Ek Dua - 16 books and stories free download online pdf in Hindi

एक दुआ - 16

16

“वाह विशी, आज तो तूने कमाल कर दिया मौसमी का जूस और मेरा फेवरेट पाश्ता ! आज तो तूने मेरा दिन बना दिया छुटकी ।“

“अच्छा बना है न भैया ?”

“हाँ बहुत अच्छा । मुझे आज जल्दी काम पर जाना है तुझे कहीं जाना हो तो बता दे मैं छोड़ दूंगा ।”

“नहीं भैया, मैं अब कहीं भी जाने का होगा तो रिक्शे में जाऊँगी । आपको परेशान नहीं किया करूंगी ।”

“ऐसा क्यों ? पहले तो मेरी खुशामदें करती थी अब इतना आत्म विश्वास आ गया। पता है मैं आज बहुत खुश हूँ क्योंकि मैं खुद चाहता था कि तू खुद पर विश्वास करना सीख ले ।”

“भैया आप भी न ! वैसे आप सच बताना मुझसे नाराज तो नहीं हुए न ?”

“अरे तू पागल है छुटकी । नाराज क्यों होना भला बल्कि मुझे खुशी हुई कि मेरी बहन बड़ी हो गयी है और समझदार भी।”

भैया चले गए थे और उसको भी निकलना था, मम्मी से कह कर मैं भी जल्दी चली जाती हूँ वरना देर हो जायेगी । उसने सोचा और मम्मी से कहा,

“मम्मी जा रही हूँ, जल्दी वापस आ जाऊँगी ।”

“अभी तो तेरा भाई गया, उसके साथ ही चली जाती ।”

“नहीं मम्मी, हमेशा भैया को क्यों परेशान करना ।”

“ओहो बड़ी हो गयी हमारी छुटकी बिटिया ।”

“जी मम्मी हो जाना चाहिये न ?”

“हाँ बिलकुल ।”

“जाऊँ अब मैं ?”

“ठीक है जल्दी आ जाना ।”

वो घर से निकली थोड़ी ही दूरी पर रिक्शा मिल गया । पहली बार अकेले जा रही थी तो थोड़ी हिचक भी हुई लेकिन ऐसे ही सीखना पड़ेगा ।

मोबाइल पर गूगल मैप आन कर लिया जिससे सही तरह से पहुँच जाये । दो किलोमीटर की दूरी करीब आधे घंटे में तय हुई लेकिन सही जगह पर पहुँच गयी इस बात की खुशी भी हुई । दो दुकानों को जोड़कर बनाया गया वो एक बड़ा सा बुटीक था जिसमें एक तरफ लेडीज और दूसरी तरफ जेन्ट्स के कपड़े थे । दोनों तरफ दो दो टेलर बैठे थे और खूब सुंदर तरीके से उसे सजाया हुआ था । उसे देखते ही महका की मम्मी और दीदी उसके पास आ गयी । उसने दीदी और आँटी को नमस्ते की ।

“महका तूने बहुत सुंदर बुटीक सजाया है ।” विशी ने महिका को गले लगाते हुए कहा ।

“हाँ यार कुछ तो करना ही था अब मैं और भाई दोनों इसे संभाल लेंगे । मेरी मम्मी नहीं चाहती कि हम लोग कहीं बाहर दूसरे शहर काम तलाशने जाए और फिर दीदी की शादी के बाद मम्मी को अकेले नहीं छोड़ सकते, पापा होते तब कोई चिंता नहीं थी।”

“सही कह रही है, अपने घर में कम पैसों में भी सुख है। क्यों खामख्वाह ठोकरें खाते फिरो । क्यों जाना अपने शहर और घर से बाहर जब सब यहाँ है । पहले घरवालों का साथ जरूरी है फिर पैसा ।" विशी ने किसी बड़े अनुभवी की तरह से कहा ।

“यार बड़ी समझदार हो गयी है तू विशी ।" महका चहकी ।

“ क्या नहीं होना चाहिए ? हम लोग भी तो यही सब कर रहे हैं न, मैं मम्मी को छोडकर कहीं बाहर नहीं जा सकती और न ही मेरे भैया । जब उनको हमारी सबसे ज्यादा जरूरत है तो उनको किसके सहारे छोड़े ?”

“अरे छोड़ विशी और महका यह सब बातें, इधर आकर बैठो और यह स्नेक्स और चाय ले लो ।” महका की दीदी उसका हाथ पकड़ कर अपने साथ ले गयी और चेयर पर बैठा दिया जहां पर पचास के लगभग और भी लोग बैठे थे । दुकान के बाहर सड़क के किनारे कुर्सी और मेज लगा दी गयी थी लोगों के बैठने को क्योंकि अभी दुकान का रिबन नहीं कटा था । मिलन का इंतजार था कि वे आए और रिबन काटें ।

थोड़ी ही देर मिलन की गाड़ी आकर रुकी और वे उसमें से अकेले ही निकले जबकि हमेशा एकाध लोग तो जरूर उनके साथ होते थे ! हाँ गाड़ी वे खुद ड्राइव कर के नहीं लाये थे ड्राइवर था जो उनको गाड़ी से उतार कर, उसे एक तरफ पार्क करने ले गया । मिलन के आते ही वहाँ रौनक सी आ गयी जैसे किसी ने संगीत की स्वरलहरियों को छेड़ दिया हो और मदध्यम ध्वनि में बज उठी हो । मन को लुभाने वाला प्यारा संगीत, मन की सुध बुध गवां देने वाला प्यारा संगीत । क्या कोई जादू है इनके पास जो मंत्र मुग्ध कर दिया सबको आते ही । महका के भाई ने आगे आकर उनसे हाथ मिलाया और फूलों का बहुत सुंदर गुलदस्ता उनको भेंट किया । उन्होने उसे अपने हाथ में पकड़ा और विशी की तरफ बढ़ा दिया । अरे मेरे से न नमस्ते ही न कोई हाय हैलो और न ही एक नजर उठाकर देखा फिर मैं इनको कहाँ से नजर आ गयी ? विशी अचरज में थी । वैसे हम जिसे चाहते हैं उसे आँखें बंद कर के भी सामने देख लेते हैं चाहें वे पास हो दूर हो हमेशा अपने आँखों के सामने ही दिखते हैं । “तू क्या सोचने लगी विशी ? इसे उधर कुर्सी पर रख दे और आओ मेरे साथ ।” महका ने उसे हाथ से पकड़ कर दुकान की तरफ ले जाते हुए कहा ।

“हाँ हाँ चल रही हूँ, क्या इस गुलदस्ते को यही पर रख दूँ ?” एक खाली कुर्सी की तरफ इशारा करते हुए विशी ने महका से पूछा ।

“हाँ इसे इधर ही रख दे कोई नहीं उठायेगा, ।“ महका ने कहा ।

विशी को लग रहा था कि जब मिलन ने उसे दिया है तो वो उसे संभाल कर रखे और मिलन को ही सही से वापस कर दे । खैर । उस गुलदस्ते को उधर ही रखकर वो महका के साथ बुटीक की तरफ बढ़ गयी जहाँ पर मिलन रिबन को काट रहे थे साथ ही और सब लोगों से खूब हँस हँस कर बातें कर रहे थे । कोई उनको भाई, कोई दादा और कोई छोटे भैया कह कर बुला रहा था । कोई भी उनको उनके नाम से नहीं पुकार रहा था । विशी को आज उनकी अहमियत समझ आई थी कि उनका कितना अच्छा जॉब है और वो कभी उनको सर कह कर नहीं बुलाती है और न ही उनको उतना मान सम्मान देती है जिसके वो हकदार हैं । वे बुटीक के अंदर चले गए थे जहाँ पर जेन्ट्स कपड़े लगे हुए थे । विशी भी उनके पास आ गयी थी लेकिन सभी लोगों के अंदर आ जाने से बड़ा रश सा हो गया था और सफ़ोकेशन भी । विशी महका को लेकर लेडीज काउंटर कि तरफ चली गयी जहाँ पर अभी भीड़ थोड़ी कम थी । बहुत प्यारे प्यारे टॉप और कुरतियाँ हैंगर में सजी हुई थी । उसका मन किया एक कुर्ती तो ले ही लेनी चाहिए । यह सोच कर वो कुर्तियों को देखने लगी । वहाँ पर लाल रंग की बंद गले की एक कुर्ती बहुत पसंद आई सोबर और बहुत सिंपल सी । तब तक मिलन भी वहाँ आ गए उन्होने दो कुर्ती और तीन टॉप लेने के लिए निकलवा लिए । उसमें वो लाल वाली कुर्ती भी थी जो उसे बहुत पसंद आई थी ।

लो एक कुर्ती तो पसंद आई उसे भी मिलन ने ले लिया । चलो छोड़ो क्या करना मैं नहीं लेती । उसने अपने मन को मारते हुए कहा ।

सभी के लिए नाश्ता और कोल्ड ड्रिंक लगा दिया गया था । महका ने एक प्लेट में थोड़े स्नैक्स लगाए और विशी को प्लेट पकड़ाते हुए कहा, “ विशी यार यह मिलन सर को दे आओ मैं कोल्डड्रिंक ले कर आती हूँ” ।

उसका मन यही तो चाह रहा था कि किसी न किसी बहाने से उसे मिलन का साथ मिल जाये । कुछ बातें हो जाएँ लेकिन वो उसने कुछ बात तो कर नहीं पाती है । वो प्लेट लेकर वहाँ पहुँच गयी पीछे से महका भी लिमका के दो गिलास ले कर आ गयी । उसने प्लेट मिलन के सामने करते हुए कहा, लीजिये मिलन जी, । सब लोग उनको सर कह रहे थे लेकिन उसे तो वे खुद के जैसे ही लगते हैं इसलिए उनसे सर कहने का मन नहीं करता लेकिन सबके सामने उनको मिलन भी तो नहीं कह सकती सब लोग क्या सोचेंगे ? वैसे भी जब गुलदस्ता उसके हाथ में पकड़ाया तो उसको लग ही रहा था कि लोग कैसे उसको देख रहे थे मानों उसने कोई गुनाह कर दिया हो, हे भगवान ! लोगों की सोच कब बदलेगी ? कब कोई किसी को शक की नजरों से देखना बंद करेगा ? क्या एक लड़की और लड़का दोस्त नहीं हो सकते ? क्या उनका रिश्ता पवित्र नहीं हो सकता ? क्यों लोगों की नजरें सिर्फ गंदगी ही देखती हैं ? पता नहीं कब हम रिश्तों की और प्रेम की गरिमा को समझेंगे ?

“आप भी तो लीजिये न विशी जी ।” मिलन ने बड़े अपनत्व के साथ कहा ।

“हाँ हाँ मैं भी ले रही हूँ ।” विशी ने महका के हाथ से एक लिमका का गिलास ले लिया और उसे सिप करने लगी ।

“यह बिस्किट लीजिये न ? आप तो रोज ही रिहर्सल के समय पर चाय बिस्किट खिलाती हैं ।” अपनी ही प्लेट से एक बिस्किट उसकी तरफ करते हुए मिलन ने कहा।

अब मना करते नहीं बना तो उसने वो बिस्किट ले लिया । तब तक महका उसकी प्लेट भी लेकर आ गयी । भला वो उसे क्यों नहीं खिलायेगी, आखिर उसकी पक्की सहेली है । बचपन से साथ पढे हैं । उसका मन ज्यादा पढ़ाई लिखाई में नहीं था लेकिन विशी खूब अच्छी थी पढ़ने में, स्कूल के कार्यक्रमों में सबसे आगे रहने में, सो पढ़ने के बाद जब भी लग गयी और प्ले आदि भी करने लगी ।

मिलन के आसपास बहुत से लोग इकट्ठे हो गए और वे सबसे खूब बातें करने लगे । विशी से कोई बात ही नहीं घर से सोच कर निकली थी कि आज वो मिलन से बात करेगी कुछ अपने मन की और कुछ उनके मन की सुनेगी भी । लेकिन किस्मत को खुशियाँ मंजूर हो तभी तो खुशी, सुख, शांति और मन को सकूँ आता है ।

“चलो भई, सबको नमस्कार ! अब हम चलते हैं ।” मिलन ने सबसे हाथ हिला कर बाय करते हुए कहा।

विशी ने उनका गुलदस्ता उनके हाथ में देते हुए कहा, “यह तो लेते जाइए ।”

“अरे हाँ लाओ, इसे कैसे छोड़ सकते हैं और सुनो तुम मेरे साथ चलो, घर छोड़ देंगे। कोई और साथ में आया है या किसी और के साथ आई हो ?”

“नहीं आज मैं अकेले ही आई हूँ रिक्शे से ।”

“तो आओ, बैठो गाड़ी में । तुम्हारे घर चलते हैं । चाय पीने का बड़ा मन है ।”

“नहीं मैं चली जाऊँगी । रहने दे प्लीज ।”

“क्या प्लीज, आओ चलो मेरे साथ ।” अब कोई इतने अधिकार के साथ कहेगा तो भला कैसे मना किया जा सकता है। अगर कोई साथ में होता तो शायद वो एक बार को मना कर देती । मिलन ने गुलदस्ता को पीछे वाली सीट पर रखा और बीच वाली सीट का गेट खोलते हुए कहा, आओ विशी तुम यहाँ पर बैठो, उसके बैठने के बाद वे दूसरी साइड से गेट खोलकर बैठ गए और बीच में एक कुशन रख लिया ।

 

क्रमशः