसे हम भी संभाल कर रखेंगे ताउम्र।”

“☺️😊😊😊”

“जाना, एक बात कहूँ।”

“कहिये, जाना।”

“आपने हमें घर बुलाया , अपने साथ रखा, और मान लो हम कोई चोर उचक्के होते, आपको चाकू की नोक पर लूट लेते, आपके यहाँ तो केस भी मिल जाता और गहने भी, या ज़बरदस्ती कर लेते तो आपके साथ....आप किसी को चिल्लाकर बुला भी नहीं सकती थी, उसमें आपकी बदनामी हो सकती थी, क्या आपको हर किसी पर यूँ यकीन करना चाहिए?”

काफ़ी देर तक कोई मैसेज नहीं आया। फिर उसका मैसेज आया “जाना, हमने आपको घर बुलाया, पास बैठाया, अपने साथ रखा, पता नहीं हमें क्यों आप पर इतना यकीन हुआ? सच कहें तो हमने आपके साथ रहकर खुद को ज्यादा सेफ महसूस किया, जाने क्यों आप पर दुनिया की हर चीज़ से ज़्यादा विश्वास करने को मन करता है, आप पर जान हाजिर है।”

“फिर भी मान लो हम आपको चाकू मार देते तो।”

“जाना, अब आप हमें डरा रहे हो, गंदे कहीं के , जाओ अब हम आपसे बात नहीं करते, कुट्टा।”

“जाना, लव यू।”

“हेट यू, अब आप सो जाओ, हमें भी नींद आ रही है, सुबह जगा देना हमें, गुड नाईट।”

“गुड नाईट।” कहकर मैंने फ़ोन को जेब के हवाले कर दिया।

मैं सीट से सर टिकाकर सोने का प्रयास करने लगा, मगर नींद नहीं आ रही थी। रह रहकर वो ही याद आ रही थी, मुझे याद है पहली मुलाकात में हम दोनों जब मिले थे, मेरी तो बोलती ही बंद थी उसके सामने, न मैं बोल पा रहा था, ना उसे देख पा रहा था। ये क़रीब छह महीने पहले की बात है। हमें बातचीत करते हुए छह महीने के आस पास समय हो गया था पर मिल नहीं पाए थे, हम बार बार कहते थे कि एक दूजे से मिलना है, बहुत मन है।

एक रोज़ ऑफिस में मुझे हेड ऑफ़िस से फोन आया कि परसों आपको रिजिनल ऑफ़िस जाना है। मुझे तो जैसे मन की मुराद मिल गई थी, मेरा रिजिनल ऑफिस तो उसके शहर में ही है। मैंने उसे मैसेज किया “........।”

“बोलिये क्या हुआ।”

“मैं परसों आपके शहर आ रहा हूँ।”

“वाह ये तो बहुत अच्छी बात है, आ जाओ हम मिलेंगे आपसे।”

“मुझे भी मिलना है आपसे, सुनिये आपका हाथ भी पकड़ना है।”

“क्यों।”

“ऐसे ही मुझे अच्छा लगेगा।”

“और मुझे अच्छा नहीं लगा तो....”

“तो नहीं पकड़ेंगे , बस आप मिल लेना।”

“अरे, पकड़ लेना, और हम ज़रूर मिलेंगे।”

मैं उस दिन बहुत खुश था, उस दिन उसने ऑफ़िस से छुट्टी ले रखी थी। उसकी बेटी भी घर आई हुई थी, मैंने उसे मैसेज किया तो उसने बताया कि दो बजे तक कैसे भी फ़्री हो जाना। हम तीन बजे मिलेंगे, हमें केवल तीन घण्टे का समय मिलेगा, तीन से छह मिल पायेंगे।

मैंने मैसेज किया कि मैं फ्री होते ही आपको मैसेज करूंगा, आप मिलने की जगह निश्चित कर लें। मैं ऑफिस में काम मे लग गया और मुझे ग्यारह बजे पता चला कि एक बजे से मीटिंग होनी है। रिजिनल मैनेजर साहब आ रहे हैं। मीटिंग उनके आने के बाद तय होगी कि किस किस को मीटिंग अटेंड करनी है तब तक कोई ऑफ़िस नहीं छोड़े। मैं बैचैन हो गया मन ही मन अरदास करने लगा हे भगवान! मुझे मीटिंग में मत इन्वॉल्व कर देना, मुझे आज उससे मिलना है।

संजय नायक "शिल्प"
क्रमशः