Banzaran - 5 books and stories free download online pdf in Hindi

बंजारन - 5

मोहन को तलवार लाने का ऑर्डर देते देख रोमियो और करन की तो हालत ही खराब हो गई थी। वो तो बेचारे अपने दोस्तो के साथ यहां आए थे, इस बात से उनका क्या वास्ता कि उसके दोस्त क्या करते है?, रोमियो को तो अपनी दादी की कही बात याद आ रही थी जब वो उससे कहा करती थी कि अपने नालायक दोस्तो का साथ छोड़ दे, किसी दिन ये लोग तुझे भी अपने साथ ले डूबेंगे लेकिन उसने उनकी एक ना सुनी और आज अपनी ही कर्मी का फल था कि ठाकुर साहब की तलवार उसके गले पर अटक गई थी। रितिक हिचकिचाते हुए ठाकर साहब से कहता है–" तलवार लाने की क्या ज़रूरत है, हम बातो से भी मामला सुलझा सकते है?"
ठाकुर साहब ना में अपना सिर हिलाते हुए जवाब देते है–" नही, अब बात करने से इस मामले का हल नहीं सुलझने वाला। तलवार तो लानी ही पड़ेगी तभी तुम लोगो को पता चलेगा।"
ठाकुर साहब की बात सुन रितिक का तो रोना ही निकल आता है। उसे क्या पता था कि इतनी छोटी सी बात पर मरने मारने पर बात आ जाएगी। उन चारो ने मन बना लिया था कि जैसे ही ठाकुर साहब तलवार लेकर उन पर हमला करेंगे वैसे ही वे लोग यहां से उल्टे पैर दौड़ लगा लेंगे। उधर हॉल के एक कोने में ही खड़ी दोनो लड़कियों को भी यकीन नही था कि ऐसा कुछ हो जाएगा। शालिनी अपने पापा को अच्छे से जानती थी, वो ऐसे इंसान नही थे कि कोई भी बाहर वाला उनके ऊपर उंगली उठाए और वे चुप चाप सुनते रहे। शालिनी को पता था कि इन लड़कों की बात भी गलत नहीं थी, भला बिना किसी पुख्ता सबूत के वो किसी पर भी भरोसा कैसा कर लेंगे, इसीलिए वो आगे आती है और अपने पापा से कुछ कहने ही वाली थी कि तभी मोहन वाला आ जाता है। उसके हाथो में एक चमचमाती हुई तलवार थी। वो तलवार देखने में काफी पुरानी लग रही थी जिस पर कई रत्न जड़े हुए थे। ठाकुर साहब मुस्कुराते हुए मोहन के हाथ से तलवार लेते है और उन चारो के पास जाने लगते है। ठाकुर साहब को अपनी ओर आते देख उन लोगो की जान ही हलक में आ जाती है, रोमियो और करन तो दो तीन कदम पीछे भी हट चुके थे, इससे पहले की कोई भी वहा से भाग पाता ठाकुर साहब रितिक के पास आते है और कहते है–" ये है महाराजा रणविजय सिंह की शाही तलवार, मुझे उम्मीद है इसे देखकर तुम्हे भरोसा हो जाएगा कि हम ही रणविजय सिंह जी के वंशज है।"
ठाकुर साहब की बात सुन रितिक की जान में जान आती है, उसे तो लगा था कि आज उसका आखिरी दिन है। ठाकुर साहब तो बस उसे सबूत के तौर पर ये तलवार दिखा रहे थे और उसने पता नही क्या क्या सोच लिया था?, खैर बला टली और रितिक उस तलवार को अपने हाथ में लेता है और गौर से उसे देखने लग जाता है। कुछ देर तलवार का मुआयना करने के बाद वो मुस्कुराते हुए कहता है–" इसमें कोई शक नही कि ये तलवार महाराज रणविजय सिंह जी की ही है, इसकी धार से ही पता चलता है कि ये एक शाही तलवार है, आपका खानदान सच में बहुत महान है जो इस धरोहर को सदियों से अपने पास संभाल कर रख पाया है। मै जुबान देता हूं कि आपकी विरासत आपको ही मिलेगी।"
रितिक को पता था कि अगर उसने कुछ भी ना नुकुर करी तो ये शाही तलवार जो उसके हाथ में थी वो अगले ही पल उसके गले पर होगी इसीलिए उसने मामले को यही रफा दफा कर दिया। उसके बाद वो ठाकर साहब से कहता है–" वैसे क्या आपके गांव में बाहरी लोगो का आना मना है?"

" ऐसी बात नही है, दरअसल तारपुरा गांव का सरपंच हमारा खानदानी दुश्मन है, वो हमे नुकसान पहुंचाने के लिए अपने आदमी यहां भेजता रहता है इसीलिए जब भी कोई बाहरी लोग यहां आते है हम उनकी जान पड़ताल करने यहां बुला लेते है।"

" जी " रितिक को ठाकुर साहब की परेशानी समझ आ जाती है और वो आगे उनसे कुछ नही पूछता है। वो लोग बात कर हो रहे थे कि तभी एक आदमी भागता हुआ वहा आता है और घबराते हुए ठाकुर साहब से कहता है–" गज्जब हो गया ठाकुर साहब..."
इस पार मोहन उस आदमी पर चिड़ते हुए कहता है–" क्या गजजब हो गया, कही तेरी घरवाली मां तो नही बन गई।"

मोहन की बात सुन ठाकुर साहब उसे घूरने लग जाते है और फिर उस आदमी से पूछते है–" साफ साफ बताओ बात क्या है?"

वो आदमी कहता है–" मुझे भी कुछ समझ नहीं आ रहा, आप खुद ही चलकर देख लीजिए।"
उस आदमी की बिना सिर पैर वाली बातो को सुनकर वहा खड़े सभी लोग हैरान थे। ठाकुर साहब हाथ दिखाते हुए उस आदमी से कहते है–" ठीक है ठीक है, हम आते है।"
इतना कहकर मोहन और ठाकुर साहब उस आदमी के साथ हवेली से बाहर जाने लग जाते है। उनके पीछे पीछे ही रितिक और उसके दोस्त भी हवेली से बाहर जाने लगते है। वे लोग कुछ कदम ही चले थे कि तभी रितिक की नजर हॉल के कोने में खड़ी दो लड़कियों पर पड़ती है और वो शौक हो जाता हैं। वो जहा था वही रुक जाता है और आंखे फाड़ फाड़कर उन दोनो को घूरने लग जाता है। रितिक ही नही बल्कि अमर भी हैरान था। अमर धीरे से रितिक से कहता है–" ये तो वही लड़की है ना।"
पास ही में खड़ा रोमियो ये सब सुना रहा था और वो कहता है–" क्या तुम इसे जानते हो?"
अमर कहता है–" नही.."
" ये शालिनी है, ठाकुर साहब की इकलौती बेटी, इससे दूर ही रहना बरना ठाकुर साहब को पता चला तो खैर नहीं है।"
रितिक चिड़ते हुए रोमियो से कहता है–" हमसे क्या कह रहा है? तू अपनी देख, अगर ठाकुर साहब को पता चला कि तू उन्ही के गांव की एक टीचर कर लट्टू है तो सोच वो तेरा क्या हाल करेंगे और वैसे भी मेरा ठाकुर साहब की बेटी से क्या लेना देना, मै तो उसके बराबर में खड़ी लड़की की बात कर रहा हुं, क्या तू उसे जानता है?"
रोमियो जवाब देते हुए कहता है–" नही, मैं तो पहली बार इसे यहां देख रहा हूं, शायद शालिनी की दोस्त होगी।"
ये लोग बात कर ही रहे थे कि तभी शालिनी चांदनी को लेकर उन लोगो के पास आती है और मुस्कुराते हुए रितिक से कहती है–" तो तुम्हारा नाम रितिक है?"

रितिक शालिनी के सवाल का जवाब देने ही वाला था कि तभी उसकी नजर चांदनी की आंखो से टकरा जाती है। इधर जब चांदनी की नजरे भी रितिक से टकराती है तो वो शर्म से अपना चहरा नीचे कर लेती है और बस लड़कियों की इन्ही अदाओं पर तो लड़के मर मिटे जाते है। रितिक तो किसी अलग ही दुनिया में खो सा गया था। तभी शालिनी उसके चहरे के आगे चुटकी बजाती है और कहती है–" हैलो मिस्टर, कहा खो गए?

शालिनी के टोके जाने पर रितिक अपने ख्यालों की दुनिया से बाहर आता है और हकलाते हुए जवाब देता है–" जी वो.. मेरा नाम रितिक है और ये मेरे दोस्त, अमर, करन और रोमियो है।"

" हम्म, मेरा नाम शालिनी है और ये मेरी दोस्त है।"

इतना कहकर शालिनी मुस्कुराने लग जाती है और रितिक बेचारा कंफ्यूज हो जाता है। अरे अपना नाम बता दिया तो अपनी दोस्त का भी बता देती। शालिनी को पता था कि रितिक के दिमाग में क्या चल रहा है इसीलिए वो तुरंत चांदनी को लेकर वहा से चली जाती है। इधर रितिक तो बस खड़े खड़े उसे देखता ही रह गया। उसके बाद वे चारो भी हवेली से बाहर आ जाते है और ठाकुर साहब के पीछे पीछे जाने लगते है। जल्द ही वे लोग मंदिर वाले मैदान में पहुंच जाते है। मैदान के ही एक हिस्से में कई लोगो की भीड़ जमा थी। भीड़ देखकर ऐसा लग रहा था जैसे पूरा गांव वहा पर इकट्ठा हो। लोग आपस से तरह तरह की बाते कर रहे थे। सभी के चहरे पर दहशत के भाव नजर आ रहे थे। इतनी भीड़ तो किसी मेले में भी नही होती जितनी वहा इस समय जमा थी।
करन हैरानी के साथ कहता है–" यहां इतनी भीड़ क्यूं जमा है?"
रोमियो जवाब देते हुए कहता है–" पता नही.."
भीड़ को साइड करते हुए जब वे चारो वहा पहुंचते है तो अपने सामने चल रहे नजरे को देख हैरान हो जाते है। सामने ही एक कब्र बनी हुई थी। कब्र की मिट्टी गीली और लाल थी जिससे साफ पता चल रहा था कि कब्र ज्यादा पुरानी नहीं थी। कब्र के ऊपर ही सात इंसानी खोपड़ी पड़ी हुई थी और साथ ही में वहा कई सारे कौए मरे पड़े थे। कब्र के ऊपर ही आसमान में ढेर सारे चील कौए मंडरा रहे थे, जैसे उन्हें किसी संकट का आभास हो गया हो। वो नजारा इतना भयानक था कि लोगो की रूह तक कंपा दे। अकेला आदमी तो डरकर बेहोश ही हो जाता। भीड़ में से कोई एक बूढ़ा आदमी घबराते हुए कहता है–" वो लौट आई है..."
पास ही में खड़ा एक नौजवान उस बूढ़े से पूछता है–" कौन लौट आई है ?"
उस नौजवान की बात सुन बूढ़ा अपने ख्यालों में ही खो जाता है और खुद से ही बड़बड़ाता है–" बंजारन..."
भीड़ से दूसरा आदमी कहता है–" कल तक तो यहां कुछ नही था, फिर एक ही रात में एक कब्र यहां कैसे आ गई, कही वो आजाद तो नही हो गई?"
एक और आदमी कहता है–" पता नही भईया, मैं तो कहता हूं इस कब्र को ही खोदकर देख लेते है, मुझे तो लगता है किसी ने अपनी दुश्मनी निकाली है और यहाँ मारकर दफना दिया होगा और ये खोपड़ियां यहां डाल दी ताकि लोगो को कोई शक ना हो।"
उसके पास ही में खड़ा एक और आदमी कहता है–" तुम्हारी बात में दम तो है भइया, क्यूं ना तुम्ही इसे खोदकर देख लो?"
उस आदमी की बात सुन पहले वाले आदमी की हवा टाइट हो जाती है और वो इधर उधर देखने लग जाता है।
इधर मोहन उस कब्र का जायजा ले रहा था और ठाकुर साहब के चहरे पर चिंता के साफ भाव झलक रहे थे। उनके चहरे को देखकर ऐसा लग रहा था जैसे उन्हें किसी अनहोनी का एहसाह हो गया हो।

मोहन ठाकुर साहब के पास आता है और कहता है–" हम्म, ये कब्र कल रात ही यहां बनाई गई है।"

मोहन की बात सुन ठाकुर साहब चिड़ते हुए उससे कहते है–" उल्लू के पट्ठे वो तो मुझे भी समझ आ रहा है, इसमें नई बात क्या है?"

ठाकुर साहब की डॉट सुन मोहन अपना सर खजाने लग जाता है। ठाकुर साहब कुछ देर तक तो उस कब्र को ही देखते रहते है और फिर तेज आवाज में गांव वालों से कहते है–" सब लोग शांत हो जाइए और ध्यान से मेरी बात सुनिए।"
ठाकुर साहब की बात सुन सब लोग शांत हो जाते है और ध्यान से ठाकुर साहब की बात सुनने लग जाते है।
ठाकुर साहब आगे कहते है–" हमें लगता है ये किसी इंसान का काम है जो अपना जुर्म छुपाने के लिए ये सब कर रहा है, आप लोग चिंता मत कीजिए हम आज ही इस मामले की छानबीन करवाते है, तब तक आप लोग निश्चिंत हो जाइए और आज के बाद कोई भी रात के समय अपने घर से बाहर नहीं निकलेगा।"
इस पर वो बूढ़ा आदमी खुद में ही बड़बड़ाता है–" नही, ये उसी का काम है, वो वापस आ गई है, अब फिर से मौतों का सिलसिला चालू होगा और फिरसे शिकार होने चालू हो जाएंगे।"
उस बूढ़े की बड़बड़ाहाट को सुन आस पास के कुछ लोगो को यकीन हो गया था कि ये जो भी हो रहा है वो कोई नॉर्मल बात नही है, "कही वो सच में आजाद तो नही हो गई" कुछ लोगो के मन में यही सब चल रहा था और उनके चहरे पर दहशत साफ नजर आ रही थी। गाववालो की बाते सुन रितिक और उसके दोस्तो को तो समझ ही नही आ रहा था कि ये सब क्या हो रहा है? हैरान तो वे लोग भी थे जब उन्होंने उस कब्र को देखा था। मामले की गंभीरता को समझने के लिए वे लोग उस कब्र के पास जाते है और गौर से उसे देखने लग जाते है।
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