Chityuva Buti - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

चिरयुवा बूटी - 2

(2)

 

डूबना

मोहन हरिद्वार पर उतर गया ।

वहां गंगा नदी को दो भागों में बाँट दिया गया था ।

एक तरफ गंगा को बांध कर रखा था । उसे हर की पौउ़ी कहते हैं।

नदी में बउ़ी संख्या मे लोग तैर रहे थे । नदी का प्रवाह बहुत तेज था |

कुछ लोग नदी पर बने ऊँचे पुल से नदी में कूद रहे थे।

मेाहन अच्छा तैराक था । अनेक लोगों को तैरता देख वह भी तैरते हुए नदी को पार करने का प्रयास करने लगा ।

आधी दूरी तक तो वह भारी प्रयास करके ठीक से नदी पार कर गया किन्तु बाद मे पानी के तेज प्रवाह मे उसके हाथ पैर फूलने लगे । वह नदी को उसके प्रवाह की दिशा से लम्बवत पार कर रहा था किन्तु नदी बड़ी तेजी से उसे अपने साथ धकेलते हुए बहा कर ले जा रही थी।

मोहन ने बहुत देर तक नदी के बहाव के विरूद्ध संघर्ष किया किन्तु तेज बहाव के आगे उसकी एक ना चली ।

वह एक सूखे पत्ते के समान नदी के साथ बहने लगा।

उसने अपने बचने की सारी उम्मीद छोड़ दी और खुद को नदी की दया पर छोड़़ दिया।

कुछ दूर पर गंगा नदी की दोनो और से आने वाली धाराऍं मिलकर अनंत पानी का फैलाव बना रही थी जिसमे मोहन उसमे डूब कर गुम होने वाला था।

तभी उसके हाथ मे कहीं से लटकती हुई एक चेन आ गई।

उसने उसे कसकर पकड़ लिया । वह सांकल डूबते को तिनके के सहारे के समान थी ।

उसे पकड़ते हुए वह दूसरे किनारे पर आ लगा ।

मोहन ने बाद मे देखा कि दूसरे किनारे के मंदिर की दीवार के चारों ओर वह चेन बांधी हुई थी ।

किसी डूबते हुए आदमी को बचाने के लिए वह वहां लटकाई गई थी | उस चेन को पकड़ते हुए धीरे धीरे वह दूसरे किनारे पर पहुँच गया | बड़ी मुश्किल से उसकी जान बच पाई |

 
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ओमानंद आश्रम
मोहन मृत्यु के मुंह से बाल बाल बचा । उसने अब अपना शेष जीवन परोपकार व सत्य की खोज मे लगाने का विचार किया । उसने किसी अच्छे संत से दीक्षा लेकर संसार को त्याग देने का विचार किया।

मेाहन एक दिन एक प्रसिद्ध आश्रम ओमानंद आश्रम में पहुंचा । वह आश्रम गंगा नदी के किनारे स्थित था |

वहां प्रातः चार बजे से भजन कीर्तन व आरती इत्यादि किए जाते थे ।

आश्रम का वातावरण बड़ा दिव्य था ।

वह आश्रम दक्षिण के एक संत का स्थापित किया था |

वे संत एक प्रसिद्ध साउथ इंडियन डॉक्टर थे |

उन्होंने गंगा के ठन्डे पानी में अनेक दिनों तक खड़े रहकर कठोर तप किया था |

अंत में गुरूजी के प्रवचन होते थे | वहां वेदों का पाठ किया जाता था |

ध्यान साधना सिखाई जाती थी ।

 

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मस्तराम बाबा
मोहन ने सन्यास लेकर सत्य की खेाज व मानवता की सेवा करने का विचार किया।

इसके पहले उसने अच्छे पहुंचे हुए संतों से मिलने की निश्चय किया ।

वह ऋिषिकेश में आकर ठहर गया । उसने वहां एक साधु मस्तराम बाबा के विषय मे काफी सुना था।

वह उनके दर्शन करने गंगा किनारे उनके आश्रम मे पहुंचा।

वे लगभग 50 वर्ष के अच्छी कद काठी के सुंदर संत थे।

गंगा किनारे दो चटृानो के बीच की खाली व खुली जगह ही उनका आश्रम था; ऊपर आसमान व नीचे गंगा का किनारा था |

आश्रम के पास गंगा नदी बहती थी |

उनके अनेक चेलों ने उन्हे पक्का सुसज्जित आश्रम बनाने का प्रस्ताव दिया किन्तु उन्होने अस्वीकार करके खुले आसमान मे प्रकृति की छाया तले खुली धरती को चुना । वे सदैव चटृान के सहारे बैठ कर जोर जोर से सिर हिलाकर मस्ती मे झूमते रहते थे, हँसते रहते थे । उनके आश्रम मे कोई भजन,जप,तप,पूजा पाठ,ग्रंथ पारायण नहीं करता ।

अलबत्ता कोई स्त्री कबीर की उलटबांसियां जरूर पढ़ती रहती। किन्तु एक विचित्र बात यह थी कि वे सदैव स्त्री भक्तों से घिरे रहते | वे किसी स्त्री की गोद मे सिर रखकर सोऐ रहते।

वे अपने स्त्री भक्तों से चुहुलबाजी करते रहते थे । वे पुरूषों से बात तक नही करते, यहां तक कि उनकी तरफ देखते भी नहीं थे। इसलिए जनसमुदाय मे उनके विषय मे गलत अफवाहें फैली हुई थी। अनेक लोग उन्हें लंपट समझते थे ।

मोहन उनके सामने जाकर श्रद्धा से बैठ गया किन्तु बात करना तो दूर संत ने उसकी तरफ देखा तक नही । वे उनकी स्त्री भक्तो से बतियाते व उनकी गोद मे बार बार उठते व सोने का स्वांग करके खेल करते रहे ।

इस पर मोहन को बहुत बुरा लगा। ‍‌‍‍‌‍‍

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एक दिन बड़े सवेरे मोहन पुनः मस्तराम बाबा के दर्शन के लिए गया |

वह उनके चरण छूकर बैठ गया |

किन्तु मस्तराम बाबा ने उसकी तरफ देखा तक नहीं |

मोहन को अच्छा नहीं लगा |

उसने संत को ताना मारते हुए कहा, ‘‘ शहर मे एक लड़की गुम हो गई है । लोग कह रहे हैं कि यह काम मस्तराम बाबा का है । ’’

इतना सुनने पर आश्रम मे सन्नाटा पसर गया । हर कोई सन्न रह गया।

एक भक्त मोहन की और बढ़ा | वह उसे पीटने ही वाला था किन्तु बाबा ने उसे ऐसा करने से मना कर दिया।

बहुत देर तक वहां हर व्यक्ति मौन बैठा रहा |

मोहन को बाबा के इस मौन ने ऐसा प्रभावित किया कि उसने बाबा के पैर छूकर उनसे अपने दुर्व्यवहार के लिए माफी मांगी।

मोहन कुछ दिन तक मस्तराम बाबा के यहां जाता रहा ।

 

फिर एक अन्य दिन जब वह आश्रम पहुंचा तो बाबा गंगा मे पानी मे खेल रहे थे। नदी बड़े वेग से बह रही थी |

वे एक बच्चे के साथ नदी में बहते हुए लकड़ी के लट्ठे को बार बार पकडने की कोशिश कर रहे थे |

वे बार बार उस पर चढ़ने का प्रयास कर रहे थे । उनके इस प्रयास मे वे बार बार तेज बहते पानी मे गिरते रहे ।

इस खेल का मजा लेकर वे हंस रहे थे ।

संत का यह खेल देखने वहां एक बड़ी भीड़ इकट्ठी हो गई |

कुछ देर बाद जब मोहन लौट रहा था तो उसने आश्रम के कोने मे एक छोटे बालक को गहन समाधि मे देखा ।

वह बिना हिले डुले वहां बड़ी देर से बैठा हुआ था |

उसने एक भक्त से पूछा कि इस बालक को क्या हुआ है ?

भक्त ने कहा- ‘‘ इसे बाबा ने छडी मार दी है । यह अब तीन दिन तक इसी तरह गहन समाधि मे बैठा रहेगा। ’

अर्थात बाबा मे समाधि देने की असाधरण सिद्धि थी जो बहुत ही कम संतों में होती है ।

बाबा ने अपना असली रूप लोगों से छिपा रखा था। वे बड़े सिद्ध संत थे ।

 
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कठोर तप
मोहन किसी पहुंचे हुए संत की खोज मे आश्रमों मे भटक रहा था।

उसने कुछ संतो के विषय मे सुना जो ईश्वर आराधना हेतु कठोर तप कर रहे थे।

उनके आश्रम का पता पूछते हुए सुदूर जंगल में एक पहाड़ की चोटी पर पहुंचा।

उस उंचाई पर स्वामी के आश्रम मे अनेक भक्तों की भीड़ लगी हुई थी।

वहां एक संत कंडों की जलती आग के बीच मे बैठे हुए मन्त्रों का जाप करते हुऐ तपस्या कर रहे थै।

उनके शिष्यों से पूछने पर पता चला कि वे हठयोग की साधना कर रहे थे ।

एक भक्त ने कहा,

“खुद को तकलीफ देने से भगवान प्रसन्न होते है । ”

तपस्या साधना के अनुसार खुद को तकलीफ देने से पूर्व जन्मों के पाप क्षीण होते है । मेाहन को यह तर्क ठीक नहीं जंचा |

वहां से और ऊपर चढने पर उसे और अनेक आश्रम मिले-

ऐक आश्रम मे एक साधु कांटों पर लेटा था ।

तो किसी कुटिया मे एक साधु पिछले पच्चीस वर्षों से एक पैर पर खड़ा था।

उसका पैर अस्थिपंजर हो गया था |

ऐक कुटिया में ऐक साधु ने अपने एक हाथ को पिछले अनेक वर्षों से ऊपर उठा रखा था ।

उसके हाथ की हड्डियाँ बाहर आ गई थी |

उनके चेले अपने गुरू की तपस्या का बखान करते नही थकते थे।

मोहन को यह सब विचित्र कार्य ठीक नहीं जंचे ।

शरीर मन को तकलीफ देने से ईश्वर खुश होता है - लोगों की ईश्वर के प्रति यह अवधारणा मोहन को ठीक नहीं लगी । जैसे ये, वैसा ही इनके द्वारा कल्पित भगवान ।

 
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हनुमान भक्त
मोहन संतों की अजीब हरकतों से निराश था | उसने संतों से मिलना बंद कर दिया |

फिर एक दिन कुछ लोग हरिद्वार में स्थित किसी हनुमान मंदिर के संत की तारीफ करते हुए मिले ।

मोहन ने उनके भी दर्शन करने का निश्चय किया ।

वह मंदिर बस्ती से बहुत दूर एक सुनसान जगह पर था । उसके पुजारी एक साधू थे । वे बड़े तेजस्वी साधू दिखाई दिऐ | वे पूजा पाठ में अपना जीवन व्यतीत करते थे ।

मोहन कुछ दिन तक आश्रम में जाता रहा |

एक दिन उसने साधुजी से योग साधना के सवाल पूछे |

“महात्माजी मै कुण्डलिनी योग की साधना सीखना चाहता हूँ “, उसने साधू से पूछा |

वे बहुत क्रोधित होकर बोले ‘‘ सामान्य आदमी योग साधना नहीं कर सकता । उसे बस भक्ति करना चाहिए ।’’

सन्यासी साधू लोगों को मन व व्रत्तियों पर विजय प्राप्त करने का उपदेश देते है |

किन्तु विरले साधू ही काम व क्रोध ते मुक्त दिखाई देते हैं | अनेक साधू तो क्रोध की साक्षात् मूर्ति दिखाई देते है |

अनेक साधू चोरी चुपके स्त्रियों से सम्बन्ध बनाते हैं | चेलों की भूख तो उनमे इतनी अधिक होती है कि उनकी संख्या बल से ये अपनी अलग दुनिया बना लेते है जो काम, क्रोध व स्वामित्व आदि सभी दुर्गुणों से भरी रहती है | अनेक साधू आश्रमों पर कब्जे के लिए चाकू, छुरे,बन्दूक चलाते देखे गए है |

उनके यहां एक तरूणी विधवा स्त्री मंदिर में सेवा करने आया करती थी । साधू महाराज बड़े अधीर होकर उसकी प्रतीक्षा करते रहते थे । उसे देखकर अस्सी पार साधू महाराज कुछ ज्यादा ही जोशीले व उत्तेजित दिखाई देते । जैसे ही उस भक्तिन का प्रवेश होता, वे उसे एक एकांत कमरे में ले जाकर न जाने क्या उपदेश देते रहते । अन्य लोगों पर उनके इस कृत्य का क्या असर होगा ? वे क्या सोचेंगे ? साधू महाराज को इस बात का कोई होंश नहीं रहता । कुछ समय बाद विधवा गर्भवती हो गई । वह आश्रम से रहस्यमय तरीके से गायब होगई | फिर वह किसी को दिखाई नहीं दी ।

पुलिस ने उस विधवा की तलाश में आश्रम पर कई बार छापा मारा | शायद साधू महाराज ने उस महिला की हत्या कर उसका शव कही दफ़न कर दिया था | तो यह था, साधू महाराज का असली अध्यात्म ।

 

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यौन शोषण
एक बार मोहन मथुरा के एक प्रसिद्ध आश्रम गया |

अनेक लोग उस आश्रम की खूब तारीफ करते थे |

कुछ तो उस आश्रम को चमत्कारिक बताते थे | वहां हर मनोकामना पूरी होती थी |

किन्तु ऐक दिन मथुरा के उस आश्रम पर पुलिस ने छापा मारकर उसमें रहने वाले सभी साधुओं को गिरफ्तार कर लिया । उन पर अनेक नाबालिग लड़कियों को कुआ, बावड़ी व नदी में डुबोकर मारने का गंभीर अपराध था ।

उस आश्रम में अनेक लोग मनोकामना पूरी होने पर अपनी छोटी बच्चियों को भगवान की सेवा के लिए जीवन भर दान दे जाते थे ।

वहां के साधू उनका यौन शोषण करते थे । गर्भवती होने पर वे मासूम छोटी लड़कियों की हत्या कर देते थे ।

साधुओं में विरले ही पहुंचे हुए संत होते हैं ।

एक कहावत है ‘ पत्नि मुई सब सम्पति नासी, मूड़ मुड़ाय भये सन्यासी ’

अर्थात् पत्नि के मरने व सम्पत्ति के नाश होने पर अनेक लोग घरबार छोड़ देते हैं | वे गंजे होकर सन्यासी बन जाते हैं।

मोहन किसी ऐसे संत की खोज में था जो रमण महर्षि के समकक्ष हो ।

महर्षि सदैव सहज समाधि की उच्चतम अवस्था में रहते थे ।

उनके दर्शन मात्र से आध्यात्मिक शांति अनुभव होता था ।

ऐसे संत अवश्य होंगे किन्तु बिना किस्मत के उनका मिलना भी बडा कठिन कार्य होता है ।

 

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