Is janm ke us paar - 13 books and stories free download online pdf in Hindi

इस जन्म के उस पार - 13

(कहानी को समझने के लिए आगे के भाग जरूर पढ़े 🙏)


वहा वरदान और संजय वहा आते है.. वरदान अयंशिका का घाव देख डर जाता है।
वरदान आते हुए :- ये क्या हुआ.? कैसे लगी आपको.? धर्म यहां क्या हुआ.?

धर्म :- शांत हो जाओ, वरदान.!

अयंशिका 😏:- आपको क्या.?

वरदान उसकी चोट को देख गुस्से से 😠😠, "आपको पता है आप पागल है.. बेवकूफ है निहायती बेवकूफ.!!"

अयंशिका बहुत ज्यादा गुस्से से 😤😤:- बस बहुत हुआ.. हमने कहा आपको हमरी फ़िक्र करने के लिए.. आ गए बड़े.!!हुंह.!!

वरदान गुस्से से अयंशिका का वही हाथ पकड़ लेता है जहाँ उसे लगी होती है.. "समझती क्या है आप खुदको.!!ख्याल रखना आता नहीं. और अभी मुझे ताना मार रही थी.. आपको पता है क्या.. अबसे मे आपकी कोई फ़िक्र नहीं करूँगा. आप मर भी जाये तब भी नहीं!!"ये बोल उसने झटके से अयंशिका को छोड़ दिया जिससे अयंशिका गिर गई... और बरदान चला गया.!!

धर्म :- अंशी उठिये आप ठीक है ना.!!

अयंशिका भराई हुई आँखों से मुस्कुरा देती है ,"जी भईया.!!"
यहां वरदान ना जाने क्यों गुस्सा आरहा था।

यात्रा मे आगे सब चल रहे थे शाम को अयंशिका खाना लेकर वरदान के खेमे मे जाती है.!!सबको खाना दे एक थाली वरदान को भी देती, "हमारा गुस्सा आपको खाने पर नहीं निकाल ना चाहिए.!!"ये बोल चली जाती है।

सुबह अयंशिका सबको आरती दे रही थी.. वो वरदान के पास आके खुद आरती ले उसके सर पर लगा के चली जाती है। वरदान और बाकि सब बात कर रहे थे। की यात्रिओ के ऊपर हमला होता है.. वरदान, शान, संजय और धर्म सब लड़ रहे थे की वही वरदान गिर जाता है.. ज़ब सामने वाला उस पर तलवार से वार करने जाता है तो अचानक बीच मे एक और तलवार आके उसका वार रोक देती है.. वरदान देखता है तो वो और कोई नहीं बल्कि अयंशिका थी। अयंशिका उसे वार से हरा देती है.. फिर वरदान भी उठकर लड़ता है.!!कुछ देर मे सब भाग जाते है।

धर्म :- अरे वाह अंशी आपको तलवार चलना आती है.

अयंशिका :- जी भईया.!!

चपला सब के घाव पर मरहम लगाने के लिए लाती है.. वही वरदान के हाथ मे भी लगी थी.. अयंशिका उसके पास आके उसका हाथ पकड़ उसपे मरहम लगाते हये,"पता है घाव ऐसे नहीं छोड़ते.. अच्छा नहीं होता. और ख्याल रखना आपको भी नहीं आता.. आप ऐसे रहते है मानो आप कही के राजकुमार हो और सारी चीज आपकी आपके सेवक करेंगे.!"

अयंशिका बोले ही जा रही थी पर वरदान का ध्यान तो उसके चेहरे पर था जो बहुत मासूम लग रहा था और हवा से उसके उड़ते हुए बाल जो बार बार उसके चेहरे पर आ रहे थे जो उसे और दिलकश बना रहे थे। अयंशिका पट्टी कर उसके हाथ को रख चली जाती है। शान जो कबसे ये देख रहा था. वो वरदान के सामने हाथ हिलाकर, "राजकुमार वो गई.!!"

वरदान झेप के इधर उधर देखता है।धर्म मुस्कुराते हुए मन मे :- अयंशिका के दिल से बच पाना मुश्किल है. राजकुमार वरदान.!!

वही गुप्तचर आता है और कहता है, "राजकुमार वरदान... उस शेरा के हाथ मे एक सेर का चित्र गुडा हुआ है.. और क्रूर ने शिवलिंग बदलने की योजना बनाई है ज़ब यात्रा वहा पहुंचेगी तभी शिवलिंग को बदल के यात्रि ओ की भावना के साथ खेलना.!!"

वरदान 😠:- ऐसा कभी नहीं होगा.!!

शान, "ये शेरा है तो इन्ही यात्रियों मे पर पता कैसे चलेगा.?"

धर्म :- अंशी को पता हो सकता है.!!

वरदान :- कैसे.?

धर्म :- अंशी सबको प्रसाद देती है.. हो सकता है उसका ध्यान हर किसी के हाथ पर हो जिससे उसने वो गुड़ा हुआ चित्र देखा हो.!!और अगर ना भी देखा हो तो हमरे कहने पर इतना तो कर ही देगी.!!

शान :- बात तो सही है पर.. वरदान तो बात नहीं करेगा. Or कौन बोलेगा उसे या पूछेगा.??

वरदान 😏:- उसके धर्म भईया और कौन.??

धर्म :- नहीं मे नहीं कहूंगा.. आप कहेंगे राजकुमार आप सोचिये आप कैसे कहेंगे.? मन मे :- मे चाहता हु की आप और अयंशिका साथ हो जय.!!

शाम को आरती देने अयंशिका आती है तो सब वरदान को इशारा करते है.. वरदान के हाथो मे लगी थी जिससे अयंशिका खुद उसे सर को आरती दे चली जाती है।

वरदान आवाज देता है, "अयंशिका..!"

अयंशिका रुक जाती है.. आज पहली बार वरदान ने उसका नाम लिया था.. वो घूमती है की बाकि सब बाहर चले जाते है.. वरदान अपना गला साफ करते हुए, "वो.. हम.. हमें धन्यवाद कहना था..!!पट्टी के लिए और हमारी मदद के लिए और क्षमा भी मांगनी थी उस दिन के😔 गुस्से के लिए.!!"

अयंशिका ☺️:- कोई बात नहीं..!!

वरदान :- क्या हम मित्र बन सकते है.??वो हाथ बढ़ाता है.

अयंशिका हाथ को थाम के 🙂: जरूर.!!वो मुस्कुराते हुए चली जाती है. तो शान, धर्म और संजय आते है।

संजय :- क्या हुआ.??

वरदान :- हमने सोच लिया है.. हम पहले दोस्ती का नाटक करेंगे फिर बातो बातो मे उससे पूछ लेंगे..!!

धर्म :- फिर उसके बाद.!!

वरदान :- उसके बाद क्या.?? अब ये मत कहना की उस पागल को हम सच मे दोस्त बना ले 😄😄!!

वरदान चला जाता है। अगली सुबह सब फिर से चल रहें थे।
यहां एक अनजान जगह.. एक आदमी गुस्से से, "कैसे निकल गई हाथ से मुझे वो अद्रोना चाहिए.!!जाओ पकड़ो उसे.."

सब वहासे भाग जाते है. यहां यात्रा भोजन के लिए रूकती है तो अयंशिका वरदान के पास थाली ले, "चलो हम खिला देते है.!!"

वरदान को मौका चाहिए था.. वो हा कर देता है.. अयंशिका उसे खिलाते हुए बाते कर रही थी।

वरदान :- अच्छा अयंशिका आप तो सबको आरती देती है ना सुबह शाम.!!

अयंशिका :- हा क्युकी आरती देना पुण्य का काम है.!!

वरदान :- तुम्हारे घर मे कौन है.?

अयंशिका :- हम. और हमारे पिताजी.!!माँ तो बचपन मे ही हमें छोड़ के भगवान के पास चली गई थी.. पर पिताजी है ना हमें कोई कमी महसूस नहीं होने देते.!!

वरदान :- हम्म.!!अयंशिका का उसके साथ बैठना और बात करना अच्छा लग रहा था. अयंशिका मासूमियत से उसे सब बताये जा रही थी।

अयंशिका :- चलो आपका खाना हो गया. अब हम चलते है..

शान :- कुछ बताया.!!

ऐसे ही दो तीन बीत जाते है. इन दिनो मे अयंशिका वरदान को अपना अच्छा दोस्त मानाने लगती है.. दोनों की बहुत सारी बाते हो जाती और अयंशिका वरदान को आरती देना., खाना याद दिलाना सब अच्छे से करने लगी थी।

दो दिन बाद वरदान :- अच्छा अयंशिका.!आप को हाथ मे चित्र गुड़वाने का सोख है.?

अयंशिका :- नहीं.. अरे पर अभी यहां यात्रा मे हमने एक आदमी के हाथ मे देखा है सेर का.!!

वरदान जट से :- कहा कौन था.?? आप जानती हो.!!

अयंशिका :- नहीं उसका नाम नहीं पता पर आपको क्या.??

वरदान खुदको शांत कर :- वो मतलब हमें उससे पूछना था कुछ.!!

अयंशिका :-अच्छा ऐसा है.. नाम तो नहीं पता पर हा वो ना पड़ितजी के पास वाले खेमे मे था।

वरदान :- हम्म.!!अयंशिका चली जाती है की वरदान सबको बता कर उस खेमे मे जा कर सेरा को दबोच लेता है।पर सेरा उनको चकमा दे भागने लगता है.. वही कोई अयंशिका के खेमे मे 'इसे आज मे संमोहित करके ले जाऊंगा अघोरा के पास.!!'वो अपने जादू से अयंशिका को संमोहित ( हिपनोटाइज ) कर देता है अयंशिका बेहोशी मे चलने लगती है.!!

वरदान और बाकि सब जहाँ शेरा का पीछा करते है.,अयंशिका भी चलती ही जाती है..शेरा वरदान के हाथ लग जाता है.,वो उसे मार कर कुछ उगलवाता उससे पहले उसके ध्यान अयंशिका के तरफ चला जाता है..जो वहा खाई के तरफ चलती जा रही थी.!!

वरदान : ये अयंशिका इतनी रात को यहां क्या.?? उसके ध्यान को भटका हुआ देख के शेरा उस पर वार कर भाग जाता है.की शान और संजय उसके पीछे भगते है.. वरदान उसके पीछे भाग ने जाता है की हाथ झटका अयंशिका के पास चला जाता है . यहां अयांशिका खाई मे गिरने को होती है की वरदान उसे पकड़ लेता है।

अयंशिका झटके से होश मे आती है..'हम यहां.. यहां कैसे आये.?'

वही शान, संजय आते है.. शान, "वरदान वो भाग गया.!!"

वरदान को बहुत गुस्सा आता है। अयंशिका को तो कुछ समझ ही नहीं आ रहा था..!अयंशिका, "क्या हुआ.. हम यहां कैसे.?"

वरदान गुस्से से :- सब आपकी वजह से हुआ है..हम ना कहते की ये पागल है.. यहां इतनी रात को क्या कर रही हो.!तुम्हारी वजह से वो हमरे हाथ से निकल गया.. बेवकूफ कही की ज़ब देखो तब गलतियां करती है और बकवास बकवास तो इतनी करती है ना.!!

अयंशिका 🥺:- आप हमें क्यों डांट रहे है..!हम तो.!!तब तक वहा चपला और माधवी धर्म के साथ आ जाते है.

वरदान 😠😠:- बस बिलकुल चुप..!!एक तो गलतियां करती है। उस पर ये भोलेपन का नाटक पागल कही की. खबरदार अगर कुछ भी बोला तो. हमने कहा था ना के ये लायक नहीं है हमारी दोस्ती के.!!इसलिए नाटक किया. पर फायदा ही नहीं हुआ सब बर्बाद हो गया.. आज वो हमारे हाथ से छुट् गया।

अयंशिका वरदान को अपनी तरफ कर, "क्या कहा नाटक. केसा नाटक.??"

वरदान :- हा नाटक किया हमने आपसे मित्रता का क्युकी हमें उस इंसान की जानकारी चाहिए थी.. वर्ना आप जैसी पागल से बात करता कौन.??

"चटाआक्क्क 👋अयंशिका ने वरदान को थप्पड़ मार दिया था।

(वीर 😠 सही किया अयंशिका ने बेचारी इतना ख्याल रख रही थी. पर ये झंडू भाव खाने मे लगा है.!!

सूर्यांश उसे घूर के वो मे ही हु. भूल गया.!!

वीर 😁वो.. भूल गया. अरे आगे देखना.!!)

..



....... बाकि अगले भाग मे.!!!