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माई का श्राप

पुनः प्रसारण

माई का श्राप

वो तीन बेटों की माँ थी। बेटों को छोटी उम्र में ही छोड़कर पिता गुजर गया था। गंगा नाम था उसका, जैसे ही पति गया वो ठाकुर जी के चरणों में चली गई। बस दिन रात उनका ही ध्यान करती मेहनत मजदूरी कर तीनों बच्चों को बड़ा किया। श्याम प्रसाद, राम प्रसाद और शिव प्रसाद ये ही तीनों उसकी दुनिया थे । भगवान की बहुत सेवा औरदनों बेटों को ब्ई थी गंगा माई। सब कहते थे की गंगा माई के हैं वो जो कहती है पत्थर की लकीर है। सब उसे गंगा माई कहते थे। पूरे गांव वालों को गंगा माई की भक्ति पर अटूट श्रद्धा थी।

नसीब पर किसका ज़ोर चला है नियति अपने आप सब करती है। श्याम प्रसाद की पत्नी मुँहफट थी, गंगा माई से उसका छत्तीस का आंकड़ा था। उन दोनों में अक्सर बहस होती रहती थी। एक रोज़ ऐसी ही बहस होकर झगड़े में तब्दील हो गई। उस दिन श्याम प्रसाद कुछ तैश में आ गया शायद वो पत्नी से दबता था। उस रोज़ वो अपनी पत्नी के पक्ष में गंगा बाई से ज़ोर से बोल गया और उसे कलहगारी कह गया। गंगा माई को बहुत दुख और गुस्सा आया उन्होंने श्याम प्रसाद को श्राप दे दिया, "आज तूने अपनी पत्नी के साथ खड़ा होकर मेरे लिए गलत बोला, जा मैं तुझे श्राप देती हूँ तू गूंगा हो जाये आज के बाद एक शब्द भी न बोल पाये।"

श्याम प्रसाद ने अपनी माता के दुख को महसूस किया और अपनी गलती को भी ,उस दिन से श्याम प्रसाद जानकर गूंगा हो गया, उस घटना के बाद वो कभी नहीं बोला। पूरे गाँव और आस पास के गाँवों में ये चर्चा फैल गई कि गंगा माई ने अपने ही बेटे को गूंगा होने का श्राप दे दिया और उसकी आवाज़ चली गई। गंगा माई की शक्ति और भक्ति का दूर दूर तक प्रसार हो गया। गाँव वाले अब उसकी इज़्ज़त करने के बजाय उससे डर गए, तीनों बहुएँ भी डर गईं। उसके बाद कोई भी गंगा माई के सामने ऊँची आवाज़ में नहीं बोला। सब उसे नाराज़ करने से डरने लगे कि न जाने कब गंगा माई क्रुद्ध होकर कोई वाणी निकाल दे और वो सच हो जाये।

पर गंगा माई अपने श्राप और बेटे के गूंगा होने से दुखी हुई। वो ईश्वर से माफ़ी माँगती रही कि ऐसे अपराध के लिए ईश्वर उसे माफ़ कर दे .... अपने ही बेटे की आवाज़ वो लील गई। पर उसे ईश्वर पर अटूट विश्वास हो गया कि उसकी ज़बान को ईश्वर ने फलीभूत किया। वक़्त चलता रहता है रुकता नहीं। इस बात को बाईस साल गुज़र गए।

गंगा माई वृद्ध हो गई और उसने खटिया पकड़ ली। उसे दुःख था उसने बेटे को श्राप दिया और उसकी आवाज़ चली गई। उसे श्राप से मुक्ति का कोई उपाय नहीं आता था। जब वो मरणासन्न थी उसने अपनी अंतिम इच्छा ज़ाहिर की, कि उसे श्याम प्रसाद से अकेले में बात करनी है। उसकी अंतिम इच्छा के लिए श्याम प्रसाद माई के कमरे में गया। माई ने श्याम प्रसाद के आगे हाथ जोड़े और कहा, " मेरे प्रिय श्याम मैंने तुझे अनजाने में श्राप दे दिया कि तू गूंगा हो जाये और तेरी आवाज़ चली गई। मैं इस श्राप का कोई तोड़ नहीं जानती, पर मैं बहुत दुखी हूँ। मेरे प्राण बस इसीलिए अटके हैं कि इन बाईस सालों में तू बोल न पाया, पर तेरी आवाज़ आ जाये तो मैं चैन से मर सकूंगी और ईश्वर मुझे अपने चरणों में जगह दे दे। वो पल भर का गुस्सा था मैं सच में नहीं चाहती थी तुम्हारी आवाज़ चली जाए। मैं अभागिन इस अपराध बोध से ख़ुद को मुक्त नहीं कर पा रही हूँ।"

उसकी बात सुनकर श्याम प्रसाद ने उठकर उस कमरे के दरवाजे को बन्द कर दिया और कुंडी चढ़ा दी। वो गंगा माई के पास आकर बैठ गया और बोला," माई मैं बोल सकता हूँ....आज से ही नहीं पिछले बाईस साल से बोल सकता हूँ, पर जानकर गूंगा बन गया, ताकि तुम्हारी भक्ति पर किसी को संदेह न हो। साथ ही मेरी पत्नी ही नहीं तुम्हारी बाकी दोनों बहुएँ भी डर से तुम्हारे सामने न बोलें और तुम्हें दुख न पहुंचाएं। सब तुम्हारी इज़्ज़त करें, चाहें डर से ही सही। मैंने देखा है बाबा के जाने के बाद आपने हमें किन कठिन परिस्थितियों में पाल पोस कर बड़ा किया है। जिस दिन तुमने मुझे गूंगा होने का श्राप दिया था, उस दिन तुमने ठाकुर जी पर अटूट विश्वास कर वो श्राप दिया था। अगर वो फलीभूत न होता तो तुम्हारा भी ठाकुर जी पर से विश्वास उठ जाता, और मुझे दुख था कि मैं पहली बार तुम्हारे सामने बोल गया,मैंने जान बूझकर गूंगा होकर तुम्हारे श्राप को जिया। ये ज़रूरी था क्योंकि जो भगवान श्याम थे वो भी अपनी माई की हर बात को मानते थे तो ये श्याम अपनी माई की बात कैसे न मानता ? आज आपका दिया श्राप खत्म हुआ और मेरी आवाज़ आ गई है। आप मन में कोई बोझ न रखकर ईश्वर के भजन करो। मैं आपसे बहुत प्रेम करता हूँ, आप मुझे उस दिन की गलती के लिए क्षमा कर दो।" ऐसा कहकर श्याम प्रसाद ने अपनी माई के हाथ अपने हाथों में पकड़ लिए, माई के गले से आवाज निकली "हे ठाकुर जी मुझे अपने चरणों में स्थान देना।" एक हिचकी के साथ माई के प्राण पखेरू उड़ गये।

श्याम प्रसाद ने माई के कमरे का दरवाजा खोला और ये घोषणा कि माई ने जाते जाते मुझे श्राप से मुक्त कर दिया और मेरी आवाज लौटा दी, बोलो गंगा माई की जय। समवेत स्वर में एक जयकारा गूंजा। ये ख़बर जंगल में आग की तरह आस पास के गाँवों में फैल गई कि गंगा माई जाते जाते अपने बेटे को श्राप मुक्त कर गई। आस पास के गांवों के हज़ारों लोग गंगा माई के अंतिम संस्कार में शामिल हुए और उनकी अर्थी को अपना कंधा लगाकर खुद को धन्य समझते रहे।

धन्य है वो बेटा जिसने अपनी माई, जो कि जीवन भर दुखियारी रही, को देवी बना दिया था।

संजय नायक"शिल्प"